पियरे कॉर्नेल (1606-1684) की जीवनी: एक कालजयी नाटककार
पियरे कॉर्नेल का जन्म और शुरुआती जीवन
पियरे कॉर्नेल का जन्म डाईपे (Dieppe), नॉरमैंडी (Normandy), फ्रांस में 6 जून, 1606 को हुआ था। उनके पिता, मार्क कॉर्नेल (Marc Corneille), एक वकील थे, और उनकी माँ, मार्थे ले पेज (Marthe Le Pesant), एक प्रतिष्ठित परिवार से थीं। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ जब फ्रांस में राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन हो रहे थे, जो उनके भविष्य के साहित्यिक कार्यों पर भी कुछ हद तक प्रभाव डालेंगे।
प्रारंभिक शिक्षा
कॉर्नेल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा जेसुइट कॉलेज डी रूएन (Jesuit Collège de Rouen) में प्राप्त की, जिसे अब लाईसी पियरे कॉर्नेल (Lycée Pierre Corneille) के नाम से जाना जाता है। यह उस समय के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में से एक था। यहाँ उन्होंने लैटिन और ग्रीक भाषाओं का गहन अध्ययन किया, जो उन्हें शास्त्रीय साहित्य और नाटकों को समझने में मदद करेगा। उन्होंने दर्शनशास्त्र (philosophy) और कानून (law) की भी पढ़ाई की।
जेसुइट शिक्षा प्रणाली अपने सख्त अनुशासन और बौद्धिक कठोरता के लिए जानी जाती थी, जिसने कॉर्नेल के तार्किक विचार और संरचनात्मक कौशल को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी प्रारंभिक शिक्षा ने उन्हें भविष्य में एक कुशल नाटककार के रूप में उभरने के लिए आवश्यक आधार प्रदान किया, जहाँ वे शास्त्रीय नियमों और विषयों को अपने नाटकों में प्रभावी ढंग से एकीकृत कर सके।
कानून की पढ़ाई और वकालत की शुरुआत
अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद, पियरे कॉर्नेल ने कानून की पढ़ाई करने का फैसला किया। उन्होंने पॉइटियर्स विश्वविद्यालय (University of Poitiers) में कानून की डिग्री हासिल की। उस समय, कानून का पेशा एक सम्मानित और स्थिर करियर माना जाता था, खासकर उनके परिवार की पृष्ठभूमि को देखते हुए, जहाँ उनके पिता भी एक वकील थे।
वकालत की शुरुआत
सन् 1624 में, कॉर्नेल ने कानून की डिग्री प्राप्त की और जल्द ही रूएन (Rouen) में एक वकील के रूप में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने दो महत्वपूर्ण पदों पर काम किया:
- रूएन के पार्लियामेंट में एडवोकेट (Advocate to the Parlement of Rouen): यह एक उच्च न्यायालय था, और इस पद पर रहते हुए उन्हें कानूनी मामलों की पैरवी करनी होती थी।
- जल और वन विभाग के लिए क्राउन वकील (Crown Counsel for the Department of Waters and Forests): इस भूमिका में वे राज्य के जल और वन संसाधनों से संबंधित कानूनी विवादों और प्रशासकीय मामलों को संभालते थे।
हालांकि उन्होंने कानून का अभ्यास किया और इन पदों पर कुछ समय तक रहे, यह स्पष्ट था कि उनकी वास्तविक रुचि और जुनून साहित्य और नाटक में था। यह उनके जीवन का वह दौर था जब वे वकालत के साथ-साथ चुपचाप नाटक लेखन में भी हाथ आजमा रहे थे। उनके शुरुआती नाटक इसी अवधि के दौरान लिखे गए, जो जल्द ही उन्हें एक अलग पहचान दिलाएंगे। यह कानूनी प्रशिक्षण उनके नाटकों में तर्क, संरचना और बहस के तत्वों को विकसित करने में भी सहायक साबित हुआ।
कैसे रंगमंच की ओर रुझान बढ़ा और शुरुआती नाटक।
पियरे कॉर्नेल का कानून की पढ़ाई करने और वकालत शुरू करने के बावजूद, उनकी वास्तविक रुचि और प्रतिभा रंगमंच में थी। यह रुझान धीरे-धीरे बढ़ा और उन्होंने जल्द ही एक नाटककार के रूप में अपनी पहचान बनाई।
रंगमंच की ओर रुझान कैसे बढ़ा:
- संयोग और प्रारंभिक अवसर: कॉर्नेल का रंगमंच से जुड़ाव संयोगवश हुआ। रूएन में रहते हुए, वह एक अभिनय मंडली (acting troupe) के संपर्क में आए, जो शहर का दौरा कर रही थी। इस मंडली के प्रमुख मॉन्डोरी (Montdory) ने कॉर्नेल की साहित्यिक प्रतिभा को पहचाना और उन्हें नाटक लिखने के लिए प्रोत्साहित किया।
- निजी अनुभव का प्रभाव: कहा जाता है कि कॉर्नेल ने अपने शुरुआती नाटकों में से एक को अपने स्वयं के प्रेम अनुभवों से प्रेरित होकर लिखा था। यह उनके व्यक्तिगत जीवन और रंगमंच के बीच के गहरे संबंध को दर्शाता है।
- उस समय के रंगमंच का माहौल: 17वीं शताब्दी की शुरुआत में फ्रांस में रंगमंच का विकास हो रहा था। भले ही उस समय “फ़ार्स” (farce) या हास्य नाटकों का बोलबाला था, लेकिन एक नई, अधिक परिष्कृत कॉमेडी और त्रासदी की मांग बढ़ रही थी। कॉर्नेल ने इस अवसर को पहचाना।
शुरुआती नाटक:
कॉर्नेल का पहला नाटक, ‘मेलिटे’ (Mélite, or The False Letters), एक कॉमेडी थी। इसे 1629 में रूएन में पहली बार मंचित किया गया और फिर 1630 में पेरिस में इसका मंचन हुआ। यह नाटक तुरंत सफल रहा। ‘मेलिटे’ ने उस समय की प्रचलित भद्दी या हास्यास्पद फ़ार्स से हटकर, शिष्ट समाज की बातचीत और शिष्टाचार को दर्शाने वाली एक नई शैली की कॉमेडी को जन्म दिया। कॉर्नेल ने अपनी इस नई शैली को “सज्जन लोगों की बातचीत का एक चित्रण” (a painting of the conversation of the gentry) बताया।
‘मेलिटे’ की सफलता ने कॉर्नेल को आत्मविश्वास दिया और उन्होंने नियमित रूप से नाटक लिखना शुरू कर दिया। उनकी शुरुआती कृतियों में कई और कॉमेडी और ट्रेजिकॉमेडी शामिल थीं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- क्लिटैंडर (Clitandre, 1631): एक ट्रेजिकॉमेडी।
- ला वियुवे (La Veuve – The Widow, 1632): एक कॉमेडी।
- ला गैलेरी डू पैलेस (La Galerie du palais – The Palace Corridor, 1633): एक और कॉमेडी।
- ला सुइवांटे (La Suivante – The Maidservant, 1634): कॉमेडी।
- ला प्लेस रॉयल (La Place royale, 1634): कॉमेडी।
- इलुसिओन कॉमिक (L’Illusion comique – The Comic Illusion, 1636): यह एक अनूठी कॉमेडी है जो रंगमंच के जादू और भ्रम की पड़ताल करती है।
इन शुरुआती सफलताओं ने कॉर्नेल को पेरिस के साहित्यिक हलकों में एक प्रमुख नाटककार के रूप में स्थापित किया। हालांकि उन्हें आज मुख्य रूप से उनकी त्रासदियों के लिए जाना जाता है, उनके शुरुआती हास्य नाटक उनकी बहुमुखी प्रतिभा और रंगमंच के प्रति उनके गहरे लगाव को दर्शाते हैं।
पेरिस आगमन और थिएटर की दुनिया में पहचान
पियरे कॉर्नेल के शुरुआती नाटकों, विशेष रूप से उनकी पहली कॉमेडी ‘मेलिटे’ (Mélite), की सफलता ने उन्हें रूएन से बाहर निकलकर पेरिस के बड़े साहित्यिक और नाटकीय परिदृश्य में अपनी जगह बनाने के लिए प्रेरित किया। 1630 के दशक की शुरुआत में उनका पेरिस आगमन उनके करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ था।
पेरिस में शुरुआती कदम और पहचान:
- विस्तारित अवसर: पेरिस उस समय फ्रांस का सांस्कृतिक केंद्र था। यहाँ कई नाटक मंडलियाँ, थिएटर और एक बड़ा दर्शक वर्ग मौजूद था, जो रूएन जैसे प्रांतीय शहर में उपलब्ध नहीं थे। कॉर्नेल ने महसूस किया कि अपनी प्रतिभा को निखारने और व्यापक पहचान बनाने के लिए पेरिस आना अनिवार्य था।
- नाटक मंडलों से जुड़ाव: पेरिस आने के बाद, कॉर्नेल ने तत्कालीन प्रमुख नाटक मंडलों और अभिनेताओं के साथ काम करना शुरू किया। उनका काम दर्शकों और आलोचकों दोनों द्वारा सराहा जाने लगा। उन्होंने अपनी शुरुआती कॉमेडी नाटकों के माध्यम से एक विशिष्ट शैली विकसित की, जो परिष्कृत संवाद और शिष्ट समाज के चित्रण पर केंद्रित थी, और यह उस समय के हास्य नाटकों से काफी अलग थी।
- “सोसाइटी ऑफ़ द फाइव ऑथर्स” का हिस्सा: 1634 में, कॉर्नेल को कार्डिनल रिशेल (Cardinal Richelieu) द्वारा स्थापित “सोसाइटी ऑफ़ द फाइव ऑथर्स” (Société des Cinq Auteurs) के लिए चुने गए पाँच नाटककारों में से एक के रूप में नामित किया गया था। रिशेल, जो कला और साहित्य के महान संरक्षक थे, चाहते थे कि ये नाटककार ऐसे नाटक लिखें जो शास्त्रीय नियमों का पालन करें और फ्रांस की साहित्यिक गरिमा को बढ़ाएं। यह कॉर्नेल के लिए एक बहुत बड़ा सम्मान और उनकी बढ़ती प्रतिष्ठा का प्रमाण था। इस समूह में शामिल होने से उन्हें वित्तीय सहायता भी मिली।
हालांकि, रिशेल और कॉर्नेल के बीच रचनात्मक मतभेद भी थे। कॉर्नेल अपनी कलात्मक स्वतंत्रता को महत्व देते थे और हमेशा रिशेल के निर्देशों का आँख बंद करके पालन नहीं करते थे, जिसके परिणामस्वरूप कभी-कभी तनाव पैदा होता था। फिर भी, इस जुड़ाव ने उन्हें पेरिस के साहित्यिक अभिजात वर्ग के बीच गहराई से स्थापित किया।
इन शुरुआती वर्षों में, कॉर्नेल ने कई सफल कॉमेडी और ट्रेजिकॉमेडी लिखीं, जैसे ‘क्लिटैंडर’ (Clitandre), ‘ला वियुवे’ (La Veuve), और ‘इलुसिओन कॉमिक’ (L’Illusion comique)। इन नाटकों ने उनकी बहुमुखी प्रतिभा को प्रदर्शित किया और उन्हें उस समय के सबसे आशाजनक युवा नाटककारों में से एक के रूप में स्थापित किया। यह उनकी बढ़ती प्रसिद्धि का ही परिणाम था कि वे जल्द ही अपने सबसे प्रसिद्ध नाटक, ‘ले सिड’ (Le Cid) के साथ एक साहित्यिक क्रांति लाएंगे।
प्रारंभिक सफलताएँ और नाटक मंडलों से जुड़ाव
पियरे कॉर्नेल की प्रारंभिक सफलताएँ उनके पहले नाटक ‘मेलिटे’ (Mélite) से शुरू हुईं, जिसने उन्हें पेरिस के नाटकीय परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। यह सिर्फ एक नाटक की सफलता नहीं थी, बल्कि एक नई नाटकीय शैली का उदय था जिसने उन्हें तत्कालीन नाटक मंडलों के लिए एक आकर्षक लेखक बना दिया।
प्रारंभिक सफलताएँ:
- ‘मेलिटे’ (1629/1630) की सफलता: जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, ‘मेलिटे’ एक कॉमेडी थी जिसने पारंपरिक फ़ार्स (farce) से हटकर एक अधिक परिष्कृत और यथार्थवादी शैली पेश की। इस नाटक को रूएन और फिर पेरिस में दर्शकों ने खूब सराहा। इसकी सफलता ने कॉर्नेल को यह विश्वास दिलाया कि नाटक लेखन ही उनका सच्चा मार्ग है।
- नई कॉमेडी शैली का विकास: कॉर्नेल ने अपनी शुरुआती कॉमेडीज़ में “कॉमेडी ऑफ़ मैनर्स” (comedy of manners) की नींव रखी, जहाँ उन्होंने उच्च समाज के शिष्टाचार, बातचीत और प्रेम संबंधों को हास्यपूर्ण ढंग से चित्रित किया। उनके संवाद बुद्धिमान और आकर्षक थे, जो उस समय के दर्शकों को बहुत पसंद आए।
- अन्य शुरुआती नाटकों की स्वीकृति: ‘मेलिटे’ के बाद, कॉर्नेल ने कई और कॉमेडी और ट्रेजिकॉमेडी लिखीं, जैसे ‘क्लिटैंडर’ (Clitandre), ‘ला वियुवे’ (La Veuve), ‘ला गैलेरी डू पैलेस’ (La Galerie du palais), ‘ला सुइवांटे’ (La Suivante), ‘ला प्लेस रॉयल’ (La Place royale), और विशेष रूप से ‘इलुसिओन कॉमिक’ (L’Illusion comique)। ये सभी नाटक विभिन्न स्तरों पर सफल रहे और उन्होंने कॉर्नेल को एक बहुमुखी और प्रतिभाशाली नाटककार के रूप में स्थापित किया। ‘इलुसिओन कॉमिक’ अपनी अनूठी संरचना और रंगमंच के भीतर रंगमंच (play-within-a-play) की अवधारणा के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
नाटक मंडलों से जुड़ाव:
- मॉन्डोरी की मंडली (Montdory’s Troupe): कॉर्नेल का सबसे महत्वपूर्ण जुड़ाव अभिनेता मॉन्डोरी (Montdory) और उनकी नाटक मंडली के साथ था। मॉन्डोरी उस समय के सबसे प्रसिद्ध अभिनेताओं में से एक थे और उनकी मंडली पेरिस के प्रमुख थिएटरों में से एक, थिएटर डू माराइस (Théâtre du Marais) में प्रदर्शन करती थी। ‘मेलिटे’ को मॉन्डोरी की मंडली द्वारा ही मंचित किया गया था, और इस सफलता के बाद कॉर्नेल ने नियमित रूप से इस मंडली के लिए नाटक लिखे।
- कलाकार-लेखक संबंध: कॉर्नेल और मॉन्डोरी के बीच एक मजबूत रचनात्मक संबंध विकसित हुआ। मॉन्डोरी ने कॉर्नेल की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें अपने नाटकों को मंच पर लाने का अवसर दिया। यह संबंध कॉर्नेल के करियर के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था, क्योंकि इसने उन्हें एक मंच प्रदान किया जहाँ उनके नाटक व्यापक दर्शकों तक पहुँच सके।
- स्थिरता और अनुभव: नाटक मंडलों के साथ काम करने से कॉर्नेल को न केवल वित्तीय स्थिरता मिली, बल्कि उन्हें मंच की बारीकियों और दर्शकों की प्रतिक्रिया को समझने का सीधा अनुभव भी मिला। यह अनुभव उनके बाद के, अधिक जटिल और प्रभावशाली नाटकों, जैसे ‘ले सिड’ (Le Cid) के लिए एक मजबूत आधार बना।
संक्षेप में, कॉर्नेल की प्रारंभिक सफलताएँ उनकी अभिनव कॉमेडी शैली और प्रमुख नाटक मंडलों, विशेषकर मॉन्डोरी की मंडली, के साथ उनके मजबूत जुड़ाव का परिणाम थीं। इन सफलताओं ने उन्हें पेरिस के नाटकीय परिदृश्य में एक स्थापित व्यक्ति के रूप में पहचान दिलाई और उन्हें भविष्य की महान कृतियों के लिए तैयार किया।
कार्डिनल रिशेल (Cardinal Richelieu) के प्रभाव में आना।
पियरे कॉर्नेल के करियर में कार्डिनल रिशेल (Cardinal Richelieu) का प्रभाव एक बहुत ही महत्वपूर्ण और जटिल अध्याय था। रिशेल, जो किंग लुई XIII के मुख्य मंत्री थे, फ्रांस को एक शक्तिशाली और केंद्रीकृत राज्य बनाने के लिए प्रतिबद्ध थे। वह कला और साहित्य के महान संरक्षक भी थे, और उनका मानना था कि नाटक साहित्य को बढ़ावा देने और शाही शक्ति व नैतिकता का प्रचार करने का एक शक्तिशाली साधन हो सकता है।
रिशेल के प्रभाव में आना:
- “सोसाइटी ऑफ़ द फाइव ऑथर्स” (Société des Cinq Auteurs) में चयन (1634): कॉर्नेल की शुरुआती कॉमेडी नाटकों की सफलता ने रिशेल का ध्यान आकर्षित किया। रिशेल ने पाँच प्रमुख नाटककारों का एक समूह बनाया, जिसे “द फाइव ऑथर्स” (कभी-कभी “द फाइव पोएट्स” भी कहा जाता है) के नाम से जाना जाता था। कॉर्नेल को इस प्रतिष्ठित समूह का सदस्य चुना गया।
- उद्देश्य: रिशेल का लक्ष्य इन नाटककारों से ऐसे नाटक लिखवाना था जो उनके द्वारा तय किए गए कथानकों और विषयों पर आधारित हों। वह चाहते थे कि ये नाटक शास्त्रीय नियमों (विशेषकर तीन एकताएँ: समय, स्थान और क्रिया की एकता) का पालन करें और उनके राजनीतिक व नैतिक एजेंडे को बढ़ावा दें।
- रॉयल संरक्षण: इस समूह का हिस्सा होने से नाटककारों को शाही संरक्षण और वित्तीय सहायता मिलती थी, जो उस समय के लेखकों के लिए एक बड़ी बात थी।
- रचनात्मक मतभेद और तनाव: हालांकि यह कॉर्नेल के लिए एक बड़ा अवसर था, रिशेल के साथ उनका संबंध जल्द ही तनावपूर्ण हो गया।
- कलात्मक स्वतंत्रता बनाम नियंत्रण: कॉर्नेल स्वभाव से स्वतंत्र थे और उन्हें रिशेल के कड़े नियम और निर्देशों का पालन करना पसंद नहीं था। रिशेल चाहते थे कि नाटककार उनके दिए गए “आउटलाइन” (रूपरेखा) का सख्ती से पालन करें, लेकिन कॉर्नेल अक्सर अपनी रचनात्मकता के कारण इन सीमाओं से बाहर निकल जाते थे।
- ‘ला कॉमेडी डेस ट्विलरीज’ (La Comédie des Tuileries) में योगदान: इस समूह द्वारा सामूहिक रूप से लिखे गए एक नाटक, ‘ला कॉमेडी डेस ट्विलरीज’ में, कॉर्नेल ने अपने हिस्से (तीसरा अधिनियम) को रिशेल की रूपरेखा से अलग लिखा था, जिससे रिशेल नाराज़ हुए।
परिणाम और ‘ले सिड’ पर प्रभाव:
- सोसाइटी छोड़ना: इन रचनात्मक मतभेदों के कारण, कॉर्नेल ने जल्द ही “द फाइव ऑथर्स” समूह छोड़ दिया और रूएन लौट गए।
- ‘ले सिड’ और विवाद: रिशेल के प्रभाव में आने का सबसे महत्वपूर्ण (और विवादास्पद) पहलू उनके सबसे प्रसिद्ध नाटक ‘ले सिड’ (Le Cid, 1637) के साथ आया।
- ‘ले सिड’ की अपार लोकप्रियता के बावजूद, रिशेल और उनके साहित्यिक सलाहकारों ने नाटक की आलोचना की। उन्होंने आरोप लगाया कि ‘ले सिड’ शास्त्रीय नियमों, विशेष रूप से “औचित्य” (decorum) और “संभावना” (verisimilitude) का उल्लंघन करता है। चिमेन का रॉड्रिग के प्रति प्रेम, जिसने उसके पिता को मारा था, को अनुचित माना गया।
- रिशेल ने हाल ही में स्थापित अकादमी फ्रेंचाइज़ (Académie française) को ‘ले सिड’ पर एक आधिकारिक निर्णय (‘लेस सेंटिमेंट्स डी ल’एकेडमी फ्रेंचाइज़ सुर ला ट्रेजिक-कॉमेडी डू सिड’ – Les Sentiments de l’Académie française sur la tragi-comédie du Cid) जारी करने का निर्देश दिया। यह निर्णय ज्यादातर कॉर्नेल के खिलाफ था, जिससे उन्हें गहरा आघात लगा।
कार्डिनल रिशेल का प्रभाव कॉर्नेल के लिए दोहरा रहा। एक ओर, इसने उन्हें शाही संरक्षण और पेरिस के उच्च साहित्यिक हलकों में पहचान दिलाई। दूसरी ओर, रिशेल का कलात्मक नियंत्रण और ‘ले सिड’ पर उनका कठोर निर्णय कॉर्नेल के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया, जिससे उन्हें कुछ समय के लिए नाटक लेखन से भी दूर रहना पड़ा। हालांकि, अंततः इसने कॉर्नेल को अपनी कलात्मक दृष्टि को और भी मजबूत करने के लिए प्रेरित किया।
‘ले सिड’ (Le Cid) की प्रेरणा और पृष्ठभूमि
पियरे कॉर्नेल के सबसे प्रसिद्ध नाटक ‘ले सिड’ (Le Cid) की रचना 1636 में हुई और इसका पहला मंचन 1637 में हुआ। यह नाटक न केवल कॉर्नेल के करियर में एक मील का पत्थर साबित हुआ, बल्कि इसने फ्रांसीसी रंगमंच के इतिहास में भी एक नई दिशा तय की। इसकी प्रेरणा और पृष्ठभूमि कई स्रोतों से आती है:
1. ऐतिहासिक और साहित्यिक प्रेरणा: ‘एल सिड’ की गाथा (The Legend of El Cid)
‘ले सिड’ का मुख्य आधार स्पेनिश लोककथाओं और इतिहास पर आधारित है, विशेष रूप से रोड्रिगो डियाज़ डी विवर (Rodrigo Díaz de Vivar) नामक एक ऐतिहासिक स्पेनिश नायक की कहानी, जिसे आमतौर पर एल सिड कैंपियाडोर (El Cid Campeador) के नाम से जाना जाता है।
- मूल स्रोत: कॉर्नेल ने स्पेनिश नाटककार गुइलेन डी कास्त्रो वाई एंड्रेड्स (Guillén de Castro y Andrade) के नाटक ‘लास मोसेडेडेस डेल सिड’ (Las Mocedades del Cid – The Youthful Deeds of the Cid) से प्रेरणा ली। कास्त्रो का नाटक स्वयं मध्यकालीन स्पेनिश महाकाव्य ‘कैंटर डी मिओ सिड’ (Cantar de mio Cid – The Song of my Cid) पर आधारित था।
- नायक का आदर्श: एल सिड स्पेन के इतिहास में एक ऐसा नायक है जिसने 11वीं शताब्दी में मूरों (Moors) के खिलाफ ईसाई रिकोनक्विस्टा (Reconquista) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह अपनी बहादुरी, सम्मान, निष्ठा और कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाने जाते थे। कॉर्नेल ने इसी आदर्श नायक को अपने नाटक का केंद्रीय चरित्र बनाया।
2. शास्त्रीय आदर्श और दुखान्त-हास्य (Tragicomedy) की प्रवृत्ति
17वीं शताब्दी के फ्रांस में शास्त्रीय आदर्शों, जैसे तर्कसंगतता, संतुलन और प्राचीन ग्रीक व रोमन नाटकों के नियमों का प्रभाव बढ़ रहा था। कॉर्नेल स्वयं इन आदर्शों से प्रभावित थे।
- नियमों का पालन: कॉर्नेल ने ‘ले सिड’ में कुछ हद तक शास्त्रीय “तीन एकताएँ” (समय, स्थान और क्रिया की एकता) का पालन करने का प्रयास किया, हालांकि यह पूरी तरह से संभव नहीं हो पाया और बाद में इसी बात पर विवाद भी हुआ।
- भावनात्मक गहराई: उन्होंने यूनानी त्रासदी के समान नैतिक दुविधाओं और गहन मानवीय भावनाओं को दर्शाने का प्रयास किया, लेकिन इसे उस समय की दुखान्त-हास्य शैली में प्रस्तुत किया, जहाँ अंत में सभी प्रमुख पात्र जीवित रहते हैं।
3. व्यक्तिगत रचनात्मकता और नैतिक दुविधाएं
कॉर्नेल की अपनी रचनात्मक दृष्टि और मानवीय नैतिक दुविधाओं की गहरी समझ ने ‘ले सिड’ को एक अमर कृति बनाया।
- कर्तव्य बनाम प्रेम: नाटक का केंद्रीय संघर्ष दो मुख्य पात्रों, रॉड्रिग (Rodrigue) और चिमेन (Chimène) के बीच कर्तव्य और प्रेम के बीच का द्वंद्व है। रॉड्रिग को अपने पिता के सम्मान की रक्षा के लिए चिमेन के पिता को मारना पड़ता है, जबकि चिमेन को अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए रॉड्रिग को मृत्युदंड दिलवाना होता है, बावजूद इसके कि वह उससे प्रेम करती है। यह नैतिक और भावनात्मक संघर्ष नाटक का मूल है।
- “पवित्र गौरव” (Gloire) का विचार: कॉर्नेल के नाटकों में “ग्लोइरे” या गौरव का विचार महत्वपूर्ण था, जो व्यक्तिगत सम्मान, ख्याति और सामाजिक प्रतिष्ठा को दर्शाता है। पात्र अक्सर अपने गौरव की रक्षा के लिए बड़े बलिदान करते हैं।
4. तत्कालीन फ्रांसीसी समाज और साहित्य
फ्रांसीसी समाज में सम्मान, पद और व्यक्तिगत वीरता को अत्यधिक महत्व दिया जाता था। ‘ले सिड’ ने इन मूल्यों को दर्शाया और दर्शकों के साथ गहरा भावनात्मक जुड़ाव स्थापित किया।
‘ले सिड’ की प्रेरणा एक प्राचीन स्पेनिश महाकाव्य से आई, जिसे कॉर्नेल ने अपनी अनूठी रचनात्मकता, शास्त्रीय आदर्शों और तत्कालीन फ्रांसीसी समाज के मूल्यों के साथ जोड़कर एक ऐसे नाटक में ढाला, जिसने कर्तव्य, सम्मान और प्रेम के शाश्वत मानवीय संघर्षों को प्रभावी ढंग से चित्रित किया। यह नाटक न केवल एक बड़ी साहित्यिक सफलता थी, बल्कि इसने भविष्य की फ्रांसीसी त्रासदियों के लिए भी एक मार्ग प्रशस्त किया।
नायक और नायिका: रॉड्रिग (Rodrigue) और चिमेन (Chimène)
पियरे कॉर्नेल के अमर नाटक ‘ले सिड’ (Le Cid) के केंद्र में दो युवा प्रेमी हैं, जिनकी नियति सम्मान, कर्तव्य और प्रतिशोध के गहन द्वंद्व में उलझ जाती है: डॉन रॉड्रिग (Don Rodrigue) और डॉन चिमेन (Don Chimène)। उनके जटिल चरित्र और उनके सामने आने वाली दुविधाएँ ही नाटक को इतना शक्तिशाली और मार्मिक बनाती हैं।
डॉन रॉड्रिग (Don Rodrigue)
- परिचय: रॉड्रिग एक युवा और साहसी रईस है, जिसे ‘ले सिड’ की उपाधि मिलती है, जिसका अर्थ अरबी में ‘प्रभु’ या ‘मास्टर’ होता है। वह अपनी वीरता और कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाना जाता है।
- चरित्र:
- वीरता और साहस: वह युद्ध में अपनी असाधारण बहादुरी के लिए विख्यात है, खासकर मूरों (Moors) के खिलाफ।
- सम्मान का प्रतीक: रॉड्रिग अपने परिवार और अपने पिता के सम्मान (honneur) को किसी भी चीज़ से ऊपर रखता है। जब उसके पिता का अपमान होता है, तो वह बिना सोचे-समझे अपने परिवार के गौरव की रक्षा के लिए लड़ने के लिए तैयार हो जाता है।
- नैतिक दुविधा: उसका केंद्रीय संघर्ष तब आता है जब उसे चिमेन के पिता को द्वंद्वयुद्ध में मारना पड़ता है। यह कार्य उसे उस महिला के साथ टकराव में डाल देता है जिससे वह प्यार करता है।
- प्रेम और कर्तव्य का संतुलन: वह चिमेन से गहराई से प्यार करता है, लेकिन अपने कर्तव्य और सम्मान को भी नहीं छोड़ता। वह एक ऐसे नायक का प्रतिनिधित्व करता है जो व्यक्तिगत भावनाओं से ऊपर सामाजिक और पारिवारिक दायित्वों को रखता है।
डॉन चिमेन (Don Chimène)
- परिचय: चिमेन एक खूबसूरत और दृढ़निश्चयी युवती है, जो रॉड्रिग से प्यार करती है। वह डॉन गोमेज, काउंट ऑफ गोर्मस (Don Gomès, Count of Gormas) की बेटी है, जो रॉड्रिग के पिता के प्रतिद्वंद्वी हैं।
- चरित्र:
- मजबूत इच्छाशक्ति: चिमेन एक कमजोर नायिका नहीं है। वह अपने पिता की हत्या के बाद न्याय के लिए दृढ़ता से खड़ी होती है, भले ही इसका मतलब उस व्यक्ति को दंडित करना हो जिससे वह प्यार करती है।
- कर्तव्य और प्रेम का टकराव: रॉड्रिग की तरह, चिमेन भी कर्तव्य और प्रेम के एक असहनीय द्वंद्व में फंसी हुई है। उसके लिए अपने पिता का बदला लेना एक पवित्र कर्तव्य है, लेकिन रॉड्रिग के प्रति उसका प्रेम उसे अंदर से तोड़ देता है। वह सार्वजनिक रूप से रॉड्रिग की मौत की मांग करती है, लेकिन निजी तौर पर उसके जीवित रहने की कामना करती है।
- सम्मान की रक्षा: चिमेन का सम्मान भी दांव पर है। यदि वह अपने पिता की मौत का बदला नहीं लेती, तो वह अपने परिवार के लिए एक कलंक होगी।
- अंदरूनी पीड़ा: नाटक उसकी आंतरिक पीड़ा और दुविधा को बखूबी दर्शाता है, जहाँ उसे अपने ही प्रेम को त्यागकर न्याय की मांग करनी पड़ती है।
नाटक में उनका संबंध:
रॉड्रिग और चिमेन का संबंध नाटक की मुख्य धुरी है। उनका प्रेम उन सामाजिक नियमों और सम्मान के कोड के सामने आता है जो उन्हें एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर देते हैं। कॉर्नेल इस बात की पड़ताल करते हैं कि कैसे व्यक्ति अपने व्यक्तिगत सुख से ऊपर अपने गौरव और कर्तव्य को रखता है। अंततः, नाटक उनके प्रेम की जीत की ओर इशारा करता है, लेकिन यह जीत असंख्य परीक्षणों और दुविधाओं के माध्यम से आती है, जो इसे एक क्लासिक ट्रेजिकॉमेडी बनाती है।
पियरे कॉर्नेल की रचनात्मक प्रक्रिया, विशेषकर ‘ले सिड’ (Le Cid) के विकास में, कई तत्वों का संगम था: उनकी शास्त्रीय शिक्षा, मानवीय भावनाओं की गहरी समझ, स्पेनिश साहित्यिक परंपरा से प्रेरणा, और तत्कालीन फ्रांसीसी रंगमंच की बढ़ती मांगें।
1. प्रेरणा का स्रोत और रूपांतरण:
- स्पेनिश मूल का चयन: कॉर्नेल ने स्पेनिश नाटककार गुइलेन डी कास्त्रो के नाटक ‘लास मोसेडेडेस डेल सिड’ (Las Mocedades del Cid) से प्रेरणा ली। उन्होंने इस विशाल और कई घटनाओं से भरी स्पेनिश ट्रेजिकॉमेडी को एक अधिक संक्षिप्त, केंद्रित और गहन फ्रांसीसी नाटक में रूपांतरित करने का निर्णय लिया।
- सार निकालने की कला: कॉर्नेल की रचनात्मक प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यह था कि वे मूल स्रोत से मुख्य संघर्ष और केंद्रीय नैतिक दुविधा को पहचानते थे। ‘ले सिड’ में, उन्होंने अनगिनत घटनाओं और पात्रों को छोड़कर, रॉड्रिग और चिमेन के बीच प्रेम और कर्तव्य के गहन संघर्ष पर ध्यान केंद्रित किया।
- “गौरव” (Gloire) और “सम्मान” (Honneur) का केंद्रीय विषय: कॉर्नेल ने नाटक में व्यक्तिगत गौरव और पारिवारिक सम्मान के विषयों को गहराई से उकेरा। उनके पात्र अक्सर अपनी भावनाओं से ऊपर अपने सम्मान को रखते हैं, जो उस समय के फ्रांसीसी समाज के मूल्यों के अनुरूप था।
2. शास्त्रीय नियमों का प्रभाव और उनका ‘पुनर्व्याख्यान’:
- तीन एकताएँ (Three Unities): 17वीं शताब्दी के फ्रांसीसी रंगमंच में एरिस्टोटलियन शास्त्रीय नियमों, विशेष रूप से समय (action within 24 hours), स्थान (single location), और क्रिया (single plot) की एकता का पालन करना अपेक्षित था। कॉर्नेल ने ‘ले सिड’ में इन नियमों का पालन करने की कोशिश की, हालाँकि पूरी तरह से नहीं। उदाहरण के लिए, नाटक 24 घंटे से कुछ अधिक समय में घटित होता है, और इसमें कई छोटी क्रियाएँ (subplots) होती हैं।
- “औचित्य” (Décorum) और “संभावना” (Vraisemblance): ये अन्य शास्त्रीय सिद्धांत थे जिनका मतलब था कि पात्रों को अपने सामाजिक पद और स्थिति के अनुसार व्यवहार करना चाहिए, और नाटक की घटनाएँ विश्वसनीय होनी चाहिए। ‘ले सिड’ में चिमेन द्वारा रॉड्रिग से अपने पिता की हत्या का बदला लेने की मांग और साथ ही उससे प्यार करते रहने की दुविधा ने इन नियमों को चुनौती दी, जिससे “क्वेरेल डू सिड” (Querelle du Cid) नामक साहित्यिक विवाद उत्पन्न हुआ। कॉर्नेल ने तर्क दिया कि महान त्रासदियाँ स्वाभाविक रूप से अविश्वसनीय होती हैं क्योंकि वे असाधारण परिस्थितियों में असाधारण पात्रों का चित्रण करती हैं।
3. चरित्र विकास और नैतिक दुविधाएं:
- आंतरिक संघर्ष पर जोर: कॉर्नेल ने बाहरी घटनाओं के बजाय पात्रों के आंतरिक संघर्ष पर अधिक ध्यान केंद्रित किया। रॉड्रिग और चिमेन दोनों अपने व्यक्तिगत प्रेम और परिवार के प्रति अपने सम्मान के बीच फँसे हुए हैं, और उनकी यह आंतरिक पीड़ा नाटक को शक्तिशाली बनाती है।
- “कॉर्नेलियन दुविधा” (Cornelian Dilemma): यह शब्द कॉर्नेल के नाटकों में अक्सर देखी जाने वाली एक स्थिति का वर्णन करता है, जहाँ नायक को समान रूप से मान्य लेकिन परस्पर विरोधी नैतिक विकल्पों में से एक को चुनना होता है। ‘ले सिड’ इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जहाँ प्रेम और कर्तव्य एक-दूसरे के खिलाफ खड़े होते हैं।
4. काव्य शैली और संवाद:
- एलिवेटेड भाषा: कॉर्नेल ने अपने नाटकों में एक उदात्त और काव्यात्मक भाषा का प्रयोग किया। उनके संवाद अक्सर लंबे, प्रभावशाली मोनोलॉग (soliloquies) और बयानबाजी से भरे होते थे, जो पात्रों की भावनाओं और तर्क को व्यक्त करते थे।
- वीरतापूर्ण कविता: उन्होंने एलेक्जेंड्रिन छंद (alexandrine verse) का उपयोग किया, जो 12 सिलेबल्स (syllables) की एक शैली है। यह शैली फ्रेंच शास्त्रीय त्रासदी की पहचान बन गई और इसने संवादों को एक गरिमा और शक्ति प्रदान की।
- तर्क और बहस: कॉर्नेल के कानूनी पृष्ठभूमि का प्रभाव उनके नाटकों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जहाँ पात्र अक्सर एक-दूसरे के साथ गहन तार्किक बहस में संलग्न होते हैं, अपने कार्यों को न्यायोचित ठहराते हैं या दूसरों को अपने दृष्टिकोण से सहमत कराते हैं।
नाटक का विकास (विशेष रूप से ‘ले सिड’ के संदर्भ में):
- शुरुआती ड्राफ्ट और संशोधन: ‘ले सिड’ के शुरुआती ड्राफ्ट में कॉर्नेल ने कास्त्रो के नाटक की कुछ अधिक बारोक (baroque) विशेषताओं को बनाए रखा होगा, लेकिन उन्होंने धीरे-धीरे इसे अधिक केंद्रित और तर्कसंगत बनाया।
- शैली का निर्धारण: ‘ले सिड’ को शुरू में एक ट्रेजिकॉमेडी (tragicomedy) के रूप में वर्गीकृत किया गया था, क्योंकि इसका अंत एक त्रासदी की तरह दुःखद नहीं था (नायक और नायिका जीवित रहते हैं और उनका विवाह होता है)। हालाँकि, इसकी गहन नैतिक दुविधाओं और गंभीर टोन के कारण, इसे बाद में एक त्रासदी माना गया, और 1648 के संस्करण में कॉर्नेल ने इसे स्वयं एक त्रासदी के रूप में सूचीबद्ध किया।
- विवाद का प्रभाव: ‘ले सिड’ पर हुए विवाद (Querelle du Cid) ने कॉर्नेल को कुछ समय के लिए नाटक लेखन से दूर कर दिया, लेकिन इसने उन्हें शास्त्रीय नियमों की अपनी समझ को और गहरा करने के लिए भी प्रेरित किया। उन्होंने बाद के नाटकों में इन नियमों का अधिक सख्ती से पालन करने की कोशिश की, जैसे ‘होरास’ (Horace) और ‘सिन्ना’ (Cinna)।
कॉर्नेल की रचनात्मक प्रक्रिया स्पेनिश स्रोतों से प्रेरणा लेने, उन्हें शास्त्रीय फ्रांसीसी सौंदर्यशास्त्र के साथ मिश्रित करने, और व्यक्तिगत व नैतिक संघर्षों की गहराई में उतरने का एक जटिल मिश्रण थी। ‘ले सिड’ इस प्रक्रिया का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो आज भी अपनी भावनात्मक शक्ति और शाश्वत विषयों के कारण प्रासंगिक है।
नाटक का मंचन और जनमानस पर उसका प्रभाव
पियरे कॉर्नेल के नाटक ‘ले सिड’ (Le Cid) का पहला मंचन 1637 में पेरिस के थिएटर डू माराइस (Théâtre du Marais) में हुआ था। यह मंचन फ्रांसीसी रंगमंच के इतिहास में एक युगांतकारी घटना साबित हुई, जिसने न केवल कॉर्नेल को एक महान नाटककार के रूप में स्थापित किया, बल्कि इसने जनमानस और साहित्यिक समुदाय पर भी गहरा और स्थायी प्रभाव डाला।
नाटक का शानदार मंचन
- सफलता की शुरुआत: ‘ले सिड’ की शुरुआत में ही इसका अभूतपूर्व स्वागत हुआ। नाटक ने तुरंत दर्शकों का ध्यान खींचा और उसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी। थिएटर डू माराइस में हर दिन भीड़ उमड़ती थी, और यह कई महीनों तक हाउसफुल चलता रहा।
- कलाकारों का योगदान: नाटक की सफलता में इसके कलाकारों, विशेष रूप से मॉन्डोरी (Montdory), जिन्होंने रॉड्रिग की भूमिका निभाई, और मैडेमोइसेल विलेब्रून (Mademoiselle Villebreune), जिन्होंने चिमेन की भूमिका निभाई, का महत्वपूर्ण योगदान था। उनके शक्तिशाली प्रदर्शनों ने कॉर्नेल के संवादों और पात्रों की भावनात्मक गहराई को जीवंत कर दिया।
- नवप्रवर्तन: ‘ले सिड’ ने कई मायनों में नयापन पेश किया। इसने स्पेनिश रोमांटिक तत्वों को फ्रांसीसी शास्त्रीय रूपरेखा के साथ जोड़ा, जिससे एक नई शैली विकसित हुई। इसके संवाद, हालांकि शास्त्रीय एलेक्जेंड्रिन छंद में थे, बहुत ही गतिशील और भावनात्मक थे, जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते थे।
जनमानस पर गहरा प्रभाव
‘ले सिड’ का जनमानस पर प्रभाव अविश्वसनीय था और यह जल्द ही एक सांस्कृतिक घटना बन गया:
- व्यापक लोकप्रियता और “सुंदर जैसे सिड” (Beau comme Le Cid): नाटक इतना लोकप्रिय हुआ कि “सुंदर जैसे सिड” (Beau comme Le Cid) कहावत बन गई, जिसका अर्थ था ‘अत्यंत सुंदर’ या ‘बेमिसाल’। यह दिखाता है कि नाटक ने आम बोलचाल की भाषा में भी अपनी जगह बना ली थी।
- भावनाओं का उद्दीपन: नाटक में कर्तव्य, सम्मान, प्रेम और प्रतिशोध के गहन मानवीय संघर्षों को इतनी मार्मिकता से प्रस्तुत किया गया था कि दर्शक गहराई से उससे जुड़ गए। रॉड्रिग और चिमेन की दुविधाएँ दर्शकों को अपनी व्यक्तिगत दुविधाओं और नैतिक चुनावों पर सोचने के लिए मजबूर करती थीं।
- नैतिक बहस का केंद्र: ‘ले सिड’ ने फ्रांसीसी समाज में सम्मान (honneur), गौरव (gloire), और कर्तव्य (devoir) के मूल्यों पर एक व्यापक बहस छेड़ दी। पात्रों के चुनाव और उनकी नैतिक दृढ़ता ने दर्शकों को प्रभावित किया और उन्हें इन आदर्शों पर विचार करने के लिए प्रेरित किया।
- रंगमंच के प्रति रुचि में वृद्धि: ‘ले सिड’ की सफलता ने फ्रांस में रंगमंच को एक नई ऊँचाई दी। इसने न केवल नाटककारों को और अधिक सशक्त कार्य करने के लिए प्रेरित किया, बल्कि इसने आम जनता के बीच थिएटर जाने की रुचि को भी बढ़ाया। यह एक ऐसा मनोरंजन बन गया जिसे समाज के हर वर्ग के लोग देखने लगे।
- राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक: एक तरह से, ‘ले सिड’ को फ्रांसीसी कला और साहित्य की एक महान उपलब्धि के रूप में देखा गया, जिसने फ्रांस को यूरोप के सांस्कृतिक मानचित्र पर एक प्रमुख स्थान दिलाया।
‘ले सिड’ का मंचन सिर्फ एक नाटक का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि एक सांस्कृतिक क्रांति थी। इसकी अपार लोकप्रियता और जनमानस पर इसके गहरे भावनात्मक और नैतिक प्रभाव ने इसे फ्रांसीसी साहित्य और रंगमंच की सबसे महत्वपूर्ण कृतियों में से एक बना दिया।
अभूतपूर्व लोकप्रियता और आलोचकों की प्रतिक्रिया
पियरे कॉर्नेल का नाटक ‘ले सिड’ (Le Cid) जब 1637 में पेरिस में मंचित हुआ, तो उसकी लोकप्रियता अभूतपूर्व थी। इसने दर्शकों के बीच जबरदस्त उत्साह पैदा किया, लेकिन साथ ही इसने आलोचकों और तत्कालीन साहित्यिक प्रतिष्ठान के बीच एक बड़ा विवाद भी खड़ा कर दिया, जिसे “क्वेरेल डू सिड” (Querelle du Cid) के नाम से जाना जाता है।
अभूतपूर्व लोकप्रियता
- जनता का अपार प्रेम: ‘ले सिड’ ने तुरंत फ्रांसीसी जनता का दिल जीत लिया। थिएटर डू माराइस में हर प्रदर्शन के लिए भारी भीड़ उमड़ती थी और नाटक कई महीनों तक हाउसफुल चलता रहा। इसकी सफलता इतनी जबरदस्त थी कि एक फ्रांसीसी कहावत बन गई, “सुंदर जैसे सिड” (Beau comme Le Cid), जिसका अर्थ था ‘अत्यंत सुंदर’ या ‘बेमिसाल’। यह कहावत आज भी फ्रांसीसी भाषा में मौजूद है, जो इसकी स्थायी सांस्कृतिक छाप को दर्शाती है।
- भावनात्मक जुड़ाव: नाटक में प्रस्तुत कर्तव्य, सम्मान, प्रेम और प्रतिशोध के शाश्वत मानवीय संघर्षों ने दर्शकों को गहराई से प्रभावित किया। रॉड्रिग और चिमेन की नैतिक दुविधाएँ और उनकी तीव्र भावनाएँ दर्शकों के लिए बेहद प्रासंगिक थीं, जिससे वे पात्रों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ पाए।
- नाटक मंडलों के लिए लाभ: इस नाटक की सफलता ने थिएटर डू माराइस और अन्य नाटक मंडलों के लिए वित्तीय सफलता भी लाई। इसने फ्रांस में सार्वजनिक रंगमंच के विकास को और बढ़ावा दिया।
आलोचकों की प्रतिक्रिया और “क्वेरेल डू सिड”
‘ले सिड’ की अपार लोकप्रियता के बावजूद, यह अकादमिक और साहित्यिक हलकों में गंभीर आलोचना का विषय बन गया। इस विवाद का नेतृत्व मुख्य रूप से कार्डिनल रिशेल (Cardinal Richelieu) ने किया, जो फ्रांस में कला और साहित्य पर शाही नियंत्रण स्थापित करना चाहते थे।
- अकादमी फ्रेंचाइज़ की भूमिका: रिशेल ने 1635 में स्थापित अकादमी फ्रेंचाइज़ (Académie française) को ‘ले सिड’ का मूल्यांकन करने का आदेश दिया। अकादमी को फ्रांसीसी भाषा और साहित्य की शुद्धता और नियमों को बनाए रखने का काम सौंपा गया था। यह एक अभूतपूर्व कदम था कि किसी नाटक का आधिकारिक तौर पर अकादमिक मूल्यांकन किया जाए।
- आलोचना के मुख्य बिंदु: आलोचकों ने निम्नलिखित आधारों पर ‘ले सिड’ की आलोचना की:
- शास्त्रीय नियमों का उल्लंघन: आलोचकों ने तर्क दिया कि नाटक ने “तीन एकताएँ” (Three Unities) – समय, स्थान और क्रिया की एकता – का पूरी तरह से पालन नहीं किया। हालाँकि, मुख्य आपत्ति “औचित्य” (Décorum) और “संभावना” (Vraisemblance) के नियमों के उल्लंघन पर थी।
- “औचित्य” का उल्लंघन: सबसे विवादास्पद बिंदु चिमेन का रॉड्रिग के प्रति प्रेम था, जिसने उसके पिता की हत्या की थी। आलोचकों ने इसे ‘अनुचित’ और ‘अविश्वसनीय’ (implausible) माना कि कोई महिला इतनी जल्दी अपने पिता के हत्यारे से फिर से प्यार करने लगे। उन्हें लगा कि यह समाज के नैतिक मानदंडों के विपरीत है और इससे पात्रों की गरिमा कम होती है।
- “संभावना” का उल्लंघन: कुछ घटनाओं को अविश्वसनीय माना गया, जैसे कि रॉड्रिग का एक ही दिन में इतना अधिक सैन्य पराक्रम दिखाना।
- नाटक के शैलीगत मुद्दे: कुछ आलोचकों ने नाटक की शैली को बहुत ‘स्पेनिश’ माना और उसमें शास्त्रीय फ्रांसीसी गरिमा की कमी पाई।
- ‘लेस सेंटिमेंट्स डी ल’एकेडमी फ्रेंचाइज़’: अकादमी ने जीन चापलैन (Jean Chapelain) द्वारा लिखित एक रिपोर्ट ‘लेस सेंटिमेंट्स डी ल’एकेडमी फ्रेंचाइज़ सुर ला ट्रेजिक-कॉमेडी डू सिड’ (Les Sentiments de l’Académie française sur la tragi-comédie du Cid) प्रकाशित की, जिसने कॉर्नेल के खिलाफ निर्णय दिया। यह कॉर्नेल के लिए एक बड़ा झटका था, और इसने उन्हें कुछ समय के लिए नाटक लेखन से भी दूर कर दिया।
इस विवाद ने फ्रांसीसी साहित्य में शास्त्रीय नियमों के महत्व को स्थापित किया और भविष्य के नाटककारों के लिए एक मानक निर्धारित किया। हालांकि यह कॉर्नेल के लिए एक कठिन दौर था, ‘ले सिड’ की लोकप्रियता कभी कम नहीं हुई, और यह फ्रांसीसी रंगमंच का एक स्थायी स्तंभ बना रहा। इस घटना ने कॉर्नेल को अपनी कला को और निखारने और बाद के नाटकों में शास्त्रीय सिद्धांतों का अधिक सावधानी से पालन करने के लिए प्रेरित किया।
अकादमी फ्रेंचाइज़ (Académie Française) के साथ विवाद और ‘क्वेरेल डू सिड’ (Querelle du Cid)
‘ले सिड’ की अपार लोकप्रियता के बावजूद, इसने एक बड़े साहित्यिक विवाद को जन्म दिया जिसे ‘क्वेरेल डू सिड’ (Querelle du Cid), या ‘सिड का झगड़ा’ के नाम से जाना जाता है। इस विवाद के केंद्र में कार्डिनल रिशेल (Cardinal Richelieu) और नव-स्थापित अकादमी फ्रेंचाइज़ (Académie française) थी।
विवाद की जड़ें
- कार्डिनल रिशेल का हस्तक्षेप:
- साहित्य पर नियंत्रण: रिशेल, जो किंग लुई XIII के शक्तिशाली मुख्य मंत्री थे, फ्रांस को केवल राजनीतिक रूप से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी यूरोप का अग्रणी राष्ट्र बनाना चाहते थे। उनका मानना था कि साहित्य, विशेषकर नाटक, नैतिकता और व्यवस्था को बढ़ावा देने का एक शक्तिशाली साधन है।
- शास्त्रीय नियमों का पालन: रिशेल शास्त्रीय आदर्शों के प्रबल समर्थक थे और चाहते थे कि फ्रांसीसी नाटक अरस्तू और होरेस द्वारा निर्धारित कठोर शास्त्रीय नियमों – विशेष रूप से तीन एकताएँ (समय, स्थान और क्रिया), और औचित्य (décorum) व संभावना (vraisemblance) – का सख्ती से पालन करें।
- कॉर्नेल की “स्वतंत्रता”: कॉर्नेल, हालांकि शास्त्रीय रूप से शिक्षित थे, अपनी रचनात्मक स्वतंत्रता को महत्व देते थे और हमेशा इन नियमों का आँख बंद करके पालन नहीं करते थे। ‘ले सिड’ में उन्होंने कुछ घटनाओं को इस तरह से प्रस्तुत किया जो रिशेल के लिए स्वीकार्य नहीं थीं।
- ‘ले सिड’ में “त्रुटियाँ”:
- औचित्य का उल्लंघन: सबसे बड़ी आपत्ति चिमेन के चरित्र पर थी। आलोचकों को यह ‘अनुचित’ (improper) और ‘अविश्वसनीय’ (implausible) लगा कि चिमेन, जिसके पिता को रॉड्रिग ने द्वंद्वयुद्ध में मार दिया था, नाटक के अंत में भी उससे प्यार करती है और अंततः उससे शादी करने को तैयार हो जाती है। उन्हें लगा कि यह एक महिला के सम्मान और गरिमा के विपरीत है।
- समय की एकता का उल्लंघन: हालांकि नाटक को 24 घंटे के भीतर होने का दावा किया गया था, लेकिन कुछ घटनाओं की संख्या (जैसे कि रॉड्रिग का युद्ध में इतना अधिक पराक्रम दिखाना) इतनी अधिक थी कि वे इतनी कम अवधि में विश्वसनीय नहीं लगती थीं।
- शैलीगत आपत्ति: कुछ आलोचकों को नाटक की स्पेनिश मूल और उसकी वीरगाथात्मक प्रकृति में एक प्रकार की ‘असभ्यता’ महसूस हुई, जो फ्रांसीसी शास्त्रीय साहित्य की अपेक्षित गरिमा से मेल नहीं खाती थी।
अकादमी फ्रेंचाइज़ की भूमिका
- स्थापना और उद्देश्य: अकादमी फ्रेंचाइज़ की स्थापना 1635 में रिशेल ने ही की थी। इसका प्राथमिक उद्देश्य फ्रांसीसी भाषा और साहित्य को शुद्ध करना, उसका मानकीकरण करना और उसके लिए नियम स्थापित करना था।
- आधिकारिक मूल्यांकन का आदेश: ‘ले सिड’ की अपार लोकप्रियता और साथ ही उस पर बढ़ती आलोचना को देखते हुए, रिशेल ने अकादमी को नाटक पर एक आधिकारिक राय (official judgment) या ‘लेस सेंटिमेंट्स’ (Les Sentiments) जारी करने का आदेश दिया। यह फ्रांसीसी साहित्य में अपनी तरह का पहला ऐसा कदम था।
- ‘लेस सेंटिमेंट्स डी ल’एकेडमी फ्रेंचाइज़’: अकादमी के सदस्यों ने, जिसमें जीन चापलैन (Jean Chapelain) प्रमुख थे, नाटक का अध्ययन किया और एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जिसका शीर्षक था ‘लेस सेंटिमेंट्स डी ल’एकेडमी फ्रेंचाइज़ सुर ला ट्रेजिक-कॉमेडी डू सिड’ (Les Sentiments de l’Académie française sur la tragi-comédie du Cid)। यह रिपोर्ट मुख्य रूप से कॉर्नेल की आलोचना करती थी, जिसमें नाटक की कमियों पर प्रकाश डाला गया था और इसे शास्त्रीय नियमों का पूर्णतः पालन न करने वाला बताया गया था।
विवाद के परिणाम और प्रभाव
- कॉर्नेल पर प्रभाव: ‘क्वेरेल डू सिड’ कॉर्नेल के लिए एक बड़ा झटका था। उन्हें लगा कि उनके काम पर अनुचित हमला किया गया है। इस विवाद के बाद उन्होंने लगभग तीन साल तक कोई नया नाटक नहीं लिखा। यह उनके लिए आत्म-चिंतन और शास्त्रीय नियमों की अपनी समझ को गहरा करने का समय था।
- शास्त्रीय नियमों की विजय: यह विवाद फ्रांसीसी साहित्य में शास्त्रीय नियमों के प्रभुत्व को स्थापित करने में सहायक सिद्ध हुआ। इसने भविष्य के नाटककारों के लिए एक मिसाल कायम की कि उन्हें इन नियमों का पालन करना होगा यदि वे साहित्यिक प्रतिष्ठान की स्वीकृति चाहते हैं।
- फ्रांसीसी शास्त्रीय युग की नींव: ‘क्वेरेल डू सिड’ ने उस नींव को मजबूत किया जिस पर बाद में मोलीयर (Molière) और रासीन (Racine) जैसे महान नाटककारों ने फ्रांसीसी शास्त्रीय रंगमंच का निर्माण किया।
- ‘ले सिड’ की स्थायी विरासत: आलोचनाओं के बावजूद, ‘ले सिड’ की लोकप्रियता कभी कम नहीं हुई। यह फ्रांसीसी साहित्य की सबसे महत्वपूर्ण और स्थायी कृतियों में से एक बना रहा, जो कर्तव्य, प्रेम और सम्मान के शाश्वत मानवीय संघर्षों को प्रभावी ढंग से चित्रित करता है।
‘क्वेरेल डू सिड’ केवल एक साहित्यिक बहस नहीं थी, बल्कि फ्रांस में कला, राज्य और बुद्धिजीवी वर्ग के बीच शक्ति संघर्ष का एक प्रारंभिक उदाहरण था, जिसने फ्रांसीसी शास्त्रीय रंगमंच के विकास की दिशा तय की।
कॉर्नेल के नाटकों में शास्त्रीय नियमों का पालन
पियरे कॉर्नेल के नाटकों, विशेषकर उनकी त्रासदियों में, शास्त्रीय नियमों (Classical Rules) का पालन एक केंद्रीय विशेषता थी, हालांकि यह पालन हमेशा पूर्ण और निर्विवाद नहीं रहा। 17वीं शताब्दी के फ्रांस में, पुनर्जागरण के प्रभाव के कारण प्राचीन ग्रीक और रोमन नाटककारों जैसे एरिस्टोटल (Aristotle) और होरेस (Horace) द्वारा निर्धारित सिद्धांतों को अत्यधिक महत्व दिया जाता था। कॉर्नेल ने इन नियमों को अपनाया, उन्हें अपनी शैली के साथ ढाला, और इस प्रक्रिया में फ्रांसीसी शास्त्रीय रंगमंच की नींव रखी।
प्रमुख शास्त्रीय नियम और कॉर्नेल का दृष्टिकोण:
- तीन एकताएँ (The Three Unities):
- क्रिया की एकता (Unity of Action): यह सबसे महत्वपूर्ण नियम था, जिसका अर्थ था कि नाटक में केवल एक ही मुख्य कथानक होना चाहिए, जिसमें कोई अनावश्यक उप-कथानक या भटकाव न हो। कॉर्नेल ने इस नियम का काफी हद तक पालन किया। उनके नाटक एक केंद्रीय नैतिक या भावनात्मक संघर्ष पर केंद्रित होते हैं, जैसे ‘ले सिड’ में रॉड्रिग और चिमेन के बीच प्रेम और कर्तव्य का द्वंद्व।
- समय की एकता (Unity of Time): इसका अर्थ था कि नाटक की पूरी कार्रवाई 24 घंटे (एक दिन) के भीतर घटित होनी चाहिए। कॉर्नेल ने अक्सर इस नियम को निभाने की कोशिश की, जैसा कि ‘ले सिड’ में देखा जाता है, हालाँकि आलोचकों ने तर्क दिया कि कुछ घटनाएं इतनी कम अवधि में विश्वसनीय नहीं थीं। ‘होरास’ (Horace) जैसे उनके बाद के नाटक इस नियम का अधिक सख्ती से पालन करते हैं।
- स्थान की एकता (Unity of Place): इसका मतलब था कि नाटक की सभी घटनाएं एक ही स्थान पर या कम से कम एक ही शहर में घटित होनी चाहिए। कॉर्नेल के नाटकों में अक्सर एक सीमित सेटिंग होती थी, जैसे महल का हॉल या एक निश्चित कमरा, ताकि इस नियम का पालन किया जा सके।
- औचित्य (Décorum / Bienséance):
- यह नियम कहता था कि पात्रों को अपने सामाजिक पद, लिंग और उम्र के अनुसार उचित और सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिए। कोई भी अशिष्ट या अनुचित कार्य (जैसे मंच पर हिंसा या अश्लीलता) सीधे नहीं दिखाना चाहिए, बल्कि उसका उल्लेख मात्र होना चाहिए।
- कॉर्नेल और औचित्य: ‘ले सिड’ में चिमेन का अपने पिता के हत्यारे से प्यार करते रहना, इस नियम के सबसे बड़े उल्लंघन के रूप में देखा गया, जिससे ‘क्वेरेल डू सिड’ विवाद हुआ। हालांकि, कॉर्नेल ने तर्क दिया कि उन्होंने आंतरिक औचित्य बनाए रखा था—पात्रों का व्यवहार उनके गहन भावनात्मक और नैतिक संघर्षों के कारण था। बाद के नाटकों में उन्होंने इस नियम का अधिक सावधानी से पालन किया।
- संभावना (Vraisemblance / Verisimilitude):
- इसका अर्थ था कि नाटक में होने वाली घटनाएँ विश्वसनीय और तर्कसंगत होनी चाहिए, चाहे वे वास्तविक हों या न हों। दर्शकों को उन पर विश्वास करने में सक्षम होना चाहिए।
- कॉर्नेल और संभावना: ‘ले सिड’ में रॉड्रिग के एक ही दिन में असाधारण सैन्य कारनामे और चिमेन के जटिल भावनात्मक मोड़ को कुछ आलोचकों ने अविश्वसनीय माना। कॉर्नेल ने अक्सर असाधारण परिस्थितियों में असाधारण पात्रों का चित्रण किया, जो हमेशा संभावना के दायरे में नहीं आते थे, लेकिन वे अपनी कलात्मक दृष्टि के लिए ऐसा करते थे।
- पाँच अधिनियम संरचना (Five-Act Structure):
- अधिकांश शास्त्रीय त्रासदियों की तरह, कॉर्नेल के नाटक भी पाँच कृत्यों (Acts) में विभाजित थे, जिसमें एक स्पष्ट प्रस्तावना (exposition), बढ़ती कार्रवाई (rising action), चरमोत्कर्ष (climax), गिरती कार्रवाई (falling action), और निष्कर्ष (dénouement) होता था।
कॉर्नेल का विशिष्ट योगदान और विचलन:
- तर्क और बहस का महत्व: अपनी कानूनी पृष्ठभूमि के कारण, कॉर्नेल ने अपने नाटकों में तार्किक बहस और विवेकपूर्ण निर्णय पर बहुत जोर दिया। उनके पात्र अक्सर अपने कार्यों को तर्कों के माध्यम से सही ठहराते हैं, जो शास्त्रीय नाटक की बौद्धिक कठोरता को दर्शाता है।
- “कॉर्नेलियन दुविधा”: कॉर्नेल के कई नाटक एक केंद्रीय नैतिक दुविधा पर केंद्रित होते हैं जहाँ नायक को दो समान रूप से महान या अनिवार्य लेकिन परस्पर विरोधी कर्तव्यों के बीच चयन करना होता है (जैसे प्रेम बनाम सम्मान, या राज्य बनाम व्यक्तिगत इच्छा)। यह उनके शास्त्रीय ढांचे के भीतर उनकी अद्वितीय रचनात्मकता को दर्शाता है।
- कारण और इच्छाशक्ति का प्रभुत्व: कॉर्नेल के पात्र अक्सर अपनी भावनाओं से ऊपर अपनी इच्छाशक्ति और कारण को रखते हैं। यह उस समय के तर्कवादी दार्शनिक विचारों के अनुरूप था और फ्रांसीसी शास्त्रीय आदर्शों का एक प्रमुख तत्व था।
पियरे कॉर्नेल ने शास्त्रीय नियमों का सम्मान किया और उन्हें फ्रांसीसी रंगमंच के लिए अनुकूलित किया। हालांकि, उन्होंने केवल उनका यांत्रिक रूप से पालन नहीं किया, बल्कि उन्हें अपनी गहरी नैतिक दुविधाओं और वीर चरित्रों को चित्रित करने के लिए एक ढाँचा प्रदान किया। ‘ले सिड’ पर हुए विवाद के बावजूद, उनके कार्य फ्रांसीसी शास्त्रीय त्रासदी के लिए एक शक्तिशाली मिसाल बन गए और उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के नाटककारों को प्रेरित किया।
नाटक में नियति, कर्तव्य और प्रेम का द्वंद्व
पियरे कॉर्नेल के नाटकों, विशेषकर उनकी महान त्रासदी ‘ले सिड’ (Le Cid) में, मानवीय अस्तित्व के तीन शक्तिशाली आयामों – नियति (Destiny), कर्तव्य (Duty), और प्रेम (Love) – के बीच का जटिल द्वंद्व केंद्रीय विषय है। कॉर्नेल इन शाश्वत संघर्षों को इस तरह से प्रस्तुत करते हैं कि उनके पात्र असाधारण परिस्थितियों में भी अपनी नैतिकता और इच्छाशक्ति को बनाए रखते हैं।
1. कर्तव्य (Duty / Devoir)
कॉर्नेल के नाटकों में कर्तव्य का विचार सर्वोच्च स्थान रखता है। यह केवल व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि परिवार, राज्य और सम्मान के प्रति एक पवित्र दायित्व है।
- पारिवारिक सम्मान (Honneur familial): रॉड्रिग और चिमेन दोनों के लिए, अपने परिवार के सम्मान की रक्षा करना उनके अस्तित्व का मूल है। जब रॉड्रिग के पिता को चिमेन के पिता द्वारा थप्पड़ मारा जाता है, तो रॉड्रिग के लिए द्वंद्वयुद्ध में भाग लेना और अपने पिता के अपमान का बदला लेना एक अनिवार्य कर्तव्य बन जाता है, भले ही इसका मतलब उस महिला से लड़ना हो जिससे वह प्यार करता है।
- शाही कर्तव्य और राज्य के प्रति निष्ठा: पात्र अक्सर राजा या राज्य के प्रति अपनी निष्ठा के साथ व्यक्तिगत इच्छाओं को संतुलित करते हैं। ‘ले सिड’ में, रॉड्रिग अपनी व्यक्तिगत लड़ाई के बाद मूरों के खिलाफ राजा के लिए युद्ध में जाकर अपनी वीरता और राज्य के प्रति कर्तव्य का प्रदर्शन करता है।
- नैतिक दृढ़ता: कॉर्नेल के पात्र कर्तव्य के नाम पर बड़े से बड़े बलिदान करने को तैयार रहते हैं। वे अपनी भावनाओं को नियंत्रित करते हैं और विवेक और कारण के आधार पर कार्य करते हैं।
2. प्रेम (Love / Amour)
कर्तव्य के विपरीत, प्रेम एक शक्तिशाली भावना है जो अक्सर पात्रों को उनके दायित्वों से विचलित करने का प्रयास करती है, लेकिन अंततः अक्सर कर्तव्य के अधीन हो जाती है।
- निषिद्ध प्रेम: ‘ले सिड’ में रॉड्रिग और चिमेन का प्रेम उनके परिवारों के बीच के संघर्ष के कारण निषिद्ध हो जाता है। उनके प्रेम की गहराई स्पष्ट है, लेकिन यह उनके सामने आने वाली परिस्थितियों से दब जाती है।
- संघर्षपूर्ण भावनाएँ: चिमेन के लिए, रॉड्रिग से उसका प्रेम और अपने पिता की हत्या का बदला लेने का उसका कर्तव्य उसे आंतरिक रूप से तोड़ देता है। वह सार्वजनिक रूप से रॉड्रिग के खिलाफ न्याय की मांग करती है, लेकिन निजी तौर पर उसके जीवित रहने की कामना करती है। यह उसके चरित्र को अत्यंत मार्मिक बनाता है।
- प्रेम पर कर्तव्य की विजय (या संतुलन): कॉर्नेल के नाटकों में, प्रेम अक्सर एक चुनौती के रूप में आता है जिसे पात्रों को अपने उच्च कर्तव्यों के लिए पार करना होता है। अंततः, रॉड्रिग और चिमेन का प्रेम कर्तव्य के साथ एक जटिल संतुलन बनाता है, जहाँ उनका मिलन सम्मान और राज्य की आवश्यकता पर आधारित होता है।
3. नियति (Destiny / Destin)
कॉर्नेल के नाटकों में नियति का विचार प्राचीन ग्रीक त्रासदियों जितना कठोर नहीं है, जहाँ देवता पात्रों के भाग्य को पूर्वनिर्धारित करते हैं। इसके बजाय, यह अक्सर उन अप्रत्याशित घटनाओं या परिस्थितियों को संदर्भित करता है जो पात्रों को उनकी इच्छा के विरुद्ध गंभीर नैतिक दुविधाओं में धकेल देती हैं।
- अप्रत्याशित मोड़: ‘ले सिड’ में, रॉड्रिग और चिमेन के पिता के बीच का झगड़ा एक ऐसी नियति है जो उनके प्रेम को अचानक एक असंभव स्थिति में डाल देती है। यह पात्रों के नियंत्रण से बाहर की घटना है जो उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल देती है।
- चुनाव की स्वतंत्रता: हालांकि परिस्थितियाँ कठोर हो सकती हैं, कॉर्नेल के पात्रों को हमेशा प्रतिक्रिया करने और अपनी इच्छाशक्ति का प्रयोग करने की स्वतंत्रता होती है। नियति उन्हें स्थिति में धकेलती है, लेकिन वे कैसे कार्य करते हैं, यह उनके विवेक और इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है। वे निष्क्रिय रूप से अपने भाग्य को स्वीकार नहीं करते, बल्कि उससे लड़ते हैं और अपने चरित्र की दृढ़ता दिखाते हैं।
- भाग्य बनाम नैतिक बल: कॉर्नेल के पात्रों की महानता अक्सर उनकी क्षमता में निहित होती है कि वे भाग्य के झटकों का सामना अपनी आंतरिक नैतिक शक्ति और दृढ़ इच्छाशक्ति से करते हैं।
कॉर्नेल के नाटकों में नियति, कर्तव्य और प्रेम के बीच का द्वंद्व अक्सर एक ऐसे बिंदु पर पहुँचता है जहाँ कर्तव्य की जीत होती है, लेकिन यह विजय गहरी मानवीय पीड़ा और संघर्ष के बाद आती है। यह उनके नाटकों को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि मानवीय स्वभाव और नैतिक विकल्पों पर एक गहरा चिंतन बनाता है। वे दिखाते हैं कि कैसे व्यक्तिगत भावनाएँ महान आदर्शों और सामाजिक अपेक्षाओं के सामने फीकी पड़ सकती हैं, और कैसे नायक अपनी इच्छाशक्ति से अपनी नियति को आकार दे सकते हैं।
कॉर्नेल के नाटकों में नायक की नैतिक दृढ़ता
पियरे कॉर्नेल के नाटकों की एक परिभाषित विशेषता उनके नायकों की असाधारण नैतिक दृढ़ता (Moral Fortitude) और दृढ़ इच्छाशक्ति (Strong Will) है। उनके पात्र अक्सर स्वयं को ऐसी परिस्थितियों में पाते हैं जहाँ उन्हें प्रेम, व्यक्तिगत सुख या यहाँ तक कि अपने जीवन से भी ऊपर, उच्च नैतिक सिद्धांतों, सम्मान और कर्तव्य के बीच चुनाव करना होता है। इस “कॉर्नेलियन दुविधा” में, उनके नायक दृढ़ता से अपने आदर्शों पर टिके रहते हैं, जो उन्हें साधारण मनुष्यों से ऊपर उठाता है।
1. भावनाओं पर विवेक और कारण की विजय
कॉर्नेल के नायकों को अक्सर तीव्र मानवीय भावनाओं – जैसे प्रेम, क्रोध, भय या प्रतिशोध – का सामना करना पड़ता है। हालाँकि, वे इन भावनाओं को अपने कार्यों को नियंत्रित करने की अनुमति नहीं देते। इसके बजाय, वे अपने विवेक (reason) और कारण (intellect) का उपयोग करके सबसे कठिन परिस्थितियों में भी सही रास्ता चुनते हैं।
- उदाहरण: रॉड्रिग (‘ले सिड’ में): जब रॉड्रिग को अपने पिता के अपमान का बदला लेने के लिए चिमेन के पिता से लड़ना पड़ता है, तो वह जानता है कि यह उसके प्रेम को नष्ट कर देगा। फिर भी, वह अपने पिता के सम्मान के प्रति अपने कर्तव्य को प्राथमिकता देता है। वह अपनी आंतरिक पीड़ा को स्वीकार करता है लेकिन अपने कार्य से पीछे नहीं हटता।
2. सम्मान (Honneur) और गौरव (Gloire) का सर्वोच्च स्थान
कॉर्नेल के नायकों के लिए, सम्मान (honneur) और गौरव (gloire) उनके अस्तित्व का मूल होते हैं। यह केवल व्यक्तिगत प्रतिष्ठा नहीं है, बल्कि एक ऐसा गुण है जो परिवार, सामाजिक स्थिति और व्यक्तिगत मूल्य को परिभाषित करता है। वे अपने सम्मान को किसी भी चीज़ से ऊपर रखते हैं और इसकी रक्षा के लिए कोई भी बलिदान देने को तैयार रहते हैं।
- उदाहरण: चिमेन (‘ले सिड’ में): अपने पिता की हत्या के बाद, चिमेन रॉड्रिग से गहराई से प्रेम करने के बावजूद, अपने परिवार के सम्मान और अपने पिता के प्रति कर्तव्य के कारण उसके लिए मृत्युदंड की मांग करती है। उसकी यह मांग उसकी नैतिक दृढ़ता और सामाजिक अपेक्षाओं के प्रति उसकी निष्ठा को दर्शाती है, भले ही इससे उसे व्यक्तिगत रूप से अपार कष्ट होता है।
3. कर्तव्य (Duty) के प्रति अटूट निष्ठा
कॉर्नेलियन नायक अपने कर्तव्य के प्रति अविचल निष्ठा प्रदर्शित करते हैं, चाहे वह परिवार के प्रति हो, राज्य के प्रति हो या व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा के प्रति हो। यह निष्ठा उन्हें आत्म-बलिदान करने और कठोर निर्णय लेने के लिए प्रेरित करती है।
- उदाहरण: सिन्ना (‘सिन्ना’ में): नाटक ‘सिन्ना’ में, नायक को एक विद्रोह में भाग लेना है, लेकिन उसे राज्य के प्रति अपनी वफादारी और व्यक्तिगत नैतिकता के बीच चयन करना पड़ता है। उसकी नैतिक दृढ़ता उसे अंततः सही निर्णय लेने में मदद करती है, जो राज्य के हित में होता है।
4. नैतिक स्वायत्तता और इच्छाशक्ति का प्रदर्शन
कॉर्नेल के पात्र परिस्थितियों के शिकार नहीं होते; वे सक्रिय रूप से अपनी नियति का सामना करते हैं। वे अपने निर्णयों के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार होते हैं और अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रयोग करके अपने आदर्शों पर कायम रहते हैं, भले ही इसके परिणाम कितने भी कठोर क्यों न हों।
- उदाहरण: पॉलीक्टे (‘पॉलीक्टे’ में): यह नायक ईसाई धर्म अपनाता है और अपनी आस्था के प्रति अडिग रहता है, भले ही इसका मतलब शहादत हो। उसकी पत्नी और मित्र उसे अपनी जान बचाने के लिए समझाते हैं, लेकिन वह अपनी नई नैतिकता और सत्यनिष्ठा के प्रति पूरी तरह से दृढ़ रहता है।
कॉर्नेल के नाटकों में नायक की नैतिक दृढ़ता उनके चरित्र का आधार है। वे ऐसे व्यक्ति हैं जो मानवीय कमजोरियों से ऊपर उठकर अपने आदर्शों और कर्तव्यों का पालन करते हैं, अपनी भावनाओं पर विवेक को प्राथमिकता देते हैं और अपने सम्मान की रक्षा के लिए किसी भी कीमत पर लड़ते हैं। यह नैतिक शक्ति ही उनके नाटकों को फ्रांसीसी शास्त्रीय त्रासदी में इतना प्रभावशाली और कालातीत बनाती है।
‘होरास’ (Horace) और ‘सिन्ना’ (Cinna) जैसे अन्य महत्वपूर्ण नाटक।
‘ले सिड’ (Le Cid) पर हुए विवाद के बाद, पियरे कॉर्नेल ने कुछ समय के लिए नाटक लेखन से विराम लिया, लेकिन जब वह लौटे, तो उन्होंने अपनी कला को और निखारा। उन्होंने शास्त्रीय नियमों का अधिक सख्ती से पालन करते हुए कुछ और महत्वपूर्ण त्रासदियाँ लिखीं, जिन्होंने फ्रांसीसी शास्त्रीय रंगमंच में उनकी स्थिति को मजबूत किया। इनमें ‘होरास’ (Horace) और ‘सिन्ना’ (Cinna) प्रमुख हैं।
‘होरास’ (Horace) – 1640
‘होरास’ कॉर्नेल की उन त्रासदियों में से एक है जिसे ‘ले सिड’ के बाद उनकी वापसी के रूप में देखा जाता है। यह नाटक रोमन इतिहास पर आधारित है और कर्तव्य तथा राज्य के प्रति निष्ठा के सर्वोच्च महत्व पर केंद्रित है।
- प्रेरणा और कथानक: नाटक रोमन गणराज्य के शुरुआती दिनों की एक प्रसिद्ध किंवदंती पर आधारित है। यह तीन रोमन भाइयों, होरासियों (Horatii), और तीन अल्बान भाइयों, कुरियासियों (Curiatii) के बीच युद्ध का वर्णन करता है। रोम और अल्बा के बीच युद्ध को रोकने के लिए, यह तय किया जाता है कि दोनों पक्षों के तीन-तीन चैंपियन द्वंद्वयुद्ध करेंगे। होरासियों में से एक, होरास, कुरियासियों में से एक की बहन, कैमिली (Camille) से प्यार करता है, और उसकी अपनी बहन, सबीना (Sabine), कुरियासियों में से एक की पत्नी है।
- मुख्य द्वंद्व: नाटक का केंद्रीय संघर्ष व्यक्तिगत प्रेम और परिवार के बंधन बनाम राज्य के प्रति सर्वोच्च कर्तव्य है। होरास अपने भाई-बहनों और व्यक्तिगत भावनाओं से ऊपर रोम के लिए अपनी निष्ठा को रखता है।
- नैतिक दृढ़ता और देशभक्ति: होरास युद्ध में विजयी होकर लौटता है, लेकिन जब उसकी बहन कैमिली उसके प्रेमी, जो एक कुरियासी था, के लिए विलाप करती है और रोम को कोसती है, तो होरास उसे राज्य के गौरव के अपमान के रूप में देखता है और उसे मार डालता है। यह कार्य उसकी चरम देशभक्ति और व्यक्तिगत भावनाओं पर कर्तव्य की जीत को दर्शाता है।
- शास्त्रीयता का पालन: ‘होरास’ को शास्त्रीय एकता के नियमों, विशेषकर समय और स्थान की एकता, का अधिक सख्ती से पालन करने के लिए सराहा गया। इसमें कोई उप-कथानक नहीं है और कार्रवाई एक ही स्थान पर और अपेक्षाकृत कम समय में घटित होती है।
‘सिन्ना’ (Cinna) – 1641
‘सिन्ना’ कॉर्नेल की एक और महान त्रासदी है जिसे अक्सर उनकी बेहतरीन कृतियों में से एक माना जाता है। यह नाटक राजनीतिक षड्यंत्र, क्षमा और सत्ता की प्रकृति पर केंद्रित है।
- प्रेरणा और कथानक: यह नाटक रोमन सम्राट ऑगस्टस (Augustus) के खिलाफ सिन्ना (Cinna) द्वारा रची गई एक वास्तविक ऐतिहासिक साजिश से प्रेरित है। सिन्ना, जुलियाना (Julia) नामक एक महिला के कहने पर ऑगस्टस की हत्या की साजिश रचता है, जो ऑगस्टस से अपने पिता की मौत का बदला लेना चाहती है।
- मुख्य द्वंद्व: नाटक का केंद्रीय द्वंद्व व्यक्तिगत प्रतिशोध, प्रेम और राजनीतिक कर्तव्य के बीच है। सिन्ना को अपनी प्रेमिका के प्रति अपनी निष्ठा और एक ऐसे सम्राट की हत्या करने के “कर्तव्य” के बीच संतुलन बनाना है जो शायद अत्याचारी न हो।
- क्षमा और विवेक: नाटक का चरमोत्कर्ष तब आता है जब ऑगस्टस को सिन्ना की साजिश का पता चलता है। अपने सलाहकारों की प्रतिशोध की सलाह के विपरीत, ऑगस्टस सिन्ना और अन्य षड्यंत्रकारियों को क्षमा करने का एक अभूतपूर्व निर्णय लेता है। यह निर्णय ऑगस्टस को एक बुद्धिमान और न्यायप्रिय शासक के रूप में स्थापित करता है, जो भावनाओं के बजाय विवेक से काम लेता है।
- राजनीतिक दर्शन: ‘सिन्ना’ कॉर्नेल के राजनीतिक दर्शन को दर्शाता है, जहाँ एक मजबूत और न्यायपूर्ण शासन को व्यक्तिगत प्रतिशोध या भावनाओं से ऊपर रखा जाता है। यह नाटक सत्ता, न्याय और क्षमा के विषयों पर गहराई से विचार करता है।
- शास्त्रीयता का पालन: ‘सिन्ना’ भी शास्त्रीय नियमों का उत्कृष्ट उदाहरण है, विशेषकर क्रिया और समय की एकता का। संवाद तेज, तार्किक और शक्तिशाली हैं, जो पात्रों की बौद्धिक और नैतिक दुविधाओं को उजागर करते हैं।
‘ले सिड’ के बाद का महत्व:
‘होरास’ और ‘सिन्ना’ जैसे नाटकों ने यह साबित कर दिया कि कॉर्नेल केवल ‘ले सिड’ की एक-आयामी सफलता नहीं थे। इन नाटकों के माध्यम से, उन्होंने दिखाया कि वह शास्त्रीय नियमों का सम्मान करते हुए भी गहन मनोवैज्ञानिक गहराई, मजबूत नैतिक संघर्ष और शक्तिशाली चरित्रों का निर्माण कर सकते हैं। इन कृतियों ने फ्रांसीसी शास्त्रीय त्रासदी को एक नई दिशा दी और उन्हें 17वीं शताब्दी के सबसे महान नाटककारों में से एक के रूप में स्थापित किया।
कॉर्नेल की शैली में विकास और विषय-वस्तु में विविधता
पियरे कॉर्नेल का नाटकीय करियर कई दशकों तक फैला रहा, और इस दौरान उनकी शैली (Style) और विषय-वस्तु (Subject Matter) में महत्वपूर्ण विकास और विविधता देखने को मिली। ‘ले सिड’ की शुरुआती शानदार सफलता के बाद, उन्होंने न केवल अपनी कला को परिष्कृत किया, बल्कि नए क्षेत्रों में भी प्रवेश किया, जिससे फ्रांसीसी शास्त्रीय रंगमंच को समृद्ध किया।
1. प्रारंभिक काल: कॉमेडी से ट्रेजिकॉमेडी तक (1629-1636)
- शुरुआत: कॉर्नेल ने अपने करियर की शुरुआत कॉमेडी (Comedy) नाटकों से की, जैसे ‘मेलिटे’ (Mélite)। ये नाटक तत्कालीन फ़ार्स (farce) से भिन्न थे, और शिष्ट समाज के संवाद और प्रेम प्रसंगों पर केंद्रित थे। उन्होंने “कॉमेडी ऑफ़ मैनर्स” (comedy of manners) की नींव रखी।
- विषय-वस्तु: इस दौर के नाटक हल्के-फुल्के प्रेम संबंधों, गलतफहमी और सामाजिक शिष्टाचार के इर्द-गिर्द घूमते थे।
- शैली: संवाद सुरुचिपूर्ण और बुद्धिमान थे, लेकिन बाद की त्रासदियों की गहनता इनमें नहीं थी।
- ट्रेजिकॉमेडी की ओर झुकाव: धीरे-धीरे, उन्होंने ट्रेजिकॉमेडी (Tragicomedy) की ओर रुख किया, जहाँ त्रासदी के तत्व (जैसे गंभीर नैतिक दुविधाएँ) और कॉमेडी के तत्व (जैसे सुखद अंत) मिश्रित होते थे। ‘इलुसिओन कॉमिक’ (L’Illusion comique) इसका एक बेहतरीन उदाहरण है, जो रंगमंच के जादू और भ्रम को दर्शाता है।
2. मध्य काल: त्रासदी का शिखर और शास्त्रीयता का परिष्कार (1637-1650 के दशक)
- ‘ले सिड’ (1637): यह उनके करियर का मोड़ था। हालांकि तकनीकी रूप से एक ट्रेजिकॉमेडी, इसकी गहन भावनात्मक और नैतिक संघर्ष ने इसे त्रासदी के करीब ला दिया। इसने उन्हें वीर रस (heroic) और महान नैतिक दुविधाओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया।
- शास्त्रीयता का आत्मसात्करण: ‘ले सिड’ पर हुए ‘क्वेरेल’ के बाद, कॉर्नेल ने शास्त्रीय नियमों (विशेषकर तीन एकताएँ, औचित्य और संभावना) का अधिक सचेत रूप से पालन करना शुरू किया। यह एक सीखने की प्रक्रिया थी, जिसने उनकी शैली को अधिक संयमित और सुव्यवस्थित बनाया।
- विषय-वस्तु में गहराई: इस दौर में उन्होंने गंभीर ऐतिहासिक और पौराणिक विषयों पर ध्यान केंद्रित किया, जो व्यक्तिगत गौरव, कर्तव्य, सम्मान और राज्य के प्रति निष्ठा के सार्वभौमिक विषयों का पता लगाते थे।
- ‘होरास’ (Horace, 1640): देशभक्ति और राज्य के प्रति कर्तव्य का सर्वोच्च बलिदान।
- ‘सिन्ना’ (Cinna, 1641): राजनीतिक षड्यंत्र, क्षमा, सत्ता और शासक के गुण।
- ‘पॉलीक्टे’ (Polyeucte, 1643): धार्मिक आस्था, शहादत और प्रेम पर आस्था की विजय।
- शैली में विकास:
- उदात्त संवाद: उनके संवाद अधिक काव्यात्मक, सशक्त और भव्य हो गए, जो एलेक्जेंड्रिन छंद की शक्ति का पूरा उपयोग करते थे।
- तार्किक बहस: उनकी कानूनी पृष्ठभूमि का प्रभाव स्पष्ट था, क्योंकि पात्र अक्सर लंबी और तर्कपूर्ण बहस में संलग्न होते थे, जो उनके नैतिक और दार्शनिक विचारों को उजागर करती थी।
- आंतरिक संघर्ष पर जोर: बाहरी घटनाओं के बजाय, उन्होंने पात्रों के आंतरिक नैतिक संघर्षों और उनकी इच्छाशक्ति की दृढ़ता पर अधिक ध्यान केंद्रित किया।
3. उत्तरार्ध: जटिल कथानक और घटती लोकप्रियता (1650 के दशक के बाद)
- शैलीगत प्रयोग: इस अवधि में, कॉर्नेल ने कभी-कभी अधिक जटिल और घुमावदार कथानकों के साथ प्रयोग किया। कुछ आलोचकों का मानना है कि उन्होंने दर्शकों की बदलती रुचियों के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश की।
- विषय-वस्तु: उन्होंने अभी भी ऐतिहासिक और वीर विषयों पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन कभी-कभी उनके नाटक पहले जितनी भावनात्मक रूप से मार्मिक नहीं रहे।
- रासीन से प्रतिस्पर्धा: इस दौर में जीन रासीन (Jean Racine) जैसे नए नाटककार सामने आए, जिनकी त्रासदियाँ अधिक मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से गहन थीं, और जो कॉर्नेल की शैली से भिन्न थीं। रासीन की लोकप्रियता बढ़ने से कॉर्नेल की सापेक्ष लोकप्रियता में कुछ कमी आई।
- महत्वपूर्ण नाटक: इस अवधि में भी उन्होंने कुछ उल्लेखनीय नाटक लिखे, जैसे ‘ओथॉन’ (Othon, 1664) और ‘सूरेना’ (Suréna, 1674), जिनमें अक्सर राजनीतिक साज़िशें और प्रेम के जटिल पहलू शामिल थे।
निष्कर्षतः, कॉर्नेल की शैली एक हल्की-फुल्की कॉमेडी लेखक से विकसित होकर फ्रांसीसी शास्त्रीय त्रासदी के एक महान प्रतिपादक के रूप में उभरी। उनकी विषय-वस्तु में व्यक्तिगत प्रेम से लेकर पारिवारिक सम्मान, राज्य के प्रति कर्तव्य, राजनीतिक न्याय और धार्मिक आस्था जैसे व्यापक दार्शनिक और नैतिक मुद्दे शामिल थे। इस विकास और विविधता ने उन्हें फ्रांसीसी साहित्य में एक बहुमुखी और स्थायी महत्व वाले नाटककार के रूप में स्थापित किया।
समय के साथ बदलते रंगमंच के रुझान।
पियरे कॉर्नेल का साहित्यिक करियर 17वीं शताब्दी के फ्रांसीसी रंगमंच के विकास के साथ-साथ चला, और इस दौरान रंगमंच के रुझानों में भी महत्वपूर्ण बदलाव आए, जिन्होंने कॉर्नेल के लेखन और उनकी लोकप्रियता को प्रभावित किया।
समय के साथ बदलते रंगमंच के रुझान
17वीं शताब्दी फ्रांस में रंगमंच एक जीवंत और विकासशील कला रूप था। इस दौरान कई रुझान उभरे और बदले, जिन्होंने नाटककारों और दर्शकों दोनों को प्रभावित किया:
- फ़ार्स से कॉमेडी और ट्रेजिकॉमेडी का उदय (शुरुआती 17वीं शताब्दी):
- जब कॉर्नेल ने लिखना शुरू किया (1620 के दशक के अंत), फ्रांसीसी मंच पर अभी भी फ़ार्स (farce) का बोलबाला था, जो अक्सर अशिष्ट हास्य और सीधे-सादे कथानक पर आधारित होते थे।
- कॉर्नेल जैसे नाटककारों ने एक नई, अधिक परिष्कृत कॉमेडी (comedy) पेश की, जो शिष्ट समाज के व्यवहार, प्रेम प्रसंगों और मानवीय स्वभाव की सूक्ष्मताओं पर केंद्रित थी। ‘मेलिटे’ इसकी मिसाल थी।
- ट्रेजिकॉमेडी (tragicomedy) भी लोकप्रिय हुई, जिसमें त्रासदी के गंभीर तत्व और कॉमेडी का सुखद अंत होता था। ‘ले सिड’ मूल रूप से इसी श्रेणी में आता था। यह दर्शकों को गंभीर विषयों के साथ-साथ एक संतोषजनक निष्कर्ष भी प्रदान करता था।
- शास्त्रीय नियमों का प्रभुत्व (मध्य 17वीं शताब्दी – कॉर्नेल का स्वर्ण युग):
- कार्डिनल रिशेल के प्रभाव और अकादमी फ्रेंचाइज़ की स्थापना के साथ, शास्त्रीय नियमों (Classical Rules) का महत्व बढ़ा। नाटककारों से अपेक्षा की जाने लगी कि वे अरस्तू और होरेस द्वारा निर्धारित तीन एकताएँ (समय, स्थान, क्रिया) और औचित्य (décorum) व संभावना (vraisemblance) जैसे सिद्धांतों का पालन करें।
- ‘ले सिड’ पर हुए विवाद (क्वेरेल डू सिड) ने इन नियमों के महत्व को और भी स्थापित कर दिया। इस अवधि में, नाटककार तर्क, नैतिक दृढ़ता और भव्य भाषा पर जोर देने लगे। कॉर्नेल के ‘होरास’, ‘सिन्ना’ और ‘पॉलीक्टे’ इस रुझान के बेहतरीन उदाहरण हैं।
- मनोवैज्ञानिक त्रासदी और भावनात्मक गहराई की ओर बदलाव (उत्तरार्ध 17वीं शताब्दी – रासीन का उदय):
- कॉर्नेल के करियर के उत्तरार्ध में, एक नया रुझान उभरा, जिसका नेतृत्व जीन रासीन (Jean Racine) जैसे नाटककारों ने किया। रासीन की त्रासदियाँ कॉर्नेल की “इच्छाशक्ति की त्रासदी” के विपरीत “मनोविज्ञान की त्रासदी” पर केंद्रित थीं।
- रासीन के पात्र अक्सर अपने जुनून, भावनाओं और आंतरिक कमजोरियों के शिकार होते थे, बजाय इसके कि वे अपनी इच्छाशक्ति से उन पर काबू पाएं। उनके नाटक अधिक संक्षिप्त, केंद्रित और भावनात्मक रूप से गहन होते थे, जो दर्शकों को दया और भय की भावनाओं से जोड़ते थे।
- इस बदलाव ने दर्शकों की रुचि को अधिक जटिल और मानवीय चरित्रों की ओर मोड़ दिया, जो केवल वीर आदर्शों पर आधारित नहीं थे।
- मशीन-प्ले और भव्यता का बढ़ता आकर्षण (17वीं शताब्दी के अंत):
- मंचन तकनीकें विकसित होने लगीं और मशीन-प्ले (machine-plays), जहाँ विस्तृत दृश्यों, उड़ने वाले देवताओं और भव्य प्रभावों का उपयोग किया जाता था, लोकप्रिय होने लगे। यह दर्शकों को चकाचौंध करने और मनोरंजन का एक नया स्तर प्रदान करने के लिए था।
- कॉर्नेल ने स्वयं अपने बाद के कुछ नाटकों में इन रुझानों को आज़माने की कोशिश की, जैसे ‘एंड्रोमेडे’ (Andromède, 1650), जिसमें मशीनरी और संगीत का व्यापक उपयोग किया गया था।
- कॉमेडी का पुनः उदय (मोलियर का प्रभाव):
- कॉर्नेल के समकालीन मोलियर (Molière) ने कॉमेडी को एक नई ऊँचाई पर पहुँचाया। उनकी कॉमेडीज़ में सामाजिक व्यंग्य, चरित्रों की त्रुटियों और हास्यपूर्ण स्थितियों पर जोर दिया गया, जिससे यह एक स्वतंत्र और अत्यधिक लोकप्रिय शैली बन गई।
कॉर्नेल और बदलते रुझान:
कॉर्नेल ने अपने पूरे करियर में इन बदलते रुझानों के प्रति कुछ हद तक अनुकूलन दिखाया। उन्होंने कॉमेडी से शुरुआत की, शास्त्रीय त्रासदी में महारत हासिल की, और अपने बाद के वर्षों में मशीन-प्ले जैसे नए रूपों के साथ प्रयोग भी किया। हालांकि, उनके “वीर नायक” और “इच्छाशक्ति पर कारण की विजय” का केंद्रीय विषय कुछ हद तक दर्शकों की बदलती पसंद से पीछे छूट गया, जिसने रासीन के अधिक मनोवैज्ञानिक नाटकों को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया। फिर भी, कॉर्नेल ने 17वीं शताब्दी के फ्रांसीसी रंगमंच के विकास में एक मूलभूत भूमिका निभाई और उसके कई महत्वपूर्ण रुझानों को आकार दिया।
पारिवारिक जीवन और निजी संघर्ष
पियरे कॉर्नेल का जीवन केवल उनकी साहित्यिक सफलताओं और विवादों तक ही सीमित नहीं था, बल्कि इसमें एक सामान्य पारिवारिक व्यक्ति के सुख और दुख, और विभिन्न निजी संघर्ष भी शामिल थे।
पारिवारिक जीवन
- विवाह और बच्चे: कॉर्नेल ने 25 मई, 1640 को मैरी डी लांडेनै (Marie de Lampérière) से शादी की। यह विवाह रूएन में हुआ था, जो उनके गृहनगर के पास था। दंपति के सात बच्चे थे, हालाँकि उनमें से कुछ ने शैशवावस्था में ही दम तोड़ दिया था, जो उस समय आम बात थी।
- रूएन में निवास: ‘ले सिड’ की सफलता और पेरिस में अपने शुरुआती अनुभव के बाद भी, कॉर्नेल ने पेरिस में स्थायी रूप से बसने के बजाय रूएन (Rouen) में ही रहना पसंद किया। वह अक्सर अपनी कानूनी जिम्मेदारियों और अपने परिवार के साथ अधिक समय बिताने के लिए पेरिस आते-जाते रहते थे। रूएन उनके लिए स्थिरता और शांति का स्रोत था, जहाँ वे साहित्यिक हलचल से दूर रहकर अधिक एकाग्रता से काम कर सकते थे।
- भाई का प्रभाव: उनके छोटे भाई, थॉमस कॉर्नेल (Thomas Corneille) भी एक प्रसिद्ध नाटककार थे। दोनों भाइयों के बीच एक गहरा और सहायक संबंध था। थॉमस ने पियरे के कुछ नाटकों को पूरा करने में भी मदद की और दोनों एक-दूसरे के साहित्यिक प्रयासों में सहायक थे।
निजी संघर्ष
- वित्तीय अस्थिरता:
- अपने नाटकों की अपार लोकप्रियता के बावजूद, कॉर्नेल का वित्तीय जीवन हमेशा स्थिर नहीं रहा। 17वीं शताब्दी में नाटककारों को आज की तरह रॉयल्टी नहीं मिलती थी। उन्हें अपने नाटकों को नाटक मंडलों को बेचना पड़ता था, और एक बार बिकने के बाद, नाटककार का उस पर कोई और दावा नहीं रहता था, भले ही वह कितना भी लोकप्रिय क्यों न हो।
- कार्डिनल रिशेल से मिली कुछ पेंशन भी हमेशा नियमित नहीं रहती थी। अपने बड़े परिवार को सहारा देने और रूएन में अपनी कानूनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए, कॉर्नेल को अक्सर वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
- ‘क्वेरेल डू सिड’ का आघात:
- ‘ले सिड’ की साहित्यिक आलोचना और विशेष रूप से अकादमी फ्रेंचाइज़ द्वारा उस पर लगाया गया प्रतिबंध कॉर्नेल के लिए एक बड़ा निजी और पेशेवर झटका था। उन्हें लगा कि उनकी कला का अपमान किया गया है।
- इस घटना के बाद उन्होंने लगभग तीन साल (1637-1640) तक कोई नया नाटक नहीं लिखा। यह अवधि उनके लिए आत्म-चिंतन और निराशा से भरी रही होगी।
- बढ़ती उम्र और घटती लोकप्रियता:
- अपने करियर के उत्तरार्ध में, कॉर्नेल ने देखा कि जीन रासीन (Jean Racine) जैसे नए नाटककार लोकप्रिय हो रहे थे, जिनकी शैली अधिक भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक थी, जो कॉर्नेल के तर्क और इच्छाशक्ति पर आधारित नाटकों से भिन्न थी।
- इससे उन्हें कुछ हद तक निराशा हुई होगी, क्योंकि उनके कुछ बाद के नाटकों को उनके पिछले कार्यों जैसी सफलता नहीं मिली। उन्हें नए साहित्यिक रुझानों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ी, और कभी-कभी उन्हें ऐसा लगा होगा कि उनकी शैली पुरानी हो रही है।
- पारिवारिक दुःख:
- सात बच्चों में से कुछ की शैशवावस्था में मृत्यु का दुःख कॉर्नेल और उनकी पत्नी के लिए व्यक्तिगत त्रासदी का कारण बना होगा। उस युग में शिशु मृत्यु दर अधिक थी, लेकिन इसका भावनात्मक प्रभाव गहरा होता था।
इन सभी संघर्षों के बावजूद, कॉर्नेल ने अपने रचनात्मक कार्य को जारी रखा और फ्रांसीसी साहित्य में अपनी पहचान बनाए रखी। उनके निजी संघर्षों ने शायद उनके नाटकों में व्यक्त नैतिक दृढ़ता और मानवीय पीड़ा के विषयों को और गहरा किया होगा।
आर्थिक स्थिति और साहित्यिक रॉयल्टी
17वीं शताब्दी के फ्रांस में एक नाटककार के रूप में पियरे कॉर्नेल की आर्थिक स्थिति आज के सफल लेखकों की तुलना में काफी अलग और अधिक अनिश्चित थी। आधुनिक ‘रॉयल्टी’ प्रणाली तब मौजूद नहीं थी, और लेखकों को अपने काम के लिए भुगतान बहुत अलग तरीके से मिलता था।
1. प्रारंभिक आय और कानूनी पेशा:
- वकील के रूप में आय: जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, कॉर्नेल ने अपने करियर की शुरुआत रूएन में एक वकील और क्राउन वकील के रूप में की थी। ये पद उन्हें एक स्थिर लेकिन शायद बहुत शानदार आय नहीं देते थे। यह उनकी शुरुआती वित्तीय स्थिरता का मुख्य स्रोत था, जिससे उन्हें नाटक लेखन की ओर मुड़ने का अवसर मिला।
- नाटक लेखन से शुरुआती भुगतान: जब उन्होंने नाटक लिखना शुरू किया, तो उन्हें अपने नाटकों के लिए एकमुश्त भुगतान (lump-sum payment) मिलता था। वे अपना पांडुलिपि नाटक मंडली (जैसे थिएटर डू माराइस) को बेच देते थे, और एक बार बिकने के बाद, नाटककार का उस नाटक पर कोई और अधिकार नहीं रहता था, चाहे वह कितना भी सफल या लंबे समय तक मंचित क्यों न हो। यह प्रणाली नाटककारों के लिए बहुत लाभदायक नहीं थी, क्योंकि उन्हें बार-बार नए नाटक बेचने पड़ते थे।
2. ‘ले सिड’ और उसकी लोकप्रियता के बावजूद सीमित वित्तीय लाभ:
- अभूतपूर्व सफलता: ‘ले सिड’ की अभूतपूर्व लोकप्रियता ने कॉर्नेल को तात्कालिक रूप से बहुत प्रसिद्ध तो कर दिया, लेकिन इससे उन्हें उस तरह का वित्तीय लाभ नहीं मिला, जैसा कि आज के ब्लॉकबस्टर हिट से मिलता है। उन्हें केवल एकमुश्त भुगतान मिला था।
- आर्थिक दबाव: अपने सात बच्चों वाले बड़े परिवार को पालने और रूएन में अपने घर को बनाए रखने के लिए कॉर्नेल पर लगातार वित्तीय दबाव बना रहता था। उन्हें अपनी कानूनी जिम्मेदारियों को पूरी तरह से छोड़ने में भी संकोच होता था क्योंकि यह एक अधिक सुरक्षित आय स्रोत था।
3. शाही संरक्षण और पेंशन:
- कार्डिनल रिशेल का संरक्षण: कॉर्नेल को कार्डिनल रिशेल द्वारा गठित “सोसाइटी ऑफ़ द फाइव ऑथर्स” का हिस्सा बनने पर एक निश्चित राशि का भुगतान मिलता था। रिशेल कला और साहित्य के संरक्षक थे और उन्होंने कुछ लेखकों को वित्तीय सहायता प्रदान की।
- किंग लुई XIV की पेंशन: बाद में, कॉर्नेल को किंग लुई XIV से भी एक शाही पेंशन मिली। यह उनके साहित्यिक योगदान को राज्य द्वारा मान्यता देने का एक तरीका था। हालांकि, यह पेंशन हमेशा पर्याप्त या नियमित नहीं होती थी। कई बार उन्हें अपनी पेंशन के भुगतान में देरी या कमी का सामना करना पड़ता था।
4. प्रकाशकों से आय:
- पुस्तक प्रकाशन: नाटकों को मंचित करने के अलावा, उन्हें पुस्तकों के रूप में भी प्रकाशित किया जाता था। नाटककार कभी-कभी प्रकाशकों को अपने नाटकों के अधिकार बेचकर भी आय अर्जित करते थे। हालांकि, उस समय साहित्यिक चोरी और अनधिकृत संस्करण आम थे, जिससे लेखकों के लिए अपनी बौद्धिक संपदा पर पूर्ण नियंत्रण बनाए रखना मुश्किल होता था।
5. घटती लोकप्रियता और बढ़ती प्रतिस्पर्धा:
- अपने करियर के उत्तरार्ध में, जब जीन रासीन जैसे नए नाटककार लोकप्रिय होने लगे, कॉर्नेल को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। उनके नाटकों की बिक्री और मांग में कमी आने से उनकी आय प्रभावित हुई होगी।
- उन्हें नए नाटक लिखने के लिए शायद कम भुगतान मिलता होगा, और उनकी कुल आय घट गई होगी।
पियरे कॉर्नेल एक सफल और प्रसिद्ध नाटककार थे, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति हमेशा अस्थिर रही। उन्होंने कभी उस तरह का धन नहीं कमाया जो उनके साहित्यिक कद के अनुरूप होता। उनका जीवन इस बात का एक उदाहरण है कि 17वीं शताब्दी में लेखकों के लिए वित्तीय सुरक्षा प्राप्त करना कितना चुनौतीपूर्ण था, खासकर आधुनिक रॉयल्टी प्रणाली के अभाव में।
पियरे कॉर्नेल ने एक लंबा जीवन जिया, जो 17वीं शताब्दी के मानकों के अनुसार काफी उल्लेखनीय था, क्योंकि उस समय औसत जीवन प्रत्याशा कम थी। हालाँकि, उनकी बढ़ती उम्र के साथ कुछ चुनौतियाँ और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे भी आए, जिन्होंने उनके करियर और व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित किया।
बढ़ती उम्र की चुनौतियाँ और स्वास्थ्य
- घटती शारीरिक ऊर्जा और बीमारी:
- जैसे-जैसे कॉर्नेल की उम्र बढ़ती गई, स्वाभाविक रूप से उनकी शारीरिक ऊर्जा और कार्यक्षमता में कमी आती गई। 17वीं शताब्दी में चिकित्सा विज्ञान आज जितना उन्नत नहीं था, और बीमारियों का सामना करना अधिक कठिन था।
- हालाँकि उनके स्वास्थ्य के बारे में विशिष्ट विस्तृत रिकॉर्ड नहीं मिलते हैं, लेकिन यह सामान्य रूप से स्वीकार किया जाता है कि वृद्धावस्था अपने साथ कई बीमारियाँ और अक्षमताएं लाती है। लेखकों के लिए भी, बढ़ती उम्र के साथ रचनात्मक ऊर्जा और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में कमी आ सकती है।
- दृष्टि और सुनने की क्षमता में कमी:
- अक्सर, बढ़ती उम्र के साथ दृष्टि और सुनने की क्षमता कमजोर हो जाती है। एक नाटककार के लिए, जो अपनी प्रेरणा और अनुभवों के लिए अवलोकन और बातचीत पर निर्भर करता है, ये चुनौतियाँ रचनात्मक प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती हैं।
- मंच पर प्रदर्शन देखने या साहित्यिक आलोचनाओं को सुनने में कठिनाई उनके काम को प्रभावित कर सकती थी।
- रचनात्मक ऊर्जा में गिरावट और साहित्यिक गुणवत्ता पर प्रभाव:
- कुछ आलोचकों का मानना है कि कॉर्नेल के करियर के उत्तरार्ध में लिखे गए नाटकों की गुणवत्ता उनके स्वर्ण युग (‘ले सिड’, ‘होरास’, ‘सिन्ना’, ‘पॉलीक्टे’) जितनी उत्कृष्ट नहीं थी। यह आंशिक रूप से उनकी बढ़ती उम्र के साथ आने वाली रचनात्मक ऊर्जा में गिरावट या बदलते साहित्यिक रुझानों के साथ पूरी तरह तालमेल न बिठा पाने के कारण हो सकता है।
- उनके बाद के नाटकों में कभी-कभी जटिल कथानक और कम भावनात्मक तीव्रता देखी जाती है, जो शायद शारीरिक और मानसिक थकान का परिणाम हो।
- बदलते साहित्यिक रुझानों से तालमेल बिठाना:
- कॉर्नेल को अपने करियर के अंत में जीन रासीन (Jean Racine) जैसे युवा और नए नाटककारों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। रासीन की त्रासदियाँ अधिक मनोवैज्ञानिक, भावुक और संक्षिप्त थीं, जो दर्शकों को एक अलग तरह से अपील करती थीं।
- कॉर्नेल के लिए अपनी स्थापित “वीर” शैली को छोड़ना या उसमें पूरी तरह से बदलाव लाना मुश्किल था, खासकर बढ़ती उम्र के साथ नए रुझानों को अपनाना कठिन हो सकता है। उन्हें शायद ऐसा महसूस हुआ होगा कि उनकी शैली और दृष्टिकोण अब पहले जितना लोकप्रिय नहीं रहा।
- वित्तीय दबावों का निरंतर बना रहना:
- जैसा कि पहले चर्चा की गई, कॉर्नेल की आर्थिक स्थिति कभी भी बहुत सुरक्षित नहीं रही। बढ़ती उम्र में, वित्तीय अनिश्चितता का दबाव और भी बढ़ जाता है, खासकर जब आय के स्रोत कम हो रहे हों।
- उन्हें अपनी बेटी के दहेज के लिए अपना पैतृक घर (रूएन में) बेचना पड़ा था, जिससे पता चलता है कि जीवन के अंतिम पड़ाव पर भी उन्हें वित्तीय संघर्षों का सामना करना पड़ रहा था।
पियरे कॉर्नेल का निधन 1 अक्टूबर, 1684 को 78 वर्ष की आयु में हुआ। इन चुनौतियों के बावजूद, उन्होंने अपने जीवन के अंत तक लिखना जारी रखा, जो उनकी कला के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उनकी लंबी उम्र और निरंतर रचनात्मकता उनकी दृढ़ता का प्रमाण है, भले ही उनके अंतिम कार्य उनके शुरुआती महानतम कार्यों की ऊंचाइयों तक नहीं पहुंचे हों।
मोलीयर (Molière) और रासीन (Racine) जैसे नाटककारों पर कॉर्नेल का प्रभाव।
पियरे कॉर्नेल को 17वीं शताब्दी के फ्रांसीसी रंगमंच का “पिता” माना जाता है। उनके काम ने उनके बाद आने वाले महान नाटककारों, जैसे मोलीयर (Molière) और रासीन (Racine), पर गहरा प्रभाव डाला, भले ही उनकी शैलियाँ अलग-अलग थीं और उनके बीच कभी-कभी साहित्यिक प्रतिस्पर्धा भी रही।
मोलीयर (Molière) पर कॉर्नेल का प्रभाव
मोलीयर मुख्य रूप से अपनी कॉमेडीज़ के लिए जाने जाते हैं, जबकि कॉर्नेल त्रासदियों में अग्रणी थे। फिर भी, कॉर्नेल का प्रभाव कई तरह से देखा जा सकता है:
- नाटक की संरचना और तकनीक:
- कॉर्नेल ने फ्रांसीसी शास्त्रीय नाटक की संरचना और नियमों (विशेषकर तीन एकताएँ) को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मोलीयर ने, हालांकि कॉमेडी के लिए, इन स्थापित संरचनात्मक सिद्धांतों का अक्सर पालन किया, जिससे उनके नाटकों को एक विशिष्ट आकार और प्रवाह मिला।
- कॉर्नेल के संवादों में पाई जाने वाली तार्किक बहस और वाक्पटुता ने फ्रांसीसी मंच पर संवाद की गुणवत्ता के लिए एक उच्च मानक स्थापित किया, जिसका मोलीयर ने भी अपने हास्यपूर्ण और व्यंग्यात्मक संवादों में उपयोग किया।
- पात्रों का विकास:
- कॉर्नेल ने मजबूत इरादों वाले और नैतिक रूप से दृढ़ नायकों का चित्रण किया। भले ही मोलीयर के पात्र हास्यपूर्ण होते थे, पर उनमें भी अक्सर एक केंद्रीय जुनून या सनक (जैसे ‘द मिज़र’ में हार्पगॉन की कंजूसी) होती थी जो उनके कार्यों को चलाती थी। यह कॉर्नेल के चरित्र चित्रण की गहराई से प्रभावित हो सकता है।
- रंगमंच की प्रतिष्ठा:
- कॉर्नेल की ‘ले सिड’ जैसी सफलताओं ने फ्रांसीसी रंगमंच को एक गंभीर और सम्मानित कला रूप के रूप में स्थापित करने में मदद की। इस बढ़ी हुई प्रतिष्ठा से मोलीयर को भी लाभ हुआ, क्योंकि इसने एक बड़े और अधिक इच्छुक दर्शक वर्ग का निर्माण किया।
- राजा के दरबार में प्रदर्शन: मोलीयर की मंडली ने 1658 में राजा लुई XIV के सामने कॉर्नेल के नाटक ‘निकॉमेड’ (Nicomède) का मंचन किया था, जिसके बाद उन्हें पेरिस में प्रदर्शन करने की अनुमति मिली। यह दर्शाता है कि मोलीयर ने कॉर्नेल के नाटकों को अपने प्रदर्शनों की सूची का हिस्सा माना।
- व्यक्तिगत सम्मान:
- कुछ स्रोतों के अनुसार, मोलीयर ने कॉर्नेल को “नाटककारों के अग्रणी” के रूप में स्वीकार किया था। हालांकि उनके बीच कुछ साहित्यिक बहसें भी थीं, विशेषकर ‘एल’एकॉल डेस फेम्स’ (L’École des femmes) को लेकर, यह प्रतिस्पर्द्धा अक्सर सम्मानजनक होती थी।
रासीन (Racine) पर कॉर्नेल का प्रभाव
रासीन, जो कॉर्नेल से लगभग एक पीढ़ी छोटे थे, फ्रांसीसी त्रासदी के एक और महान प्रतिपादक थे। कॉर्नेल को अक्सर फ्रांसीसी त्रासदी का “पिता” कहा जाता है, और रासीन ने उस नींव पर ही अपनी कला का निर्माण किया:
- शास्त्रीय नियमों की स्थापना:
- कॉर्नेल ने शास्त्रीय नियमों (तीन एकताएँ, औचित्य, संभावना) को फ्रांसीसी रंगमंच में स्थापित किया। रासीन ने इन नियमों को और भी सख्ती और पूर्णता के साथ अपनाया। उन्होंने कॉर्नेल द्वारा स्थापित ढाँचे को लिया और उसे अपनी मनोवैज्ञानिक त्रासदियों के लिए एक आदर्श वाहन बनाया।
- रासीन के नाटक अक्सर कॉर्नेल से भी अधिक संक्षिप्त और केंद्रित होते थे, जो क्रिया और स्थान की एकता का लगभग निर्दोष पालन करते थे।
- एलिवेटेड लैंग्वेज और एलेक्जेंड्रिन छंद:
- कॉर्नेल ने एलेक्जेंड्रिन छंद को फ्रांसीसी त्रासदी के लिए एक मानक बनाया, और रासीन ने इस शैली को अपनी भावनात्मक गहराई और गीतात्मक सौंदर्य के साथ पूर्णता तक पहुँचाया। उन्होंने कॉर्नेल द्वारा स्थापित काव्यात्मक और उदात्त संवाद की परंपरा को जारी रखा, लेकिन उसे अधिक संगीतमय और तीव्र बनाया।
- त्रासदी के विषयों का विकास:
- कॉर्नेल ने कर्तव्य, सम्मान और इच्छाशक्ति के बीच संघर्ष पर ध्यान केंद्रित किया। रासीन ने इस आधार को लिया और इसे मनोवैज्ञानिक जुनून, नियति (fate), और मानव मन की कमजोरियों के चित्रण में विकसित किया।
- जहां कॉर्नेल के नायक अक्सर अपनी इच्छाशक्ति से अपनी भावनाओं पर काबू पाते थे, वहीं रासीन के नायक अक्सर अपने अनियंत्रित जुनून के शिकार होते थे। इस प्रकार, कॉर्नेल ने “इच्छाशक्ति की त्रासदी” का मार्ग प्रशस्त किया, जबकि रासीन ने “मनोविज्ञान की त्रासदी” को विकसित किया।
- प्रतिस्पर्धा और सम्मान:
- कॉर्नेल और रासीन के बीच एक प्रसिद्ध प्रतिस्पर्धा थी, खासकर जब दोनों ने एक ही विषय (टाइट और बेरेनिस) पर नाटक लिखे। यह स्वस्थ साहित्यिक प्रतिस्पर्धा थी जिसने दोनों को अपनी कला को निखारने के लिए प्रेरित किया।
- इसके बावजूद, रासीन ने कॉर्नेल के प्रति गहरा सम्मान बनाए रखा। कहा जाता है कि रासीन ने अपने बेटे से कहा था कि कॉर्नेल ने उनके अपने छंदों से “सौ गुना अधिक सुंदर” छंद लिखे हैं।
पियरे कॉर्नेल ने 17वीं शताब्दी के फ्रांसीसी रंगमंच के लिए वह ढाँचा और मानक स्थापित किए जिस पर मोलीयर और रासीन ने अपनी महान कृतियों का निर्माण किया। उन्होंने एक ऐसा मंच तैयार किया जहाँ शास्त्रीय नियमों का सम्मान किया जाता था और जहाँ गहन मानवीय भावनाओं और नैतिक दुविधाओं को शक्तिशाली संवादों के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता था। भले ही उनके उत्तराधिकारियों ने अपनी अनूठी शैलियों का विकास किया, लेकिन वे सभी कॉर्नेल की विरासत के ऋणी थे।
फ्रेंच साहित्य में शास्त्रीय युग के स्तंभ के रूप में पियरे कॉर्नेल की भूमिका
पियरे कॉर्नेल को 17वीं शताब्दी के फ्रेंच साहित्य के शास्त्रीय युग (French Classical Age) के सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली स्तंभों में से एक माना जाता है। उन्होंने इस युग की नींव रखी और इसके आदर्शों को अपने नाटकों के माध्यम से स्थापित किया, जिसने उनके बाद आने वाले नाटककारों और कवियों के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया।
1. शास्त्रीय रंगमंच के नियमों के संस्थापक
- अरस्तू और होरेस के सिद्धांतों को लागू करना: कॉर्नेल पहले प्रमुख फ्रेंच नाटककार थे जिन्होंने प्राचीन ग्रीक और रोमन नाटककारों, विशेष रूप से अरस्तू के ‘पोएटिक्स’ और होरेस के ‘आर्स पोएटिका’ में वर्णित शास्त्रीय सिद्धांतों को फ्रेंच मंच पर सफलतापूर्वक लागू किया।
- तीन एकताएँ (The Three Unities) का निर्धारण: उन्होंने क्रिया (Action), समय (Time), और स्थान (Place) की एकता के नियमों को फ्रेंच नाटक के लिए अनिवार्य बनाया। भले ही ‘ले सिड’ पर इन नियमों के उल्लंघन को लेकर विवाद हुआ, लेकिन इस विवाद ने ही इन नियमों को और मजबूती से स्थापित किया।
- औचित्य (Décorum) और संभावना (Vraisemblance) पर जोर: उन्होंने पात्रों के व्यवहार में औचित्य (सामाजिक रूप से उचित आचरण) और कथानक में संभावना (विश्वसनीयता) के महत्व पर बल दिया। ये शास्त्रीय मानदंड बाद में फ्रेंच त्रासदी की पहचान बन गए।
2. वीर त्रासदी (Heroic Tragedy) और नैतिक दृढ़ता का प्रतिपादन
- कॉर्नेलियन नायक का निर्माण: कॉर्नेल ने ऐसे नायकों का चित्रण किया जो अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति (Willpower) और नैतिक दृढ़ता (Moral Fortitude) के माध्यम से अपनी भावनाओं और भाग्य पर विजय प्राप्त करते हैं। उनके पात्र अक्सर कर्तव्य, सम्मान (honneur), और गौरव (gloire) को व्यक्तिगत प्रेम या सुख से ऊपर रखते हैं।
- “कॉर्नेलियन दुविधा”: उन्होंने ‘कॉर्नेलियन दुविधा’ की अवधारणा को लोकप्रिय बनाया, जहाँ नायक को दो समान रूप से महान लेकिन परस्पर विरोधी कर्तव्यों या मूल्यों के बीच कठिन नैतिक चुनाव करना पड़ता है। यह उनकी त्रासदियों का केंद्रीय विषय था, जिसने उन्हें बौद्धिक गहराई प्रदान की।
- मानव विवेक का उत्सव: उनके नाटक मानव विवेक (reason) और आत्म-नियंत्रण की शक्ति का उत्सव मनाते हैं, जो 17वीं शताब्दी के तर्कवादी दर्शन के अनुरूप था।
3. एलेक्जेंड्रिन छंद का महारथी उपयोग
- काव्य भाषा का मानक: कॉर्नेल ने एलेक्जेंड्रिन छंद (Alexandrine verse) (12 सिलेबल्स की एक पंक्ति) को फ्रेंच त्रासदी के लिए मानक रूप में स्थापित किया। उन्होंने इस छंद का उपयोग भव्य, औपचारिक और शक्तिशाली संवादों के लिए किया, जो पात्रों की गरिमा और उनके गहन आंतरिक संघर्षों को व्यक्त करते थे।
- उच्च शैली (Elevated Style): उनकी भाषा उदात्त और प्रभावशाली थी, जो शास्त्रीय युग की एक अन्य विशेषता थी। यह बोलचाल की भाषा से ऊपर उठकर एक ऐसी भाषा का उपयोग करता था जो गंभीर और सार्वभौमिक विषयों के लिए उपयुक्त थी।
4. बाद के नाटककारों के लिए प्रेरणा और चुनौती
- मोलियर और रासीन के लिए आधार: कॉर्नेल ने एक ऐसी नाट्य परंपरा की नींव रखी जिस पर मोलीयर (कॉमेडी में) और विशेष रूप से रासीन (त्रासदी में) ने अपनी महान कृतियों का निर्माण किया। रासीन ने कॉर्नेल द्वारा स्थापित शास्त्रीय ढांचे को लिया और उसे मनोवैज्ञानिक त्रासदी की नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
- साहित्यिक बहस का प्रणेता: ‘ले सिड’ पर हुए विवाद ने साहित्य के नियमों और उद्देश्य पर एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय बहस छेड़ दी, जिसने फ्रेंच शास्त्रीय युग के बौद्धिक माहौल को आकार दिया।
पियरे कॉर्नेल ने फ्रेंच रंगमंच के लिए एक सुव्यवस्थित ढाँचा, नैतिक गहराई और एक विशिष्ट वीर शैली प्रदान की। उन्होंने न केवल महान नाटक लिखे, बल्कि उन्होंने उन सिद्धांतों और सौंदर्यशास्त्र को भी स्थापित किया जो पूरे शास्त्रीय युग की पहचान बन गए। इस प्रकार, उन्हें निर्विवाद रूप से फ्रेंच साहित्य में शास्त्रीय युग के एक केंद्रीय और मौलिक स्तंभ के रूप में मान्यता प्राप्त है।
कॉर्नेल के कार्यों का स्थायी प्रभाव
पियरे कॉर्नेल के कार्यों का फ्रांसीसी साहित्य, रंगमंच और पश्चिमी संस्कृति पर एक गहरा और स्थायी प्रभाव पड़ा है। उनकी मृत्यु के सदियों बाद भी, उनके नाटक प्रासंगिक बने हुए हैं और उनका साहित्यिक योगदान एक बेंचमार्क के रूप में देखा जाता है।
1. फ्रांसीसी शास्त्रीय रंगमंच की नींव
कॉर्नेल को निर्विवाद रूप से फ्रांसीसी शास्त्रीय त्रासदी के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने शास्त्रीय नियमों (तीन एकताएँ, औचित्य, संभावना) को फ्रेंच मंच पर स्थापित किया और उन्हें व्यवहार में लाया। उनके बाद के सभी महान फ्रांसीसी नाटककार, चाहे वे मोलीयर (कॉमेडी में) हों या रासीन (त्रासदी में), कॉर्नेल द्वारा निर्धारित इस ढांचे के भीतर ही काम करते थे। उनका योगदान फ्रेंच शास्त्रीय युग के लिए व्याकरण और शैली नियम स्थापित करने जैसा था।
2. वीर चरित्र और नैतिक दुविधाओं का चित्रण
कॉर्नेल ने नैतिक दृढ़ता (moral fortitude) और दृढ़ इच्छाशक्ति (strong will) वाले नायकों की एक विशिष्ट पहचान बनाई। उनके पात्र, जो अक्सर प्रेम और कर्तव्य, या व्यक्तिगत इच्छा और राज्य के बीच के संघर्ष में फँसे होते थे, ने मानवीय गरिमा और आत्म-नियंत्रण के आदर्शों को प्रस्तुत किया। “कॉर्नेलियन दुविधा” अब साहित्य में एक स्थापित अवधारणा है, जो उन स्थितियों का वर्णन करती है जहाँ व्यक्ति को समान रूप से मान्य लेकिन परस्पर विरोधी नैतिक विकल्पों के बीच चयन करना पड़ता है। यह उनके कार्यों का एक सार्वभौमिक और स्थायी पहलू है।
3. फ्रांसीसी भाषा और काव्यात्मक संवाद का परिष्कार
कॉर्नेल ने एलेक्जेंड्रिन छंद (alexandrine verse) को फ्रेंच त्रासदी के लिए मानक बनाया। उनके संवादों की भव्यता, स्पष्टता और तार्किक शक्ति ने फ्रांसीसी भाषा को समृद्ध किया। उन्होंने फ्रेंच को एक ऐसी भाषा के रूप में स्थापित करने में मदद की जो उच्च दार्शनिक और भावनात्मक विषयों को व्यक्त करने में सक्षम थी। आज भी, उनके नाटक फ्रांसीसी स्कूलों और विश्वविद्यालयों में भाषा और साहित्य के अध्ययन का एक अनिवार्य हिस्सा हैं।
4. ‘ले सिड’ की अमर विरासत
उनके सभी कार्यों में से, ‘ले सिड’ (Le Cid) कॉर्नेल की सबसे प्रसिद्ध और स्थायी कृति बनी हुई है। इसकी लोकप्रियता कभी कम नहीं हुई। कर्तव्य और प्रेम के बीच का शाश्वत संघर्ष, रॉड्रिग और चिमेन के शक्तिशाली चरित्र, और इसके यादगार संवाद इसे एक ऐसी कृति बनाते हैं जो हर पीढ़ी के दर्शकों और पाठकों को प्रभावित करती है। “सुंदर जैसे सिड” जैसी कहावतें आज भी फ्रांसीसी संस्कृति में जीवित हैं।
5. यूरोपीय रंगमंच पर प्रभाव
कॉर्नेल का प्रभाव केवल फ्रांस तक ही सीमित नहीं रहा। उनके कार्यों ने पूरे यूरोप में नाटककारों को प्रेरित किया। उनके वीर नायक, नैतिक संघर्ष और शास्त्रीय संरचना ने बाद के यूरोपीय नाटकों में भी अपनी छाप छोड़ी। वह पश्चिमी साहित्य के कैनन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बने हुए हैं।
6. अकादमिक अध्ययन और पुनर्मूल्यांकन
आज भी, कॉर्नेल के नाटकों का अकादमिक रूप से अध्ययन किया जाता है। साहित्यिक आलोचक और विद्वान उनके कार्यों की नैतिक, दार्शनिक और नाटकीय जटिलताओं का विश्लेषण करते रहते हैं। उनके नाटकों का मंचन और पुनर्मूल्यांकन दुनिया भर के थिएटरों में होता रहता है, जिससे उनकी प्रासंगिकता बनी रहती है।
पियरे कॉर्नेल के कार्यों ने फ्रांसीसी शास्त्रीय युग की नींव रखी, नाटकीय शैली और भाषा के लिए मानक निर्धारित किए, और ऐसे नायक प्रदान किए जो मानवीय इच्छाशक्ति और नैतिक दृढ़ता के प्रतीक बन गए। उनकी विरासत आज भी जीवित है, जो उन्हें फ्रेंच साहित्य के इतिहास में एक स्थायी और अपरिहार्य व्यक्ति बनाती है।
कॉर्नेल की रचनात्मकता और नाटकीय तकनीकों का विश्लेषण
पियरे कॉर्नेल की रचनात्मकता और उनकी नाटकीय तकनीकें 17वीं शताब्दी के फ्रांसीसी रंगमंच में अद्वितीय थीं, जिन्होंने उन्हें अपने समकालीनों से अलग खड़ा किया और बाद के नाटककारों के लिए एक मानदंड स्थापित किया। उनका दृष्टिकोण बौद्धिक गहराई, नैतिक दृढ़ता और काव्यात्मक भव्यता का एक संगम था।
1. “कॉर्नेलियन दुविधा” और नैतिक संघर्ष का चित्रण
कॉर्नेल की रचनात्मकता का एक प्रमुख तत्व वह “कॉर्नेलियन दुविधा” है जिसे वह अपने पात्रों के सामने प्रस्तुत करते हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ नायक को दो समान रूप से महान या नैतिक रूप से सही, लेकिन परस्पर विरोधी विकल्पों में से एक को चुनना होता है। यह सिर्फ एक समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि नायक के आंतरिक चरित्र और इच्छाशक्ति का एक परीक्षण है।
- उदाहरण: ‘ले सिड’ में रॉड्रिग को अपने पिता के सम्मान और चिमेन के प्रति अपने प्रेम के बीच चयन करना पड़ता है। चिमेन को अपने पिता की हत्या का बदला लेने के कर्तव्य और रॉड्रिग के प्रति अपने प्रेम के बीच संघर्ष करना पड़ता है।
- तकनीक: कॉर्नेल इस दुविधा को गहन मोनोलॉग (स्वगत कथन) और तार्किक बहसों के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं, जिससे दर्शकों को पात्रों के आंतरिक विचार प्रक्रिया और उनके नैतिक संघर्ष की गहराई का अनुभव होता है।
2. कारण (Reason) और इच्छाशक्ति (Willpower) का प्रभुत्व
कॉर्नेल के नायक अक्सर अपनी भावनाओं (जैसे प्रेम, क्रोध, भय) पर अपने विवेक और इच्छाशक्ति को वरीयता देते हैं। यह शास्त्रीय युग के तर्कवाद और मानव क्षमता में विश्वास को दर्शाता है।
- रचनात्मकता: वह ऐसे पात्रों का निर्माण करते हैं जो भावनात्मक रूप से आहत होने के बावजूद, अपने नैतिक सिद्धांतों या अपने गौरव के लिए दृढ़ रहते हैं। यह उन्हें असाधारण और अनुकरणीय बनाता है।
- तकनीक: संवादों में अक्सर तार्किक तर्क-वितर्क, घोषणाएँ और शपथें शामिल होती हैं जो पात्रों के दृढ़ निश्चय को दर्शाती हैं। उनके पात्रों की महानता उनकी परिस्थितियों पर विजय पाने की क्षमता में निहित है, न कि उनके सामने झुकने में।
3. शास्त्रीय नियमों का अभिनव उपयोग
भले ही कॉर्नेल को शास्त्रीय नियमों का पालन न करने के लिए ‘ले सिड’ के लिए आलोचना मिली, लेकिन उन्होंने वास्तव में इन नियमों का एक लचीले और अभिनव तरीके से उपयोग किया।
- क्रिया की एकता: उन्होंने हमेशा एक केंद्रीय कथानक पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे नाटक की तीव्रता और प्रभावशीलता बनी रही।
- समय और स्थान की एकता: उन्होंने इन पर कुछ हद तक ढील दी ताकि पात्रों को अपनी नैतिक दुविधाओं को पूरी तरह से विकसित करने का समय मिल सके और कथानक को तार्किक रूप से आगे बढ़ाया जा सके। उन्होंने तर्क दिया कि नाटक “संभावना” (verisimilitude) के दायरे में रहते हुए कुछ हद तक कलात्मक स्वतंत्रता ले सकता है।
- औचित्य (Décorum): उन्होंने बाहरी औचित्य (मंच पर हिंसा से बचना) का पालन किया, लेकिन आंतरिक औचित्य (पात्रों का भावनात्मक व्यवहार) को अपनी नैतिक थीम के अनुरूप रखा।
4. एलेक्जेंड्रिन छंद का महारथी प्रयोग
कॉर्नेल की सबसे प्रमुख नाटकीय तकनीकों में से एक एलेक्जेंड्रिन छंद (Alexandrine verse) का उनका उपयोग था।
- काव्यात्मक शक्ति: उन्होंने 12-सिलेबल वाले इस छंद को एक ऐसी लय और गरिमा प्रदान की जो फ्रेंच शास्त्रीय त्रासदी के लिए विशिष्ट बन गई। यह छंद संवादों को एक औपचारिक और उदात्त स्वर देता था, जिससे वे अधिक प्रभावशाली और यादगार बनते थे।
- वाक्पटुता और तर्क: इस छंद ने पात्रों को अपने तर्कों को स्पष्टता, भव्यता और काव्यात्मकता के साथ प्रस्तुत करने की अनुमति दी, जिससे नाटक की बौद्धिक गहराई बढ़ी।
5. वीर और उदात्त (Sublime) की अवधारणा
कॉर्नेल की रचनात्मकता ‘वीर’ (heroic) और ‘उदात्त’ (sublime) की अवधारणा पर आधारित थी।
- चरित्र चित्रण: उनके नाटक साधारण जीवन की नकल करने के बजाय असाधारण परिस्थितियों में असाधारण पात्रों को चित्रित करते थे। वे मानव आत्मा की महानता और संघर्षों को दिखाते थे।
- भावनात्मक प्रभाव: कॉर्नेल का लक्ष्य दर्शकों में ‘प्रशंसा’ (admiration) की भावना जगाना था, न कि केवल दया और भय (जैसे अरस्तू के अनुसार)। वे चाहते थे कि दर्शक नायकों की नैतिक श्रेष्ठता और उनकी इच्छाशक्ति से प्रेरित हों।
कॉर्नेल की रचनात्मकता नैतिक दुविधाओं की गहरी समझ, मानव विवेक की शक्ति में विश्वास और काव्यात्मक भव्यता के संयोजन में निहित थी। उनकी नाटकीय तकनीकों, विशेष रूप से एलेक्जेंड्रिन छंद का उपयोग और नैतिक संघर्षों पर जोर, ने फ्रांसीसी शास्त्रीय त्रासदी के लिए एक मानदंड स्थापित किया, जो आज भी साहित्य और रंगमंच में उनकी स्थायी विरासत का हिस्सा है।
साहित्यिक इतिहास में पियरे कॉर्नेल का स्थान
पियरे कॉर्नेल का साहित्यिक इतिहास में एक अद्वितीय और अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। उन्हें केवल एक महान नाटककार ही नहीं, बल्कि फ्रांसीसी शास्त्रीय युग (French Classical Age) के संस्थापकों में से एक और आधुनिक फ्रेंच त्रासदी (Modern French Tragedy) के पिता के रूप में भी जाना जाता है।
1. फ्रांसीसी शास्त्रीय रंगमंच के जनक
कॉर्नेल ने 17वीं शताब्दी के फ्रांसीसी मंच के लिए वह ढाँचा और सौंदर्यशास्त्र स्थापित किया, जो पूरे शास्त्रीय युग की पहचान बन गया।
- नियमों के प्रणेता: उन्होंने प्राचीन यूनानी और रोमन नाटककारों द्वारा प्रतिपादित शास्त्रीय नियमों (तीन एकताएँ: क्रिया, समय और स्थान; औचित्य; और संभावना) को फ्रांसीसी रंगमंच में सफलतापूर्वक लागू किया। भले ही ‘ले सिड’ पर इन नियमों के उल्लंघन को लेकर विवाद हुआ, इस विवाद ने ही इन नियमों को और मजबूत किया और बाद के नाटककारों के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत बन गए।
- उदात्त शैली का निर्माण: उन्होंने एलेक्जेंड्रिन छंद को फ्रेंच त्रासदी का मानक रूप बनाया और एक ऐसी उच्च और काव्यात्मक भाषा विकसित की जो गंभीर विषयों और भव्य भावनाओं को व्यक्त करने के लिए आदर्श थी।
2. “कॉर्नेलियन नायक” और नैतिक दृढ़ता का प्रतिपादक
कॉर्नेल ने एक नए प्रकार के नायक का निर्माण किया – कॉर्नेलियन नायक। ये ऐसे पात्र थे जो अपनी अटूट इच्छाशक्ति और नैतिक दृढ़ता के बल पर अपनी तीव्र भावनाओं और भाग्य की चुनौतियों पर विजय प्राप्त करते थे।
- कर्तव्य बनाम प्रेम: उनके नाटक अक्सर कर्तव्य, सम्मान (honneur) और गौरव (gloire) को व्यक्तिगत प्रेम और सुख से ऊपर रखने के द्वंद्व पर केंद्रित होते थे। यह उनके युग के मूल्यों को दर्शाता था और मानव विवेक की शक्ति को महिमामंडित करता था।
- बौद्धिक गहराई: उनके नाटक केवल भावनात्मक नहीं थे, बल्कि बौद्धिक रूप से भी गहन थे, जिनमें पात्र अक्सर अपनी दुविधाओं पर तर्कसंगत बहस करते थे।
3. फ्रांसीसी साहित्य का एक अनिवार्य स्तंभ
कॉर्नेल की रचनाएँ आज भी फ्रांसीसी साहित्य के पाठ्यक्रम का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। उनके नाटकों को न केवल उनकी नाटकीय गुणवत्ता के लिए, बल्कि 17वीं शताब्दी के फ्रांसीसी समाज के नैतिक और दार्शनिक विचारों को समझने के लिए भी पढ़ा जाता है।
- भाषा का परिष्कार: उन्होंने फ्रांसीसी भाषा को परिष्कृत करने और इसे एक शक्तिशाली साहित्यिक माध्यम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- प्रेरणा का स्रोत: उन्होंने मोलीयर (कॉमेडी में) और रासीन (मनोवैज्ञानिक त्रासदी में) जैसे बाद के महान नाटककारों के लिए एक आधार प्रदान किया, भले ही इन नाटककारों ने अपनी अनूठी शैलियों का विकास किया। कॉर्नेल को अक्सर रासीन के अग्रदूत के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने फ्रांसीसी त्रासदी के विकास में अगला कदम उठाया।
4. अमरता और कालातीत प्रासंगिकता
उनके कुछ नाटक, विशेष रूप से ‘ले सिड’, अपनी स्थापना के बाद से लगातार मंचित होते रहे हैं। कर्तव्य, सम्मान और प्रेम के बीच का शाश्वत संघर्ष आज भी दर्शकों को पसंद आता है, जो उनके कार्यों की कालातीत प्रासंगिकता को दर्शाता है।
- सांस्कृतिक प्रतीक: ‘ले सिड’ जैसी उनकी कृतियाँ फ्रांसीसी सांस्कृतिक पहचान का एक अभिन्न अंग बन गई हैं।
पियरे कॉर्नेल का साहित्यिक इतिहास में स्थान केवल एक सफल नाटककार के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसे दूरदर्शी के रूप में है जिसने फ्रांसीसी साहित्य के सबसे शानदार युगों में से एक की दिशा तय की। उन्होंने अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ी है जो कलात्मक उत्कृष्टता, नैतिक गहराई और मानवीय इच्छाशक्ति की स्थायी शक्ति का प्रतीक है।
‘ले सिड’ की प्रासंगिकता आज भी
पियरे कॉर्नेल का महान नाटक ‘ले सिड’ (Le Cid) 17वीं शताब्दी के फ्रेंच मंच पर अपनी पहली प्रस्तुति के लगभग 400 साल बाद भी उतना ही प्रासंगिक और प्रभावशाली बना हुआ है। इसकी कालातीत अपील कई सार्वभौमिक विषयों और मानवीय संघर्षों में निहित है, जो हर युग के दर्शकों और पाठकों के साथ प्रतिध्वनित होते हैं।
1. कर्तव्य बनाम प्रेम का शाश्वत द्वंद्व
‘ले सिड’ का केंद्रीय संघर्ष कर्तव्य (duty) और प्रेम (love) के बीच का द्वंद्व है। रॉड्रिग को अपने परिवार के सम्मान की रक्षा करनी है, भले ही इसका मतलब उस महिला के पिता को मारना हो जिससे वह प्यार करता है। वहीं, चिमेन को अपने पिता की मौत का बदला लेना है, जबकि उसका दिल रॉड्रिग से प्यार करता है। यह दुविधा आज भी कई रूपों में मौजूद है:
- निजी और पेशेवर जीवन में संतुलन: आधुनिक व्यक्ति अक्सर अपने व्यक्तिगत संबंधों और अपने करियर या नैतिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने के संघर्ष का अनुभव करते हैं।
- पारिवारिक निष्ठा बनाम व्यक्तिगत इच्छाएँ: आज भी लोग अपने परिवार की अपेक्षाओं और अपनी व्यक्तिगत आकांक्षाओं या प्रेम संबंधों के बीच टकराव महसूस करते हैं।
- सामाजिक अपेक्षाएँ और आत्म-पहचान: नाटक दिखाता है कि कैसे सामाजिक मानदंड और सम्मान की अवधारणा व्यक्तिगत इच्छाओं को प्रभावित करती है, जो आज भी विभिन्न संस्कृतियों और समाजों में प्रासंगिक है।
2. सम्मान और गौरव का महत्व
नाटक में सम्मान (honneur) और गौरव (gloire) केंद्रीय विषय हैं। रॉड्रिग और चिमेन दोनों अपने सम्मान को किसी भी चीज़ से ऊपर रखते हैं। यह अवधारणा आज भी विभिन्न रूपों में समाज में मौजूद है:
- प्रतिष्ठा और सामाजिक छवि: आधुनिक दुनिया में भी लोग अपनी प्रतिष्ठा, सार्वजनिक छवि और पेशेवर सम्मान के लिए बहुत महत्व देते हैं।
- आत्म-मूल्य और पहचान: सम्मान व्यक्तिगत आत्म-मूल्य और पहचान का एक महत्वपूर्ण पहलू बना हुआ है, जिसके लिए लोग बड़े बलिदान करने को तैयार रहते हैं।
3. नैतिक निर्णय लेने की जटिलता
‘ले सिड’ उन जटिल नैतिक निर्णयों की पड़ताल करता है जिनका सामना लोगों को तब करना पड़ता है जब कोई “सही” या “गलत” विकल्प स्पष्ट नहीं होता। यह “कॉर्नेलियन दुविधा” आज भी प्रासंगिक है:
- कठिन विकल्प: जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब हमें दो ऐसी चीजों के बीच चयन करना पड़ता है जो दोनों ही महत्वपूर्ण और नैतिक रूप से वैध लगती हैं, लेकिन वे परस्पर विरोधी होती हैं।
- परिणामों का सामना: नाटक दिखाता है कि कैसे एक निर्णय, चाहे वह कितना भी नैतिक या आवश्यक क्यों न हो, अप्रत्याशित और दर्दनाक परिणाम दे सकता है।
4. मानवीय इच्छाशक्ति और दृढ़ता की शक्ति
कॉर्नेल के नायक अपनी भावनाओं के शिकार होने के बजाय, अपनी इच्छाशक्ति और कारण का उपयोग करके अपनी नियति को आकार देते हैं। यह मानवीय दृढ़ता का एक शक्तिशाली संदेश देता है:
- चुनौतियों का सामना: नाटक व्यक्तियों को विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी आंतरिक शक्ति, साहस और आत्म-नियंत्रण बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है।
- नेतृत्व और जिम्मेदारी: रॉड्रिग जैसे नायक नेतृत्व और जिम्मेदारी के आदर्श को दर्शाते हैं, जो किसी भी युग में मूल्यवान गुण हैं।
5. साहित्यिक और कलात्मक मूल्य
एक साहित्यिक कृति के रूप में ‘ले सिड’ की काव्यात्मक भाषा, शक्तिशाली संवाद और सुव्यवस्थित संरचना इसे आज भी अध्ययन और मंचन के लिए एक आकर्षक नाटक बनाती है। यह फ्रांसीसी भाषा और शास्त्रीय रंगमंच के विकास को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण पाठ है।
‘ले सिड’ केवल 17वीं शताब्दी का एक नाटक नहीं है, बल्कि मानवीय स्वभाव, नैतिक संघर्ष और सामाजिक मूल्यों की एक कालातीत पड़ताल है। इसके विषय इतने सार्वभौमिक हैं कि वे समय और संस्कृति की सीमाओं को पार कर आज भी दर्शकों और पाठकों के साथ गहराई से जुड़ते हैं, जो इसकी स्थायी प्रासंगिकता का प्रमाण है।
पियरे कॉर्नेल: जीवन और कार्यों का संक्षिप्त पुनरावलोकन
पियरे कॉर्नेल (1606–1684) 17वीं शताब्दी के फ्रांस के एक महान नाटककार थे, जिन्हें फ्रांसीसी शास्त्रीय रंगमंच का जनक माना जाता है। उनका जीवन और कार्य उस युग के साहित्यिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के साथ गहराई से जुड़े हुए थे।
प्रारंभिक जीवन और नाटकीय उदय
कॉर्नेल का जन्म 1606 में नॉरमैंडी के डाईपे (Dieppe) शहर में हुआ था। उन्होंने जेसुइट कॉलेज डी रूएन में शास्त्रीय शिक्षा प्राप्त की और बाद में कानून की पढ़ाई की। उन्होंने कुछ समय तक वकील के रूप में भी काम किया, लेकिन उनकी सच्ची लगन नाटक लेखन में थी।
उन्होंने 1629 में अपनी पहली कॉमेडी ‘मेलिटे’ (Mélite) के साथ साहित्यिक दुनिया में कदम रखा। यह नाटक उस समय की प्रचलित फ़ार्स से अलग था और इसने एक नई, परिष्कृत कॉमेडी शैली को जन्म दिया। उनकी प्रारंभिक सफलताएँ उन्हें पेरिस ले आईं, जहाँ वे प्रमुख नाटक मंडलों से जुड़े और कार्डिनल रिशेल (Cardinal Richelieu) के संरक्षण में “सोसाइटी ऑफ़ द फाइव ऑथर्स” का भी हिस्सा बने।
‘ले सिड’ और शास्त्रीयता का शिखर
कॉर्नेल की सबसे प्रसिद्ध कृति, ‘ले सिड’ (Le Cid), 1637 में मंचित हुई। यह नाटक स्पेनिश किंवदंती पर आधारित था और इसमें कर्तव्य, सम्मान और प्रेम के बीच के गहन द्वंद्व को दर्शाया गया था। इसकी अभूतपूर्व लोकप्रियता ने उन्हें रातोंरात एक राष्ट्रीय प्रतीक बना दिया।
हालाँकि, ‘ले सिड’ ने अकादमी फ्रेंचाइज़ (Académie Française) के साथ एक बड़ा विवाद, ‘क्वेरेल डू सिड’ (Querelle du Cid), भी खड़ा कर दिया। अकादमी ने आरोप लगाया कि नाटक शास्त्रीय नियमों, विशेष रूप से औचित्य (décorum) और संभावना (vraisemblance), का उल्लंघन करता है। इस विवाद ने कॉर्नेल को कुछ समय के लिए लेखन से दूर कर दिया, लेकिन इसने फ्रांसीसी साहित्य में शास्त्रीय नियमों के महत्व को स्थापित करने में मदद की।
बाद के महत्वपूर्ण कार्य और शैलीगत विकास
‘ले सिड’ के बाद, कॉर्नेल ने शास्त्रीय नियमों का अधिक सख्ती से पालन करते हुए कई और प्रभावशाली त्रासदियाँ लिखीं, जिन्होंने फ्रांसीसी रंगमंच को समृद्ध किया:
- ‘होरास’ (Horace, 1640): देशभक्ति, राज्य के प्रति कर्तव्य और व्यक्तिगत बलिदान पर केंद्रित।
- ‘सिन्ना’ (Cinna, 1641): राजनीतिक षड्यंत्र, क्षमा और न्यायपूर्ण शासन की प्रकृति पर विचार।
- ‘पॉलीक्टे’ (Polyeucte, 1643): धार्मिक आस्था, शहादत और प्रेम पर आस्था की विजय।
इन नाटकों में कॉर्नेल ने “कॉर्नेलियन दुविधा” की अवधारणा को विकसित किया, जहाँ नायक को समान रूप से महान लेकिन परस्पर विरोधी नैतिक विकल्पों में से चुनना होता है। उन्होंने एलेक्जेंड्रिन छंद (alexandrine verse) में शक्तिशाली और तर्कपूर्ण संवादों का उपयोग किया, जिससे उनके नाटकों को एक विशिष्ट उदात्त शैली मिली।
व्यक्तिगत जीवन और चुनौतियाँ
कॉर्नेल ने 1640 में मैरी डी लांडेनै से शादी की और उनके सात बच्चे हुए। वह अपने अधिकांश जीवन रूएन में रहे, जबकि पेरिस आते-जाते रहते थे। उन्हें अपने बड़े परिवार को पालने और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए अक्सर संघर्ष करना पड़ा, क्योंकि उस समय नाटककारों को आधुनिक रॉयल्टी नहीं मिलती थी। अपने करियर के उत्तरार्ध में, उन्हें युवा नाटककार जीन रासीन (Jean Racine) से बढ़ती प्रतिस्पर्धा का भी सामना करना पड़ा, जिनकी मनोवैज्ञानिक त्रासदियाँ दर्शकों में अधिक लोकप्रिय होने लगी थीं।
विरासत और स्थायी प्रभाव
पियरे कॉर्नेल का निधन 1684 में हुआ। उन्हें आज भी फ्रांसीसी साहित्य में शास्त्रीय युग के एक स्तंभ के रूप में याद किया जाता है। उन्होंने ऐसे नियम और शैली स्थापित की जिसने सदियों तक फ्रांसीसी नाटक को आकार दिया। उनके वीर नायक, नैतिक दुविधाओं का उनका गहन चित्रण, और उनकी काव्यात्मक भाषा आज भी प्रासंगिक बनी हुई है, जिससे उन्हें विश्व साहित्य में एक कालातीत स्थान प्राप्त है।
पियरे कॉर्नेल की अमरता का कारण
पियरे कॉर्नेल की अमरता केवल उनकी साहित्यिक सफलताओं में नहीं, बल्कि उन शाश्वत मानवीय विषयों, नाटकीय नवाचारों और स्थायी सांस्कृतिक छाप में निहित है जो उन्होंने फ्रांसीसी और विश्व साहित्य पर छोड़ी। कई कारण हैं जो उन्हें आज भी एक अमर नाटककार बनाते हैं:
1. “कॉर्नेलियन दुविधा” का शाश्वत आकर्षण
कॉर्नेल की सबसे बड़ी देन उनकी “कॉर्नेलियन दुविधा” का चित्रण है – एक ऐसी स्थिति जहाँ नायक को दो समान रूप से महत्वपूर्ण लेकिन परस्पर विरोधी कर्तव्यों या मूल्यों (जैसे प्रेम बनाम सम्मान, या व्यक्तिगत इच्छा बनाम राज्य का कर्तव्य) के बीच एक कठिन चुनाव करना पड़ता है। यह दुविधा मानवीय अनुभव का एक सार्वभौमिक और कालातीत पहलू है। आज भी लोग अपने जीवन में ऐसे नैतिक और भावनात्मक संघर्षों का सामना करते हैं, जो कॉर्नेल के नाटकों को हमेशा प्रासंगिक बनाए रखते हैं।
2. मानव इच्छाशक्ति और नैतिक दृढ़ता का उत्सव
कॉर्नेल के नायक निष्क्रिय रूप से भाग्य के आगे नहीं झुकते। वे अपनी भावनाओं पर कारण और इच्छाशक्ति को वरीयता देते हैं, और अपने नैतिक सिद्धांतों और गौरव के लिए बड़े से बड़े बलिदान करने को तैयार रहते हैं। यह दृढ़ता और आत्म-नियंत्रण का आदर्श हर युग में प्रेरक रहा है। उनके नाटक मानव आत्मा की महानता और विपरीत परिस्थितियों पर काबू पाने की क्षमता का जश्न मनाते हैं, जो उन्हें सार्वभौमिक रूप से प्रशंसनीय बनाता है।
3. फ्रांसीसी शास्त्रीय रंगमंच की नींव
कॉर्नेल ने 17वीं शताब्दी के फ्रांसीसी मंच के लिए शास्त्रीय नियमों (जैसे तीन एकताएँ) और उदात्त शैली (एलेक्जेंड्रिन छंद का उपयोग) को स्थापित किया। उन्होंने फ्रांसीसी त्रासदी को एक सुव्यवस्थित, बौद्धिक रूप से गहन और काव्यात्मक रूप प्रदान किया। उनके बाद के सभी महान नाटककारों ने उनके द्वारा स्थापित इस नींव पर ही अपनी कृतियों का निर्माण किया, जिससे उन्हें फ्रांसीसी साहित्य के इतिहास में एक मौलिक और अपरिहार्य स्थान मिला।
4. ‘ले सिड’ की कालातीत अपील
उनकी कृति ‘ले सिड’ अपने आप में एक अमर कृति है। प्रेम और कर्तव्य के बीच का तीव्र संघर्ष, रॉड्रिग और चिमेन जैसे शक्तिशाली और जटिल पात्र, और नाटक के यादगार संवाद इसे एक ऐसी रचना बनाते हैं जो सदियों से दर्शकों और पाठकों को मोहित करती आ रही है। इसकी लोकप्रियता कभी कम नहीं हुई है, और यह फ्रांसीसी सांस्कृतिक पहचान का एक अभिन्न अंग बन गई है।
5. भाषा का परिष्कार और काव्यात्मक भव्यता
कॉर्नेल ने फ्रांसीसी भाषा को समृद्ध करने और इसे एक शक्तिशाली साहित्यिक माध्यम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी काव्यात्मक भाषा, विशेष रूप से एलेक्जेंड्रिन छंद में लिखी गई, ने संवादों को एक गरिमा और प्रभाव प्रदान किया जो आज भी फ्रेंच भाषा की सुंदरता और उसकी अभिव्यंजक शक्ति का उदाहरण है।
पियरे कॉर्नेल की अमरता इस तथ्य में निहित है कि उन्होंने केवल अपने समय के लिए नाटक नहीं लिखे, बल्कि उन्होंने मानवीय स्वभाव के उन शाश्वत पहलुओं को छुआ जो हर युग और संस्कृति में गूँजते हैं। उनके नायक, उनकी दुविधाएँ, और उनकी नैतिक विजय आज भी हमें प्रेरित करती हैं, जिससे वे फ्रांसीसी और विश्व साहित्य में एक स्थायी और अपरिहार्य स्थान रखते हैं।
