विलियम शेक्सपियर

स्ट्रैटफ़ोर्ड-अपॉन-एवन का बालक: प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि

विलियम शेक्सपियर, जिन्हें आज भी अंग्रेजी साहित्य का महानतम नाटककार माना जाता है, का जन्म 1564 में इंग्लैंड के स्ट्रैटफ़ोर्ड-अपॉन-एवन नामक एक छोटे से शहर में हुआ था. उनका बचपन इसी शांत और हरे-भरे ग्रामीण परिवेश में बीता, जिसने उनके लेखन पर गहरा प्रभाव डाला.

उनके पिता, जॉन शेक्सपियर, एक सफल व्यापारी थे. वह दस्ताने बनाते थे और ऊन का व्यापार भी करते थे. जॉन शहर के महत्वपूर्ण नागरिक भी थे और उन्होंने कई स्थानीय पदों पर काम किया, जिनमें मेयर का पद भी शामिल था. उनकी माँ, मैरी आर्डन, एक धनी ज़मींदार परिवार से थीं, जिससे परिवार को सामाजिक प्रतिष्ठा मिली. विलियम, जॉन और मैरी के आठ बच्चों में तीसरे थे, और उनके चार भाई-बहन बचपन में ही गुजर गए थे, जो उस समय आम बात थी.

विलियम की शिक्षा के बारे में कोई निश्चित रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि उन्होंने स्ट्रैटफ़ोर्ड के किंग्स न्यू स्कूल में पढ़ाई की होगी. यह एक व्याकरण विद्यालय था, जहाँ लैटिन और ग्रीक साहित्य का गहन अध्ययन कराया जाता था. इस शिक्षा ने निश्चित रूप से उन्हें शास्त्रीय नाटकों और कविताओं से परिचित कराया होगा, जिसकी झलक उनके भविष्य के कार्यों में मिलती है. हालाँकि, उनकी औपचारिक शिक्षा 13 या 14 साल की उम्र में समाप्त हो गई होगी, क्योंकि परिवार को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था.

16वीं सदी का इंग्लैंड एक गतिशील और परिवर्तनशील दौर था. रानी एलिजाबेथ प्रथम का शासनकाल स्थिरता और कला के संरक्षण के लिए जाना जाता है. यह समय धार्मिक उथल-पुथल, राजनीतिक साज़िशों और यूरोपीय शक्तियों के साथ लगातार बदलते संबंधों का भी था. इस युग में थिएटर बहुत लोकप्रिय था और इसने समाज के हर वर्ग के लोगों को आकर्षित किया. शेक्सपियर के बचपन का यह परिवेश, जिसमें ग्रामीण जीवन की सादगी, सामाजिक गतिशीलता और साहित्यिक जागृति शामिल थी, उनके व्यक्तित्व और उनके लेखन के लिए एक उपजाऊ ज़मीन साबित हुआ.

रंगमंच की पुकार: लंदन में आगमन और प्रारंभिक संघर्ष

स्ट्रैटफ़ोर्ड-अपॉन-एवन में अपनी किशोरावस्था बिताने के बाद, विलियम शेक्सपियर के जीवन में एक बड़ा मोड़ आया जब उन्होंने लंदन की ओर रुख किया. यह ठीक-ठीक कब हुआ, इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है, लेकिन माना जाता है कि 1580 के दशक के उत्तरार्ध में, लगभग 20 साल की उम्र में, उन्होंने अपनी पत्नी ऐनी हैथवे और तीन बच्चों को पीछे छोड़कर, अपने सपनों को पूरा करने के लिए bustling राजधानी की यात्रा की. उस समय, लंदन कला और वाणिज्य का केंद्र था, और यहीं पर थिएटर फल-फूल रहा था.

लंदन पहुँचने पर, शेक्सपियर को तुरंत सफलता नहीं मिली. शुरुआती दिन संघर्ष और अनिश्चितता से भरे थे. यह अनुमान लगाया जाता है कि उन्होंने रंगमंच से संबंधित छोटे-मोटे काम करके अपना गुज़ारा किया होगा – शायद थिएटर में एक हॉर्स-माइंडिंग अटेंडेंट के रूप में, या एक प्रॉम्प्टर के सहायक के रूप में. उस समय के अभिनेता अक्सर समाज में बहुत सम्मानित नहीं माने जाते थे, और थिएटर एक ऐसा पेशा था जिसमें कड़ी मेहनत और धैर्य की आवश्यकता होती थी.

हालांकि, शेक्सपियर की रंगमंच के प्रति जुनून और उनकी स्वाभाविक प्रतिभा जल्द ही रंग लाई. उन्होंने एक अभिनेता के रूप में शुरुआत की. यह ज्ञात है कि वे लॉर्ड चेम्बरलेन मेन (बाद में किंग्स मेन) नामक एक प्रमुख अभिनय मंडली के सदस्य थे. अभिनय के साथ-साथ, उन्होंने मंच पर होने वाले नाटक में छोटे-मोटे सुधार करने और संवादों को बेहतर बनाने का काम भी शुरू किया. यहीं से उनकी लेखन प्रतिभा निखरने लगी.

शुरुआती दौर में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. लंदन में पहले से ही स्थापित नाटककार थे जो अपनी पहचान बना चुके थे. शेक्सपियर को अपनी जगह बनाने के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा. इसके अलावा, प्लेग जैसी बीमारियाँ अक्सर थिएटरों को बंद करवा देती थीं, जिससे अभिनेताओं और नाटककारों की आजीविका पर सीधा असर पड़ता था. इन सबके बावजूद, शेक्सपियर ने हार नहीं मानी. उन्होंने अपने अनुभवों से सीखा, अपने कौशल को निखारा, और धीरे-धीरे एक ऐसे नाटककार के रूप में अपनी पहचान बनाना शुरू किया, जिसने अंग्रेजी साहित्य का चेहरा हमेशा के लिए बदल दिया.

ग्लोब थिएटर और स्वर्णिम युग: एक नाटककार का उदय

विलियम शेक्सपियर के नाटकीय करियर का स्वर्णिम काल ग्लोब थिएटर के साथ उनके गहरे जुड़ाव से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है. 1599 में टेम्स नदी के किनारे बने इस शानदार खुले-हवा वाले थिएटर ने शेक्सपियर के अधिकांश महानतम नाटकों को मंच पर जीवंत होते देखा. वह न केवल इस थिएटर के एक प्रमुख शेयरधारक थे, बल्कि उनकी अभिनय मंडली, लॉर्ड चेम्बरलेन मेन (जिसे बाद में राजा जेम्स प्रथम के संरक्षण में किंग्स मेन नाम दिया गया), यहीं पर प्रदर्शन करती थी.

ग्लोब थिएटर सिर्फ एक इमारत नहीं था, यह एलिज़ाबेथन युग के सांस्कृतिक उत्थान का प्रतीक था. यह ऐसा स्थान था जहाँ समाज के सभी वर्गों के लोग – धनी रईसों से लेकर आम जनता तक – नाटकों का आनंद लेने के लिए एकत्रित होते थे. इसका गोलाकार डिज़ाइन, खुला मंच और बैठने की व्यवस्था ने दर्शकों को नाटक के करीब ला दिया, जिससे एक जीवंत और गतिशील अनुभव तैयार हुआ. शेक्सपियर के नाटक इसी माहौल में पनपे, जहाँ वे सीधे दर्शकों से जुड़ सकते थे, उनकी भावनाओं को छू सकते थे और उनकी कल्पना को उत्तेजित कर सकते थे.

ग्लोब से जुड़ने के साथ ही शेक्सपियर की सफलता की शुरुआत हुई. उन्होंने एक के बाद एक ऐसे नाटक लिखे जो न केवल व्यावसायिक रूप से सफल थे बल्कि कलात्मक रूप से भी उत्कृष्ट थे. उनके ऐतिहासिक नाटक जैसे हेनरी IV और हेनरी V, और कॉमेडी जैसे मच अडू अबाउट नथिंग और ऐज़ यू लाइक इट ने उन्हें एक कुशल कहानीकार और संवाद लेखक के रूप में स्थापित किया. यहीं पर उन्होंने अपनी कुछ सबसे गहन त्रासदियों की नींव भी रखी, जिसने उन्हें अंग्रेजी साहित्य के शिखर पर पहुँचा दिया.

यह समय एलिज़ाबेथन युग का सांस्कृतिक परिदृश्य था, जो कला, साहित्य और अन्वेषण के लिए एक असाधारण अवधि थी. रानी एलिज़ाबेथ प्रथम का शासनकाल स्थिरता और ज्ञानोदय का दौर था, जिसने रचनात्मकता को बढ़ावा दिया. नाटक केवल मनोरंजन का साधन नहीं थे; वे सामाजिक टिप्पणी, नैतिक शिक्षा और मानवीय अनुभव की पड़ताल के मंच थे. शेक्सपियर ने इस समृद्ध सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का भरपूर लाभ उठाया. उन्होंने ऐतिहासिक घटनाओं, पौराणिक कथाओं, लोककथाओं और समकालीन सामाजिक मुद्दों को अपने नाटकों में बुना, जिससे वे हर दर्शक वर्ग के लिए प्रासंगिक बन गए. उनकी भाषा, जिसमें मुहावरों और अभिव्यक्तियों का खजाना था, ने अंग्रेजी भाषा को हमेशा के लिए समृद्ध कर दिया. ग्लोब थिएटर में प्रदर्शन करते हुए, शेक्सपियर ने न केवल अपनी व्यक्तिगत प्रसिद्धि हासिल की, बल्कि उन्होंने अंग्रेजी नाटक को एक कला के रूप में परिभाषित किया, जिसकी गूँज सदियों तक सुनाई देती रही.

प्रेम और त्रासदी के ताने-बाने: “रोमियो और जूलियट” और अन्य शुरुआती नाटक

विलियम शेक्सपियर के शुरुआती करियर को उनके कुछ सबसे यादगार नाटकों ने चिह्नित किया, जिन्होंने प्रेम, त्रासदी और मानवीय भावनाओं के जटिल ताने-बाने को बुना. इन नाटकों ने न केवल उन्हें एक प्रतिभाशाली लेखक के रूप में स्थापित किया, बल्कि यह भी दिखाया कि वे किस तरह सार्वभौमिक विषयों को मंच पर जीवंत कर सकते हैं. इनमें से सबसे प्रसिद्ध और शायद सबसे कालातीत नाटक है “रोमियो और जूलियट”.

“रोमियो और जूलियट” (लगभग 1597 में लिखा गया) दो युवा प्रेमियों की दुखद कहानी है जो अपने परिवारों की सदियों पुरानी दुश्मनी के शिकार हो जाते हैं. वेरोना की गलियों से लेकर कैपुलेट के बगीचे तक, नाटक प्रेम की तीव्रता, भाग्य की क्रूरता और घृणा के विनाशकारी परिणामों को दर्शाता है. शेक्सपियर ने रोमियो और जूलियट के माध्यम से दिखाया कि कैसे शुद्ध प्रेम भी सामाजिक बाधाओं और आपसी वैमनस्य के सामने दम तोड़ सकता है. उनके संवादों में जुनून, निराशा और काव्य सौंदर्य का अद्भुत मिश्रण है, जिसने इस नाटक को दुनिया भर में प्रेम कहानियों का पर्याय बना दिया.

“रोमियो और जूलियट” के अलावा, शेक्सपियर ने अपने शुरुआती दौर में कई अन्य महत्वपूर्ण नाटक भी लिखे. इनमें से एक है “अ मिडसमर नाइट ड्रीम” (लगभग 1595-96). यह एक जादुई कॉमेडी है जो प्यार, भ्रम और जंगल में भटकते हुए पात्रों की कहानी कहती है, जिसमें परियों और शरारती पकों की भूमिका भी है. यह नाटक प्यार की चंचल प्रकृति और मानवीय मूर्खताओं पर एक हल्की-फुल्की लेकिन गहरी टिप्पणी है.

इसी अवधि में उन्होंने अपने कुछ प्रारंभिक ऐतिहासिक नाटक भी लिखे, जैसे “रिचर्ड III” (लगभग 1592-93). यह महत्वाकांक्षा, छल और सत्ता की भूख की एक गहरी और अंधेरी कहानी है, जो एक क्रूर राजा के उदय और पतन को दर्शाती है. “रिचर्ड III” ने शेक्सपियर की मानव स्वभाव के स्याह पहलुओं को समझने और उन्हें मंच पर सशक्त रूप से प्रस्तुत करने की क्षमता को उजागर किया.

इन शुरुआती नाटकों में, शेक्सपियर ने अपनी अद्भुत भाषा शैली, चरित्र-चित्रण की गहराई और मानवीय भावनाओं की गहरी समझ का प्रदर्शन किया. उन्होंने दिखाया कि कैसे वे दर्शकों को हँसा सकते हैं, रुला सकते हैं और उन्हें सोचने पर मजबूर कर सकते हैं. इन कृतियों ने उनके आने वाले महान नाटकों के लिए नींव तैयार की और उन्हें एलिज़ाबेथन रंगमंच के सबसे महत्वपूर्ण नाटककारों में से एक के रूप में स्थापित किया.

सत्ता, महत्वाकांक्षा और अंधकार: “मैकबेथ” का गहन विश्लेषण

विलियम शेक्सपियर की सबसे गहन और भयावह त्रासदियों में से एक, “मैकबेथ” (लगभग 1606 में लिखा गया), सत्ता के लोभ, अपराध बोध और मानव मनोविज्ञान के अंधकारमय पहलुओं पर एक गहरा और परेशान करने वाला चिंतन है. यह नाटक दर्शकों को स्कॉटिश जनरल मैकबेथ के पतन की यात्रा पर ले जाता है, जो सत्ता की अदम्य इच्छा के कारण एक सम्माननीय योद्धा से एक क्रूर तानाशाह बन जाता है.

नाटक की शुरुआत तीन चुड़ैलों की भविष्यवाणियों से होती है, जो मैकबेथ को बताती हैं कि वह कवडोर का थीम (thane) बनेगा और अंततः स्कॉटलैंड का राजा. ये भविष्यवाणियां मैकबेथ के भीतर छिपी महत्वाकांक्षा की चिंगारी को भड़काती हैं, जिसे उसकी पत्नी, लेडी मैकबेथ, और भी तेज़ी से हवा देती है. लेडी मैकबेथ, जो अपने पति से भी अधिक निर्दयी और महत्वाकांक्षी है, उसे राजा डंकन की हत्या करने के लिए उकसाती है, ताकि भविष्यवाणी सच हो सके.

यहीं से नाटक का मुख्य विषय, सत्ता का लोभ, अपनी भयावहता दिखाना शुरू करता है. एक बार जब मैकबेथ सिंहासन पर बैठ जाता है, तो उसे अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए और भी अपराध करने पड़ते हैं. वह बैंको, जो उसके मित्र और साथी जनरल थे, की हत्या करवाता है क्योंकि चुड़ैलों ने बैंको के वंश को राजा बनने की भविष्यवाणी की थी. यह अपराधों की एक श्रृंखला को जन्म देता है, जहाँ हर हत्या पिछले अपराध को छिपाने या सत्ता को सुरक्षित करने के लिए की जाती है. मैकबेथ एक ऐसे भंवर में फंस जाता है जहाँ उसे लगातार अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए हिंसा का सहारा लेना पड़ता है.

हत्याओं के साथ-साथ, नाटक अपराध बोध के मनोवैज्ञानिक प्रभाव को भी मार्मिक ढंग से दर्शाता है. मैकबेथ और लेडी मैकबेथ दोनों ही अपने जघन्य कृत्यों के बोझ तले दब जाते हैं. मैकबेथ को खून के धब्बे और बैंको के भूत दिखाई देते हैं, जो उसके मानसिक कष्ट को दर्शाते हैं. लेडी मैकबेथ को नींद में चलने और अपने हाथों से अदृश्य खून धोने की आदत पड़ जाती है, जो उसके गहरे पश्चाताप और मानसिक टूटन का प्रतीक है. उनका बढ़ता पागलपन दिखाता है कि सत्ता की चाहत भले ही क्षणिक सुख दे, लेकिन अपराध बोध अंततः आत्मा को खा जाता है.

“मैकबेथ” अंधकारमय मानव मनोविज्ञान का एक उत्कृष्ट अध्ययन है. यह दर्शाता है कि कैसे एक व्यक्ति की महत्वाकांक्षा उसे नैतिक पतन की ओर ले जा सकती है, और कैसे शक्ति के आकर्षण में मानव नैतिकता पूरी तरह से समाप्त हो सकती है. नाटक में अंधकार, जादू-टोना और भयानक दृश्यों का उपयोग इसके डरावने और दमनकारी माहौल को और बढ़ाता है. शेक्सपियर ने इस नाटक के माध्यम से मानवीय स्वभाव की सबसे काली गहराइयों को उजागर किया है, जहाँ महत्वाकांक्षा एक अनियंत्रित राक्षस बन जाती है जो सब कुछ नष्ट कर देती है, यहाँ तक कि स्वयं को भी. मैकबेथ का अंत उसके अपनी ही दुष्टता के कारण होता है, जो इस बात का प्रतीक है कि शक्ति का दुरुपयोग अंततः विनाश की ओर ही ले जाता है.

दुविधा और प्रतिशोध की छाया: “हैमलेट” और दार्शनिक गहराई

विलियम शेक्सपियर की सबसे प्रसिद्ध और जटिल त्रासदियों में से एक, “हैमलेट” (लगभग 1600 में लिखा गया), केवल एक प्रतिशोध की कहानी से कहीं बढ़कर है. यह मानवीय अस्तित्व के सबसे गहरे सवालों, नैतिक दुविधाओं और मनोविज्ञान की जटिलताओं पर एक गहन दार्शनिक अन्वेषण है. यह नाटक दर्शकों को डेनमार्क के राजकुमार हैमलेट की मानसिक उथल-पुथल की यात्रा पर ले जाता है, जिसे अपने पिता के भूत से बदला लेने का आदेश मिलता है, जबकि उसके चाचा ने उसकी माँ से शादी कर ली है और सिंहासन पर कब्ज़ा कर लिया है.

नाटक का केंद्रीय विषय अस्तित्वगत प्रश्न है, जिसे हैमलेट के प्रसिद्ध एकालाप “होना या न होना, यही प्रश्न है” (“To be, or not to be, that is the question”) में सबसे स्पष्ट रूप से व्यक्त किया गया है. यह पंक्ति जीवन, मृत्यु, पीड़ा और आत्महत्या के विचार पर एक गहरा चिंतन है. हैमलेट अपनी स्थिति की निरर्थकता पर विचार करता है, क्या निष्क्रिय रूप से दुख सहना बेहतर है या सक्रिय रूप से अपने कष्टों का अंत करना. यह दुविधा उसे कार्य करने से रोकती है, जिससे वह लगातार अनिश्चितता और आत्म-संदेह के भंवर में फँसा रहता है. नाटक मानवीय अस्तित्व की क्षणभंगुरता, भाग्य की क्रूरता और मृत्यु की अनिवार्यता पर प्रश्न उठाता है.

“हैमलेट” में प्रतिशोध का विषय भी प्रमुख है, लेकिन यह एक सीधा प्रतिशोध नहीं है. हैमलेट का प्रतिशोध नैतिक और भावनात्मक बाधाओं से भरा हुआ है. वह अपने चाचा क्लॉडियस को मारने से पहले बार-बार हिचकिचाता है, क्योंकि वह यह सुनिश्चित करना चाहता है कि उसका कार्य न्यायसंगत हो और वह अपने आप को हत्यारे के स्तर तक न गिरा दे. उसकी झिझक न केवल नैतिक सिद्धांतों से आती है, बल्कि मानव स्वभाव की अंतर्निहित जटिलता से भी आती है – क्या हिंसा कभी न्याय का मार्ग हो सकती है? नाटक दिखाता है कि प्रतिशोध की राह अक्सर और अधिक त्रासदी और विनाश की ओर ले जाती है, और यह कि बदला लेने वाला भी अंततः नष्ट हो सकता है.

इस नाटक की कालातीत प्रासंगिकता इसकी सार्वभौमिक अपील में निहित है. “हैमलेट” के पात्र और उनकी दुविधाएँ आज भी दर्शकों और पाठकों को आकर्षित करती हैं क्योंकि वे मानव अनुभव के मौलिक पहलुओं को दर्शाते हैं:

  • शोक और अवसाद: हैमलेट का अपने पिता की मृत्यु और माँ की जल्दबाज़ी में शादी के प्रति प्रतिक्रिया गहरी उदासी और अवसाद को दर्शाती है.
  • धोखा और विश्वासघात: परिवार के भीतर विश्वासघात और धोखे का चित्रण आज भी प्रासंगिक है.
  • पागलपन और वास्तविकता: हैमलेट का पागलपन (या पागलपन का ढोंग) वास्तविकता और भ्रम की सीमाओं पर प्रश्न उठाता है.
  • शक्ति और भ्रष्टाचार: सत्ता के लिए लालच और उसके परिणाम, क्लॉडियस के चरित्र के माध्यम से उजागर होते हैं.

“हैमलेट” केवल एक दुखद कहानी नहीं है; यह एक दार्शनिक नाटक है जो हमें अपनी मानव स्थिति पर विचार करने, अपनी नैतिक पसंद पर सवाल उठाने और जीवन के सबसे जटिल सवालों का सामना करने के लिए प्रेरित करता है. इसकी गहनता और बहुआयामी चरित्र-चित्रण ने इसे विश्व साहित्य के सबसे प्रभावशाली और अध्ययन किए गए कार्यों में से एक बना दिया है.

हास्य, भ्रम और जादुई दुनिया: कॉमेडी नाटकों की छटा

विलियम शेक्सपियर केवल त्रासदी के ही महारथी नहीं थे, बल्कि उन्होंने ऐसे हास्य नाटक भी रचे जो अपनी बुद्धिमत्ता, पेचीदा कहानियों और अनूठी जादुई दुनिया के लिए प्रसिद्ध हैं. उनके कॉमेडी नाटक अक्सर प्रेम, पहचान के भ्रम, गलतफहमी और अंततः सुलझे हुए रिश्तों के इर्द-गिर्द घूमते हैं. इन नाटकों में, शेक्सपियर ने अपनी भाषा की चपलता और मानवीय मूर्खताओं को हास्यपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने की अपनी अद्भुत क्षमता का प्रदर्शन किया.

उनके सबसे प्रसिद्ध हास्य नाटकों में से एक है “अ मिडसमर नाइट ड्रीम” (A Midsummer Night’s Dream), जिसे लगभग 1595-96 में लिखा गया था. यह नाटक प्यार की जटिलताओं, जंगल के जादू और परियों की शरारतों का एक अद्भुत मिश्रण है. एथेंस के जंगल में भटकते हुए प्रेमी जोड़े, एक शौकिया अभिनेताओं का समूह, और ओबेरॉन, टाइटेनिया व पक जैसे जादुई पात्रों के बीच होने वाली गलतफहमी और हास्यपूर्ण स्थितियाँ दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं. प्यार के जादूई अमृत, बदलती पहचान और जंगल के भ्रम ने इस नाटक को एक स्वप्निल और मनमोहक अनुभव बना दिया है. यह नाटक दिखाता है कि कैसे प्यार अंधा हो सकता है और कैसे भाग्य की एक छोटी सी छेड़छाड़ भी रिश्तों को पूरी तरह बदल सकती है.

एक और उत्कृष्ट कॉमेडी है “ट्वेल्थ नाइट” (Twelfth Night), जिसे लगभग 1601-02 में लिखा गया था. यह नाटक पहचान के भ्रम, लिंग-भेद के नाटक और अप्रत्याशित प्रेम की कहानी है. वियोला, जो एक जहाज़ दुर्घटना में अपने भाई को खो देती है, खुद को सीज़रियो के रूप में प्रच्छन्न कर ड्यूक ओर्सिनो की सेवा करती है. यह प्रच्छन्नता कई हास्यपूर्ण स्थितियों को जन्म देती है, क्योंकि लोग वियोला को एक पुरुष समझते हैं, जबकि वह गुप्त रूप से ओर्सिनो से प्यार करती है और ओर्सिनो ओलिविया से प्यार करता है, जो सीज़रियो (वियोला) के प्रति आकर्षित है. नाटक में सर टॉबी बेलच और मारिया जैसे मजेदार चरित्र भी हैं जो अपनी शरारतों और हास्य के साथ कहानी को आगे बढ़ाते हैं. “ट्वेल्थ नाइट” प्यार के विभिन्न रूपों, सामाजिक मानदंडों और मानव स्वभाव की विचित्रताओं पर एक दिल को छू लेने वाली और मनोरंजक टिप्पणी है.

इन नाटकों के अलावा, शेक्सपियर ने अन्य महत्वपूर्ण हास्य नाटक भी लिखे, जैसे:

  • “मच अडू अबाउट नथिंग” (Much Ado About Nothing): यह तेज़-तर्रार संवादों और प्रेमियों के बीच की जुबानी जंग पर आधारित है, जहाँ गलतफहमी और मान-सम्मान की लड़ाई हास्य पैदा करती है.
  • “ऐज़ यू लाइक इट” (As You Like It): यह वन में भागने वाले पात्रों की कहानी है, जहाँ पहचान के भ्रम और प्राकृतिक सेटिंग में प्यार पनपता है.

शेक्सपियर के कॉमेडी नाटकों की छटा उनकी अद्वितीय भाषा, उनके जटिल लेकिन मनोरंजक कथानकों और मानवीय मनोविज्ञान की उनकी गहरी समझ में निहित है. वे हमें हँसाते हैं, प्यार की जटिलताओं पर विचार करने पर मजबूर करते हैं और एक ऐसी जादुई दुनिया में ले जाते हैं जहाँ सब कुछ संभव है. इन नाटकों ने साबित किया कि शेक्सपियर में न केवल त्रासदी की गंभीरता बल्कि हास्य की कलात्मकता भी थी, जिसने उन्हें एक पूर्ण नाटककार बनाया.

शेक्सपियर के सॉनेट और काव्य प्रतिभा

विलियम शेक्सपियर की साहित्यिक प्रतिभा केवल उनके नाटकों तक ही सीमित नहीं थी; उनकी काव्य कला का एक महत्वपूर्ण पहलू उनके सॉनेट हैं. उन्होंने कुल 154 सॉनेट लिखे, जिनमें से अधिकांश 1590 के दशक में रचे गए थे और 1609 में पहली बार प्रकाशित हुए थे. ये सॉनेट उनकी काव्य शैली, भाषा पर उनकी महारत और मानवीय भावनाओं की उनकी गहरी समझ का एक वसीयतनामा हैं, जो नाटकों से बिल्कुल अलग रूप में उनकी कला को दर्शाते हैं.

शेक्सपियर के सॉनेटों का महत्व कई कारणों से है:

  • निजी और आत्मकथात्मक पहलू: हालाँकि उनके बारे में निश्चित रूप से कुछ भी कहना मुश्किल है, ऐसा माना जाता है कि ये सॉनेट शेक्सपियर के निजी जीवन, उनके प्रेम संबंधों और उनके आंतरिक विचारों की झलकियाँ प्रस्तुत करते हैं. वे एक “फेयर यूथ” (Fair Youth) नामक एक युवा पुरुष, “डार्क लेडी” (Dark Lady) नामक एक रहस्यमय महिला, और एक प्रतिद्वंद्वी कवि के प्रति उनके संबंधों को दर्शाते हैं. ये पात्र कौन थे, इस पर विद्वानों में आज भी बहस जारी है, लेकिन यह रहस्य ही इन सॉनेटों को और अधिक आकर्षक बनाता है.
  • काव्यात्मक उत्कृष्टता: ये सॉनेट साहित्यिक उत्कृष्टता के उदाहरण हैं. शेक्सपियर ने सॉनेट के पारंपरिक रूप (तीन क्वाट्रेन और एक कपलेट) का उपयोग करते हुए, उसे अपनी अनूठी शैली और प्रवाह से भर दिया. उनकी भाषा में समृद्धि, कल्पना और अलंकारिक सौंदर्य का अद्भुत मिश्रण है.

शेक्सपियर के सॉनेट की काव्य शैली निम्नलिखित विशेषताओं से युक्त है:

  • उत्कृष्ट शब्दावली और इमेजरी: उन्होंने शब्दों का इस तरह से प्रयोग किया कि वे पाठक के मन में ज्वलंत चित्र बनाते हैं. प्रकृति, समय, कला और भावनाओं की गहरी इमेजरी उनके सॉनेटों में बार-बार दिखाई देती है.
  • अलंकार और मेटाफर: शेक्सपियर अलंकारों, विशेषकर मेटाफर (रूपक) और सिमिली (उपमा) का भरपूर प्रयोग करते हैं, जो उनके विचारों को गहराई और सुंदरता प्रदान करते हैं.
  • लय और मीटर: उनके सॉनेट आमतौर पर आईम्बिक पेंटामिटर (iambic pentameter) में लिखे गए हैं, जिससे उनमें एक प्राकृतिक लय और संगीतमयता आती है.

इन सॉनेटों के विषय अत्यंत विविध और मानवीय अनुभव के सार्वभौमिक पहलुओं को छूते हैं:

  • प्रेम: यह सबसे प्रमुख विषय है. सॉनेटों में प्रेम के विभिन्न रूपों – आदर्श प्रेम, वासना, ईर्ष्या, समर्पण और विश्वासघात – को दर्शाया गया है. “फेयर यूथ” के प्रति उनका प्रेम अक्सर प्रशंसा और सुंदरता के अमरत्व की इच्छा के इर्द-गिर्द घूमता है, जबकि “डार्क लेडी” के प्रति उनका प्रेम अधिक जटिल और अक्सर विवादास्पद होता है, जिसमें वासना और अपराध बोध का मिश्रण होता है.
  • समय का विनाशकारी प्रभाव: कई सॉनेटों में समय की विनाशकारी शक्ति पर चिंतन किया गया है, और कैसे समय सुंदरता को नष्ट करता है और हर चीज़ को मिटा देता है.
  • कला और कविता की अमरता: शेक्सपियर का मानना था कि उनकी कविता और कला समय के विनाशकारी प्रभाव को पार कर जाएगी और उनके प्रियजनों की सुंदरता को अमर कर देगी. उनका प्रसिद्ध सॉनेट 18 (“Shall I compare thee to a summer’s day?”) इसका उत्कृष्ट उदाहरण है, जहाँ वे कहते हैं कि उनकी कविता के माध्यम से उनके प्रिय की सुंदरता हमेशा जीवित रहेगी.
  • मृत्यु और नश्वरता: जीवन की नश्वरता और मृत्यु की अनिवार्यता भी एक आवर्ती विषय है.
  • सौंदर्य: मानवीय सौंदर्य और प्रकृति के सौंदर्य की प्रशंसा कई सॉनेटों का केंद्र बिंदु है.

कुल मिलाकर, शेक्सपियर के सॉनेट उनकी काव्य प्रतिभा का एक अनमोल खजाना हैं. वे न केवल 16वीं सदी की अंग्रेजी कविता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, बल्कि वे मानवीय भावनाओं, अस्तित्वगत प्रश्नों और कला की अमरता पर एक कालातीत टिप्पणी भी हैं, जो आज भी पाठकों को आकर्षित करती है.

स्ट्रैटफ़ोर्ड वापसी और अंतिम वर्ष: विरासत का निर्माण

अपने नाटकीय करियर के शिखर पर पहुँचने और लंदन में अपार सफलता, धन और प्रसिद्धि अर्जित करने के बाद, विलियम शेक्सपियर ने धीरे-धीरे अपने गृहनगर स्ट्रैटफ़ोर्ड-अपॉन-एवन वापसी करना शुरू कर दिया. यह प्रक्रिया रातों-रात नहीं हुई, बल्कि 1608 के आसपास शुरू होकर लगभग 1613 तक चली, जब उन्होंने रंगमंच से पूरी तरह से संन्यास ले लिया. इस वापसी का एक कारण संभवतः उनकी बढ़ती उम्र और लंदन के व्यस्त जीवन से दूरी बनाने की इच्छा थी. वह अब एक धनी व्यक्ति थे और उन्होंने स्ट्रैटफ़ोर्ड में न्यू प्लेस (New Place) नामक एक बड़ा घर और अन्य संपत्ति खरीदी थी, जिससे उनके परिवार को सुरक्षा मिली.

लंदन में रहते हुए भी, शेक्सपियर ने अपने जीवन के इस अंतिम चरण में भी कुछ अविस्मरणीय अंतिम नाटक लिखे. ये नाटक अक्सर “रोमांस” या “ट्रेजीकॉमेडी” कहलाते हैं, और इनमें दुःख और त्रासदी के बावजूद सुलह, क्षमा और आशा की एक नई भावना देखने को मिलती है. इन नाटकों में से प्रमुख हैं:

  • “द विंटर्स टेल” (The Winter’s Tale): यह नाटक ईर्ष्या और विश्वासघात से शुरू होता है, जो त्रासदी का कारण बनता है, लेकिन अंततः खोए हुए रिश्तों की पुनः प्राप्ति और जादू के माध्यम से सुलह पर समाप्त होता है.
  • “द टेम्पेस्ट” (The Tempest): इसे अक्सर शेक्सपियर का अंतिम पूर्ण नाटक माना जाता है. यह जादू, निर्वासन और क्षमा की कहानी है, जिसमें प्रोस्पेरो नामक एक जादूगर अपने दुश्मनों को क्षमा करके शांति पाता है. कई विद्वान इस नाटक को शेक्सपियर के रंगमंच से संन्यास लेने के रूपक के रूप में देखते हैं.
  • “सिम्बलाइन” (Cymbeline): यह नाटक भी प्रेम, विश्वासघात, पहचान के भ्रम और अंत में सुलह के विषयों पर केंद्रित है.

ये अंतिम नाटक उनकी बढ़ती हुई परिपक्वता और मानवीय अनुभव की गहरी समझ को दर्शाते हैं. इनमें एक शांत दार्शनिक चिंतन और प्रकृति, जादू तथा मानवीय नियति के प्रति एक गहन सम्मान झलकता है.

अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में, शेक्सपियर ने स्ट्रैटफ़ोर्ड में एक सज्जन व्यक्ति और सम्मानित नागरिक के रूप में जीवन व्यतीत किया. उन्होंने अपनी संपत्ति का प्रबंधन किया और शायद अपने परिवार के साथ समय बिताया. हालांकि उन्होंने अब नए नाटक लिखना बंद कर दिया था, लेकिन उनकी पहले से लिखी हुई कृतियाँ लंदन के मंच पर लगातार लोकप्रिय रहीं.

विलियम शेक्सपियर का निधन 23 अप्रैल, 1616 को 52 वर्ष की आयु में स्ट्रैटफ़ोर्ड-अपॉन-एवन में ही हुआ. उन्हें स्ट्रैटफ़ोर्ड के होली ट्रिनिटी चर्च में दफनाया गया, जहाँ उनकी कब्र पर एक शिलालेख है जो उनकी हड्डियों को परेशान न करने की चेतावनी देता है. उनकी मृत्यु के समय तक, वह पहले से ही इंग्लैंड के सबसे सम्मानित नाटककारों में से एक के रूप में जाने जाते थे, लेकिन उन्हें शायद ही पता था कि उनकी रचनाएँ आने वाली सदियों तक मानव जाति के साहित्यिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को आकार देंगी. उनकी स्ट्रैटफ़ोर्ड वापसी उनके जीवन के उस चक्र को पूरा करती है – एक विनम्र शुरुआत से लेकर वैश्विक पहचान तक, और फिर अपने शांत गृहनगर में वापसी, जहाँ से उन्होंने अपनी अमर विरासत का निर्माण किया.

अमर विरासत: विलियम शेक्सपियर का विश्व साहित्य पर प्रभाव

विलियम शेक्सपियर का निधन भले ही 1616 में हुआ हो, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद का प्रभाव इतना गहरा और व्यापक रहा है कि यह आज भी विश्व साहित्य और संस्कृति को आकार दे रहा है. अपने जीवनकाल में एक सफल नाटककार और कवि के रूप में जाने जाने वाले शेक्सपियर ने अपनी मृत्यु के बाद, विशेष रूप से 18वीं और 19वीं सदी में, एक साहित्यिक दिग्गज का दर्जा प्राप्त कर लिया. उनके नाटकों को पूरे यूरोप और फिर दुनिया भर में पढ़ा, मंचित और सराहा जाने लगा, जिससे वे इतिहास के सबसे प्रभावशाली लेखकों में से एक बन गए.

विश्व साहित्य में शेक्सपियर का स्थान अद्वितीय और निर्विवाद है. उन्हें अक्सर “बार्ड ऑफ एवन” (Bard of Avon) के रूप में जाना जाता है और उन्हें अंग्रेजी भाषा का सबसे महान लेखक माना जाता है. उनके योगदान को कुछ प्रमुख बिंदुओं में देखा जा सकता है:

  • अंग्रेजी भाषा पर प्रभाव: शेक्सपियर ने अंग्रेजी भाषा को अविश्वसनीय रूप से समृद्ध किया. उन्होंने हज़ारों नए शब्द और वाक्यांश गढ़े, जिनमें से कई आज भी रोज़मर्रा की बोलचाल में उपयोग होते हैं (जैसे “in a pickle,” “wild goose chase,” “ब्रेक द आइस”). उनकी भाषा की शक्ति, लचीलापन और सुंदरता ने अंग्रेजी को एक नए स्तर पर पहुँचा दिया.
  • सार्वभौमिक विषय-वस्तु: उनके नाटक मानवीय अनुभव के सार्वभौमिक विषयों – प्रेम, घृणा, प्रतिशोध, महत्वाकांक्षा, ईर्ष्या, दुःख, खुशी और अस्तित्व के संघर्ष – का पता लगाते हैं. यही कारण है कि उनकी कृतियाँ समय और संस्कृति की सीमाओं से परे होकर हर पीढ़ी और हर समाज के दर्शकों और पाठकों के लिए प्रासंगिक बनी रहती हैं.
  • जटिल चरित्र: शेक्सपियर ने साहित्य में कुछ सबसे जटिल और बहुआयामी चरित्रों का निर्माण किया, जैसे हैमलेट, मैकबेथ, ओथेलो, किंग लियर और जूलियट. इन चरित्रों की मनोवैज्ञानिक गहराई और नैतिक दुविधाएँ आज भी विद्वानों और कलाकारों को आकर्षित करती हैं.
  • शैलीगत नवाचार: उन्होंने नाटक के पारंपरिक रूपों को तोड़ा और नए कथात्मक और शैलीगत नवाचार पेश किए, जिन्होंने पश्चिमी नाट्यकला के विकास को प्रभावित किया. उन्होंने त्रासदी और हास्य को मिश्रित करने, एकालापों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने और यथार्थवादी संवादों को शामिल करने में महारत हासिल की.

उनकी कृतियों की शाश्वत प्रासंगिकता इस बात में निहित है कि वे हर युग में नए अर्थ और व्याख्याएँ पाती हैं. शेक्सपियर के नाटकों को सैकड़ों भाषाओं में अनुवादित किया गया है और वे दुनिया के हर कोने में मंचित होते रहते हैं. उनकी कहानियों को फिल्मों, ओपेरा, बैले और आधुनिक अनुकूलन में रूपांतरित किया जाता है. “रोमियो और जूलियट” की कहानी आज भी प्रेम की प्रतीक है, “हैमलेट” की दुविधाएँ मानवीय सोच को चुनौती देती हैं, और “मैकबेथ” का महत्वाकांक्षा का सबक हमें चेतावनी देता है.

William Shakespeare

William Shakespeare

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