मोलियर, जिनका असली नाम जीन-बैप्टिस्ट पोकेलिन था, का जन्म 15 जनवरी, 1622 को पेरिस, फ्रांस में हुआ था। उनके पिता, जीन पोकेलिन, एक संपन्न बढ़ई और राजघराने के दरबारी असबाबपोश (upholsterer) थे। उनकी माँ, मैरी क्रेसे का निधन तब हो गया था जब मोलियर बहुत छोटे थे।
पारिवारिक पृष्ठभूमि की बात करें तो मोलियर एक सुविधा-संपन्न परिवार से आते थे। उनके पिता चाहते थे कि मोलियर भी उनके ही नक्शेकदम पर चलकर शाही दरबार में अपना स्थान बनाएँ, और उन्हें कानून की पढ़ाई के लिए प्रशिक्षित किया गया था। हालाँकि, मोलier की रुचि अभिनय और थिएटर में अधिक थी, जिसने अंततः उन्हें अपने पारिवारिक व्यवसाय से दूर एक बिल्कुल अलग राह पर चलने के लिए प्रेरित किया।
मोलियर का परिवार संपन्न था, और उनके पिता चाहते थे कि वे एक प्रतिष्ठित करियर चुनें, संभवतः व्यापार या न्याय के क्षेत्र में। इसी कारण, मोलियर को अच्छी शिक्षा मिली और उन्होंने कानून का प्रारंभिक अध्ययन भी किया।
उन्हें पेरिस के प्रतिष्ठित जेसुइट कॉलेज ऑफ क्लेरमॉन्ट (Collège de Clermont) में भेजा गया था, जिसे अब Lycée Louis-le-Grand के नाम से जाना जाता है। यह उस समय के सबसे बेहतरीन स्कूलों में से एक था, जहाँ प्रमुख परिवारों के छात्र अध्ययन करते थे। यहाँ उन्होंने एक सख्त अकादमिक वातावरण में अपनी शिक्षा पूरी की, और यहीं पर उन्हें रंगमंच का पहला अनुभव भी मिला।
कॉलेज से निकलने के बाद, मोलियर ने लगभग 1642 के आसपास ओर्लियंस (Orléans) में एक प्रांतीय वकील के रूप में कानून का अध्ययन किया। कुछ स्रोतों से पता चलता है कि उन्होंने 1641 में एक नोटरी के रूप में भी शपथ ली थी। उनके पिता ने उनके लिए “वालट डे चम्बरे ऑर्डिनायर एट तपिसियर डू रोइ” (राजा के कक्ष का नौकर और कालीन तथा असबाब का रक्षक) का पद भी खरीदा था, जो एक सम्मानजनक और लाभदायक शाही पद था।
इस तरह, मोलियर का मार्ग एक आरामदायक और प्रतिष्ठित जीवन की ओर स्पष्ट रूप से प्रशस्त था। हालाँकि, उनकी वास्तविक रुचि और जुनून रंगमंच में था, जिसने उन्हें इस स्थापित सामाजिक स्थिति को छोड़कर एक अनिश्चित अभिनय जीवन अपनाने के लिए प्रेरित किया।
मोलियर का थिएटर के प्रति रुझान उनके प्रारंभिक जीवन में ही विकसित होने लगा था। हालाँकि उनके पिता ने उन्हें कानून की पढ़ाई और एक सम्मानित शाही पद के लिए तैयार किया था, मोलियर का मन रंगमंच में अधिक लगता था।
उनके दादा, लुई क्रेसे, उन्हें अक्सर होटल डी बर्गोग्ने (Hôtel de Bourgogne) में नाटकों और प्रदर्शनों को देखने ले जाते थे, जो पेरिस में पहली अधिकृत थिएटर मंडली का घर था। यहीं पर युवा मोलियर ने उस समय के कुछ महानतम कलाकारों को देखा, जिससे शायद उनके मन में थिएटर के प्रति गहरा आकर्षण पैदा हुआ।
कानून का अध्ययन करने के बाद और एक स्थिर करियर की संभावना के बावजूद, 21 साल की उम्र में, 1643 में, मोलियर ने अपने परिवार की इच्छा के विरुद्ध जाकर मंच पर करियर बनाने का साहसिक निर्णय लिया। यह उस समय एक बहुत ही जोखिम भरा और कम सम्मानित पेशा माना जाता था।
उन्होंने अभिनेत्री मैडेलीन बेजार्ट (Madeleine Béjart), जिनसे उनकी पहले मुलाकात हुई थी, और उनके परिवार के साथ मिलकर एक नई थिएटर कंपनी की स्थापना की। इस मंडली का नाम उन्होंने “इल्लुस्ट्र थिएटर” (L’Illustre Théâtre) रखा, जिसका अर्थ है “प्रतिष्ठित थिएटर”। इस कंपनी का गठन 630 लिवरेस (उस समय की मुद्रा) के साथ किया गया था।
इल्लुस्ट्र थिएटर का उद्देश्य पेरिस में अपनी पहचान बनाना था, लेकिन शुरुआती दिन काफी चुनौतीपूर्ण रहे। मंडली को वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, और वे थिएटर के किराए के लिए भारी कर्ज में डूब गए। इन ऋणों के कारण, मोलियर को स्वयं 1645 में कुछ समय के लिए देनदार की जेल (debtors’ prison) में भी बंद होना पड़ा।
यह मंडली पेरिस में सफल नहीं हो पाई और 1645 में दिवालिया हो गई। हालांकि, यह अनुभव मोलियर के लिए सीखने का एक महत्वपूर्ण चरण साबित हुआ। इस विफलता के बावजूद, मोलियर ने हार नहीं मानी और यह अनुभव उन्हें एक अभिनेता, निर्देशक और अंततः एक नाटककार के रूप में अपनी कला को निखारने का अवसर प्रदान करेगा।
मोलियर का असली नाम जीन-बैप्टिस्ट पोकेलिन था। जब उन्होंने थिएटर में प्रवेश करने का फैसला किया और “इल्लुस्ट्र थिएटर” मंडली की सह-स्थापना की, तो उन्होंने अपना नाम बदलकर मोलियर (Molière) रख लिया।
नाम बदलने के पीछे कई कारण हो सकते हैं:
- पारिवारिक सम्मान: उस समय अभिनय को एक सम्मानित पेशा नहीं माना जाता था। मोलियर शायद अपने परिवार को इस “कमतर” पेशे से जुड़ी किसी भी संभावित शर्मिंदगी से बचाना चाहते थे। एक नया नाम अपनाने से उन्हें अपने पारिवारिक नाम को इस पेशे से अलग रखने में मदद मिली होगी।
- कलात्मक पहचान: कई कलाकारों की तरह, मोलियर भी एक नया नाम अपनाकर अपनी कलात्मक पहचान बनाना चाहते थे। यह उन्हें अपने पुराने जीवन और नए नाटकीय करियर के बीच एक स्पष्ट विभाजन स्थापित करने में मदद करता था।
- परंपरा: यह थिएटर की दुनिया में एक आम बात थी कि कलाकार मंच पर एक नया नाम अपनाते थे।
मोलियर ने अभिनय की शुरुआत अपनी नवगठित मंडली, “इल्लुस्ट्र थिएटर” के साथ की। हालाँकि, जैसा कि पहले बताया गया है, पेरिस में उनकी शुरुआती कोशिशें सफल नहीं रहीं और मंडली को वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जिसके कारण मोलियर को जेल भी जाना पड़ा।
इस शुरुआती असफलता के बाद, मोलियर और उनकी मंडली ने पेरिस छोड़ दिया और अगले तेरह वर्षों तक फ्रांस के विभिन्न प्रांतों में घूम-घूम कर प्रदर्शन किया। इस अवधि में ही मोलियर ने एक अभिनेता के रूप में अपनी कला को निखारा, विभिन्न प्रकार की भूमिकाएँ निभाईं, और दर्शकों की नब्ज को समझा। यहीं से उन्होंने नाटक लिखना भी शुरू किया, पहले छोटे हास्य रेखाचित्र (farces) और फिर पूर्ण-लंबाई के नाटक। यह प्रांतीय दौरा उनके अभिनय और लेखन कौशल के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण प्रशिक्षण अवधि साबित हुई।
पेरिस में “इल्लुस्ट्र थिएटर” की शुरुआती विफलता और वित्तीय कठिनाइयों के बाद, मोलियर और उनकी मंडली ने राजधानी छोड़ने का फैसला किया। यह उनके करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ था।
प्रांतों में घूमना और संघर्ष (1645-1658):
- पेरिस से प्रस्थान: 1645 में, अपनी मंडली के दिवालिया होने और मोलियर के जेल जाने के बाद, उन्होंने पेरिस की चकाचौंध और प्रतिस्पर्धा को छोड़कर फ्रांस के प्रांतों की ओर रुख किया। यह एक तरह से उनकी कला के लिए एक “निर्वासन” था, लेकिन इसने उन्हें अमूल्य अनुभव प्रदान किया।
- चार्ल्स ड्यूफ्रेस्ने की मंडली: मोलियर और बेजार्ट परिवार के बचे हुए सदस्य चार्ल्स ड्यूफ्रेस्ने (Charles Dufresne) की एक स्थापित यात्रा मंडली में शामिल हो गए। यह मंडली ड्यूक्स डी’एपरनॉन (Ducs d’Épernon) जैसे शक्तिशाली संरक्षकों के अधीन थी।
- कला का परिष्कार: अगले तेरह वर्षों (लगभग 1645 से 1658 तक) तक, मोलियर ने इस यात्रा मंडली के साथ फ्रांस के दक्षिणी और पश्चिमी प्रांतों में घूम-घूम कर प्रदर्शन किया। इस दौरान उन्होंने एक अभिनेता के रूप में अपनी कला को निखारा, विभिन्न प्रकार की भूमिकाएँ निभाईं, और दर्शकों की प्रतिक्रियाओं को बारीकी से समझा।
- लेखन की शुरुआत: यह अवधि उनके लिए केवल अभिनय सीखने की नहीं थी, बल्कि यहीं उन्होंने नाटक लिखना भी शुरू किया। उन्होंने पहले छोटे हास्य रेखाचित्र (farces) और फिर पूर्ण-लंबाई की कॉमेडी जैसे “एल’एटौर्डी” (L’Étourdi) और “ले डेपिट एमोरेक्स” (Le Dépit amoureux) लिखे। इन नाटकों में उन्होंने इटैलियन कॉमेडी डेल’आर्टे (Commedia dell’arte) के तत्वों को फ्रांसीसी हास्य के साथ मिलाया।
- मंडली का नेतृत्व: धीरे-धीरे, मोलियर ने मंडली के भीतर एक प्रमुख भूमिका निभाई और अंततः इसके निदेशक बन गए। उन्होंने न केवल अभिनय किया और नाटक लिखे, बल्कि मंडली के वित्तीय प्रबंधन और उत्पादन की भी जिम्मेदारी संभाली।
- सार्वजनिक स्वाद की समझ: प्रांतों में घूमते हुए, मोलियर ने विभिन्न प्रकार के दर्शकों के साथ बातचीत की और उनकी पसंद-नापसंद को समझा। इस अनुभव ने उन्हें बाद में ऐसे नाटक लिखने में मदद की जो व्यापक दर्शकों के साथ जुड़ सकें।
- संघर्ष और दृढ़ता: यह समय संघर्षों से भरा था। यात्रा करना, नए स्थानों पर प्रदर्शन करना, और दर्शकों को आकर्षित करना आसान नहीं था। लेकिन मोलियर की दृढ़ता और थिएटर के प्रति उनके जुनून ने उन्हें इन चुनौतियों का सामना करने में मदद की।
यह प्रांतीय दौरा मोलियर के लिए एक कठोर प्रशिक्षण काल था, जिसने उन्हें एक पूर्ण थिएटर कलाकार, प्रबंधक और नाटककार के रूप में तैयार किया। जब वे 1658 में पेरिस लौटे, तो वे एक अनुभवी और कुशल कलाकार थे, जो राजधानी में सफलता प्राप्त करने के लिए तैयार थे।
मोलियर ने अपनी मंडली के साथ फ्रांस के विभिन्न प्रांतों में घूमते हुए लगभग तेरह साल बिताए। यह अवधि उनके लिए एक तरह का “कलात्मक प्रशिक्षण शिविर” थी, जहाँ उन्होंने बहुमूल्य अनुभव प्राप्त किया:
- विभिन्न शहरों में प्रदर्शन: उन्होंने लिमोसिन, नैनटेस, ल्यों, मोंटपेलियर, डिजॉन, रूएन, और बेज़ियर जैसे कई शहरों और कस्बों में प्रदर्शन किया। वे एक जगह से दूसरी जगह यात्रा करते रहते थे, स्थानीय दर्शकों के सामने अपनी कला का प्रदर्शन करते थे।
- अभिनय कौशल का विकास: इस दौरान मोलियर ने एक अभिनेता के रूप में अपने कौशल को निखारा। उन्होंने विभिन्न प्रकार की भूमिकाएँ निभाईं, कॉमेडी से लेकर त्रासदी तक, हालाँकि उन्हें जल्द ही एहसास हो गया कि उनकी असली प्रतिभा कॉमेडी में है। उन्होंने अपने शारीरिक हास्य, मुखर अभिव्यक्ति और मंच पर उपस्थिति को बेहतर बनाया।
- दर्शकों की समझ: प्रांतों में घूमते हुए, मोलियर को विभिन्न सामाजिक वर्गों और क्षेत्रों के दर्शकों के साथ सीधा संपर्क स्थापित करने का अवसर मिला। उन्होंने सीखा कि कौन सी बातें दर्शकों को हँसाती हैं, कौन सी बातें उन्हें सोचने पर मजबूर करती हैं, और कौन सी बातें उन्हें आकर्षित करती हैं। इस अनुभव ने उन्हें मानवीय व्यवहार और सामाजिक रीति-रिवाजों की गहरी समझ दी, जो बाद में उनके नाटकों में परिलक्षित हुई।
- लेखन का अभ्यास: इस अवधि में ही मोलियर ने नाटक लिखना शुरू किया। उन्होंने अपनी मंडली के लिए छोटे हास्य नाटक (farces) और फिर पूर्ण-लंबाई की कॉमेडी लिखीं। उनकी शुरुआती रचनाएँ जैसे “एल’एटौर्डी” (L’Étourdi) और “ले डेपिट एमोरेक्स” (Le Dépit amoureux) इसी दौरान लिखी गईं। इन नाटकों के माध्यम से उन्होंने अपनी लेखन शैली को विकसित किया और इटैलियन कॉमेडी डेल’आर्टे (Commedia dell’arte) के तत्वों को फ्रांसीसी हास्य के साथ सफलतापूर्वक जोड़ा।
- मंडली प्रबंधन का अनुभव: मोलियर धीरे-धीरे अपनी मंडली के नेता और प्रबंधक बन गए। उन्होंने न केवल अभिनय और लेखन किया, बल्कि मंडली के दौरे, वित्त और अन्य प्रशासनिक कार्यों का भी प्रबंधन किया। इस अनुभव ने उन्हें एक कुशल थिएटर व्यवसायी बनाया।
- चुनौतियों का सामना: यह समय आसान नहीं था। उन्हें लगातार यात्रा करनी पड़ती थी, नए स्थानों पर अनुकूलन करना पड़ता था, और वित्तीय अस्थिरता का सामना करना पड़ता था। लेकिन इन चुनौतियों ने उन्हें मजबूत बनाया और उन्हें अपने लक्ष्य के प्रति और अधिक समर्पित किया।
मोलियर ने प्रांतों में अपने तेरह साल के प्रवास के दौरान अपनी कला को असाधारण रूप से निखारा और दर्शकों की नब्ज को गहराई से पहचाना। यह अवधि उनके लिए एक तरह की “प्रयोगशाला” थी जहाँ उन्होंने अपनी रचनात्मक और प्रदर्शन क्षमताओं को विकसित किया।
कला को निखारना:
- अभिनय कौशल में महारत: मोलियर ने विभिन्न प्रकार के नाटकों में अभिनय किया, जिसमें त्रासदी भी शामिल थी, हालाँकि उन्हें जल्द ही अपनी वास्तविक प्रतिभा कॉमेडी में मिली। उन्होंने शारीरिक हास्य, मुखर विविधता और मंच पर अपनी उपस्थिति को बेहतर बनाया। उन्होंने सीखा कि कैसे एक चरित्र को जीवंत किया जाए और दर्शकों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ा जाए।
- लेखन का अभ्यास और विकास: प्रांतों में रहते हुए ही मोलियर ने नाटक लिखना शुरू किया। उन्होंने अपनी मंडली की जरूरतों के अनुसार छोटे हास्य नाटक (farces) और फिर पूर्ण-लंबाई की कॉमेडी लिखीं। इस प्रक्रिया में, उन्होंने अपनी लेखन शैली को विकसित किया, संवादों को तेज और प्रभावी बनाया, और कथानकों को अधिक आकर्षक बनाया। उन्होंने इटैलियन कॉमेडी डेल’आर्टे (Commedia dell’arte) से प्रेरणा ली, जिसमें तात्कालिकता और विशिष्ट चरित्र शामिल थे, और इसे फ्रांसीसी संदर्भ में ढाला।
- निर्देशन और मंचन का अनुभव: एक अभिनेता और लेखक होने के साथ-साथ, मोलियर ने अपनी मंडली के लिए नाटकों का निर्देशन और मंचन भी किया। उन्होंने सीखा कि कैसे एक नाटक को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया जाए, दृश्यों को कैसे व्यवस्थित किया जाए, और अभिनेताओं को कैसे निर्देशित किया जाए ताकि वे अपनी भूमिकाओं को सर्वोत्तम रूप से निभा सकें।
दर्शकों की नब्ज पहचानना:
- विभिन्न सामाजिक वर्गों की समझ: प्रांतों में घूमते हुए, मोलियर को समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों के सामने प्रदर्शन करने का अवसर मिला – ग्रामीण जनता से लेकर स्थानीय अभिजात वर्ग तक। उन्होंने देखा कि विभिन्न दर्शक क्या पसंद करते हैं, क्या उन्हें हँसाता है, और क्या उन्हें सोचने पर मजबूर करता है। इस अनुभव ने उन्हें मानवीय व्यवहार, सामाजिक ढोंग और विभिन्न वर्गों की कमजोरियों की गहरी समझ दी।
- हास्य की सार्वभौमिक अपील: मोलियर ने पाया कि कुछ मानवीय कमजोरियाँ और मूर्खताएँ सार्वभौमिक होती हैं, चाहे दर्शक किसी भी पृष्ठभूमि के हों। उन्होंने पाखंड, लालच, अभिमान, और अज्ञानता जैसे विषयों पर ध्यान केंद्रित किया, जो हर जगह लोगों को हँसाते थे और उनसे जुड़ते थे।
- तत्काल प्रतिक्रिया का उपयोग: यात्रा मंडली के रूप में, उन्हें दर्शकों से तत्काल प्रतिक्रिया मिलती थी। मोलियर इस प्रतिक्रिया का उपयोग अपने नाटकों और प्रदर्शनों को लगातार बेहतर बनाने के लिए करते थे। उन्होंने सीखा कि कैसे एक दृश्य को अधिक प्रभावी बनाया जाए, एक चुटकुले को कैसे बेहतर बनाया जाए, या एक चरित्र को कैसे अधिक विश्वसनीय बनाया जाए।
- सामाजिक व्यंग्य का विकास: दर्शकों की गहरी समझ ने मोलियर को सामाजिक व्यंग्य में महारत हासिल करने में मदद की। उन्होंने अपने नाटकों में समकालीन समाज की कुरीतियों और मानवीय कमजोरियों पर तीखा प्रहार किया, लेकिन ऐसा हास्यपूर्ण तरीके से किया कि दर्शक न केवल हँसते थे बल्कि आत्मनिरीक्षण भी करते थे।
प्रांतों में तेरह साल बिताने के बाद, मोलियर और उनकी अनुभवी मंडली 1658 में पेरिस लौट आई। यह उनकी किस्मत का निर्णायक मोड़ साबित हुआ।
लुई XIV के दरबार में वापसी:
- शाही प्रदर्शन: मोलियर को लुई XIV के भाई, ड्यूक फिलिप I ऑफ ऑरलियन्स के संरक्षण के माध्यम से राजा लुई XIV और उनके दरबार के सामने प्रदर्शन करने का अवसर मिला। 24 अक्टूबर, 1658 को, मोलियर की मंडली ने लौवर (Louvre) में, जो उस समय एक थिएटर के रूप में भी इस्तेमाल होता था, राजा के सामने प्रदर्शन किया।
- प्रदर्शन का चयन: उन्होंने पहले पियरे कॉर्नेल की त्रासदी “निकॉमेडे” (Nicomède) का प्रदर्शन किया। हालाँकि यह एक त्रासदी थी, लेकिन मोलियर और उनकी मंडली की असली ताकत कॉमेडी में थी। त्रासदी के बाद, मोलियर ने अपनी एक छोटी हास्य प्रस्तुति, “ले डॉक्टर एमोरेक्स” (Le Docteur amoureux – द एमोरेस डॉक्टर) का प्रदर्शन किया।
- राजा का संरक्षण: यह हास्य प्रस्तुति राजा लुई XIV को बहुत पसंद आई। राजा मोलियर के हास्य और अभिनय से प्रभावित हुए। इस प्रदर्शन के परिणामस्वरूप, मोलियर की मंडली को शाही संरक्षण प्राप्त हुआ। राजा ने उन्हें लौवर के पास स्थित पेटिट-बॉरबॉन (Petit-Bourbon) थिएटर का उपयोग करने की अनुमति दी, जहाँ वे इतालवी कॉमेडियन के साथ प्रदर्शन के दिन साझा करते थे।
शुरुआती सफलता:
- “लेस प्रेशियुसेस रिडिक्यूल्स” (Les Précieuses ridicules – द अफेक्टेड यंग लेडीज़): पेरिस में उनकी पहली बड़ी सफलता 1659 में “लेस प्रेशियुसेस रिडिक्यूल्स” के साथ मिली। यह नाटक उस समय के समाज में व्याप्त दिखावटीपन और बनावटी शिष्टाचार पर एक तीखा व्यंग्य था। इस नाटक ने मोलियर को पेरिस के दर्शकों के बीच एक प्रमुख हास्य नाटककार के रूप में स्थापित किया।
- “स्गानेरेल” (Sganarelle): अक्टूबर 1660 में “स्गानेरेल” का प्रीमियर हुआ, जो एक और सफल कॉमेडी थी।
- पैलेस रॉयल में स्थानांतरण: 1660 में, पेटिट-बॉरबॉन थिएटर को ध्वस्त कर दिया गया। लुई XIV ने मोलियर की मंडली को पैलेस रॉयल (Palais Royal) थिएटर का उपयोग करने की अनुमति दी। यह थिएटर मोलियर की कंपनी का शेष जीवन के लिए स्थायी घर बन गया।
- शाही संरक्षण का महत्व: लुई XIV का संरक्षण मोलियर के करियर के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। इसने उन्हें वित्तीय स्थिरता प्रदान की और उन्हें प्रतिद्वंद्वी मंडलियों और आलोचकों के हमलों से बचाया। राजा ने मोलियर के बच्चों के गॉडफादर के रूप में भी काम किया, जो उनके प्रति शाही पक्ष का एक और संकेत था।
इस प्रकार, प्रांतों में प्राप्त अनुभव और राजा के संरक्षण ने मोलियर को पेरिस में एक सफल और प्रभावशाली नाटककार और थिएटर निर्देशक के रूप में स्थापित किया। उनकी शुरुआती सफलता ने उन्हें फ्रांसीसी कॉमेडी के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।
मोलियर की मंडली को पेरिस में एक स्थायी स्थान मिलना उनके करियर में एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर था।
थिएटर डू पैलेस-रॉयल में स्थायी स्थान:
- पेटिट-बॉरबॉन से स्थानांतरण: 1658 में पेरिस लौटने और राजा लुई XIV के सामने सफल प्रदर्शन के बाद, मोलियर की मंडली को पेटिट-बॉरबॉन (Petit-Bourbon) थिएटर में प्रदर्शन करने की अनुमति मिली थी। हालाँकि, यह थिएटर 1660 में लौवर के लिए एक नए मुखौटे के निर्माण के कारण ध्वस्त कर दिया गया था।
- राजा का समर्थन: राजा लुई XIV, जो मोलियर के हास्य और प्रतिभा से बहुत प्रभावित थे, ने उनकी मंडली को बिना किसी स्थायी स्थान के नहीं छोड़ा। उन्होंने मोलियर को पैलेस-रॉयल (Palais-Royal) थिएटर का उपयोग करने की अनुमति दी। यह थिएटर कार्डिनल रिचल्यू द्वारा बनाया गया था और उस समय पेरिस के सबसे प्रतिष्ठित थिएटरों में से एक था।
- स्थायी निवास: 1661 में, मोलियर की मंडली पैलेस-रॉयल में स्थानांतरित हो गई। यह उनके लिए एक स्थायी और प्रतिष्ठित घर बन गया, जहाँ वे अपने नाटकों का नियमित रूप से मंचन कर सकते थे। यह स्थान मोलियर की कंपनी के लिए उनके शेष जीवन तक का घर बना रहा।
- रॉयल ट्रूप का दर्जा: 1665 में, लुई XIV ने मोलियर की मंडली को आधिकारिक तौर पर “ट्रूप डू रोई” (Troupe du Roi – राजा की मंडली) का खिताब दिया। यह एक बहुत बड़ा सम्मान था जिसने मंडली की स्थिति को और मजबूत किया और उन्हें शाही संरक्षण के तहत विशेष अधिकार दिए।
- रचनात्मक स्वतंत्रता और उत्पादकता: पैलेस-रॉयल में एक स्थायी स्थान और शाही संरक्षण ने मोलियर को अधिक रचनात्मक स्वतंत्रता और स्थिरता प्रदान की। उन्होंने अपने सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली नाटकों में से कई यहीं लिखे और मंचित किए, जिनमें “द स्कूल फॉर वाइव्स” (The School for Wives), “टार्टफ” (Tartuffe), “द मिसैन्थ्रोप” (The Misanthrope), “द माइजर” (The Miser) और “द इमेजिनरी इनवैलिड” (The Imaginary Invalid) शामिल हैं।
- प्रभाव और विरासत: पैलेस-रॉयल में मोलियर की उपस्थिति ने इसे पेरिस के नाटकीय जीवन का केंद्र बना दिया। उनके नाटकों ने फ्रांसीसी कॉमेडी को नया आकार दिया और आने वाली पीढ़ियों के नाटककारों और अभिनेताओं को प्रभावित किया। यह स्थायी स्थान उनकी कलात्मक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया।
मोलियर के करियर में शाही संरक्षण (Royal Patronage) का मिलना एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना थी। राजा लुई XIV का समर्थन उनके लिए वरदान साबित हुआ, लेकिन इसके अपने कुछ फायदे और नुकसान भी थे।
शाही संरक्षण के फायदे
- स्थिरता और वित्तीय सुरक्षा: शाही संरक्षण का सबसे बड़ा लाभ वित्तीय स्थिरता थी। मोलियर की मंडली को नियमित वेतन और प्रदर्शन के लिए शाही महल उपलब्ध हुए। इससे उन्हें प्रांतीय मंडली के दिनों की अनिश्चितता और आर्थिक तंगी से मुक्ति मिली। वे नाटकों के उत्पादन, सेट डिजाइन और कलाकारों पर अधिक निवेश कर सके।
- प्रतिष्ठा और वैधता: राजा का समर्थन मिलने से मोलियर की मंडली को तुरंत उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा और वैधता मिली। उन्हें “ट्रूप डू रोई” (राजा की मंडली) का दर्जा मिला, जिससे पेरिस के कलात्मक समुदाय में उनकी स्थिति मजबूत हुई। यह साधारण मंडली से हटकर एक सम्मानजनक और स्थापित समूह बन गए।
- प्रतिस्पर्धा से सुरक्षा: पेरिस में कई अन्य थिएटर मंडलियां थीं, लेकिन शाही संरक्षण ने मोलियर को एक अद्वितीय लाभ दिया। उन्हें प्रतिद्वंद्वी मंडलीयों से प्रतिस्पर्धा में एक बढ़त मिली और कुछ हद तक आलोचनाओं से भी सुरक्षा मिली।
- कलात्मक स्वतंत्रता (कुछ हद तक): वित्तीय सुरक्षा ने मोलियर को अपनी कलात्मक दृष्टि को आगे बढ़ाने की स्वतंत्रता दी। उन्हें दर्शकों की तात्कालिक मांग को पूरा करने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ा और वे ऐसे विषयों पर नाटक लिख सके जो सामाजिक टिप्पणी और गहरे हास्य को प्रस्तुत करते थे।
- शाही समर्थन के माध्यम से प्रचार: राजा के दरबार में प्रदर्शन करने और शाही आयोजनों का हिस्सा बनने से उनकी प्रसिद्धि बढ़ी। यह एक तरह का शक्तिशाली विज्ञापन था, जिसने आम जनता के बीच भी उनकी लोकप्रियता बढ़ाई।
शाही संरक्षण के नुकसान
- राजनीतिक और धार्मिक दबाव: शाही संरक्षण का सबसे बड़ा नुकसान यह था कि मोलियर को राजनीतिक और धार्मिक दबावों का सामना करना पड़ा। उनके कई नाटकों, विशेष रूप से ‘टार्टफ’ (Tartuffe), ने शक्तिशाली वर्गों जैसे कि पाखंडी धार्मिक लोगों और अभिजात वर्ग की आलोचना की। इन नाटकों पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास किए गए, और मोलियर को राजा की मर्जी और शक्तिशाली विरोधियों के बीच संतुलन बनाना पड़ा। उन्हें अक्सर अपने नाटकों में बदलाव करने पड़े या उन्हें अस्थायी रूप से मंच से हटाना पड़ा।
- कलात्मक compromise की संभावना: राजा को प्रसन्न रखने और शाही दरबार की अपेक्षाओं को पूरा करने की आवश्यकता ने कभी-कभी मोलियर को अपनी कलात्मक दृष्टि से समझौता करने के लिए मजबूर किया हो सकता है। उन्हें कुछ विषयों पर अत्यधिक तीखे व्यंग्य से बचना पड़ता था या ऐसे नाटकों को प्राथमिकता देनी पड़ती थी जो दरबारियों को मनोरंजन प्रदान करें।
- समय और संसाधनों का शाही सेवा में लगना: मोलियर और उनकी मंडली को अक्सर शाही उत्सवों, बैले और अन्य दरबार कार्यक्रमों के लिए प्रदर्शन करना पड़ता था। इससे उनके अपने नाटकों के लिए उपलब्ध समय और संसाधनों में कमी आ सकती थी। उन्हें राजा की मांग पर अक्सर नए काम तैयार करने पड़ते थे।
- निर्भरता: अंततः, मोलियर की सफलता और अस्तित्व शाही कृपा पर बहुत अधिक निर्भर हो गए। यदि राजा अपना समर्थन वापस ले लेता, तो उनकी मंडली के लिए गंभीर संकट पैदा हो सकता था।
मोलियर ने पेरिस लौटने के बाद और शाही संरक्षण प्राप्त करने के बाद, अपनी हास्य प्रतिभा को पूरी तरह से प्रदर्शित करना शुरू कर दिया। उनकी शुरुआती पेरिस की हास्य रचनाएँ ही थीं जिन्होंने उन्हें एक महान हास्य नाटककार के रूप में स्थापित किया।
मोलियर की शुरुआती हास्य रचनाएँ और उनकी विशेषताएँ
मोलियर की शुरुआती पेरिस की रचनाओं में से एक सबसे प्रमुख और सफल नाटक था:
1. “लेस प्रेशियुसेस रिडिक्यूल्स” (Les Précieuses ridicules – द अफेक्टेड यंग लेडीज़) – 1659
यह नाटक मोलियर की पेरिस में पहली बड़ी सफलता थी और इसने उन्हें रातों-रात प्रसिद्धि दिलाई।
विशेषताएँ:
- सामाजिक व्यंग्य: इस नाटक ने 17वीं शताब्दी के पेरिस के सैलून (सामाजिक सभाओं) में व्याप्त दिखावटीपन, बनावटी शिष्टाचार और अतिरंजित परिष्करण पर तीखा व्यंग्य किया। यह उन युवा महिलाओं का उपहास करता था जो खुद को बहुत “कीमती” मानती थीं और वास्तविक भावनाओं के बजाय कृत्रिमता और साहित्यिक भाषा को महत्व देती थीं।
- तेज संवाद और हास्य: मोलियर के संवाद तीखे, बुद्धिमान और त्वरित थे, जो दर्शकों को हंसाने में सक्षम थे। हास्य चरित्रों की मूर्खता, उनके नकली व्यवहार और उनके आस-पास के यथार्थवादी लोगों के साथ उनके टकराव से उत्पन्न होता था।
- चरित्र-आधारित हास्य: नाटक में मैग्डेलॉन (Magdelon) और कैथोस (Cathos) जैसे चरित्रों के माध्यम से एक निश्चित सामाजिक वर्ग की मानसिकता और उनके दोषों को उजागर किया गया था। मोलियर ने इन चरित्रों को इस तरह से प्रस्तुत किया कि वे मूर्खतापूर्ण लगें, लेकिन साथ ही पहचानने योग्य भी हों।
- छोटी और प्रभावी: यह एक एक-एक्ट का नाटक था, जो इसे अधिक संक्षिप्त और प्रभावी बनाता था। यह मोलियर की क्षमता को दर्शाता था कि कैसे वह कम समय में भी एक शक्तिशाली सामाजिक संदेश दे सकते हैं।
- परिणाम: इस नाटक की सफलता ने मोलियर को पेरिस के दर्शकों के बीच एक प्रमुख हास्य नाटककार के रूप में स्थापित किया और उन्हें पैलेस-रॉयल में स्थायी रूप से प्रदर्शन करने का अवसर मिला।
2. “स्गानेरेल, या द इमेजिनरी कॉर्नड” (Sganarelle, ou Le Cocu imaginaire) – 1660
यह भी मोलियर की शुरुआती सफलताओं में से एक थी।
विशेषताएँ:
- गलतफहमी का हास्य (Comedy of Errors): यह नाटक गलतफहमी और धारणाओं पर आधारित है, जहाँ पात्र एक-दूसरे को गलत समझते हैं, जिससे हास्यास्पद स्थितियाँ पैदा होती हैं।
- आम आदमी का चरित्र: इसमें स्गानेरेल नाम का एक आम आदमी का चरित्र है, जो मोलियर के कई नाटकों में एक आवर्ती नाम बन गया। स्गानेरेल अक्सर एक सामान्य व्यक्ति होता है जो मूर्खतापूर्ण परिस्थितियों में फंस जाता है या स्वयं मूर्खतापूर्ण कार्य करता है।
- सामाजिक टिप्पणी: इस नाटक में पति-पत्नी के संबंधों, संदेह और ईर्ष्या पर हल्की-फुल्की टिप्पणी की गई थी, जो उस समय के सामाजिक मानदंडों को दर्शाती थी।
इन शुरुआती रचनाओं की समग्र विशेषताएँ:
- सामाजिक व्यंग्य का आधार: मोलियर ने शुरुआती दौर से ही अपने नाटकों को सामाजिक बुराइयों और मानवीय कमजोरियों पर व्यंग्य करने का एक मंच बनाया।
- चरित्र-केंद्रित हास्य: उनके हास्य का मुख्य स्रोत अक्सर विशिष्ट प्रकार के चरित्रों की मूर्खता, सनक और पाखंड होता था।
- गतिशील संवाद: मोलियर के संवाद हमेशा तीखे, हास्यपूर्ण और स्वाभाविक होते थे।
- लोकप्रिय तत्वों का उपयोग: उन्होंने इटैलियन कॉमेडी डेल’आर्टे (Commedia dell’arte) से तात्कालिकता, शारीरिक हास्य और स्टॉक कैरेक्टर जैसे तत्वों का उपयोग किया, जिससे उनके नाटक आम जनता के लिए भी आकर्षक बने।
ये शुरुआती सफलताएँ मोलियर के लिए एक मजबूत नींव साबित हुईं, जिससे उन्हें बाद में “टार्टफ” और “द मिसैन्थ्रोप” जैसे और अधिक जटिल और गहन हास्य नाटक लिखने का आत्मविश्वास मिला।
मोलियर की कॉमेडी की पहचान उनकी समकालीन फ्रांसीसी समाज पर तीखी व्यंग्यात्मक टिप्पणी और मानवीय कमजोरियों के सूक्ष्म चित्रण में निहित है। उन्होंने अपने नाटकों को केवल मनोरंजन का साधन नहीं बनाया, बल्कि उन्हें समाज के दर्पण के रूप में इस्तेमाल किया, जिसमें दर्शकों को अपनी और अपने समाज की कमियाँ दिखाई दें।
समकालीन समाज पर व्यंग्य
मोलियर ने 17वीं सदी के फ्रांसीसी समाज के विभिन्न पहलुओं को अपने व्यंग्य का निशाना बनाया:
- बनावटीपन और दिखावा: उन्होंने उन लोगों का उपहास किया जो असली होने की बजाय दिखावा करते थे। “लेस प्रेशियुसेस रिडिक्यूल्स” (Les Précieuses ridicules) में उन्होंने उन युवा महिलाओं का मज़ाक उड़ाया जो कृत्रिम भाषा, दिखावटी शिष्टाचार और सतही ज्ञान का प्रदर्शन करती थीं। यह नाटक दिखाता है कि कैसे लोग सामाजिक स्थिति प्राप्त करने के लिए अपनी वास्तविकता को छोड़ देते हैं।
- पाखंड और धार्मिक ढोंग: मोलियर की सबसे विवादास्पद कृति “टार्टफ” (Tartuffe) इसी विषय पर केंद्रित है। इसमें उन्होंने उन पाखंडी व्यक्तियों को उजागर किया जो धर्म का मुखौटा पहनकर दूसरों को धोखा देते हैं और अपने स्वार्थ साधते हैं। यह नाटक धार्मिक अतिवाद और समाज में नैतिक भ्रष्टाचार पर एक शक्तिशाली हमला था।
- चिकित्सा पेशे का उपहास: “ले मलाडे इमेजिनेयर” (Le Malade imaginaire – द इमेजिनरी इनवैलिड) और “ले डॉक्टर मालफ्रे लुइ” (Le Docteur malgré lui – द फ़ोर्स्ड डॉक्टर) जैसे नाटकों में मोलियर ने उस समय के डॉक्टरों की अज्ञानता, अहंकार और बिना समझे-बूझे इलाज करने की प्रवृत्ति का मज़ाक उड़ाया। उन्होंने दिखाया कि कैसे लोग अपनी बीमारी के प्रति जुनूनी हो जाते हैं और अप्रभावी या हानिकारक इलाजों पर विश्वास करते हैं।
- अभिजात वर्ग की मूर्खता और अहंकार: मोलियर ने अक्सर अभिजात वर्ग की बेतुकी आदतों, उनके दिखावटी जीवन शैली और उनके बौद्धिक खोखलेपन पर व्यंग्य किया। “ले बुर्जुआ जेंटिलहोम” (Le Bourgeois gentilhomme – द बूर्जुआ जेंटलमैन) में एक अमीर व्यापारी की कहानी है जो कुलीन बनने के लिए पैसे और समय बर्बाद करता है, जिससे उसकी मूर्खता उजागर होती है।
- विवाह और लैंगिक संबंध: उनके कई नाटक, जैसे “ले’एकॉल देस फेम्स” (L’École des femmes – द स्कूल फॉर वाइव्स), विवाह के पारंपरिक दृष्टिकोणों, पुरुषों के नियंत्रण और महिलाओं की स्वतंत्रता के मुद्दों पर टिप्पणी करते हैं। वे अक्सर पति-पत्नी के बीच गलतफहमी, ईर्ष्या और शक्ति संतुलन को हास्यपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करते हैं।
मानवीय कमजोरियों का चित्रण
मोलियर केवल सामाजिक बुराइयों पर ही नहीं रुके, बल्कि उन्होंने मानवीय स्वभाव की सार्वभौमिक कमजोरियों को भी बड़ी कुशलता से चित्रित किया:
- पाखंड (Hypocrisy): यह उनकी कृतियों का एक केंद्रीय विषय था। उन्होंने दिखाया कि कैसे लोग दूसरों को प्रभावित करने या अपना एजेंडा पूरा करने के लिए झूठे दिखावे करते हैं।
- अहंकार और घमंड (Vanity and Arrogance): उनके पात्र अक्सर अपने आप को दूसरों से बेहतर मानते थे या दूसरों पर अपनी राय थोपने की कोशिश करते थे, जिससे हास्यास्पद स्थितियाँ पैदा होती थीं।
- लालच (Greed): “ल’अवर” (L’Avare – द माइजर) में हरपगॉन जैसा चरित्र लालच की पराकाष्ठा को दर्शाता है, जहाँ धन का जुनून उसे परिवार और रिश्तों से भी ऊपर ले जाता है।
- ईर्ष्या और संदेह (Jealousy and Suspicion): कई नाटकों में, पात्र ईर्ष्या और संदेह से ग्रस्त होते हैं, जिससे वे गलत धारणाएँ बनाते हैं और मूर्खतापूर्ण कार्य करते हैं।
- अंधविश्वास और अज्ञानता (Superstition and Ignorance): मोलियर ने उन लोगों का मज़ाक उड़ाया जो तर्क और कारण के बजाय अंधविश्वासों या अज्ञानता पर आधारित निर्णय लेते थे।
- दिखावटी ज्ञान और मूर्खता (Pretence of Knowledge and Folly): उन्होंने उन पात्रों को चित्रित किया जो ज्ञानी होने का ढोंग करते थे लेकिन वास्तव में अज्ञानी और मूर्ख थे।
मोलियर की विशेषता यह थी कि उन्होंने इन गंभीर विषयों को भी हास्य और विनोद के माध्यम से प्रस्तुत किया। उनके नाटकों ने दर्शकों को न केवल हँसाया, बल्कि उन्हें अपने समाज और स्वयं के व्यवहार पर विचार करने के लिए भी प्रेरित किया। यही कारण है कि उनकी रचनाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक और शक्तिशाली हैं जितनी 17वीं सदी में थीं।
मोलियर के दो शुरुआती और महत्वपूर्ण नाटकों में “द सिली प्रेशियस लेडीज़” (Les Précieuses ridicules) और “द स्कूल फॉर वाइव्स” (L’École des femmes) शामिल हैं, जिन्होंने फ्रांसीसी कॉमेडी में उनकी विशिष्ट शैली और सामाजिक व्यंग्य की गहराई को स्थापित किया। आइए इन दोनों का विश्लेषण करें:
“द सिली प्रेशियस लेडीज़” (Les Précieuses ridicules – 1659)
यह नाटक मोलियर की पेरिस में पहली बड़ी सफलता थी और इसने उन्हें तुरंत एक अग्रणी हास्य नाटककार के रूप में पहचान दिलाई। यह एक एक-एक्ट की फ़ार्स (farce) है, जो अपने छोटे आकार के बावजूद शक्तिशाली सामाजिक टिप्पणी प्रस्तुत करती है।
कथानक: नाटक दो ग्रामीण युवतियों, मैगमडेलॉन और कैथोस के इर्द-गिर्द घूमता है, जो पेरिस आकर खुद को “अति-परिष्कृत” (précieuses) और कुलीन दिखाने की कोशिश करती हैं। वे सच्ची भावनाओं और सीधेपन को त्यागकर बनावटी भाषा, साहित्यिक वाक्यांशों और नकली शिष्टाचार का अभ्यास करती हैं। वे दो ऐसे सज्जनों, ला ग्रांज और डु क्रोसी, को अस्वीकार कर देती हैं जो उनसे शादी का प्रस्ताव रखते हैं, क्योंकि वे उन्हें “अजीब” और “असभ्य” लगते हैं। बदले में, अपमानित सज्जन अपने दो नौकरों, मैस्करिल और जोडेले को, कुलीन व्यक्तियों के रूप में प्रच्छन्न करके उन लड़कियों का मज़ाक उड़ाने के लिए भेजते हैं। नौकर लड़कियाँ नकली परिष्करण के जाल में फंस जाती हैं, जब तक कि उनके वास्तविक स्वामी आकर उनका पर्दाफाश नहीं करते।
मुख्य विशेषताएँ और विश्लेषण:
- तीखा सामाजिक व्यंग्य: नाटक का मुख्य लक्ष्य 17वीं शताब्दी के पेरिस के सैलून (सामाजिक सभाओं) में फैले दिखावटीपन, बनावटी बौद्धिकता और साहित्यिक अतिशयोक्ति का उपहास करना है। मोलियर ने उन महिलाओं का मज़ाक उड़ाया जो सच्ची भावनाओं के बजाय कृत्रिमता और शब्दों के खेल को महत्व देती थीं।
- दोषों का पर्दाफाश: यह नाटक दिखाता है कि कैसे मानवीय घमंड और सामाजिक अनुमोदन की इच्छा लोगों को मूर्खतापूर्ण व्यवहार करने पर मजबूर कर सकती है। यह उन लोगों का उपहास करता है जो दूसरों को प्रभावित करने के लिए नकली पहचान अपनाते हैं।
- भाषा का हास्य: मोलियर ने “प्रेशियस” बोली के बेतुकेपन को उजागर करने के लिए भाषा का शानदार ढंग से उपयोग किया। वे जटिल और अनावश्यक रूप से अलंकारिक वाक्यांशों का उपयोग करती हैं, जो उनके खोखलेपन को दर्शाता है।
- संरचना और गति: एक-एक्ट का होना नाटक को तेज़ गति देता है और हास्य को तुरंत प्रभावी बनाता है। इसका सीधा-सादा कथानक और स्पष्ट संदेश इसे दर्शकों के लिए आसानी से सुलभ बनाता है।
“द स्कूल फॉर वाइव्स” (L’École des femmes – 1662)
यह मोलियर के करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, क्योंकि यह उनकी पहली पांच-एक्ट की कॉमेडी (five-act comedy) थी जो पूरी तरह से पद्य (verse) में लिखी गई थी। यह नाटक अधिक जटिल था और इसने मोलियर को अपने हास्य में अधिक गहराई और गंभीरता लाने की अनुमति दी।
कथानक: नाटक मुख्य रूप से अर्नेलफे (Arnolphe) नामक एक मध्य आयु वर्ग के व्यक्ति के बारे में है, जिसे महिलाओं की बेईमानी और बेवफाई पर अत्यधिक संदेह है। अपनी ईर्ष्या और अपनी पत्नी पर पूर्ण नियंत्रण रखने की इच्छा के कारण, उसने एग्नेस (Agnès) नामक एक युवा लड़की को बचपन से ही एक कॉन्वेंट में पाला है, उसे दुनिया की किसी भी बुराई या ज्ञान से दूर रखा है, ताकि वह उसके लिए एक आदर्श, आज्ञाकारी और मूर्ख पत्नी बन सके। जब एग्नेस युवा होती है, तो अर्नेलफे उसे शादी के लिए अपने घर ले आता है। हालाँकि, एग्नेस गलती से होरेस (Horace) नामक एक युवा और सुंदर लड़के से मिल जाती है, और वे एक-दूसरे के प्यार में पड़ जाते हैं। होरेस, अर्नेलफे की योजना से अनजान, उसे अपनी प्रेम कहानी सुनाता रहता है, जिससे अर्नेलफे का गुस्सा और निराशा बढ़ती जाती है। अंत में, कई हास्यास्पद प्रयासों के बावजूद, अर्नेलफे अपनी योजना में विफल रहता है, और एग्नेस और होरेस की शादी हो जाती है।
मुख्य विशेषताएँ और विश्लेषण:
- चरित्र अध्ययन: यह नाटक अर्नेलफे के चरित्र का एक गहरा अध्ययन है – उसका भ्रम, उसकी ईर्ष्या, और महिलाओं पर नियंत्रण रखने की उसकी रुग्ण इच्छा। मोलियर ने दिखाया कि कैसे अत्यधिक नियंत्रण और अज्ञानता किसी व्यक्ति को अंततः कैसे असफल कर देती है।
- शिक्षा और स्वतंत्रता का विषय: नाटक शिक्षा के महत्व और व्यक्ति की स्वतंत्रता पर टिप्पणी करता है। अर्नेलफे का एग्नेस को जानबूझकर अज्ञानी रखना, यह सुझाव देता है कि अज्ञानता किसी व्यक्ति को खुश और आज्ञाकारी नहीं बनाती, बल्कि उसे भोला और बाहरी प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती है। एग्नेस की मासूमियत के बावजूद, वह स्वाभाविक रूप से प्रेम और स्वतंत्रता की ओर आकर्षित होती है।
- हास्य और त्रासदी का मिश्रण: जबकि यह एक कॉमेडी है, इसमें अर्नेलफे के चरित्र में एक दुखद या निराशाजनक पहलू भी है। उसकी लगातार असफलताएं, उसकी निराशा, और उसका खुद को मूर्ख बनते देखना दर्शकों के लिए केवल हंसी का पात्र नहीं होता, बल्कि एक निश्चित सहानुभूति भी उत्पन्न करता है।
- संवाद और पद्य का उपयोग: पद्य में लिखे होने के कारण, नाटक के संवाद अधिक परिष्कृत और काव्यमय हैं, जो मोलियर की भाषा पर पकड़ को दर्शाते हैं। संवादों में तेज बुद्धि, विरोधाभास और विडंबना भरी हुई है।
- समाज में बहस: इस नाटक ने अपने समय में एक बड़ी बहस छेड़ी थी, जिसे “क्वेरेल डे ल’एकॉल डेस फेम्स” (Quarrel of The School for Wives) के नाम से जाना जाता है। आलोचकों ने मोलियर पर “असभ्यता” और “धर्महीनता” का आरोप लगाया, लेकिन मोलियर ने अपने नाटकों “क्रिटिक डे ल’एकॉल डेस फेम्स” (Critique of The School for Wives) और “ल’इम्प्रोम्टू दे वर्साय” (L’Impromptu de Versailles) के माध्यम से उनका जवाब दिया।
इन दोनों नाटकों ने मोलियर की हास्य शैली की नींव रखी, जो सामाजिक टिप्पणी, मानवीय चरित्रों की गहरी समझ और तीक्ष्ण बुद्धिमान संवादों पर आधारित थी। “द सिली प्रेशियस लेडीज़” ने उनकी व्यंग्य की क्षमता को दिखाया, जबकि “द स्कूल फॉर वाइव्स” ने उनकी कलात्मक गहराई और सामाजिक मुद्दों पर अधिक जटिल दृष्टिकोण प्रस्तुत करने की क्षमता को प्रदर्शित किया।
मोलियर का नाटक “टार्टफ” (Tartuffe) उनकी सबसे प्रसिद्ध, सबसे विवादास्पद और शायद उनकी सबसे महत्वपूर्ण कृति है। इसकी पृष्ठभूमि और रचना के कारण मोलियर के व्यक्तिगत अनुभव, उस समय के फ्रांसीसी समाज की स्थिति और धार्मिक पाखंड पर उनकी गहरी टिप्पणी से जुड़े हैं।
टार्टफ की पृष्ठभूमि
- धार्मिक पाखंड का बढ़ता प्रभाव: 17वीं शताब्दी के मध्य फ्रांस में, धार्मिक पवित्रता और भक्ति का एक मजबूत सार्वजनिक प्रदर्शन था, खासकर अभिजात वर्ग और उच्च समाज के बीच। हालाँकि, इसके साथ ही, कई लोग इस भक्ति का उपयोग सामाजिक और राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने के लिए कर रहे थे। एक ऐसा समूह था जिसे “कैबल डेस डेवोट्स” (Cabale des Dévoûts) के नाम से जाना जाता था। ये लोग खुद को अत्यधिक धर्मनिष्ठ बताते थे, लेकिन वास्तव में वे दूसरों के जीवन में हस्तक्षेप करते थे, उनकी नैतिक कमियों को उजागर करते थे (या बनाते थे), और धर्म के नाम पर अपने व्यक्तिगत एजेंडा को आगे बढ़ाते थे। वे राजा लुई XIV के दरबार में भी प्रभावशाली थे।
- मोलियर का व्यक्तिगत अवलोकन: मोलियर, एक तीक्ष्ण पर्यवेक्षक थे और उन्होंने अपने नाटकों में समाज की वास्तविकता को दर्शाया। उन्होंने इस धार्मिक पाखंड और नैतिक दोगलेपन को करीब से देखा, जिसने उन्हें बहुत परेशान किया। उन्हें लगा कि यह समाज के लिए एक गंभीर खतरा है, क्योंकि यह वास्तविक नैतिकता और आध्यात्मिकता को कमजोर करता है।
- नाटककारों की भूमिका: मोलियर का मानना था कि कॉमेडी का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य सामाजिक बुराइयों को उजागर करना और उन्हें हास्य के माध्यम से सुधारना है। वे चाहते थे कि उनका थिएटर केवल मनोरंजन ही नहीं, बल्कि एक दर्पण भी हो जो समाज को उसकी कमियाँ दिखाए।
टार्टफ की रचना का कारण
मोलियर ने 1664 में “टार्टफ” का पहला संस्करण लिखा, जिसे “टार्टफ, या द हाइपोक्राइट” (Tartuffe, ou L’Imposteur) के नाम से जाना जाता है। इसे रचने के कई प्रमुख कारण थे:
- पाखंड को बेनकाब करना: मोलियर का प्राथमिक लक्ष्य धार्मिक पाखंड (religious hypocrisy) को बेनकाब करना था। वह ऐसे व्यक्तियों को निशाना बनाना चाहते थे जो बाहरी तौर पर खुद को बेहद pious (धर्मनिष्ठ) दिखाते थे, लेकिन अंदर से वे लालची, वासनापूर्ण और स्वार्थी थे। टार्टफ का चरित्र ऐसे ही लोगों का प्रतीक है जो धर्म का मुखौटा पहनकर दूसरों को ठगते हैं और उनकी संपत्ति व परिवारों को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं।
- सामाजिक सुधार की इच्छा: मोलियर का दृढ़ विश्वास था कि हास्य सामाजिक बुराइयों को सुधारने का एक प्रभावी तरीका है। उन्हें लगा कि पाखंडी व्यवहार समाज को अंदर से खोखला कर रहा है, और इसे उजागर करना आवश्यक है। उनका उद्देश्य दर्शकों को हँसाते हुए सोचने पर मजबूर करना था कि वे भी कहीं ऐसे पाखंड के शिकार तो नहीं हो रहे हैं, या स्वयं ऐसे व्यवहार में लिप्त तो नहीं हैं।
- लुई XIV के लिए मनोरंजन और शिक्षा: लुई XIV एक कलाप्रेमी राजा थे और मोलियर के संरक्षक भी। मोलियर ने यह नाटक वर्साय में आयोजित एक शाही उत्सव “लेस प्लेजर्स डे ल’इल एंचांटी” (Les Plaisirs de l’Île enchantée – द प्लेज़र्स ऑफ द एनचांटेड आइलैंड) के हिस्से के रूप में प्रस्तुत किया। राजा को समाज में पाखंड पसंद नहीं था, और मोलियर शायद इस नाटक के माध्यम से राजा को इस समस्या के प्रति सचेत करना चाहते थे, जबकि साथ ही उन्हें मनोरंजन भी प्रदान करना चाहते थे।
- व्यक्तिगत आक्रोश और साहस: मोलियर को शायद व्यक्तिगत रूप से ऐसे पाखंडी व्यक्तियों से बुरा अनुभव हुआ था। उन्होंने साहस के साथ एक ऐसे शक्तिशाली वर्ग पर हमला करने का फैसला किया जो उस समय समाज में काफी प्रभावशाली था।
मोलियर ने ‘टार्टफ’ को एक ऐसी कॉमेडी के रूप में तैयार किया था जो इतनी तीखी हो कि यह अपने समय की सबसे प्रभावशाली और विवादास्पद रचना बन जाए, जिससे धार्मिक और राजनीतिक हलकों में हंगामा मच गया। यह नाटक मोलियर की कलात्मक प्रतिभा और सामाजिक टिप्पणी के प्रति उनके अटूट समर्पण का एक प्रमाण है।
नाटक की विषय-वस्तु: पाखंड और धार्मिक ढोंग पर प्रहार
मोलियर का नाटक “टार्टफ” (Tartuffe) अपनी विषय-वस्तु के लिए सबसे अधिक जाना जाता है: पाखंड (hypocrisy) और धार्मिक ढोंग (religious imposture) पर इसका शक्तिशाली और तीखा प्रहार। यह नाटक इन दोनों मानवीय दुर्बलताओं को गहराई से चित्रित करता है और समाज पर इनके विनाशकारी प्रभावों को उजागर करता है।
1. पाखंड (Hypocrisy) का चित्रण
नाटक का केंद्रीय चरित्र, टार्टफ, पाखंड का जीता-जागता उदाहरण है। वह खुद को एक अत्यधिक धर्मनिष्ठ, तपस्वी और पवित्र व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करता है, लेकिन वास्तव में वह एक लालची, कामी और धोखेबाज अवसरवादी है।
- बाहरी दिखावा बनाम आंतरिक वास्तविकता: टार्टफ लगातार अपनी बाहरी पवित्रता का प्रदर्शन करता है। वह प्रार्थना करता है, धार्मिक उपदेश देता है, और अपनी इंद्रियों को वश में करने का दावा करता है। वह ऑर्गन के घर में प्रवेश करते ही “फटे हुए वस्त्रों” और “सादे जीवन” का नाटक करता है। हालाँकि, उसकी वास्तविक इच्छाएँ पूरी तरह से विपरीत हैं: वह ऑर्गन की पत्नी, एल्मायर, को फुसलाने की कोशिश करता है, उसकी संपत्ति पर कब्जा करना चाहता है, और अपने विरोधियों को कुचलने के लिए धार्मिक सत्ता का दुरुपयोग करता है।
- विश्वास का दुरुपयोग: टार्टफ ऑर्गन के अटूट विश्वास का दुरुपयोग करता है। वह ऑर्गन की अंधभक्ति का फायदा उठाता है और उसे अपने परिवार के खिलाफ कर देता है, जिससे परिवार में दरार आ जाती है। यह दिखाता है कि कैसे पाखंडी लोग दूसरों की सद्भावना और धार्मिक भावनाओं का लाभ उठाकर उन्हें नियंत्रित करते हैं।
- सामाजिक आलोचना: मोलियर ने टार्टफ के माध्यम से उस समय के फ्रांसीसी समाज में फैले सामान्य पाखंड पर व्यंग्य किया। उन्होंने उन लोगों को उजागर किया जो सामाजिक और राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए धर्म का मुखौटा पहनते थे, लेकिन जिनके नैतिक मूल्य खोखले थे।
2. धार्मिक ढोंग (Religious Imposture) पर प्रहार
मोलियर ने ‘टार्टफ’ के माध्यम से वास्तविक धार्मिक भक्ति और पाखंडी ढोंग के बीच एक स्पष्ट अंतर स्थापित करने का प्रयास किया। उनका नाटक धर्म पर हमला नहीं था, बल्कि उन व्यक्तियों पर हमला था जो धर्म का अपमान करते थे।
- धर्म का हथियार के रूप में उपयोग: टार्टफ अपने “धर्मनिष्ठता” को एक हथियार के रूप में उपयोग करता है। वह विरोधियों को “ईशनिंदक” या “अविश्वासी” कहकर चुप कराता है, और उन्हें धमकाता है कि वे नरक में जाएंगे। वह धर्म के नाम पर दूसरों की नैतिकता पर निर्णय लेता है, जबकि स्वयं सबसे अनैतिक व्यवहार में लिप्त होता है।
- नैतिक भ्रष्टाचार: नाटक दिखाता है कि कैसे धार्मिक ढोंग नैतिकता को भ्रष्ट कर सकता है। ऑर्गन, जो टार्टफ की “पवित्रता” से इतना मोहित है, वह अपने ही बच्चों और पत्नी की स्पष्ट चेतावनियों को नजरअंदाज कर देता है और अंततः अपने परिवार को गरीबी और बदनामी के कगार पर धकेल देता है।
- समझदारी बनाम अंधभक्ति: डोरिन (मोलियर की क्लासिक “समझदार नौकरानी”), क्लेन्ते (समझदार और तर्कशील भाई) और एल्मायर (बुद्धिमान पत्नी) जैसे चरित्र उस अंधभक्ति के विपरीत खड़े होते हैं जो ऑर्गन टार्टफ के प्रति दिखाता है। ये चरित्र तर्क, सामान्य ज्ञान और सच्ची नैतिकता का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या वास्तविक धार्मिकता पाखंड के मुखौटे में छुपी हो सकती है।
- किंग लुई XIV की भूमिका: नाटक के अंतिम संस्करण में, राजा लुई XIV हस्तक्षेप करते हैं और टार्टफ के धोखे का पर्दाफाश करते हैं। यह राजा को एक बुद्धिमान और न्यायपूर्ण शासक के रूप में दर्शाता है जो पाखंड को बर्दाश्त नहीं करता। यह तत्व मोलियर के लिए एक राजनीतिक आवश्यकता भी थी ताकि वे नाटक को सेंसरशिप से बचा सकें और यह दिखा सकें कि उनका नाटक राजा के मूल्यों के अनुरूप था।
मोलियर के “टार्टफ” नाटक में कई यादगार चरित्र हैं, जो नाटक की विषय-वस्तु – पाखंड और ढोंग – को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आइए मुख्य चार पात्रों का परिचय देखें:
नाटक के मुख्य चरित्र
1. टार्टफ (Tartuffe)
नाटक का शीर्षक पात्र और मुख्य खलनायक, टार्टफ पाखंड और धार्मिक ढोंग का प्रतीक है।
- दिखावा: वह स्वयं को एक अत्यंत पवित्र, तपस्वी और ईश्वरभक्त व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करता है। वह सादे वस्त्र पहनता है, लंबी प्रार्थनाएँ करता है, और अपनी इंद्रियों को वश में रखने का दावा करता है।
- वास्तविकता: इस धार्मिक मुखौटे के पीछे, वह एक धूर्त, चालाक, लालची और वासनापूर्ण व्यक्ति है। उसका एकमात्र उद्देश्य दूसरों को धोखा देकर व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करना है – ऑर्गन की संपत्ति पर कब्जा करना और उसकी पत्नी एल्मायर को फुसलाना।
- प्रभाव: वह ऑर्गन और उसकी माँ, मैडम परनेल, को पूरी तरह से अपने वश में कर लेता है, जिससे परिवार के अन्य सदस्य (जो उसकी असलियत जानते हैं) निराश हो जाते हैं। टार्टफ अपने “पवित्रता” का उपयोग अपनी आलोचना करने वालों को चुप कराने के लिए एक हथियार के रूप में करता है।
2. ऑर्गन (Orgon)
वह घर का मुखिया और टार्टफ का भ्रमित शिकार है।
- अंधभक्ति: ऑर्गन टार्टफ की धार्मिकता से पूरी तरह मोहित है। वह उसकी हर बात पर अंधा विश्वास करता है, उसे अपने परिवार से भी अधिक महत्व देता है, और उसके मार्गदर्शन को अपनी आत्मा के उद्धार के लिए आवश्यक मानता है।
- मूर्खतापूर्ण निर्णय: टार्टफ के प्रति उसकी अंधभक्ति उसे कई मूर्खतापूर्ण और हानिकारक निर्णय लेने पर मजबूर करती है, जैसे कि अपनी बेटी मैरियाने की शादी टार्टफ से करवाना और अपनी सारी संपत्ति टार्टफ के नाम कर देना।
- वास्तविकता से दूर: वह अपने परिवार के सदस्यों (जैसे डोरिन, क्लेन्ते, एल्मायर) की चेतावनियों को अनसुना कर देता है, जो टार्टफ की असली प्रकृति को देख सकते हैं। उसकी अक्षमता या अनिच्छा वास्तविकता का सामना करने की मोलियर के हास्य का एक प्रमुख स्रोत है।
3. एल्मायर (Elmire)
ऑर्गन की पत्नी और घर की समझदार व प्रतिष्ठित महिला।
- शांत और विवेकपूर्ण: एल्मायर नाटक में तर्क और समझदारी का प्रतिनिधित्व करती है। वह शांत स्वभाव की है और सीधे टकराव से बचती है, लेकिन जब आवश्यकता होती है तो वह दृढ़ता से कार्य करती है।
- टार्टफ की सच्चाई जानना: वह टार्टफ की पाखंडी प्रकृति को तुरंत पहचान लेती है, खासकर जब टार्टफ उसे फुसलाने की कोशिश करता है।
- सत्य का प्रदर्शन: वह ही वह व्यक्ति है जो ऑर्गन को टार्टफ की वास्तविक प्रकृति दिखाने के लिए एक योजना बनाती है (जिसमें ऑर्गन को मेज के नीचे छिपकर टार्टफ के बयानों को सुनना होता है)। उसका व्यवहार वास्तविक नैतिकता और धैर्य को दर्शाता है।
4. डोरिन (Dorine)
ऑर्गन की बेटी मैरियाने की तीव्र-बुद्धि, मुखर नौकरानी।
- हास्य और सच्चाई: डोरिन नाटक में हास्य और व्यंग्य का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। वह स्पष्टवादी, बुद्धिमान और निडर है, जो बिना किसी झिझक के टार्टफ और ऑर्गन दोनों की मूर्खता पर टिप्पणी करती है।
- लोगों की समझ: वह टार्टफ की पाखंडी प्रकृति को शुरुआत से ही पहचान लेती है और उसे उजागर करने के लिए लगातार प्रयास करती है। वह अपने मालिक ऑर्गन की अंधभक्ति से परेशान है और उसे सही रास्ते पर लाने की कोशिश करती है।
- कथानक में भूमिका: वह अक्सर अपने तीखे संवादों और चुटकुलों से दृश्य को जीवंत करती है, और वह ऑर्गन के परिवार के सदस्यों के बीच एक पुल का काम करती है जो टार्टफ के खिलाफ हैं। वह कई योजनाएँ बनाने में मदद करती है ताकि टार्टफ का पर्दाफाश हो सके।
ये चार पात्र मिलकर “टार्टफ” को न केवल एक हास्यपूर्ण बल्कि एक गहन सामाजिक टिप्पणी वाला नाटक बनाते हैं, जहाँ मोलियर मानवीय स्वभाव की जटिलताओं और समाज में पाखंड के खतरों को कुशलता से उजागर करते हैं।
मोलियर के नाटक “टार्टफ” (Tartuffe) का पहला प्रदर्शन और उसके बाद चर्च तथा रूढ़िवादी वर्गों की प्रतिक्रिया फ्रांसीसी रंगमंच के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद अध्याय है।
नाटक का पहला प्रदर्शन (पहला संस्करण)
- तिथि और स्थान: “टार्टफ” का पहला संस्करण, जिसे “टार्टफ, या द हाइपोक्राइट” (Tartuffe, ou L’Imposteur) के नाम से जाना जाता था, का प्रदर्शन 12 मई, 1664 को वर्साय में राजा लुई XIV के लिए आयोजित एक भव्य शाही उत्सव “लेस प्लेजर्स डे ल’इल एंचांटी” (Les Plaisirs de l’Île enchantée – द प्लेज़र्स ऑफ द एनचांटेड आइलैंड) के हिस्से के रूप में किया गया था।
- प्रारंभिक रूप: यह नाटक उस समय तीन-एक्ट का था और इसमें कुछ ऐसे दृश्य थे जो बाद के संस्करणों से भिन्न थे।
- राजा की प्रतिक्रिया: राजा लुई XIV को यह नाटक पसंद आया और उन्होंने इसे “बेहद मनोरंजक” पाया। हालाँकि, उन्होंने इसकी सार्वजनिक प्रस्तुति की अनुमति नहीं दी।
चर्च और रूढ़िवादी वर्गों की प्रतिक्रिया
राजा के निजी मनोरंजन के लिए प्रदर्शन के बावजूद, नाटक की खबर और उसकी विषय-वस्तु (धार्मिक पाखंड पर प्रहार) तेजी से फैल गई। इसने तुरंत शक्तिशाली चर्च (कैथोलिक चर्च) और रूढ़िवादी धार्मिक वर्गों (जिन्हें “कैबल डेस डेवोट्स” – Cabale des Dévoûts के नाम से जाना जाता था) के बीच तीव्र प्रतिक्रिया और आक्रोश पैदा किया।
- आक्रोश का कारण:
- धर्म पर हमला होने का आरोप: रूढ़िवादी वर्गों ने तर्क दिया कि नाटक धर्म पर ही हमला था, न कि केवल पाखंड पर। उन्होंने दावा किया कि टार्टफ का चरित्र इतना यथार्थवादी था कि यह सच्चे धर्मनिष्ठ लोगों को भी बदनाम करता था।
- पवित्रता का उपहास: उन्होंने मोलियर पर पवित्रता और भक्ति का उपहास करने का आरोप लगाया, जिससे समाज में अनैतिकता और नास्तिकता को बढ़ावा मिलेगा।
- व्यक्तिगत हमले: “कैबल डेस डेवोट्स” के कई सदस्य स्वयं ऐसे पाखंडी व्यवहार में लिप्त थे, और उन्हें लगा कि मोलियर सीधे उन पर हमला कर रहे हैं।
- सेंसरशिप की मांग: उन्होंने नाटक पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने और मोलियर को दंडित करने की मांग की। पेरिस के आर्कबिशप, मॉन्सिन्योर हार्डौइन डी पेरेफिक्स (Mgr. Hardouin de Péréfixe), ने नाटक की निंदा की और इसे “धर्म के लिए पूरी तरह से हानिकारक” बताया।
- प्रतिबंध और संघर्ष:
- पहला प्रतिबंध (1664): चर्च और रूढ़िवादी वर्गों के भारी दबाव के कारण, लुई XIV को नाटक पर सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन करने से प्रतिबंध लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा। राजा स्वयं मोलियर के समर्थक थे, लेकिन उन्हें दरबार में इन शक्तिशाली गुटों के प्रभाव को नजरअंदाज करना मुश्किल लगा।
- मोलियर के प्रयास: मोलियर ने इस प्रतिबंध के खिलाफ लगातार संघर्ष किया। उन्होंने राजा को कई याचिकाएँ लिखीं, यह समझाते हुए कि उनका नाटक धर्म का नहीं, बल्कि पाखंड का उपहास करता है। उन्होंने तर्क दिया कि एक पाखंडी को उजागर करना वास्तव में धर्म की रक्षा करना है।
- संशोधित संस्करण: मोलियर ने नाटक के दो और संस्करण बनाए।
- दूसरा संस्करण (1667): इसे “पैनुल्फ” (Panulphe) नाम दिया गया और इसमें टार्टफ के चरित्र को थोड़ा नरम किया गया और कुछ विवादित दृश्यों को बदल दिया गया। इसका प्रदर्शन केवल एक बार हुआ और इसे भी तुरंत प्रतिबंधित कर दिया गया। इस बार प्रतिबंध और भी सख्त था, जिसमें नाटक को पढ़ने या निजी तौर पर प्रदर्शन करने पर भी रोक लगा दी गई थी।
- तीसरा और अंतिम संस्करण (1669): कई वर्षों के संघर्ष और राजा के समर्थन के बाद, मोलियर अंततः नाटक के अंतिम संस्करण को मंचित करने में सफल रहे। इस संस्करण को आज हम “टार्टफ” के नाम से जानते हैं। इसमें कुछ बदलाव किए गए थे, जैसे कि टार्टफ को अंत में गिरफ्तार किया जाना और राजा द्वारा न्याय बहाल करना, जो राजा की शक्ति और बुद्धिमत्ता पर जोर देता था।
- दीर्घकालिक प्रभाव: “टार्टफ” के इर्द-गिर्द का यह विवाद कई वर्षों तक चला और इसने मोलियर के करियर को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया। इसने उन्हें एक साहसी नाटककार के रूप में स्थापित किया जो सामाजिक बुराइयों को उजागर करने से डरते नहीं थे, भले ही इसके लिए उन्हें शक्तिशाली विरोधियों का सामना करना पड़े। यह नाटक आज भी कलात्मक स्वतंत्रता और सेंसरशिप के बीच के संघर्ष का एक प्रतीक बना हुआ है।
“टार्टफ” नाटक के पहले प्रदर्शन के बाद, उस पर लगे प्रतिबंध ने मोलियर के लिए एक लंबा और कठिन संघर्ष पैदा कर दिया। यह केवल एक कलात्मक विवाद नहीं था, बल्कि धार्मिक और राजनीतिक शक्तियों के साथ एक सीधा टकराव था।
प्रतिबंध का तात्कालिक प्रभाव
- शाही आदेश द्वारा सार्वजनिक प्रतिबंध (1664): वर्साय में निजी प्रदर्शन के तुरंत बाद, चर्च के अधिकारियों और “कैबल डेस डेवोट्स” (Cabale des Dévoûts) नामक धार्मिक कट्टरपंथियों के शक्तिशाली गुट ने राजा लुई XIV पर भारी दबाव डाला। इन समूहों ने दावा किया कि नाटक धर्म पर हमला करता है और पाखंड को बढ़ावा देने के बजाय, सच्ची भक्ति का अपमान करता है। इस दबाव के चलते, राजा ने “टार्टफ” के किसी भी सार्वजनिक प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया। यह मोलियर के लिए एक बड़ा झटका था, क्योंकि उनके लिए नाटक का प्रदर्शन ही उनकी आय का मुख्य स्रोत था।
मोलियर का संघर्ष और प्रतिक्रियाएँ
मोलियर ने इस प्रतिबंध को चुपचाप स्वीकार नहीं किया। उन्होंने अपनी कलात्मक स्वतंत्रता और अपने काम की अखंडता के लिए दृढ़ता से लड़ाई लड़ी:
- याचिकाएँ और तर्क: मोलियर ने राजा लुई XIV को कई सशक्त याचिकाएँ (placets) लिखीं। इन याचिकाओं में उन्होंने तर्क दिया कि उनका नाटक धर्म का नहीं, बल्कि पाखंड का मज़ाक उड़ाता है। उन्होंने समझाया कि एक पाखंडी को उजागर करना वास्तव में धर्म की सेवा करना है, क्योंकि यह सच्ची नैतिकता और भक्ति को ऐसे धोखेबाजों से बचाता है। उन्होंने राजा से अनुरोध किया कि वह उन्हें अपने नाटक के “नेक इरादे” को साबित करने का अवसर दें।
- संशोधित संस्करणों का प्रयास:
- “पैनुल्फ” (Panulphe – 1667): प्रतिबंध को तोड़ने के लिए, मोलियर ने 1667 में नाटक का एक संशोधित संस्करण प्रस्तुत किया, जिसका नाम उन्होंने “पैनुल्फ” रखा। इसमें टार्टफ के चरित्र को थोड़ा नरम किया गया था, उसे अधिक सेक्युलर पोशाक दी गई थी, और कुछ सबसे विवादास्पद पंक्तियों को हटा दिया गया था। हालाँकि, यह प्रयास भी विफल रहा। इसका केवल एक ही प्रदर्शन हुआ और पेरिस के आर्कबिशप ने तुरंत इसे पुनः प्रतिबंधित कर दिया, इस बार और भी कठोर शब्दों में, इसे पढ़ने या निजी तौर पर भी प्रदर्शित करने पर रोक लगा दी गई। मोलियर को धमकी दी गई कि अगर उन्होंने प्रतिबंध का उल्लंघन किया तो उन्हें बहिष्कृत कर दिया जाएगा।
- सार्वजनिक बचाव: मोलियर ने अपने आलोचकों का सामना करने के लिए अन्य नाटकों का भी उपयोग किया। उदाहरण के लिए, उन्होंने “ल’एम्प्रोम्टू डे वर्साय” (L’Impromptu de Versailles – 1663) लिखा, जिसमें उन्होंने अपनी अभिनय शैली और अपने नाटकों के नैतिक उद्देश्य का बचाव किया। हालाँकि, “टार्टफ” के लिए उनका संघर्ष अधिक प्रत्यक्ष था।
- लगातार अपीलें: लगभग पाँच वर्षों तक, मोलियर ने अपनी कला के लिए लड़ना जारी रखा। उन्हें पता था कि “टार्टफ” उनकी सबसे शक्तिशाली रचनाओं में से एक है और वह इसे त्यागने को तैयार नहीं थे। उन्होंने राजा के दरबार में अपने प्रभावशाली दोस्तों और संरक्षकों की मदद भी मांगी।
संघर्ष का महत्व
मोलियर का यह संघर्ष केवल एक नाटक के मंचन तक सीमित नहीं था। यह कलात्मक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सेंसरशिप के बीच के बड़े टकराव का प्रतीक था। मोलियर ने यह दिखाया कि कलाकार को समाज की कमियों को उजागर करने का अधिकार है, भले ही इसके लिए शक्तिशाली वर्गों की नाराजगी झेलनी पड़े।
अंततः, मोलियर के अथक प्रयासों, राजा के प्रति उनकी निष्ठा और उनके काम की निर्विवाद कलात्मक योग्यता के कारण, 1669 में लुई XIV ने “टार्टफ” पर से प्रतिबंध हटा लिया। मोलियर ने नाटक का तीसरा और अंतिम संस्करण प्रस्तुत किया, जिसमें कुछ मामूली बदलाव किए गए थे (जैसे अंत में राजा द्वारा न्याय की बहाली), लेकिन उसका मूल संदेश और प्रभाव बरकरार था। यह मोलियर के लिए एक बड़ी जीत थी और फ्रांसीसी रंगमंच के इतिहास में एक मील का पत्थर।
लुई XIV की मोलियर के नाटक “टार्टफ” के प्रति भूमिका और उनका रुख बेहद जटिल और महत्वपूर्ण था। एक ओर, वह मोलियर के संरक्षक थे और उनकी प्रतिभा की सराहना करते थे; दूसरी ओर, उन्हें अपने दरबार में शक्तिशाली धार्मिक और रूढ़िवादी गुटों के दबाव का भी सामना करना पड़ा।
लुई XIV की भूमिका
- मोलियर के संरक्षक: लुई XIV मोलियर और उनकी मंडली के प्रबल संरक्षक थे। उन्होंने मोलियर को पेरिस में स्थायी थिएटर (पैलेस-रॉयल) प्रदान किया और उनकी मंडली को “ट्रूप डू रोई” (राजा की मंडली) का दर्जा दिया। यह संरक्षण मोलियर के करियर के लिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि इसने उन्हें वित्तीय स्थिरता और प्रतिष्ठा प्रदान की। राजा मोलियर के नाटकों का आनंद लेते थे और अक्सर उन्हें अपने निजी मनोरंजन और शाही आयोजनों के लिए प्रदर्शन करने के लिए बुलाते थे।
- कला और संस्कृति के समर्थक: लुई XIV स्वयं कला और संस्कृति के महान संरक्षक थे। उन्होंने फ्रांसीसी क्लासिकिज़्म को बढ़ावा दिया और कलाओं को शाही महिमा और शक्ति के प्रतीक के रूप में देखा। मोलियर जैसे प्रतिभाशाली कलाकारों का समर्थन करना उनकी इस नीति का हिस्सा था।
- निरंकुश शासक: लुई XIV एक निरंकुश शासक थे, जो अपनी शक्ति और अधिकार को सर्वोच्च मानते थे। हालाँकि, उन्हें अपने दरबार में विभिन्न गुटों, विशेष रूप से शक्तिशाली धार्मिक गुटों (जैसे “कैबल डेस डेवोट्स”) के प्रभाव का भी ध्यान रखना पड़ता था।
नाटक के समर्थन में उनका रुख (और इसकी जटिलताएँ)
लुई XIV का “टार्टफ” के प्रति रुख सीधा नहीं था। यह उनके व्यक्तिगत पसंद और राजनीतिक आवश्यकताओं के बीच एक संतुलन का परिणाम था:
- प्रारंभिक अनुमोदन और निजी आनंद (1664): जब “टार्टफ” का पहला संस्करण 1664 में वर्साय में राजा के लिए निजी तौर पर प्रदर्शित किया गया, तो लुई XIV को यह बहुत पसंद आया। उन्होंने इसे “बेहद मनोरंजक” पाया। इससे पता चलता है कि व्यक्तिगत रूप से, राजा को मोलियर का हास्य और धार्मिक पाखंड पर उनका व्यंग्य पसंद आया। शायद राजा स्वयं भी दरबार में ऐसे पाखंडी व्यक्तियों से अवगत थे।
- सार्वजनिक प्रतिबंध का आदेश (1664): हालांकि, राजा के निजी अनुमोदन के बावजूद, उन्होंने नाटक के सार्वजनिक प्रदर्शन पर तुरंत प्रतिबंध लगा दिया। यह निर्णय दरबार में चर्च और रूढ़िवादी गुटों के भारी दबाव के कारण लिया गया था। इन समूहों ने नाटक को धर्म पर हमला बताया और दावा किया कि यह समाज में अनैतिकता को बढ़ावा देगा। लुई XIV, अपनी निरंकुशता के बावजूद, इन शक्तिशाली गुटों की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते थे, खासकर जब कैथोलिक चर्च की शक्ति बहुत अधिक थी। राजा को अपनी छवि और राज्य की स्थिरता के लिए धार्मिक समर्थन की आवश्यकता थी।
- मोलियर के प्रति निरंतर समर्थन (परदे के पीछे): प्रतिबंध के बावजूद, लुई XIV ने मोलियर के प्रति अपना व्यक्तिगत समर्थन कभी नहीं छोड़ा। उन्होंने मोलियर की याचिकाओं को सुना और उन्हें अपने काम को संशोधित करने और अंततः इसे फिर से प्रस्तुत करने का अवसर दिया। राजा ने मोलियर की मंडली को वित्तीय सहायता देना जारी रखा, जिससे वे प्रतिबंध के बावजूद जीवित रह सके। यह दर्शाता है कि राजा को मोलियर की प्रतिभा पर विश्वास था और वे उन्हें पूरी तरह से छोड़ना नहीं चाहते थे।
- न्याय और व्यवस्था की बहाली (अंतिम संस्करण – 1669): जब मोलियर ने नाटक का तीसरा और अंतिम संस्करण प्रस्तुत किया, तो इसमें एक महत्वपूर्ण बदलाव किया गया था: नाटक के अंत में, टार्टफ को शाही अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता है और राजा द्वारा न्याय बहाल किया जाता है। यह बदलाव राजा की शक्ति, बुद्धिमत्ता और न्यायप्रियता पर जोर देता है। यह लुई XIV के लिए एक राजनीतिक रूप से स्वीकार्य समाधान था, क्योंकि यह दर्शाता था कि राजा स्वयं पाखंड के खिलाफ थे और राज्य में व्यवस्था बनाए रखने में सक्षम थे। इस संस्करण को राजा ने अंततः सार्वजनिक प्रदर्शन की अनुमति दी।
मोलियर के नाटक “टार्टफ” (Tartuffe) की सफलता और कालातीत प्रासंगिकता उसकी सशक्त संरचना और उत्कृष्ट संवाद-लेखन की विशेषताओं में निहित है। उन्होंने इन दोनों तत्वों का कुशलता से उपयोग करके हास्य, व्यंग्य और नैतिक संदेश को एक साथ गूंथा है।
नाटक की संरचना (Structure of the Play)
“टार्टफ” एक पांच-एक्ट की कॉमेडी है, जो फ्रांसीसी नवशास्त्रीय नाटकों के मानदंडों का पालन करती है। इसकी संरचना इसे एक मजबूत और प्रभावी नाटक बनाती है:
- एक्सपोज़िशन (Exposition) – पहला एक्ट: नाटक की शुरुआत ऑर्गन की माँ, मैडम परनेल, के घर छोड़ने के साथ होती है, जो टार्टफ की प्रशंसा करती हैं और परिवार के अन्य सदस्यों की आलोचना करती हैं। यह तुरंत ऑर्गन के परिवार के भीतर के तनाव और टार्टफ के प्रति उनके अलग-अलग विचारों को स्थापित करता है। हमें पता चलता है कि ऑर्गन और उसकी माँ टार्टफ के प्रति अंधभक्ति रखते हैं, जबकि बाकी परिवार उसकी असलियत जानता है। यह दर्शकों को नाटक के मुख्य संघर्ष से परिचित कराता है।
- उभरता संघर्ष (Rising Action) – दूसरा और तीसरा एक्ट:
- टार्टफ का प्रभाव: इन एक्ट्स में टार्टफ का ऑर्गन पर बढ़ता प्रभाव और ऑर्गन के मूर्खतापूर्ण निर्णय सामने आते हैं, जैसे अपनी बेटी मैरियाने की शादी टार्टफ से करवाना।
- टार्टफ का वास्तविक चेहरा: डोरिन और क्लेन्ते जैसे पात्र टार्टफ की पोल खोलने की कोशिश करते हैं, लेकिन ऑर्गन मानने को तैयार नहीं होता। तीसरे एक्ट में टार्टफ अपनी असली वासना भरी प्रकृति को एल्मायर के सामने उजागर करता है, जब वह उसे फुसलाने की कोशिश करता है।
- चरमोत्कर्ष की ओर: एल्मायर की बुद्धिमत्ता और विवेक का उपयोग किया जाता है ताकि ऑर्गन को टार्टफ की सच्चाई दिखाई जा सके।
- चरमोत्कर्ष (Climax) – चौथा एक्ट: यह नाटक का सबसे तनावपूर्ण और निर्णायक मोड़ है।
- मेज़ के नीचे का दृश्य: एल्मायर ऑर्गन को एक मेज के नीचे छिपाकर टार्टफ को अपने पास बुलाती है। टार्टफ खुले तौर पर एल्मायर को बहकाने की कोशिश करता है, यह मानते हुए कि कोई उसे सुन नहीं रहा है।
- सत्य का पर्दाफाश: ऑर्गन इस दृश्य का गवाह बनता है और अंततः टार्टफ के पाखंड को पहचानता है। यह दृश्य नाटक का भावनात्मक और नाटकीय चरमोत्कर्ष है, जहाँ ऑर्गन का भ्रम टूटता है।
- गिरता हुआ कार्य (Falling Action) – पांचवां एक्ट का अधिकांश भाग:
- टार्टफ का प्रतिशोध: अपनी सच्चाई उजागर होने के बाद, टार्टफ अपनी स्थिति का फायदा उठाता है। चूंकि ऑर्गन ने अपनी सारी संपत्ति टार्टफ के नाम कर दी थी और उसे कुछ गुप्त दस्तावेज सौंपे थे, टार्टफ कानूनी रूप से घर और संपत्ति पर कब्जा करने की कोशिश करता है और ऑर्गन पर देशद्रोह का आरोप लगाता है।
- परिवार की निराशा: परिवार अब पूरी तरह से बेघर और कानूनी परेशानी में फंसा हुआ महसूस करता है।
- समाधान (Resolution) – पांचवां एक्ट का अंत:
- देउस एक्स माकिना (Deus ex machina): नाटक का समाधान थोड़ा अप्रत्याशित है और इसे अक्सर “देउस एक्स माकिना” (यानी, एक अप्रत्याशित और चमत्कारी हस्तक्षेप) के रूप में देखा जाता है। शाही अधिकारी टार्टफ को गिरफ्तार करने आते हैं, लेकिन वे यह घोषणा करते हैं कि राजा लुई XIV ने टार्टफ के धोखे को पहचान लिया है।
- राजा का न्याय: राजा, अपनी दिव्य अंतर्दृष्टि और न्याय के माध्यम से, टार्टफ के धोखे को भांप लेते हैं, उसे गिरफ्तार करने का आदेश देते हैं, और ऑर्गन की संपत्ति बहाल करते हैं। यह राजा की बुद्धि और न्यायप्रियता को दर्शाता है, जो मोलियर को सेंसरशिप से बचने में भी मदद करता है।
- खुशहाल अंत: नाटक का अंत खुशहाल होता है, जिसमें नैतिकता बहाल होती है और परिवार का भविष्य सुरक्षित होता है।
संवाद-लेखन की विशेषताएँ (Characteristics of Dialogue)
मोलियर के संवाद-लेखन की अपनी अलग पहचान है, जो “टार्टफ” में पूरी तरह से स्पष्ट है:
- तीक्ष्ण बुद्धि और व्यंग्य (Wit and Satire): संवाद हास्य से भरपूर हैं और मानवीय मूर्खता, पाखंड और सामाजिक ढोंग पर तीखा व्यंग्य करते हैं। मोलियर शब्दों के खेल, विडंबना (irony) और विरोधाभास का उपयोग करके हास्य उत्पन्न करते हैं।
- चरित्र-विशिष्ट भाषा: प्रत्येक पात्र की अपनी एक विशिष्ट बोलने की शैली है जो उसके व्यक्तित्व को दर्शाती है।
- टार्टफ: उसकी भाषा दिखावटी रूप से धार्मिक और उपदेशात्मक है, लेकिन उसमें एक छिपी हुई चालाकी और हेरफेर होती है।
- ऑर्गन: उसकी भाषा भोली और मूर्खतापूर्ण होती है, जो टार्टफ के प्रति उसकी अंधभक्ति को दर्शाती है।
- डोरिन: उसकी भाषा सीधी, व्यंग्यात्मक और आम बोलचाल की होती है। वह अपने मालिकों के सामने भी बिना झिझक सच बोलती है।
- क्लेन्ते: उसकी भाषा तर्कसंगत और नैतिक होती है, जो ज्ञान और विवेक को दर्शाती है।
- गतिशील और यथार्थवादी: मोलियर के संवाद तेज़ गति वाले होते हैं, जो नाटकों को जीवंत बनाते हैं। वे अक्सर ऐसे लगते हैं जैसे वास्तविक लोग बोल रहे हों, भले ही वे पद्य (verse) में लिखे गए हों।
- डिडैक्टिक और नैतिक संदेश (Didactic and Moral Message): संवाद केवल हास्य के लिए नहीं हैं, बल्कि वे अक्सर नैतिक पाठ और सामाजिक टिप्पणी भी प्रदान करते हैं। क्लेन्ते और डोरिन के संवाद विशेष रूप से मोलियर के अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
- पद्य का कुशल उपयोग: “टार्टफ” अलेक्ज़ेंड्रिन (Alexandrine) छंदों में लिखा गया है, जो फ्रांसीसी शास्त्रीय नाटक की विशेषता है। मोलियर इस कठोर रूप का उपयोग करके भी संवादों को स्वाभाविक और प्रभावशाली बनाने में सफल रहे। उन्होंने कविता के भीतर ही चुटकुले, बहस और भावनात्मक अभिव्यक्तियों को कुशलता से बुना।
“टार्टफ” की संरचना और संवाद-लेखन मोलियर की नाट्य कला की सर्वोच्च उपलब्धि को दर्शाते हैं। उन्होंने एक ऐसी कॉमेडी बनाई जो न केवल दर्शकों को हंसाती है, बल्कि उन्हें अपने समाज और मानवीय स्वभाव की गहराइयों पर विचार करने के लिए भी प्रेरित करती है।
मोलियर का नाटक “टार्टफ” (Tartuffe) केवल एक हास्यपूर्ण कृति नहीं है, बल्कि यह अपने समय के समाज के लिए और व्यापक रूप से मानव स्वभाव के लिए एक गहरा सामाजिक और नैतिक संदेश भी देता है। मोलियर ने हास्य का उपयोग एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में किया ताकि वे उन बुराइयों को उजागर कर सकें जो उन्हें समाज के लिए हानिकारक लगती थीं।
सामाजिक संदेश
- पाखंड की निंदा (Condemnation of Hypocrisy): “टार्टफ” का सबसे प्रत्यक्ष सामाजिक संदेश पाखंड की तीखी निंदा है। मोलियर ऐसे व्यक्तियों को उजागर करना चाहते थे जो धर्म या नैतिक पवित्रता का दिखावा करते हैं, लेकिन जिनके आंतरिक इरादे स्वार्थ, लालच और वासना से भरे होते हैं। उन्होंने दिखाया कि ऐसे पाखंडी व्यक्ति न केवल दूसरों को धोखा देते हैं, बल्कि समाज में भ्रम और नैतिक क्षय भी पैदा करते हैं। नाटक ने उस समय के “कैबल डेस डेवोट्स” (Cabale des Dévoûts) जैसे धार्मिक कट्टरपंथियों पर सीधे हमला किया, जिन्होंने अपनी सत्ता और प्रभाव के लिए धर्म का दुरुपयोग किया।
- अंधभक्ति के विरुद्ध तर्क (Critique of Blind Devotion): मोलियर ने ऑर्गन के चरित्र के माध्यम से दिखाया कि कैसे किसी व्यक्ति पर अंधा विश्वास या अंधभक्ति हानिकारक हो सकती है। ऑर्गन, टार्टफ की “पवित्रता” से इतना मोहित है कि वह अपने परिवार के तर्क, सामान्य ज्ञान और प्रत्यक्ष प्रमाण को भी अनदेखा कर देता है। यह नाटक समाज को चेतावनी देता है कि वे बाहरी दिखावे या करिश्माई व्यक्तित्वों के प्रति आँखें मूंदकर भरोसा न करें, बल्कि अपनी विवेकबुद्धि का उपयोग करें।
- पारिवारिक मूल्यों का महत्व (Importance of Family Values): टार्टफ के कारण ऑर्गन का परिवार लगभग बिखर जाता है। नाटक दर्शाता है कि कैसे एक बाहरी व्यक्ति, अपने पाखंड के माध्यम से, पारिवारिक बंधनों को तोड़ सकता है, रिश्तों में अविश्वास पैदा कर सकता है और घर को नष्ट कर सकता है। नाटक का अंत परिवार के एकजुट होने और सच्चाई की जीत के साथ होता है, जो पारिवारिक सद्भाव और प्रेम के महत्व को रेखांकित करता है।
- राजशाही और न्याय का चित्रण (Portrayal of Monarchy and Justice): नाटक के अंतिम संस्करण में, राजा लुई XIV के माध्यम से न्याय की बहाली मोलियर का एक महत्वपूर्ण सामाजिक संदेश है। यह दर्शाता है कि एक प्रबुद्ध और न्यायपूर्ण शासक कैसे समाज को पाखंड और बुराई से बचा सकता है। यह राजा के अधिकार और उसकी क्षमता पर मोलियर का विश्वास भी दर्शाता है कि वह सही और गलत के बीच अंतर कर सकता है और न्याय स्थापित कर सकता है। यह शायद मोलियर द्वारा सेंसरशिप से बचने और राजा को प्रसन्न करने का एक तरीका भी था, लेकिन यह एक सामाजिक व्यवस्था का भी प्रतिनिधित्व करता है जहाँ अंतिम अधिकार और न्याय राजा के पास होता है।
नैतिक संदेश
- सतहीपन बनाम सच्ची नैतिकता (Superficiality vs. True Morality): मोलियर यह संदेश देते हैं कि सच्ची नैतिकता बाहरी प्रदर्शन या कठोर धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करने में नहीं है, बल्कि आंतरिक ईमानदारी, दयालुता और दूसरों के प्रति सम्मान में है। टार्टफ का धार्मिक दिखावा उसकी सच्ची नैतिक शून्यता को छिपाता है, जबकि एल्मायर और क्लेन्ते जैसे पात्रों का व्यवहार, जो धार्मिक रूप से कम दिखावटी हो सकते हैं, वास्तविक नैतिक मूल्यों को दर्शाता है।
- विवेक और तर्क का महत्व (Importance of Reason and Prudence): नाटक दर्शकों को अपने विवेक का उपयोग करने और तर्कसंगत रूप से सोचने के लिए प्रोत्साहित करता है। क्लेन्ते और डोरिन जैसे पात्र तर्क और यथार्थवाद का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो ऑर्गन की भावनात्मक और तर्कहीन अंधभक्ति के विपरीत हैं। मोलियर का संदेश है कि हमें अपने निर्णयों में भावना के बजाय तर्क को प्राथमिकता देनी चाहिए।
- आत्म-ज्ञान और आत्म-धोखे से बचना (Self-Knowledge and Avoiding Self-Deception): ऑर्गन का पतन उसके आत्म-धोखे और टार्टफ के बारे में अपनी गलत धारणाओं को छोड़ने की अनिच्छा के कारण होता है। नाटक हमें अपनी कमजोरियों और पूर्वाग्रहों के प्रति सचेत रहने की सीख देता है, ताकि हम बाहरी प्रभावों या अपने स्वयं के भ्रमों के शिकार न बनें।
- अच्छाई और बुराई का भेद (Distinguishing Good from Evil): मोलियर स्पष्ट रूप से अच्छे (ईमानदार परिवार के सदस्य) और बुरे (टार्टफ) के बीच भेद करते हैं। वे दर्शकों को यह समझने में मदद करते हैं कि वास्तविक धर्मनिष्ठा और वास्तविक दुष्टता के बीच का अंतर अक्सर दिखावे के पीछे छिपा हो सकता है।
मोलियर का नाटक “टार्टफ” केवल 17वीं सदी के फ्रांस के लिए ही नहीं, बल्कि आज भी अत्यधिक प्रासंगिक है और इसका स्थायी प्रभाव रहा है, जो इसे पश्चिमी साहित्य की महानतम कृतियों में से एक बनाता है।
नाटक की प्रासंगिकता (Relevance Today)
- पाखंड की शाश्वत प्रकृति: “टार्टफ” का सबसे महत्वपूर्ण पहलू पाखंड (hypocrisy) का चित्रण है, जो एक सार्वभौमिक मानवीय दुर्बलता है। चाहे वह धार्मिक पाखंड हो, राजनीतिक पाखंड हो, या सामाजिक दिखावा हो, हर युग और समाज में ऐसे लोग होते हैं जो दूसरों को धोखा देने या लाभ प्राप्त करने के लिए बाहरी रूप से पवित्र या ईमानदार होने का ढोंग करते हैं।
- वर्तमान उदाहरण: आज भी हम सार्वजनिक जीवन, राजनीति, धर्म और व्यावसायिक क्षेत्रों में ऐसे “टार्टफ” को देखते हैं जो अपनी असलियत को छिपाने के लिए एक मुखौटा पहनते हैं। यह नाटक दर्शकों को ऐसे लोगों को पहचानने और उनके प्रति संशयवादी रहने के लिए प्रोत्साहित करता है।
- अंधभक्ति और आलोचनात्मक सोच का अभाव: ऑर्गन का चरित्र अंधभक्ति और आलोचनात्मक सोच के अभाव का प्रतिनिधित्व करता है। आज के “फेक न्यूज” और गलत सूचना के युग में, जहां लोग आसानी से सोशल मीडिया या अन्य स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर विश्वास कर लेते हैं, ऑर्गन की स्थिति विशेष रूप से प्रासंगिक है।
- वर्तमान उदाहरण: नाटक हमें सिखाता है कि हमें अपनी विवेकबुद्धि का उपयोग करना चाहिए और किसी भी व्यक्ति या विचार पर आँख बंद करके विश्वास नहीं करना चाहिए, भले ही वह कितना भी आकर्षक या आधिकारिक क्यों न लगे।
- पारिवारिक गतिशीलता और बाहरी प्रभाव: नाटक में एक परिवार पर एक बाहरी व्यक्ति (टार्टफ) के विनाशकारी प्रभाव को दर्शाया गया है। यह आज भी प्रासंगिक है, जहाँ परिवार अक्सर बाहरी प्रभावों, cult-like आंकड़ों या यहां तक कि वित्तीय घोटालों के कारण टूट जाते हैं।
- वर्तमान उदाहरण: यह दिखाता है कि कैसे व्यक्तिगत मोह या धार्मिक कट्टरता पारिवारिक सामंजस्य को नष्ट कर सकती है।
- सत्ता का दुरुपयोग और न्याय की खोज: नाटक के अंत में शाही हस्तक्षेप के माध्यम से न्याय की बहाली होती है। यह भले ही “देउस एक्स माकिना” लगे, लेकिन यह एक स्थायी संदेश देता है कि अंततः न्याय की जीत होनी चाहिए और सत्ता का दुरुपयोग करने वालों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।
- वर्तमान उदाहरण: यह उन प्रणालियों और व्यक्तियों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है जो सच्चाई और न्याय के लिए खड़े हों।
- हास्य के माध्यम से गंभीर मुद्दे: मोलियर ने गंभीर सामाजिक और नैतिक मुद्दों को हास्य के माध्यम से प्रस्तुत करने में महारत हासिल की। यह दर्शकों को न केवल हंसाता है, बल्कि उन्हें आत्म-चिंतन और आत्म-निरीक्षण के लिए भी प्रेरित करता है। यह रणनीति आज भी प्रभावी है।
इसका स्थायी प्रभाव (Lasting Impact)
- “टार्टफ” शब्द का प्रचलन: नाटक इतना प्रभावशाली था कि “टार्टफ” शब्द स्वयं कई भाषाओं (फ्रेंच और अंग्रेजी सहित) में “पाखंडी” या “धार्मिक ढोंगी” का पर्याय बन गया है। यह किसी नाटक के एक चरित्र का भाषा में स्थायी रूप से प्रवेश करने का एक दुर्लभ उदाहरण है।
- हास्य नाटक का नया मानदंड: “टार्टफ” ने फ्रांसीसी कॉमेडी के लिए एक नया मानदंड स्थापित किया। मोलियर ने कॉमेडी को केवल हल्के-फुल्के मनोरंजन से ऊपर उठाकर उसे गंभीर सामाजिक टिप्पणी और नैतिक अन्वेषण का एक शक्तिशाली माध्यम बनाया। उन्होंने चरित्र-आधारित कॉमेडी को विकसित किया, जहाँ हास्य मानवीय दोषों और उनके परिणामों से उत्पन्न होता है।
- कलात्मक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का प्रतीक: नाटक पर लगे प्रतिबंध और मोलियर के संघर्ष ने कलात्मक स्वतंत्रता और सेंसरशिप के खिलाफ प्रतिरोध के एक महत्वपूर्ण उदाहरण के रूप में कार्य किया। इसने आने वाली पीढ़ियों के कलाकारों को समाज की आलोचना करने और सत्य बोलने के लिए प्रेरित किया, भले ही उन्हें बाधाओं का सामना करना पड़े।
- पुनरावर्ती मंचन और अनुकूलन: “टार्टफ” का दुनिया भर में लगातार मंचन किया जाता है। इसकी कालातीत विषय-वस्तु के कारण इसे अक्सर आधुनिक संदर्भों में अनुकूलित किया जाता है, जिसमें राजनीतिक या समकालीन सामाजिक मुद्दों को उजागर करने के लिए चरित्रों और सेटिंग्स को बदला जाता है। यह इसकी स्थायी अपील का प्रमाण है।
- पश्चिमी साहित्य पर प्रभाव: “टार्टफ” ने पश्चिमी साहित्य और नाट्यकला पर गहरा प्रभाव डाला है। मोलियर को शेक्सपियर के साथ पश्चिमी साहित्य के महानतम नाटककारों में से एक माना जाता है, और “टार्टफ” उनकी सबसे उत्कृष्ट कृतियों में से एक है जो मानवीय स्वभाव और सामाजिक जटिलताओं की गहरी समझ प्रदान करती है।
“टार्टफ” पर से प्रतिबंध हटने के बाद भी मोलियर ने अपने साहित्यिक जीवन में कई और उत्कृष्ट कृतियाँ दीं। इनमें से दो सबसे प्रमुख नाटक “द मिसेंथ्रोप” (The Misanthrope) और “द इमेजिनरी इनवैलिड” (The Imaginary Invalid) हैं, जो उनकी रचनात्मक परिपक्वता और विभिन्न प्रकार के हास्य को दर्शाते हैं।
1. “द मिसेंथ्रोप” (Le Misanthrope – 1666)
“द मिसेंथ्रोप” मोलियर की एक कॉमेडी ऑफ मैनर्स (Comedy of Manners) है और इसे अक्सर उनकी सबसे गंभीर और सूक्ष्म कॉमेडी में से एक माना जाता है। यह “टार्टफ” की तुलना में कम हास्यपूर्ण और अधिक मनोवैज्ञानिक है।
कथानक: नाटक अल्सेस्टे (Alceste) नामक एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमता है, जो समाज के पाखंड, चापलूसी और बनावटी शिष्टाचार से घृणा करता है। वह हमेशा सच्चा और ईमानदार रहना चाहता है, भले ही इसका मतलब दूसरों को ठेस पहुँचाना हो। वह समाज की झूठी विनम्रता और दोगलेपन से इतना निराश है कि वह सबसे कटु सत्य बोलने पर आमादा रहता है। विडंबना यह है कि वह सेलिमेने (Célimène) नामक एक युवा, आकर्षक और चुलबुली महिला से प्यार करता है, जो खुद सामाजिक गपशप और सतही बातचीत में आनंद लेती है, और वह सब कुछ है जो अल्सेस्टे नफरत करता है। नाटक अल्सेस्टे के ईमानदारी के प्रति जुनून और सामाजिक यथार्थ के बीच के टकराव को दर्शाता है।
विशेषताएँ:
- गहरा चरित्र-चित्रण: अल्सेस्टे का चरित्र मोलियर के सबसे जटिल और गहरे पात्रों में से एक है। वह केवल एक हास्यपूर्ण व्यक्ति नहीं है, बल्कि उसके आदर्शवाद और निराशा के बीच एक दुखद संघर्ष भी है।
- सामाजिक नैतिकता पर व्यंग्य: यह नाटक विशेष रूप से 17वीं सदी के पेरिस के उच्च समाज के कृत्रिम शिष्टाचार, चापलूसी, गपशप और पाखंडी दोस्ती पर व्यंग्य करता है। मोलियर दिखाते हैं कि कैसे लोग सामाजिक सीढ़ी पर चढ़ने के लिए अपनी ईमानदारी से समझौता करते हैं।
- कम हास्य, अधिक विडंबना: “टार्टफ” जैसी नाटकों की तुलना में इसमें ज़ोरदार हास्य और फ़ार्स के तत्व कम हैं। इसके बजाय, इसका हास्य स्थितिजन्य विडंबना (situational irony) और चरित्रों के बीच के विपरीत से उत्पन्न होता है।
- कोई आसान समाधान नहीं: नाटक का अंत पारंपरिक कॉमेडी की तरह पूर्ण “खुशहाल अंत” के साथ नहीं होता। अल्सेस्टे अंत में समाज से पूरी तरह अलग होकर जंगल में जाने का फैसला करता है, जो उसके आदर्शों और सामाजिक वास्तविकता के बीच एक सुलह की अनुपस्थिति को दर्शाता है।
2. “द इमेजिनरी इनवैलिड” (Le Malade imaginaire – 1673)
यह मोलियर का अंतिम नाटक था, जिसका प्रीमियर 10 फरवरी, 1673 को हुआ था। विडंबना यह है कि मोलियर ने स्वयं इसमें मुख्य भूमिका (आर्गान) निभाई थी और चौथे प्रदर्शन के दौरान मंच पर ही गिर पड़े थे, जिसके कुछ घंटों बाद उनका निधन हो गया।
कथानक: नाटक आर्गान (Argan) नामक एक अमीर, स्व-पीड़ित हाइपोकॉन्ड्रियाक (hypochondriac) के बारे में है, जिसे लगता है कि वह हर समय बीमार है। वह डॉक्टरों और उनके उपचारों के प्रति जुनूनी है, और अपने पूरे घर को दवा और बीमारियों के इर्द-गिर्द चलाता है। उसकी दूसरी पत्नी, बेलाइन (Béline), वास्तव में उसके पैसे के पीछे है और उसे यह विश्वास दिलाती है कि वह गंभीर रूप से बीमार है, जबकि उसकी वफादार नौकरानी, टॉनेट (Toinette), और उसका भाई, बेराल्डे (Béralde), उसकी मूर्खता को उजागर करने और उसे ठीक करने की कोशिश करते हैं। आर्गान अपनी बेटी एंजेलिक (Angélique) की शादी एक डॉक्टर के बेटे से करना चाहता है ताकि उसे मुफ्त चिकित्सा देखभाल मिल सके, जबकि एंजेलिक क्लेन्ते (Cléante) से प्यार करती है।
विशेषताएँ:
- चिकित्सा पेशे पर व्यंग्य: यह नाटक 17वीं सदी के चिकित्सा पेशे की मूर्खता, दिखावा और अज्ञानता पर मोलियर का सबसे तीखा व्यंग्य है। वह डॉक्टरों को अहंकारी, अज्ञानी और अपने रोगियों को अनावश्यक उपचारों से लूटने वाले के रूप में चित्रित करते हैं।
- चरित्र-आधारित फ़ार्स: आर्गान का चरित्र मोलियर के सबसे यादगार फ़ार्सिकल पात्रों में से एक है। उसका स्वास्थ्य के प्रति जुनून, उसकी आसानी से हेरफेर होने वाली प्रकृति, और उसकी लगातार बीमारी की शिकायतें हास्य का मुख्य स्रोत हैं।
- शारीरिक हास्य और तमाशा: इस नाटक में शारीरिक हास्य (slapstick) और तमाशे के तत्व भरपूर हैं, जो मोलियर की शुरुआती फ़ार्सिकल कॉमेडीज़ की याद दिलाते हैं। यह एक कॉमेडी-बैले (comédie-ballet) था, जिसमें संगीत और नृत्य भी शामिल थे।
- मानवीय कमजोरी का चित्रण: यह नाटक मानव की शारीरिक और मानसिक कमजोरियों, विशेष रूप से मृत्यु के डर और उस पर काबू पाने की इच्छा को दर्शाता है। यह दिखाता है कि कैसे लोग अपने डर के कारण आसानी से धोखेबाजों के शिकार बन जाते हैं।
- मोलियर का अंतिम संदेश: यह नाटक मोलियर का मंच से अंतिम संदेश था, जो एक तरह से उनके अपने संघर्षों और मृत्यु से लड़ने के मानवीय प्रयासों को दर्शाता है। यह एक मार्मिक विदाई थी, जिसमें हास्य और त्रासदी का मेल था।
“द मिसेंथ्रोप” और “द इमेजिनरी इनवैलिड” दोनों ही मोलियर की बहुमुखी प्रतिभा और सामाजिक टिप्पणी की गहराई को दर्शाते हैं। एक ओर, “मिसेंथ्रोप” ने अधिक सूक्ष्म, बौद्धिक हास्य प्रस्तुत किया, जबकि दूसरी ओर, “द इमेजिनरी इनवैलिड” ने अपने चिरपरिचित, व्यापक हास्य के साथ एक शक्तिशाली सामाजिक व्यंग्य को पुनर्जीवित किया। इन नाटकों ने मोलियर को पश्चिमी साहित्य के महानतम हास्यकारों में से एक के रूप में उनकी विरासत को और मजबूत किया।
मोलियर का व्यक्तिगत जीवन उनके शानदार पेशेवर करियर की तरह आसान नहीं था। उन्हें कई उतार-चढ़ाव और गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिन्होंने उनके व्यक्तित्व और शायद उनके नाटकों को भी आकार दिया।
व्यक्तिगत जीवन के उतार-चढ़ाव और चुनौतियाँ
- पारिवारिक अपेक्षाओं से अलगाव: मोलियर का असली नाम जीन-बैप्टिस्ट पोकेलिन था। उनका जन्म एक संपन्न परिवार में हुआ था जहाँ उनके पिता शाही असबाबपोश थे और चाहते थे कि मोलियर भी उनके नक्शेकदम पर चलें। मोलियर ने कानून का अध्ययन भी किया था। हालाँकि, उन्होंने अपने परिवार की अपेक्षाओं के विरुद्ध जाकर थिएटर में करियर बनाने का फैसला किया। यह निर्णय न केवल एक बड़ा जोखिम था, बल्कि शायद उनके परिवार के साथ कुछ तनाव का कारण भी बना होगा। एक “पोकेलिन” का “मोलियर” बनना उनके जीवन के इस मौलिक बदलाव का प्रतीक था।
- प्रारंभिक व्यावसायिक संघर्ष और जेल: पेरिस में उनकी पहली थिएटर कंपनी, “इल्लुस्ट्र थिएटर”, बुरी तरह विफल रही। कंपनी कर्ज में डूब गई और मोलियर को 1645 में देनदारों की जेल में भी कुछ समय बिताना पड़ा। यह एक युवा कलाकार के लिए एक अपमानजनक और कठिन अनुभव था, जिसने शायद उन्हें आर्थिक अस्थिरता के प्रति अधिक संवेदनशील बना दिया।
- लंबा प्रांतीय दौरा (1645-1658): पेरिस में असफलता के बाद, मोलियर और उनकी मंडली ने लगभग तेरह साल फ्रांस के प्रांतों में घूम-घूम कर बिताए। यह एक अनिश्चित और अक्सर कठिन जीवन था। उन्हें लगातार यात्रा करनी पड़ती थी, नए दर्शकों को आकर्षित करना पड़ता था, और वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता था। हालाँकि इस अवधि ने उन्हें अनुभव दिया, लेकिन यह शारीरिक और मानसिक रूप से थका देने वाला भी रहा होगा।
- विवादास्पद विवाह: 1662 में, 40 साल की उम्र में, मोलियर ने 20 साल की आर्मंडे बेजार्ट (Armande Béjart) से शादी की। आर्मंडे, मैडेलीन बेजार्ट (उनकी पुरानी अभिनेत्री सहकर्मी और शायद पूर्व प्रेमिका) की छोटी बहन या बेटी थी। इस विवाह को लेकर उस समय काफी गपशप और अफवाहें उड़ीं कि आर्मंडे वास्तव में मैडेलीन की बेटी थी, जिससे मोलियर की अपनी ही बेटी से शादी करने का आरोप लगा। हालाँकि ये आरोप शायद निराधार थे, लेकिन उन्होंने मोलियर के व्यक्तिगत जीवन पर काला साया डाल दिया और उनके विरोधियों द्वारा उन पर हमला करने के लिए इस्तेमाल किए गए।
- व्यक्तिगत दुःख और बच्चों की मृत्यु: मोलियर और आर्मंडे के कई बच्चे हुए, लेकिन दुखद रूप से, उनमें से अधिकांश बचपन में ही मर गए। उनके पहले बेटे, लुई (जो राजा लुई XIV के गॉडसन भी थे), की 1664 में मृत्यु हो गई। 1667 में उनकी एक बेटी और फिर 1672 में एक और बेटे की भी मृत्यु हो गई। अपने बच्चों को खोने का दर्द मोलियर के लिए बहुत गहरा रहा होगा।
- “टार्टफ” पर प्रतिबंध और लगातार लड़ाई: “टार्टफ” नाटक को लेकर धार्मिक और रूढ़िवादी वर्गों के साथ मोलियर का संघर्ष उनके जीवन की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक था। नाटक पर कई वर्षों तक प्रतिबंध लगा रहा, जिससे मोलियर को लगातार याचिकाएँ लिखनी पड़ीं और अपने काम का बचाव करना पड़ा। यह एक मानसिक रूप से थका देने वाला युद्ध था जिसने उनकी ऊर्जा और धैर्य की परीक्षा ली।
- स्वास्थ्य समस्याएँ: अपने जीवन के अंतिम वर्षों में, मोलियर का स्वास्थ्य बिगड़ गया। वे फेफड़ों की समस्या से पीड़ित थे, संभवतः तपेदिक (tuberculosis) से। उन्हें अक्सर खाँसी के दौरे पड़ते थे, खासकर मंच पर प्रदर्शन करते समय।
- पत्नी के साथ संबंध: मोलियर और आर्मंडे के रिश्ते में भी उतार-चढ़ाव आए। आर्मंडे एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री थी, लेकिन उनके बीच कभी-कभी तनावपूर्ण संबंध भी रहते थे, जिसके बारे में उस समय काफी चर्चा होती थी।
इन व्यक्तिगत उतार-चढ़ावों और चुनौतियों के बावजूद, मोलियर ने अपनी कला के प्रति अविश्वसनीय समर्पण दिखाया। उन्होंने इन्हीं अनुभवों को अपने नाटकों में हास्य और अंतर्दृष्टि के साथ पिरोया, जिससे उनकी कृतियों में एक गहरा मानवीय स्पर्श आ गया। उनका जीवन उनकी दृढ़ता, जुनून और विपरीत परिस्थितियों में भी रचनात्मक बने रहने की क्षमता का प्रमाण है।
मोलियर का जीवन, विशेष रूप से उनके अंतिम वर्ष, कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से घिरे रहे, जिनका उनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा।
स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ
मोलियर लंबे समय से फेफड़ों की बीमारी से पीड़ित थे, जिसे आमतौर पर तपेदिक (Tuberculosis – टीबी) माना जाता है। उस समय टीबी एक लाइलाज और व्यापक बीमारी थी। उनके लक्षणों में लगातार खांसी, खून की उल्टी और शारीरिक कमजोरी शामिल थी।
इन स्वास्थ्य समस्याओं का उन पर कई तरह से प्रभाव पड़ा:
- शारीरिक कष्ट और कमजोरी: टीबी एक दुर्बल करने वाली बीमारी है। मोलियर को लगातार शारीरिक कष्ट का सामना करना पड़ा होगा, जिससे उनकी ऊर्जा और सहनशक्ति प्रभावित हुई होगी। मंच पर प्रदर्शन करना, नाटक लिखना और मंडली का प्रबंधन करना – ये सभी कार्य उनके लिए शारीरिक रूप से बहुत मांग वाले रहे होंगे।
- प्रदर्शन पर प्रभाव: एक अभिनेता के रूप में, मोलियर को मंच पर शारीरिक रूप से सक्रिय रहना पड़ता था। उनकी खांसी के दौरे और कमजोरी ने उनके प्रदर्शन को बाधित किया होगा। दर्शकों ने भी उनके स्वास्थ्य में गिरावट को देखा होगा। यह उनके लिए विशेष रूप से कठिन रहा होगा क्योंकि वे अपने नाटकों में अक्सर मुख्य भूमिकाएँ निभाते थे।
- रचनात्मकता पर प्रभाव: गंभीर बीमारी के बावजूद, मोलियर ने लिखना और प्रदर्शन करना जारी रखा। वास्तव में, उनकी कुछ सबसे महत्वपूर्ण और मार्मिक रचनाएँ उनके जीवन के अंतिम वर्षों में आईं। यह उनकी अविश्वसनीय दृढ़ता और कला के प्रति समर्पण को दर्शाता है। हालाँकि, यह कल्पना करना मुश्किल नहीं है कि बीमारी ने उनकी रचनात्मक प्रक्रिया को कैसे प्रभावित किया होगा, शायद उन्हें मानव पीड़ा और मृत्यु के प्रति एक गहरी समझ दी होगी।
- निधन का कारण: उनकी स्वास्थ्य समस्याओं का चरमोत्कर्ष उनके अंतिम नाटक “द इमेजिनरी इनवैलिड” (Le Malade imaginaire) के चौथे प्रदर्शन के दौरान हुआ। यह नाटक व्यंग्यात्मक रूप से एक ऐसे व्यक्ति के बारे में है जो खुद को बीमार होने का भ्रम पाले रहता है (एक हाइपोकॉन्ड्रियाक)। विडंबना यह है कि मोलियर ने स्वयं इस नाटक में मुख्य भूमिका (आर्गान) निभाई थी। 17 फरवरी, 1673 को प्रदर्शन के दौरान, उन्हें मंच पर ही खांसी का गंभीर दौरा पड़ा और वे गिर पड़े। उन्होंने किसी तरह प्रदर्शन पूरा किया, लेकिन कुछ ही घंटों बाद उनकी मृत्यु हो गई।
- अंतिम संस्कार को लेकर विवाद: मोलियर की मृत्यु के बाद भी उनकी चुनौतियों का अंत नहीं हुआ। चूंकि वे एक अभिनेता थे (जिस पेशे को उस समय चर्च द्वारा पूरी तरह से सम्मानजनक नहीं माना जाता था) और उन्हें अंतिम संस्कार के संस्कार (last rites) प्राप्त नहीं हुए थे, चर्च ने उन्हें पवित्र भूमि में दफनाने से इनकार कर दिया। राजा लुई XIV के हस्तक्षेप के बाद ही उन्हें पेरिस में सेंट-यूस्टाचे चर्च के कब्रिस्तान के एक हिस्से में, गरीबों और आत्महत्या करने वालों के लिए आरक्षित जगह पर दफनाया जा सका, और वह भी रात में बिना किसी सार्वजनिक समारोह के। यह उनके जीवन भर के संघर्षों और समाज के कुछ वर्गों द्वारा उनके प्रति रखी गई शत्रुता का अंतिम प्रतीक था।
मोलियर की स्वास्थ्य समस्याएँ उनके जीवन की एक दुखद वास्तविकता थीं, लेकिन उन्होंने उन्हें अपनी कला को छोड़ने नहीं दिया। इसके बजाय, उन्होंने अपनी पीड़ा को अपनी रचनात्मकता में ढाल दिया, जिससे उनके अंतिम नाटक, विशेष रूप से “द इमेजिनरी इनवैलिड”, को एक विशेष मार्मिकता और गहराई मिली। यह नाटक न केवल चिकित्सा पेशे पर एक व्यंग्य है, बल्कि मानव की नश्वरता और बीमारी के प्रति उसकी भेद्यता पर भी एक टिप्पणी है।
मोलियर का निधन उनके जीवन की सबसे मार्मिक और नाटकीय घटनाओं में से एक है, जो उनके रंगमंच के प्रति अटूट समर्पण का प्रतीक है।
मंच पर निधन
- अंतिम प्रदर्शन: 17 फरवरी, 1673 को, मोलियर अपने अंतिम नाटक “द इमेजिनरी इनवैलिड” (Le Malade imaginaire) के चौथे प्रदर्शन में मुख्य भूमिका (आर्गान) निभा रहे थे। यह नाटक एक ऐसे व्यक्ति के बारे में है जो खुद को बीमार होने का भ्रम पाले रहता है, जबकि मोलियर स्वयं गंभीर फेफड़ों की बीमारी (संभवतः तपेदिक) से पीड़ित थे।
- मंच पर पतन: प्रदर्शन के दौरान, विशेष रूप से एक दृश्य में जहाँ आर्गान को “जुरंडा” शब्द कहना था (जो कि एक काल्पनिक चिकित्सा शब्द है), मोलियर को खांसी का एक गंभीर दौरा पड़ा। वे मंच पर ही गिर पड़े, लेकिन उन्होंने अपने किरदार में बने रहने की कोशिश की और किसी तरह प्रदर्शन पूरा किया। दर्शकों को लगा कि यह नाटक का हिस्सा है और वे हँसते रहे।
- अंतिम क्षण: प्रदर्शन समाप्त होने के बाद, मोलियर को उनके घर ले जाया गया। उनकी हालत तेजी से बिगड़ गई। कुछ ही घंटों बाद, उसी रात, उनकी मृत्यु हो गई। यह उनके जीवन की एक दुखद विडंबना थी कि उन्होंने अपनी अंतिम साँसें उस कला के लिए समर्पित कर दीं जिसका उन्होंने जीवन भर अभ्यास किया।
अंतिम संस्कार
मोलियर के निधन के बाद भी उनकी चुनौतियाँ समाप्त नहीं हुईं। उनके अंतिम संस्कार को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया:
- चर्च का विरोध: उस समय, अभिनेता के पेशे को चर्च द्वारा पूरी तरह से सम्मानजनक नहीं माना जाता था। अभिनेताओं को अक्सर समाज के हाशिये पर रखा जाता था और उन्हें पवित्र संस्कार प्राप्त करने में कठिनाई होती थी। मोलियर की मृत्यु बिना अंतिम संस्कार के संस्कार (last rites) प्राप्त किए हुए हुई थी, क्योंकि वे अपनी बीमारी के अंतिम क्षणों में एक पुजारी को बुलाने में असमर्थ थे या ऐसा करने का अवसर नहीं मिला।
- पेरिस के आर्कबिशप ने, उनके पेशे और अंतिम संस्कार के संस्कार न मिलने के कारण, मोलियर को पवित्र भूमि (consecrated ground) में दफनाने से इनकार कर दिया। यह उनके लिए और उनके परिवार के लिए एक गंभीर अपमान था।
- लुई XIV का हस्तक्षेप: मोलियर के संरक्षक, राजा लुई XIV, को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा। राजा ने मोलियर की प्रतिभा और उनके प्रति अपनी व्यक्तिगत पसंद के कारण, चर्च के अधिकारियों पर उन्हें दफनाने की अनुमति देने के लिए दबाव डाला।
- अंतिम संस्कार की शर्तें: राजा के हस्तक्षेप के बाद, आर्कबिशप ने कुछ शर्तों के साथ दफनाने की अनुमति दी:
- उन्हें कब्रिस्तान के एक ऐसे हिस्से में दफनाया जाएगा जो आत्महत्या करने वालों और बिना संस्कार के मरने वाले गरीबों के लिए आरक्षित था।
- उनका अंतिम संस्कार रात में, बिना किसी सार्वजनिक समारोह या चर्च की घंटियों के होगा।
- चर्च में उनके लिए कोई Requiem Mass (मृतकों के लिए प्रार्थना सभा) आयोजित नहीं की जाएगी।
- दफन स्थान: मोलियर को पेरिस में सेंट-यूस्टाचे चर्च (Saint-Eustache Church) के कब्रिस्तान में दफनाया गया था। बाद में, उनके अवशेषों को पेरिस के पेरे लाशेज़ कब्रिस्तान (Père Lachaise Cemetery) में स्थानांतरित कर दिया गया, जहाँ आज भी उनकी कब्र है।
मोलियर का मंच पर निधन और उनके अंतिम संस्कार को लेकर हुआ विवाद उनके जीवन भर के संघर्षों का एक दुखद अंत था, खासकर उन धार्मिक रूढ़िवादी वर्गों के साथ जिन्होंने उनके नाटकों का विरोध किया था। यह घटना उनके रंगमंच के प्रति अविश्वसनीय जुनून और उस समय के समाज में कलाकारों की स्थिति को रेखांकित करती है। यह इस बात का भी प्रमाण है कि कैसे उन्होंने अपनी कला के लिए अंतिम क्षण तक लड़ाई लड़ी।
मोलियर का फ्रांसीसी रंगमंच पर प्रभाव इतना गहरा और स्थायी है कि उन्हें अक्सर “फ्रांसीसी कॉमेडी का जनक” (Father of French Comedy) कहा जाता है। उन्होंने न केवल अपने समय के रंगमंच को बदल दिया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के नाटककारों, अभिनेताओं और निर्देशकों के लिए भी एक मानक स्थापित किया।
फ्रांसीसी रंगमंच पर उनका स्थायी प्रभाव
- सामाजिक कॉमेडी का उत्थान (Elevation of Social Comedy): मोलियर से पहले, फ्रेंच कॉमेडी अक्सर हल्की-फुल्की फ़ार्स या इटैलियन कॉमेडी डेल’आर्टे से प्रभावित थी। मोलियर ने कॉमेडी को एक गंभीर और बौद्धिक रूप दिया। उन्होंने इसका उपयोग समाज की बुराइयों, मानवीय कमजोरियों और पाखंड पर तीखा व्यंग्य करने के लिए किया। उनकी कॉमेडी ने दर्शकों को केवल हँसाया ही नहीं, बल्कि उन्हें अपने समाज और स्वयं के व्यवहार पर विचार करने के लिए भी प्रेरित किया। उन्होंने दिखाया कि कॉमेडी सामाजिक टिप्पणी का एक शक्तिशाली साधन हो सकती है।
- यथार्थवादी चरित्र-चित्रण (Realistic Character Portrayal): मोलियर ने अपने नाटकों में जटिल और यथार्थवादी चरित्रों का निर्माण किया, जो स्टॉक कैरेक्टर्स (जैसे मूर्ख पिता, चालाक नौकर) से कहीं अधिक थे। उनके पात्र जैसे टार्टफ (पाखंडी), अल्सेस्टे (आदर्शवादी), आर्गान (रोगी का भ्रम) सार्वभौमिक मानवीय गुणों और दोषों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन पात्रों को इतनी गहराई से चित्रित किया गया था कि वे दर्शकों के लिए पहचानने योग्य और यादगार बन गए।
- संवादों की उत्कृष्टता (Excellence in Dialogue): मोलियर ने फ्रेंच भाषा को मंच पर जीवंत कर दिया। उनके संवाद बुद्धिमान, तेज और प्राकृतिक प्रवाह वाले होते थे, भले ही वे अलेक्ज़ेंड्रिन पद्य में लिखे गए हों। उन्होंने शब्दों के खेल, विडंबना और व्यंग्य का कुशलता से उपयोग किया, जिससे उनके नाटक भाषाई रूप से समृद्ध और आकर्षक बन गए। उन्होंने ऐसी भाषा का उपयोग किया जो उच्च और निम्न दोनों वर्गों के दर्शकों के लिए सुलभ थी।
- अभिनय शैली का विकास (Development of Acting Style): मोलियर स्वयं एक उत्कृष्ट अभिनेता थे और उन्होंने अपनी मंडली में अभिनेताओं को प्रशिक्षित किया। उन्होंने एक ऐसी अभिनय शैली को बढ़ावा दिया जो अधिक स्वाभाविक और कम औपचारिक थी, उस समय की त्रासदी की अति-औपचारिक शैली के विपरीत। उन्होंने शारीरिक हास्य और मुखर अभिव्यक्ति के महत्व पर जोर दिया, जिससे कॉमेडी अधिक प्रभावी बनी।
- कॉमेडी और बैले का मेल (Integration of Comedy and Ballet): मोलियर ने कई “कॉमेडी-बैले” बनाए, विशेष रूप से शाही दरबार के लिए, जिसमें नाटक को संगीत, नृत्य और गीत के साथ जोड़ा गया था। उन्होंने इस शैली को परिष्कृत किया, जिससे यह केवल एक तमाशा न होकर नाटक का एक अभिन्न अंग बन गया। यह नवोन्मेष फ्रेंच ओपेरा और संगीत थिएटर के विकास में सहायक सिद्ध हुआ।
- थिएटर प्रबंधन में मॉडल (Model for Theatre Management): मोलियर न केवल एक नाटककार और अभिनेता थे, बल्कि एक सफल थिएटर प्रबंधक भी थे। उन्होंने अपनी मंडली को वित्तीय रूप से स्थिर किया, उन्हें राजा का संरक्षण दिलवाया और पेरिस में पैलेस-रॉयल में एक स्थायी घर स्थापित किया। उनकी संगठनात्मक क्षमता ने फ्रांसीसी रंगमंच के व्यावसायिक पहलुओं को पेशेवर बनाने में मदद की।
- कलात्मक स्वतंत्रता का प्रतीक (Symbol of Artistic Freedom): “टार्टफ” पर प्रतिबंध के खिलाफ मोलियर का संघर्ष कलात्मक स्वतंत्रता और सेंसरशिप के खिलाफ प्रतिरोध का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया। उन्होंने अपनी कला के लिए खड़े होने का साहस दिखाया, भले ही उन्हें शक्तिशाली विरोधियों का सामना करना पड़ा। यह आने वाले समय में कलाकारों के लिए एक प्रेरणा थी कि वे सामाजिक टिप्पणी करने से न डरें।
- कॉमेडी फ्रैन्सेज़ की नींव (Foundation of the Comédie-Française): मोलियर की मृत्यु के बाद, उनकी मंडली को अन्य मंडलियों के साथ मिला दिया गया, जिससे कॉमेडी फ्रैन्सेज़ (Comédie-Française) की स्थापना हुई, जो आज भी दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित थिएटरों में से एक है। मोलियर को कॉमेडी फ्रैन्सेज़ का संरक्षक संत माना जाता है, और उनके नाटक आज भी उसके प्रदर्शनों की सूची का एक मुख्य हिस्सा हैं।
मोलियर को पश्चिमी साहित्य और विशेष रूप से कॉमेडी के इतिहास में एक महान गुरु (Grand Master) के रूप में निर्विवाद स्थान प्राप्त है। उनके योगदान ने कॉमेडी की अवधारणा और उसके प्रदर्शन के तरीके को मौलिक रूप से बदल दिया।
कॉमेडी के एक महान गुरु के रूप में उनका स्थान
- कॉमिया दी मैनर्स के जनक (Father of Comedy of Manners): मोलियर ने “कॉमिया दी मैनर्स” (Comedy of Manners) शैली को पूर्णता तक पहुँचाया। यह शैली समाज के रीति-रिवाजों, शिष्टाचारों, सामाजिक दिखावे और वर्गों के बीच के सूक्ष्म संबंधों पर व्यंग्य करती है। “द मिसेंथ्रोप” और “द सिली प्रेशियस लेडीज़” जैसे नाटकों में उन्होंने दिखाया कि कैसे हास्य मानवीय पाखंड और सामाजिक ढोंग से उत्पन्न हो सकता है, जिससे दर्शकों को न केवल हंसी आती थी बल्कि वे अपनी खुद की सामाजिक कमियों पर भी विचार करते थे।
- कालातीत चरित्रों का निर्माण: मोलियर ने ऐसे चरित्रों का निर्माण किया जो विशिष्ट समय और स्थान के होने के बावजूद सार्वभौमिक मानवीय गुणों और दोषों का प्रतिनिधित्व करते हैं। टार्टफ (पाखंड), हरपगॉन (कंजूसी), आर्गान (रोग का भ्रम), और अल्सेस्टे (सामाजिक असंतोष) जैसे पात्र आज भी प्रासंगिक हैं क्योंकि वे मानवीय स्वभाव की स्थायी कमजोरियों को दर्शाते हैं। ये पात्र इतने प्रभावशाली थे कि उनके नाम स्वयं उन विशेष दोषों के पर्याय बन गए।
- हास्य को नैतिक उद्देश्य से जोड़ना: मोलियर ने कॉमेडी को केवल हल्के-फुल्के मनोरंजन से ऊपर उठाया। उनका मानना था कि कॉमेडी का एक नैतिक उद्देश्य होता है – “लोगों को मनोरंजन के माध्यम से सुधारना” (castigat ridendo mores)। उन्होंने अपने नाटकों का उपयोग सामाजिक बुराइयों, भ्रष्टाचार, पाखंड और मूर्खता को उजागर करने के लिए एक मंच के रूप में किया। उन्होंने दिखाया कि हास्य एक तीखा उपकरण हो सकता है जो समाज को आईना दिखाता है।
- संवादों की उत्कृष्टता और बुद्धिमत्ता: मोलियर के संवाद उनके नाटकों की पहचान हैं। वे तेज, बुद्धिमान, विडंबनापूर्ण और स्वाभाविक थे, भले ही वे अक्सर अलेक्ज़ेंड्रिन छंदों में लिखे जाते थे। उन्होंने भाषा का कुशलता से उपयोग किया ताकि हास्य और व्यंग्य को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया जा सके, जिससे उनके नाटक भाषाई रूप से समृद्ध और आकर्षक बने।
- पूर्ण रंगमंच कलाकार: मोलियर केवल एक नाटककार नहीं थे; वे एक अभिनेता, निर्देशक और थिएटर प्रबंधक भी थे। उन्होंने अपनी मंडली का निर्माण किया, उसे चलाया, अभिनय किया, और नाटकों का मंचन किया। यह व्यापक अनुभव उन्हें एक असाधारण नाटककार बनने में मदद करता था क्योंकि उन्हें मंच की गतिशीलता, दर्शकों की प्रतिक्रिया और अभिनेताओं की क्षमताओं की गहरी समझ थी।
- फ्रांसीसी भाषा और संस्कृति का संवर्धन: मोलियर को अक्सर “फ्रांसीसी कॉमेडी का जनक” कहा जाता है। उन्होंने फ्रांसीसी भाषा को मंच पर जीवंत किया और उसे एक नई गरिमा प्रदान की। उनके काम ने फ्रांसीसी साहित्य और संस्कृति को समृद्ध किया और आज भी फ्रांसीसी रंगमंच के प्रदर्शनों की सूची का एक मुख्य हिस्सा हैं।
- वैश्विक और स्थायी प्रभाव: मोलियर के नाटकों का दुनिया भर की भाषाओं में अनुवाद किया गया है और लगातार उनका मंचन किया जाता है। उनकी हास्य शैली और चरित्र-चित्रण ने आने वाली पीढ़ियों के नाटककारों (जैसे कि गोल्डस्मिथ, शेरिडन, और बाद में भी) को प्रभावित किया है। उनकी रचनाएँ आज भी सिनेमा, टेलीविजन और अन्य कला रूपों में प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं।
मोलियर ने कॉमेडी को एक ऐसी कला विधा में बदल दिया जो केवल मनोरंजन ही नहीं करती, बल्कि सोच-विचार को भी उत्तेजित करती है। उन्होंने दिखाया कि हंसी केवल आनंद का स्रोत नहीं है, बल्कि सामाजिक आलोचना और व्यक्तिगत आत्मनिरीक्षण का एक शक्तिशाली साधन भी है। उनकी यही दूरदर्शिता और कलात्मक उत्कृष्टता उन्हें कॉमेडी के इतिहास में एक अद्वितीय और महान गुरु के रूप में स्थापित करती है।
मोलियर को हास्य के एक महान गुरु के रूप में जाना जाता है, और उनकी हास्य शैली तथा चरित्र चित्रण में कुछ विशिष्टताएँ थीं जिन्होंने उन्हें अद्वितीय बनाया।
मोलियर की हास्य शैली की विशिष्टताएँ
- सामाजिक व्यंग्य और नैतिक उद्देश्य (Social Satire with Moral Purpose): मोलियर की कॉमेडी सिर्फ हँसाने के लिए नहीं थी; इसका एक गहरा सामाजिक और नैतिक उद्देश्य था। उनका प्रसिद्ध कथन, “कास्टिगेट राइडेंडो मोरेस” (Castigat ridendo mores), जिसका अर्थ है “हँसकर रीति-रिवाजों को सुधारना”, उनकी शैली का सार है। उन्होंने अपने नाटकों में समाज की कुरीतियों, मानवीय पाखंड, लालच, अज्ञानता, अहंकार और दिखावटीपन पर तीखा व्यंग्य किया। वे समाज को आईना दिखाते थे, ताकि लोग अपनी और दूसरों की कमियों को देखकर आत्म-चिंतन कर सकें।
- मानवीय मूर्खता और सनक पर ध्यान (Focus on Human Folly and Obsessions): मोलियर को मानवीय स्वभाव की मूर्खताओं और जुनूनी व्यवहारों को पहचानने में महारत हासिल थी। उनके नायक अक्सर किसी एक दुर्बलता या जुनून (जैसे टार्टफ का पाखंड, ऑर्गन का रोगी होने का भ्रम, हरपगॉन की कंजूसी) से ग्रस्त होते थे, और यह जुनून ही उनके हास्य का मुख्य स्रोत बन जाता था। वे इन जुनूनी पात्रों को इस तरह से प्रस्तुत करते थे कि वे एक ही समय में हास्यास्पद और कुछ हद तक पहचान योग्य लगें।
- विवेक और अज्ञानता का विरोधाभास (Contrast between Reason and Ignorance): उनके नाटकों में अक्सर ऐसे चरित्र होते थे जो विवेक और सामान्य ज्ञान (जैसे डोरिन, क्लेन्ते, एल्मायर) का प्रतिनिधित्व करते थे, और वे उन पात्रों के विपरीत खड़े होते थे जो अज्ञानता, अंधभक्ति या मूर्खता (जैसे ऑर्गन, मैडम परनेल) में डूबे रहते थे। यह विरोधाभास नाटक में तनाव और हास्य दोनों पैदा करता था।
- शाब्दिक हास्य और वाक्पटुता (Verbal Wit and Eloquence): मोलियर के संवाद उनके नाटकों की जान थे। वे तेज, बुद्धिमान और वाक्पटुता से भरे होते थे। उन्होंने शब्दों के खेल (wordplay), विडंबना (irony), अतिशयोक्ति (exaggeration) और व्यंग्य का कुशलता से उपयोग किया। उनके पात्रों के बीच की मौखिक झड़पें और बहसें दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती थीं।
- फ़ार्स और उच्च कॉमेडी का मिश्रण (Blend of Farce and High Comedy): मोलियर अपनी कॉमेडी में फ़ार्स (शारीरिक हास्य, सिचुएशन कॉमेडी, अतिशयोक्तिपूर्ण दृश्य) के तत्वों को उच्च कॉमेडी (बौद्धिक व्यंग्य, चरित्र अध्ययन) के साथ सहजता से मिलाते थे। इससे उनके नाटक समाज के सभी वर्गों के लिए आकर्षक बन गए, क्योंकि वे एक ही समय में मनोरंजन भी करते थे और सोचने पर भी मजबूर करते थे।
चरित्र चित्रण की विशिष्टता
- “टाइप-कैरेक्टर्स” जो सार्वभौमिक बन गए (“Type-Characters” that Became Universal): मोलियर ने ऐसे चरित्र “टाइप्स” (प्रारूप) बनाए जो इतने प्रभावशाली थे कि उनके नाम स्वयं उन मानवीय दुर्बलताओं के पर्याय बन गए जिनका वे प्रतिनिधित्व करते थे।
- टार्टफ (Tartuffe): धार्मिक पाखंडी
- हरपगॉन (Harpagon): कंजूस
- आर्गान (Argan): रोगी का भ्रम (हाइपोकॉन्ड्रियाक)
- अल्सेस्टे (Alceste): असंतुष्ट समाज-विरोधी (मिसेंथ्रोप) ये चरित्र आज भी प्रासंगिक हैं क्योंकि वे किसी विशेष व्यक्ति नहीं, बल्कि मानवीय स्वभाव की सामान्य विशेषताओं को दर्शाते हैं।
- दोषों की अतिशयोक्तिपूर्ण अभिव्यक्ति (Exaggerated Expression of Flaws): मोलियर अपने पात्रों के प्रमुख दोषों को अक्सर अतिरंजित करते थे, जिससे वे हास्यास्पद और यादगार बन जाते थे। यह अतिशयोक्ति ही हास्य का एक प्रमुख स्रोत थी, क्योंकि दर्शक उन पात्रों की मूर्खता और सनक को देख सकते थे जो अपनी ही कमजोरियों के कारण अंधे हो गए थे।
- आंतरिक विरोधाभास (Internal Contradictions): कई मोलियरियन पात्रों में आंतरिक विरोधाभास होते हैं। उदाहरण के लिए, अल्सेस्टे जो पाखंड से नफरत करता है, वह एक चुलबुली और सतही महिला से प्यार करता है। यह विरोधाभास पात्रों को और अधिक जटिल और दिलचस्प बनाता है, जिससे दर्शकों को उनके व्यवहार के पीछे के कारणों पर विचार करने का अवसर मिलता है।
- सामान्य ज्ञान और दिखावे के बीच टकराव (Clash between Common Sense and Pretense): मोलियर के चरित्र चित्रण में एक आम पैटर्न सामान्य ज्ञान, ईमानदारी और सीधेपन का प्रतिनिधित्व करने वाले पात्रों (जैसे डोरिन, क्लेन्ते) और दिखावा, पाखंड या मूर्खता का प्रतिनिधित्व करने वाले पात्रों (जैसे ऑर्गन, टार्टफ) के बीच टकराव है। यह टकराव नाटक को आगे बढ़ाता है और नैतिक संदेश को स्पष्ट करता है।
- सामाजिक वर्गों का चित्रण (Portrayal of Social Classes): मोलियर ने अपने नाटकों में विभिन्न सामाजिक वर्गों के चरित्रों को शामिल किया, नौकरों से लेकर अभिजात वर्ग तक। उन्होंने प्रत्येक वर्ग की विशेषताओं और उनके बीच के संबंधों पर टिप्पणी की, विशेष रूप से उस समय के फ्रांसीसी समाज के शिष्टाचार और पदानुक्रम को दर्शाया।
मोलियर को केवल एक नाटककार के रूप में ही नहीं, बल्कि एक समाज सुधारक (Social Reformer) के रूप में भी देखा जाता है। उन्होंने अपने नाटकों को समाज की बुराइयों, ढोंग और मानवीय कमजोरियों को उजागर करने के लिए एक शक्तिशाली मंच के रूप में इस्तेमाल किया। उनका लक्ष्य लोगों को हँसाना था, लेकिन इस हँसी के माध्यम से वे उन्हें अपने और अपने समाज के बारे में सोचने पर मजबूर करते थे, ताकि वे बेहतर बन सकें।
समाज सुधारक के रूप में उनकी भूमिका
- पाखंड का पर्दाफाश (Exposing Hypocrisy): मोलियर का सबसे प्रसिद्ध योगदान पाखंड को उजागर करना था। “टार्टफ” (Tartuffe) में उन्होंने धार्मिक ढोंगियों को निशाना बनाया, जो धर्म का मुखौटा पहनकर दूसरों को धोखा देते थे और सत्ता व धन का दुरुपयोग करते थे। यह केवल व्यक्तिगत बुराई नहीं थी, बल्कि समाज में व्याप्त एक समस्या थी जो सच्ची नैतिकता और भक्ति को कमजोर कर रही थी। मोलियर ने इस पाखंड को मंच पर लाकर इसे सार्वजनिक हँसी का पात्र बनाया, जिससे इसके प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी।
- अंधभक्ति और अज्ञानता पर प्रहार (Attacking Blind Devotion and Ignorance): मोलियर ने लोगों को अंधविश्वास और अज्ञानता से बाहर निकालने की कोशिश की। “द इमेजिनरी इनवैलिड” (The Imaginary Invalid) में उन्होंने चिकित्सा पेशे की मूर्खता और रोगियों की अंधभक्ति पर व्यंग्य किया। उन्होंने दिखाया कि कैसे लोग अपनी बीमारी के प्रति जुनूनी हो जाते हैं और बिना सोचे-समझे डॉक्टरों और अप्रभावी उपचारों पर भरोसा करते हैं। इस नाटक के माध्यम से, उन्होंने तर्क और सामान्य ज्ञान के महत्व पर जोर दिया।
- सामाजिक दिखावे और कृत्रिमता की आलोचना (Critiquing Social Affectation and Artificiality): “द सिली प्रेशियस लेडीज़” (Les Précieuses ridicules) में उन्होंने पेरिस के उच्च समाज की बनावटी भाषा, नकली शिष्टाचार और सतही ज्ञान का उपहास किया। यह नाटक उन लोगों की आलोचना करता था जो वास्तविक गुणों के बजाय दिखावे और कृत्रिमता को महत्व देते थे। मोलियर चाहते थे कि समाज अधिक सच्चा और ईमानदार बने।
- विवाह और लैंगिक संबंधों पर टिप्पणी (Commentary on Marriage and Gender Roles): “द स्कूल फॉर वाइव्स” (L’École des femmes) जैसे नाटकों में, मोलियर ने विवाह के पारंपरिक दृष्टिकोणों और पुरुषों द्वारा महिलाओं को नियंत्रित करने के प्रयासों पर सवाल उठाए। उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति (अर्नोलफे) का मज़ाक उड़ाया जो अपनी पत्नी को अज्ञानी रखकर उसे नियंत्रित करना चाहता था। इसके माध्यम से, उन्होंने महिला शिक्षा और उनकी स्वतंत्रता के महत्व को अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा दिया, जो उस समय के लिए काफी प्रगतिशील विचार थे।
- नैतिक आदर्शों को बढ़ावा देना (Promoting Moral Ideals): हालांकि उनके नाटक व्यंग्यात्मक थे, मोलियर ने हमेशा ऐसे चरित्रों को भी चित्रित किया जो ईमानदारी, विवेक और तर्क का प्रतिनिधित्व करते थे (जैसे क्लेन्ते या डोरिन)। इन पात्रों के माध्यम से, उन्होंने दर्शकों को सही और गलत के बीच अंतर करने और सच्चे नैतिक मूल्यों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष (Struggling for Freedom of Expression): “टार्टफ” पर प्रतिबंध के खिलाफ मोलियर का लंबा संघर्ष स्वयं एक प्रकार का सामाजिक सुधार आंदोलन था। उन्होंने कलात्मक स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी, यह तर्क देते हुए कि कलाकार को समाज की बुराइयों को उजागर करने का अधिकार है, भले ही वे शक्तिशाली वर्गों को असहज कर दें। यह संघर्ष आने वाली पीढ़ियों के कलाकारों और बुद्धिजीवियों के लिए एक मिसाल बन गया।
मोलियर का मानना था कि कॉमेडी, त्रासदी की तरह, समाज को शिक्षित कर सकती है। वे अपने नाटकों के माध्यम से समाज को उसकी कमियों के प्रति जागरूक करना चाहते थे, ताकि लोग उन पर हँसें और फिर उन्हें सुधारने का प्रयास करें। उनकी यही भूमिका उन्हें फ्रांसीसी इतिहास के सबसे प्रभावशाली समाज सुधारकों में से एक बनाती है, भले ही उन्होंने कभी सीधे राजनीतिक मंच पर कदम नहीं रखा।
मोलियर का विश्व साहित्य और नाट्यकला पर दीर्घकालिक प्रभाव अत्यंत गहरा और व्यापक है। उन्हें न केवल फ्रांसीसी कॉमेडी का जनक माना जाता है, बल्कि विश्व रंगमंच के सबसे प्रभावशाली नाटककारों में से एक के रूप में भी उनका सम्मान किया जाता है।
विश्व साहित्य और नाट्यकला पर मोलियर का दीर्घकालिक प्रभाव
- कॉमेडी के एक गंभीर कला रूप के रूप में उत्थान (Elevation of Comedy as a Serious Art Form): मोलियर से पहले, कॉमेडी को अक्सर त्रासदी की तुलना में एक निम्न कला रूप माना जाता था। मोलियर ने अपनी बुद्धि, सामाजिक अंतर्दृष्टि और चरित्र चित्रण की गहराई के माध्यम से कॉमेडी को एक गंभीर, विचारोत्तेजक और नैतिक रूप से महत्वपूर्ण कला रूप के रूप में स्थापित किया। उन्होंने दिखाया कि कॉमेडी केवल मनोरंजन ही नहीं, बल्कि सामाजिक आलोचना और मानवीय स्वभाव की गहरी पड़ताल का एक शक्तिशाली माध्यम हो सकती है। इस दृष्टिकोण ने बाद के नाटककारों के लिए कॉमेडी के दायरे को व्यापक बनाया।
- पात्रों की सार्वभौमिकता और अमरता (Universality and Immortality of Characters): मोलियर द्वारा बनाए गए पात्र जैसे टार्टफ (पाखंडी), हरपगॉन (कंजूस), अल्सेस्टे (मिसेंथ्रोप), और आर्गान (रोगी का भ्रम) इतने सशक्त और सार्वभौमिक हैं कि वे आज भी प्रासंगिक हैं। ये पात्र मानवीय गुणों और दोषों के प्रतीक बन गए हैं, और उनके नाम अक्सर उन विशिष्ट कमजोरियों के पर्याय के रूप में उपयोग किए जाते हैं। इन पात्रों ने आने वाली पीढ़ियों के लेखकों को प्रेरित किया कि वे ऐसे चरित्रों का निर्माण करें जो समय और संस्कृति की सीमाओं को पार कर सकें।
- कॉमिया दी मैनर्स का विकास (Development of Comedy of Manners): मोलियर ने कॉमिया दी मैनर्स (Comedy of Manners) शैली को पूर्णता तक पहुँचाया, जिसने समाज के रीति-रिवाजों, शिष्टाचारों और दिखावों पर व्यंग्य किया। इस शैली ने बाद में अंग्रेजी कॉमेडी में रिचर्ड शेरिडन और विलियम कांग्रीव जैसे नाटककारों को प्रभावित किया, और आज भी यह सामाजिक व्यंग्य का एक महत्वपूर्ण रूप बनी हुई है।
- संवादों की उत्कृष्टता का बेंचमार्क (Benchmark for Excellence in Dialogue): मोलियर के संवाद उनकी कला की पहचान हैं। उनकी भाषा की स्पष्टता, बुद्धि, और प्राकृतिक प्रवाह ने बाद के नाटककारों के लिए संवाद लेखन का एक उच्च मानक स्थापित किया। उनके नाटकों का अनुवाद दुनिया भर की भाषाओं में किया गया है, और उनके संवादों की तीक्ष्णता और हास्य हर संस्कृति में सराहे जाते हैं।
- अभिनय और मंचन पर प्रभाव (Influence on Acting and Staging): मोलियर स्वयं एक प्रतिभाशाली अभिनेता और निर्देशक थे। उन्होंने एक अधिक स्वाभाविक और यथार्थवादी अभिनय शैली को बढ़ावा दिया, जो उस समय की अति-औपचारिक त्रासदी से भिन्न थी। उन्होंने शारीरिक हास्य, मुखर अभिव्यक्ति और सटीक समय पर जोर दिया, जिससे कॉमेडी अधिक प्रभावी बनी। उनके मंचन के तरीके और मंडली के प्रबंधन ने आधुनिक थिएटर प्रथाओं की नींव रखी।
- कलात्मक स्वतंत्रता का प्रतीक (Symbol of Artistic Freedom): “टार्टफ” पर प्रतिबंध के खिलाफ मोलियर का संघर्ष कलात्मक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए एक महत्वपूर्ण लड़ाई थी। उन्होंने दिखाया कि कलाकार को समाज की बुराइयों को उजागर करने का साहस होना चाहिए, भले ही उसे शक्तिशाली विरोध का सामना करना पड़े। यह संघर्ष दुनिया भर के कलाकारों के लिए एक प्रेरणा बन गया है जो सेंसरशिप और दमन के खिलाफ अपनी आवाज उठाते हैं।
- विश्व साहित्य में अमर स्थान (Immortal Place in World Literature): मोलियर के नाटकों को आज भी दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित थिएटरों में लगातार प्रदर्शित किया जाता है। वे विश्वविद्यालयों और नाट्य अकादमियों में अध्ययन का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। उनके काम ने अनगिनत लेखकों, फिल्म निर्माताओं और अन्य कलाकारों को प्रेरित किया है, और उनकी विरासत विश्व साहित्य और नाट्यकला में हमेशा जीवित रहेगी।