एडमंड स्पेंसर (लगभग 1552-1599) और जॉन मिल्टन (1608-1674) अंग्रेजी साहित्य के दो महान कवि हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं से साहित्यिक परिदृश्य को गहरा प्रभावित किया।
एडमंड स्पेंसर, जिन्हें अक्सर “कवियों के कवि” कहा जाता है, अंग्रेजी पुनर्जागरण के एक प्रमुख व्यक्ति थे। उनका सबसे प्रसिद्ध काम “द फेयरी क्वीन” है, जो एक विशाल और रूपक महाकाव्य है। यह कविता छह किताबों में लिखी गई थी, जो प्रत्येक एक विशिष्ट सद्गुण (जैसे पवित्रता, संयम, न्याय) को दर्शाती है, और क्वीन एलिजाबेथ प्रथम को समर्पित है। स्पेंसर को उनके “स्पेंसरियन स्टांजा” के लिए भी जाना जाता है, एक अनूठी कविता शैली जिसे उन्होंने विकसित किया था। उनकी कविताएँ अक्सर नैतिकता, chivalry (शूरवीरता) और धार्मिक विषयों को दर्शाती हैं, और उन्होंने अंग्रेजी भाषा को एक नई ऊँचाई दी।
दूसरी ओर, जॉन मिल्टन को अंग्रेजी के सबसे महान कवियों में से एक माना जाता है, खासकर उनकी महाकाव्य कविता “पैराडाइज लॉस्ट” के लिए। यह कृति बाइबिल की कहानी पर आधारित है, जिसमें शैतान के स्वर्ग से गिरने और मनुष्य के पतन का वर्णन है। मिल्टन का जीवन राजनीतिक उथल-पुथल से भरा था; वे एक कट्टरपंथी थे और अंग्रेजी गृहयुद्ध के दौरान ओलिवर क्रॉमवेल के कॉमनवेल्थ के समर्थक थे। अपने बाद के जीवन में अंधे होने के बावजूद, उन्होंने अपनी सबसे बड़ी रचनाएँ श्रुतलेख के माध्यम से लिखीं। उनकी कविताएँ अक्सर धार्मिक, दार्शनिक और राजनीतिक विषयों से संबंधित होती हैं, और वे स्वतंत्रता, न्याय और मानव इच्छाशक्ति के प्रबल पक्षधर थे। मिल्टन की भाषा और काव्य शैली अत्यंत प्रभावशाली थी, जिसने अंग्रेजी साहित्य की आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया।
स्पेंसर ने पुनर्जागरण की भव्यता और रूपक कविता की गहराई का प्रतिनिधित्व किया, जबकि मिल्टन ने महाकाव्य की सीमाओं को फिर से परिभाषित किया और अपनी गहन दार्शनिक अंतर्दृष्टि से अंग्रेजी साहित्य को समृद्ध किया।
एडमंड स्पेंसर और जॉन मिल्टन दोनों ही अंग्रेजी साहित्य के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, लेकिन उनके स्थान और प्रभाव का काल भिन्न है।
एडमंड स्पेंसर: अंग्रेजी पुनर्जागरण में उनका स्थान
एडमंड स्पेंसर (लगभग 1552-1599) अंग्रेजी पुनर्जागरण के एक केंद्रीय और प्रभावशाली कवि थे। यह वह काल था जब इंग्लैंड में कला, साहित्य, विज्ञान और अन्वेषण में एक सांस्कृतिक पुनरुत्थान हुआ। स्पेंसर ने इस युग की भावना को अपनी कविताओं में पूरी तरह से व्यक्त किया:
- महाकाव्य परंपरा का पुनरुद्धार: उन्होंने प्राचीन यूनानी और रोमन महाकाव्यों की परंपरा को अंग्रेजी में पुनर्जीवित किया, विशेष रूप से अपनी “द फेयरी क्वीन” के साथ। यह कार्य न केवल एक लंबी कथा है, बल्कि इसमें वीर नायकों, जादुई रोमांच और गहन नैतिक और धार्मिक प्रतीकवाद का मिश्रण है, जो पुनर्जागरण की साहित्यिक महत्वाकांक्षा को दर्शाता है।
- नैतिक और धार्मिक उद्देश्य: पुनर्जागरण काल में नैतिकता और धर्म का गहरा महत्व था। “द फेयरी क्वीन” में प्रस्तुत विभिन्न सद्गुण (पवित्रता, संयम, न्याय) उस समय के ईसाई और शास्त्रीय नैतिक मूल्यों को दर्शाते हैं। स्पेंसर का लक्ष्य न केवल मनोरंजन करना था, बल्कि अपने पाठकों को नैतिक और आध्यात्मिक रूप से शिक्षित करना भी था।
- भाषा और काव्य शैली का विकास: स्पेंसर ने अंग्रेजी भाषा को एक नई ऊँचाई दी। उन्होंने “स्पेंसरियन स्टांजा” जैसी अपनी अनूठी काव्य शैलियों का विकास किया, जिसने अंग्रेजी कविता में नवीनता लाई। उनकी भाषा अलंकृत, संगीतमय और कल्पनाशील थी, जो पुनर्जागरण की भव्यता को दर्शाती है।
- क्वीन एलिजाबेथ I का सम्मान: स्पेंसर ने अपनी कविताओं के माध्यम से क्वीन एलिजाबेथ I का सम्मान किया और उनकी प्रशंसा की, जो उस समय के कलाकारों और शासकों के बीच एक सामान्य प्रथा थी। “द फेयरी क्वीन” स्वयं एलिजाबेथ को ग्लोरियाना के रूप में प्रस्तुत करती है, जो राष्ट्र के गुणों का प्रतीक है।
स्पेंसर अंग्रेजी पुनर्जागरण के सर्वाधिक प्रतिनिधि कवियों में से एक थे, जिन्होंने अपनी महाकाव्य महत्वाकांक्षा, नैतिक गहराई और भाषाई नवाचार के माध्यम से इस युग की साहित्यिक उपलब्धियों को परिभाषित किया।
जॉन मिल्टन: 17वीं शताब्दी के इंग्लैंड में उनका स्थान
जॉन मिल्टन (1608-1674) 17वीं शताब्दी के इंग्लैंड के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व थे, एक ऐसा काल जो धार्मिक और राजनीतिक उथल-पुथल से भरा था (जैसे अंग्रेजी गृहयुद्ध और राजशाही का पतन और पुनर्स्थापन)। मिल्टन का स्थान अद्वितीय है क्योंकि उन्होंने इन परिवर्तनों को अपनी रचनाओं में गहराई से दर्शाया:
- क्रांतिकारी और राजनीतिक कवि: मिल्टन केवल एक कवि नहीं थे, बल्कि एक प्रतिबद्ध राजनीतिक विचारक और क्रांतिकारी भी थे। उन्होंने ओलिवर क्रॉमवेल की कॉमनवेल्थ सरकार में सेवा की और प्रेस की स्वतंत्रता (“एरोपैगिटिका”) और तलाक (“द डॉक्ट्रिन एंड डिसिप्लिन ऑफ डाइवोर्स”) जैसे विषयों पर प्रभावशाली गद्य कार्य लिखे। उनकी रचनाएँ उस समय की बौद्धिक और राजनीतिक बहस को सीधे प्रभावित करती थीं।
- महाकाव्य का चरमोत्कर्ष: उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना, “पैराडाइज लॉस्ट”, 17वीं शताब्दी के अंग्रेजी साहित्य का एक शिखर है। यह एक महाकाव्य है जो बाइबिल की कथाओं (जैसे शैतान का पतन और मनुष्य का स्वर्ग से निष्कासन) को लेता है और उसमें गहन धार्मिक, दार्शनिक और नैतिक प्रश्न जोड़ता है। मिल्टन ने इस कार्य के माध्यम से मानव स्वतंत्रता, ईश्वर की न्यायप्रियता और बुराई की प्रकृति पर विचार किया।
- प्यूरिटन नैतिकता और शास्त्रीय ज्ञान का संगम: मिल्टन एक गहरे प्यूरिटन थे, और उनकी रचनाओं में बाइबिल और ईसाई धर्मशास्त्र का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। साथ ही, वे शास्त्रीय ग्रीक और रोमन साहित्य के भी महान विद्वान थे। उन्होंने इन दोनों परंपराओं को अपनी कविताओं में सफलतापूर्वक मिश्रित किया, जिससे उनकी रचनाओं को एक अद्वितीय बौद्धिक गहराई मिली।
- भाषा का स्वामी: मिल्टन की भाषा भव्य, जटिल और अत्यंत शक्तिशाली है। उन्होंने अंग्रेजी को एक ऐसी गरिमा और शक्ति दी जो उनके पहले किसी ने नहीं दी थी। उनकी वाक्य-रचना, शब्दावली और छंद-रचना ने बाद की पीढ़ियों के कवियों को बहुत प्रभावित किया।
मिल्टन 17वीं शताब्दी के इंग्लैंड के बौद्धिक और आध्यात्मिक केंद्र में खड़े थे। उन्होंने न केवल महान कविताएं लिखीं, बल्कि उन्होंने अपने समय के राजनीतिक और धार्मिक संघर्षों में भी सक्रिय रूप से भाग लिया, और अपनी रचनाओं के माध्यम से मानव स्वतंत्रता और नैतिकता पर गहन विचार प्रस्तुत किए। वे एक ऐसे युग के प्रतिनिधि थे जहाँ साहित्य, धर्म और राजनीति अविभाज्य रूप से जुड़े हुए थे।
इस जीवनी के उद्देश्य और पाठक के लिए इसकी प्रासंगिकता
यह जीवनी एडमंड स्पेंसर और जॉन मिल्टन जैसे दो महान अंग्रेजी कवियों के जीवन, कार्यों और साहित्यिक योगदान को हिंदी भाषी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने के कई महत्वपूर्ण उद्देश्य रखती है:
जीवनी के उद्देश्य
- साहित्यिक विरासत से परिचय: इसका मुख्य उद्देश्य हिंदी पाठकों को अंग्रेजी साहित्य के दो महत्वपूर्ण स्तंभों, एडमंड स्पेंसर और जॉन मिल्टन, की समृद्ध साहित्यिक विरासत से परिचित कराना है। अक्सर, गैर-अंग्रेजी भाषी पाठकों को इन कवियों के बारे में जानने का अवसर कम मिलता है।
- ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ को समझना: जीवनी इन कवियों के जीवनकाल के दौरान के ऐतिहासिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों (जैसे अंग्रेजी पुनर्जागरण और 17वीं शताब्दी की उथल-पुथल) को समझने में मदद करेगी। इससे पाठक यह जान पाएंगे कि कैसे इन घटनाओं ने उनके लेखन को आकार दिया।
- उनके कार्यों की गहराई को उजागर करना: यह केवल तथ्यों को सूचीबद्ध नहीं करेगी, बल्कि “द फेयरी क्वीन” और “पैराडाइज लॉस्ट” जैसी उनकी प्रमुख कृतियों के विषय, शैली और महत्व की गहराई से पड़ताल करेगी, ताकि पाठक उनकी कलात्मक प्रतिभा को सराह सकें।
- प्रेरणा और ज्ञान प्रदान करना: इन कवियों का जीवन संघर्षों और दृढ़ संकल्प से भरा था (जैसे मिल्टन का अंधापन)। उनकी कहानियाँ पाठकों को विपरीत परिस्थितियों में भी रचनात्मकता और उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं।
- तुलनात्मक अध्ययन का आधार: यह जीवनी स्पेंसर और मिल्टन के बीच तुलनात्मक अध्ययन का अवसर भी प्रदान करेगी, यह दर्शाते हुए कि कैसे उन्होंने अलग-अलग समय में रहते हुए भी अंग्रेजी कविता को अपने अनूठे तरीकों से समृद्ध किया।
पाठक के लिए इसकी प्रासंगिकता
यह जीवनी विभिन्न प्रकार के हिंदी पाठकों के लिए प्रासंगिक होगी:
- साहित्य प्रेमियों के लिए: जो पाठक अंग्रेजी साहित्य में रुचि रखते हैं, लेकिन जिन्हें अंग्रेजी में गहन अध्ययन करने में कठिनाई होती है, उनके लिए यह जीवनी इन महान कवियों और उनके कार्यों को समझने का एक सुलभ माध्यम होगी।
- छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए: विशेष रूप से साहित्य के छात्रों के लिए, यह जीवनी एक मूल्यवान संसाधन होगी जो उन्हें अपने पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में या अतिरिक्त जानकारी के लिए इन कवियों के बारे में हिंदी में जानकारी प्रदान करेगी। यह शोध के लिए एक शुरुआती बिंदु भी बन सकती है।
- इतिहास और संस्कृति में रुचि रखने वालों के लिए: जो लोग अंग्रेजी इतिहास, पुनर्जागरण काल या 17वीं शताब्दी के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को समझना चाहते हैं, उन्हें यह जीवनी एक साहित्यिक लेंस के माध्यम से महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करेगी।
- प्रेरणा चाहने वालों के लिए: मिल्टन के अंधापन के बावजूद उनकी महान रचनाओं का सृजन करना, या स्पेंसर का अपनी कला के प्रति आजीवन समर्पण, उन सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत हो सकता है जो जीवन में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
- ज्ञान के विस्तार के लिए: यह जीवनी हिंदी पाठकों के लिए वैश्विक साहित्य के दायरे को विस्तृत करेगी और उन्हें अंग्रेजी काव्य परंपरा के महत्वपूर्ण पहलुओं से जोड़कर उनके ज्ञान में वृद्धि करेगी।
यह जीवनी केवल दो कवियों के बारे में जानकारी नहीं है, बल्कि यह हिंदी पाठकों के लिए अंग्रेजी साहित्यिक इतिहास के एक स्वर्णिम अध्याय को खोलने की एक पहल है, जो उन्हें ज्ञान, प्रेरणा और सौंदर्य की एक नई दुनिया से परिचित कराएगी।
एडमंड स्पेंसर: जन्म और प्रारंभिक जीवन (लगभग 1552)
एडमंड स्पेंसर का जन्म लगभग 1552 में लंदन, इंग्लैंड में हुआ था। उनके जन्म की सटीक तारीख और स्थान के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है, जो उस समय के कई साहित्यिक हस्तियों के लिए आम बात थी। यह माना जाता है कि उनका परिवार अपेक्षाकृत विनम्र पृष्ठभूमि का था, शायद वे कपड़ा निर्माता या व्यापारी वर्ग से संबंधित थे। यह बात उनके बाद के जीवन में उनके एक पत्र से भी कुछ हद तक स्पष्ट होती है, जिसमें उन्होंने अपने “साधारण जन्म” का उल्लेख किया था।
उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में भी विवरण सीमित हैं, लेकिन यह ज्ञात है कि उन्हें शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला, जो उस समय एक विशेषाधिकार था। उन्होंने लंदन के मर्चेंट टेलर्स स्कूल (Merchant Taylors’ School) में शिक्षा प्राप्त की, जो उस समय के एक प्रतिष्ठित व्याकरण विद्यालयों में से एक था। इस स्कूल में, उन्होंने शास्त्रीय भाषाओं जैसे लैटिन और ग्रीक का गहन अध्ययन किया, जो उनके भविष्य के साहित्यिक कार्यों के लिए एक मजबूत आधार बना। यहाँ उन्होंने ओविड, वर्जिल और होमर जैसे शास्त्रीय कवियों को पढ़ा, जिनकी शैली और विषय-वस्तु ने निश्चित रूप से उनके अपने काव्य विकास को प्रभावित किया होगा।
स्कूली शिक्षा के बाद, स्पेंसर को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के पेमब्रोक कॉलेज (Pembroke College, Cambridge) में प्रवेश मिला, जहाँ उन्होंने 1569 से 1576 तक अध्ययन किया। विश्वविद्यालय में उनका समय उनके बौद्धिक विकास के लिए महत्वपूर्ण था। यहाँ उन्होंने साहित्य, दर्शनशास्त्र और धर्मशास्त्र का अध्ययन जारी रखा। कैम्ब्रिज में ही उनकी दोस्ती गेब्रियल हार्वे (Gabriel Harvey) जैसे विद्वानों से हुई, जो एक मानवविज्ञानी और आलोचक थे। हार्वे के साथ उनके पत्राचार से स्पेंसर के प्रारंभिक साहित्यिक विचारों और महत्वाकांक्षाओं की झलक मिलती है। यह भी माना जाता है कि विश्वविद्यालय के दौरान ही उन्होंने अपनी प्रारंभिक कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था, हालाँकि वे उस समय तक व्यापक रूप से प्रकाशित नहीं हुई थीं।
एडमंड स्पेंसर का प्रारंभिक जीवन शिक्षा पर केंद्रित था। लंदन के एक व्याकरण स्कूल और फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उनकी पढ़ाई ने उन्हें शास्त्रीय ज्ञान और साहित्यिक कौशल से लैस किया, जो बाद में उन्हें अंग्रेजी पुनर्जागरण के एक प्रमुख कवि के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण साबित हुआ।
एडमंड स्पेंसर ने 1569 से 1576 तक कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के पेमब्रोक कॉलेज में अध्ययन किया। यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण चरण था जिसने उनकी साहित्यिक रुचियों को आकार दिया और उन्हें एक कवि के रूप में विकसित होने में मदद की।
कैम्ब्रिज में शिक्षा:
- शास्त्रीय भाषाओं और साहित्य का गहन अध्ययन: कैम्ब्रिज में स्पेंसर ने लैटिन और ग्रीक भाषाओं में अपनी दक्षता को और गहरा किया। उन्होंने वर्जिल, होमर, ओविड, प्लेटो और अरस्तू जैसे शास्त्रीय लेखकों की कृतियों का अध्ययन किया। इन प्राचीन ग्रंथों ने उन्हें महाकाव्य, गीतिकाव्य और देहाती कविता (pastoral poetry) की शैलियों से परिचित कराया, जो उनके अपने लेखन में परिलक्षित हुईं।
- मानविकी पर जोर: पुनर्जागरण काल में मानविकी (humanities) पर विशेष जोर दिया जाता था, जिसमें साहित्य, इतिहास और दर्शनशास्त्र शामिल थे। कैम्ब्रिज ने स्पेंसर को इन विषयों में एक मजबूत आधार प्रदान किया, जिससे उन्हें व्यापक दृष्टिकोण विकसित करने में मदद मिली।
- धर्मशास्त्र और नैतिकता: विश्वविद्यालय में धर्मशास्त्र का भी अध्ययन किया जाता था, और स्पेंसर ने ईसाई धर्मशास्त्र और नैतिकता में गहरी रुचि विकसित की। यह उनके सबसे प्रसिद्ध कार्य “द फेयरी क्वीन” में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, जो नैतिक और धार्मिक गुणों का रूपक है।
- बौद्धिक वातावरण: कैम्ब्रिज का बौद्धिक वातावरण स्पेंसर के लिए अत्यंत उर्वर था। यहाँ उन्हें समकालीन विद्वानों और विचारकों के साथ बातचीत करने का अवसर मिला।
साहित्यिक रुचियों का विकास:
- गेब्रियल हार्वे से दोस्ती: कैम्ब्रिज में स्पेंसर की मुलाकात गेब्रियल हार्वे से हुई, जो एक विद्वान और आलोचक थे। हार्वे के साथ उनकी दोस्ती और उनके बीच हुए पत्राचार से स्पेंसर की प्रारंभिक साहित्यिक महत्वाकांक्षाओं का पता चलता है। हार्वे ने स्पेंसर को शास्त्रीय मीटरों को अंग्रेजी कविता में अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया, हालाँकि स्पेंसर ने अंततः अपनी खुद की अनूठी शैली विकसित की।
- प्रारंभिक काव्य प्रयास: यह माना जाता है कि स्पेंसर ने कैम्ब्रिज में रहते हुए ही अपनी प्रारंभिक कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था। हालाँकि इनमें से अधिकांश कार्य बाद में प्रकाशित हुए या खो गए, लेकिन यह अवधि उनके काव्य कौशल को निखारने और अपनी आवाज़ खोजने की थी।
- देहाती कविता में रुचि: कैम्ब्रिज में रहते हुए ही स्पेंसर ने देहाती कविता (pastoral poetry) में गहरी रुचि विकसित की, जिसकी परिणति उनके पहले महत्वपूर्ण प्रकाशित कार्य “द शेफर्ड्स कैलेंडर” (The Shepheardes Calender, 1579) में हुई। यह कार्य वर्जिल और अन्य शास्त्रीय देहाती कवियों से प्रेरित था, और इसने स्पेंसर को एक कवि के रूप में स्थापित करने में मदद की।
- राष्ट्रीय महाकाव्य की महत्वाकांक्षा: कैम्ब्रिज में ही स्पेंसर ने एक महान अंग्रेजी महाकाव्य लिखने की अपनी महत्वाकांक्षा को पोषित करना शुरू कर दिया था, जो वर्जिल के “एनीड” के समान हो। यह महत्वाकांक्षा अंततः उनकी उत्कृष्ट कृति “द फेयरी क्वीन” में साकार हुई।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में स्पेंसर की शिक्षा ने उन्हें एक मजबूत शास्त्रीय और बौद्धिक आधार प्रदान किया। यह वह स्थान था जहाँ उनकी साहित्यिक रुचियाँ विकसित हुईं, जहाँ उन्होंने अपनी काव्य प्रतिभा को निखारा, और जहाँ उन्होंने उन विचारों और शैलियों को आत्मसात किया जो बाद में उन्हें अंग्रेजी पुनर्जागरण के सबसे महान कवियों में से एक बनाएंगे।
एडमंड स्पेंसर: प्रारंभिक कविताएँ और पहचान बनाने की यात्रा
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से निकलने के बाद, एडमंड स्पेंसर ने अपनी साहित्यिक महत्वाकांक्षाओं को साकार करने की दिशा में कदम बढ़ाए। उनका शुरुआती दौर अपनी पहचान बनाने और एक कवि के रूप में अपनी विशिष्ट शैली विकसित करने का था।
विश्वविद्यालय छोड़ने के बाद, स्पेंसर ने कुछ समय तक विभिन्न निजी सचिवों के रूप में काम किया, जिसमें बिशप जॉन यंग और बाद में अर्ल ऑफ लीसेस्टर (रॉबर्ट डडली) के सचिव के रूप में कार्य करना शामिल था। इस दौरान वे लंदन के साहित्यिक और राजनीतिक हलकों के करीब आए। यहीं उनकी मुलाकात सर फिलिप सिडनी जैसे प्रभावशाली कवियों और दरबारियों से हुई, जिन्होंने उनकी साहित्यिक आकांक्षाओं को प्रोत्साहित किया। सिडनी और उनके साहित्यिक समूह ने स्पेंसर को एक ऐसे वातावरण में ला खड़ा किया जहाँ उनकी प्रतिभा को पहचाना जा सकता था।
स्पेंसर की पहली महत्वपूर्ण प्रकाशित कृति “द शेफर्ड्स कैलेंडर” (The Shepheardes Calender) थी, जो 1579 में छपी। यह एक देहाती कविताओं का संग्रह था, जिसे उन्होंने काल्पनिक चरवाहे “कोलिन क्लॉट” (Colin Clout) के नाम से लिखा था। यह कार्य विभिन्न छंदों में बारह कविताओं का संग्रह था, प्रत्येक कविता वर्ष के एक महीने का प्रतिनिधित्व करती थी। “द शेफर्ड्स कैलेंडर” ने कई शास्त्रीय और समकालीन प्रभावों को एक साथ लाया, जैसे वर्जिल की देहाती कविताएँ, अंग्रेजी लोकगीत और कुछ हद तक राजनीतिक-धार्मिक व्यंग्य।
“द शेफर्ड्स कैलेंडर” के प्रकाशन ने एडमंड स्पेंसर को तुरंत साहित्यिक हलकों में पहचान दिलाई। इस कृति में उनकी नवीन भाषा, संगीतमयता और शैलीगत विविधता ने आलोचकों और पाठकों का ध्यान आकर्षित किया। यह उस समय के अंग्रेजी कविता के लिए एक ताज़ी हवा के झोंके जैसा था। इस सफलता ने उन्हें एक प्रतिभाशाली और उभरते हुए कवि के रूप में स्थापित किया।
इस सफलता के बावजूद, स्पेंसर को एक कवि के रूप में पूरी तरह से आर्थिक स्थिरता नहीं मिल पाई। उन्होंने “द फेयरी क्वीन” जैसे अपने महत्वाकांक्षी महाकाव्य पर काम करना जारी रखा, लेकिन इसके लिए उन्हें পৃষ্ঠপোষकों की आवश्यकता थी। उनकी पहचान बनाने की यह यात्रा उन्हें 1580 में आयरलैंड ले गई, जहाँ उन्हें लॉर्ड ग्रे ऑफ विल्टन के सचिव के रूप में एक पद मिला। आयरलैंड में उनका समय जटिल था, लेकिन यह वही स्थान था जहाँ उन्होंने अपनी उत्कृष्ट कृति “द फेयरी क्वीन” के अधिकांश हिस्सों को लिखना जारी रखा, एक ऐसा कार्य जिसने अंततः उन्हें अंग्रेजी साहित्य के इतिहास में अमर कर दिया।
स्पेंसर की प्रारंभिक कविताओं, विशेष रूप से “द शेफर्ड्स कैलेंडर” ने उन्हें एक प्रतिभाशाली और नवीन कवि के रूप में पहचान दिलाई। यह उनके “द फेयरी क्वीन” जैसे महान कार्यों की नींव थी, और यह उनके लिए उस साहित्यिक पथ पर पहला बड़ा कदम था जिसने उन्हें अंग्रेजी पुनर्जागरण के सबसे महत्वपूर्ण कवियों में से एक बना दिया।
“द फेयरी क्वीन” का विस्तृत परिचय: विषय-वस्तु, प्रतीकवाद और साहित्यिक महत्व
एडमंड स्पेंसर की “द फेयरी क्वीन” (The Faerie Queene) अंग्रेजी साहित्य के सबसे महत्वपूर्ण और महत्वाकांक्षी महाकाव्यों में से एक है। यह केवल एक कविता नहीं, बल्कि नैतिकता, धर्मशास्त्र, राजनीति और सौंदर्यशास्त्र का एक विशाल ताना-बाना है, जिसे पुनर्जागरण काल के इंग्लैंड के संदर्भ में बुना गया है। हालाँकि स्पेंसर ने 12 किताबें लिखने की योजना बनाई थी, वे केवल 6 पूरी कर पाए और एक 7वीं किताब के कुछ अंश ही लिख पाए।
विषय-वस्तु (Themes and Subject Matter)
“द फेयरी क्वीन” की मुख्य विषय-वस्तु नैतिक गुण (moral virtues) हैं। प्रत्येक किताब एक विशेष शूरवीर (knight) के कारनामों पर केंद्रित है, जो एक विशिष्ट गुण का प्रतिनिधित्व करता है, और उसे फेयरी क्वीन ग्लोरियाना (जो इंग्लैंड की तत्कालीन महारानी एलिजाबेथ प्रथम का प्रतिनिधित्व करती हैं) के आदेश पर एक मिशन पर भेजा जाता है।
मुख्य गुण और उनके प्रतिनिधि शूरवीर (पूरी की गई 6 किताबों में):
- पुस्तक I: पवित्रता (Holiness) – रेडक्रॉस नाइट (Redcrosse Knight)
- पुस्तक II: संयम (Temperance) – सर गायोन (Sir Guyon)
- पुस्तक III: शुद्धता/कुंवारीपन (Chastity) – ब्रिटोमार्ट (Britomart) (एक महिला शूरवीर)
- पुस्तक IV: मित्रता (Friendship) – कैम्बल और थेल्मंड (Cambel and Telamond) / एम्बीगोर (Ambiguous)
- पुस्तक V: न्याय (Justice) – आर्टेगल (Artegall)
- पुस्तक VI: विनम्रता/शिष्टाचार (Courtesy) – सर कैलडोर (Sir Calidore)
इन गुणों की खोज के दौरान, शूरवीर विभिन्न खतरों, राक्षसों, जादूगरों और धोखेबाज पात्रों का सामना करते हैं, जो बुराई, पाप और अनैतिकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। कविता में प्रेम, निष्ठा, विश्वासघात, पहचान की खोज और अच्छे व बुरे के बीच शाश्वत संघर्ष जैसे सार्वभौमिक विषय भी शामिल हैं।
प्रतीकवाद (Symbolism)
“द फेयरी क्वीन” अपने समृद्ध और बहुस्तरीय प्रतीकवाद के लिए जानी जाती है:
- एलिजाबेथ I का प्रतिनिधित्व: कविता का सबसे स्पष्ट प्रतीकवाद स्वयं फेयरी क्वीन ग्लोरियाना हैं, जो इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनके माध्यम से, स्पेंसर ने रानी की महिमा, शक्ति और उनके शासनकाल के आदर्शों की प्रशंसा की।
- नैतिक रूपक: प्रत्येक शूरवीर और उनके मिशन एक नैतिक रूपक हैं। उदाहरण के लिए, रेडक्रॉस नाइट की यात्रा व्यक्तिगत पवित्रता की खोज का प्रतीक है, जिसमें धार्मिक संघर्ष और ईसाई मार्ग की कठिनाइयाँ शामिल हैं।
- धार्मिक प्रतीकवाद: स्पेंसर एक प्रोटेस्टेंट थे, और उनकी कविता में प्रोटेस्टेंट धर्मशास्त्र का गहरा प्रभाव है। रोमन कैथोलिक चर्च को अक्सर बुराई और धोखे के रूप में दर्शाया गया है (जैसे ड्युसा या एरर के रूप में)। कविता में बाइबिल के संदर्भ, धार्मिक मुक्ति और पाप पर विजय के विचार प्रचुर मात्रा में हैं।
- राजनीतिक प्रतीकवाद: एलिजाबेथ I के दरबार, आयरलैंड की तत्कालीन राजनीतिक स्थिति (जहाँ स्पेंसर ने काफी समय बिताया), और इंग्लैंड के आंतरिक संघर्षों का सूक्ष्म राजनीतिक प्रतीकवाद भी कविता में मौजूद है।
- शास्त्रीय और पौराणिक संदर्भ: कविता में ग्रीक और रोमन पौराणिक कथाओं, मध्ययुगीन रोमांस और आर्थरियन किंवदंतियों से लिए गए पात्रों, स्थानों और घटनाओं का भी प्रतीकात्मक उपयोग किया गया है, जो एक बहु-स्तरित अर्थ प्रदान करते हैं।
- स्थानों और जीवों का प्रतीकवाद: काले वन (Dark Forest) पाप या अज्ञानता का प्रतीक हो सकता है, जबकि एक सांप धोखे या बुराई का प्रतीक हो सकता है।
साहित्यिक महत्व (Literary Significance)
“द फेयरी क्वीन” का अंग्रेजी साहित्य पर गहरा और स्थायी प्रभाव पड़ा है:
- राष्ट्रीय महाकाव्य का दर्जा: स्पेंसर का लक्ष्य वर्जिल के “एनीड” की तर्ज पर एक अंग्रेजी राष्ट्रीय महाकाव्य बनाना था। “द फेयरी क्वीन” ने इस आकांक्षा को काफी हद तक पूरा किया, जिसने अंग्रेजी भाषा और संस्कृति को एक महाकाव्य पहचान दी।
- स्पेंसरियन स्टांजा (Spenserian Stanza): स्पेंसर ने इस कविता के लिए एक नई और जटिल छंद-योजना का आविष्कार किया, जिसे स्पेंसरियन स्टांजा के नाम से जाना जाता है। यह नौ-पंक्ति वाला स्टांजा है जिसमें पहली आठ पंक्तियाँ आइम्बिक पेंटामीटर में होती हैं और अंतिम पंक्ति आइम्बिक हेक्सामीटर (एक अलेक्जेंड्राइन) होती है, जिसका राइम स्कीम ABABBCBCC है। यह छंद अत्यंत संगीतमय और औपचारिक है, और इसने बाद के कवियों (जैसे बायरन, कीट्स और शेली) को प्रभावित किया।
- भाषाई समृद्धि और नवाचार: स्पेंसर ने अपनी कविता में पुरातन शब्दों (जो चाउसर से लिए गए थे) और नए गढ़े गए शब्दों का एक अनूठा मिश्रण प्रयोग किया, जिससे अंग्रेजी भाषा की अभिव्यक्ति क्षमता का विस्तार हुआ। उनकी भाषा अपनी भव्यता और संगीतात्मकता के लिए प्रसिद्ध है।
- काव्य कल्पना की शक्ति: कविता कल्पना से भरपूर है, जिसमें विस्तृत विवरण, जीवंत चित्र और मनमोहक दृश्य हैं। स्पेंसर की कल्पना शक्ति ने पाठकों को एक काल्पनिक दुनिया में ले जाने की क्षमता रखती है।
- बाद के कवियों पर प्रभाव: “द फेयरी क्वीन” ने मिल्टन, जॉन कीट्स, विलियम वर्ड्सवर्थ, लॉर्ड बायरन और अल्फ्रेड, लॉर्ड टेनीसन सहित अंग्रेजी के कई महान कवियों को गहराई से प्रभावित किया। मिल्टन ने स्वयं अपने महाकाव्य लिखने के लिए स्पेंसर से प्रेरणा ली।
- अंग्रेजी पुनर्जागरण का दर्पण: यह कविता अंग्रेजी पुनर्जागरण के आदर्शों, चिंताओं और सौंदर्यशास्त्र को दर्शाती है। यह उस युग की साहित्यिक महत्वाकांक्षाओं, धार्मिक बहस और राष्ट्रीय गौरव का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
“द फेयरी क्वीन” केवल एक कहानी नहीं है; यह एक कलात्मक और बौद्धिक उपलब्धि है जो नैतिक शिक्षा, राजनीतिक टिप्पणी और साहित्यिक नवाचार का एक जटिल मिश्रण प्रस्तुत करती है। यह अंग्रेजी भाषा की शक्ति और कवि की कल्पना की असीमता का एक शाश्वत प्रमाण है।
स्पेंसरियन स्टांजा (छंद) की अनूठी शैली
एडमंड स्पेंसर की सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक नवाचारों में से एक स्पेंसरियन स्टांजा (Spenserian Stanza) का निर्माण था, जिसका उपयोग उन्होंने अपनी महाकाव्य कविता “द फेयरी क्वीन” में प्रमुखता से किया। यह केवल एक छंद-योजना नहीं थी, बल्कि एक ऐसी शैली थी जिसने अंग्रेजी कविता को एक नई संगीतात्मकता, भव्यता और अभिव्यंजक शक्ति प्रदान की।
संरचना और विशेषताएँ:
स्पेंसरियन स्टांजा की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- नौ पंक्तियाँ (Nine Lines): यह नौ पंक्तियों का एक निश्चित समूह होता है।
- राइम स्कीम (Rhyme Scheme): इसकी राइम स्कीम ABABBCBCC होती है। यह एक जटिल और आपस में जुड़ी हुई योजना है जो पूरे स्टांजा में एक संगीतमय प्रवाह बनाए रखती है।
- मीटर (Meter):
- पहली आठ पंक्तियाँ आइम्बिक पेंटामीटर (Iambic Pentameter) में लिखी जाती हैं। इसका अर्थ है कि प्रत्येक पंक्ति में दस शब्दांश होते हैं, जिसमें पाँच अ-तनावग्रस्त और तनावग्रस्त शब्दांशों (da-DUM) के जोड़े होते हैं।
- नौवीं और अंतिम पंक्ति आइम्बिक हेक्सामीटर (Iambic Hexameter) में होती है, जिसे अक्सर अलेक्जेंड्राइन (Alexandrine) कहा जाता है। इसमें बारह शब्दांश होते हैं।
अनूठी शैली और प्रभाव:
स्पेंसरियन स्टांजा की यह विशिष्ट संरचना इसे कई मायनों में अद्वितीय बनाती है:
- धीरे-धीरे विकसित होती गति (Gradual, Deliberate Pace): नौवीं पंक्ति का अलेक्जेंड्राइन (छह आइम्बिक फीट) पिछली आठ पंक्तियों (पाँच आइम्बिक फीट) की तुलना में लंबा होता है। यह लंबी अंतिम पंक्ति स्टांजा के अंत में एक प्रकार का विराम, विस्तार या समापन प्रदान करती है। यह कविता को एक धीमी, विचारशील और गरिमापूर्ण गति प्रदान करता है, जो “द फेयरी क्वीन” के भव्य और विस्तृत दृश्यों के लिए बिल्कुल उपयुक्त है।
- भावनात्मक और विचारणीय गहराई (Emotional and Contemplative Depth): लंबी अंतिम पंक्ति अक्सर एक विशेष विचार को उजागर करने, एक निष्कर्ष प्रस्तुत करने, या एक गहन भावनात्मक प्रभाव छोड़ने के लिए उपयोग की जाती है। यह कवि को एक विचार को धीरे-धीरे विकसित करने और फिर उसे एक प्रभावशाली कथन के साथ समाप्त करने की अनुमति देता है।
- संगीतात्मकता और सामंजस्य (Musicality and Cohesion): जटिल राइम स्कीम (ABABBCBCC) स्टांजा के भीतर एक मजबूत संगीतात्मकता और सामंजस्य स्थापित करती है। यह पंक्तियों को आपस में जोड़ती है और एक सहज प्रवाह बनाती है, जिससे कविता को पढ़ना अधिक आनंददायक और प्रभावशाली बन जाता है।
- वर्णनात्मक शक्ति (Descriptive Power): इस छंद ने स्पेंसर को विस्तृत, समृद्ध और कल्पनाशील दृश्यों का वर्णन करने की अनुमति दी। इसकी संरचना ने उन्हें अपनी कहानी को धीरे-धीरे खोलने और प्रत्येक विचार या छवि पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर दिया।
- आदर्श और नैतिकता का वाहन (Vehicle for Ideals and Morality): “द फेयरी क्वीन” की नैतिक और रूपकात्मक प्रकृति के लिए यह स्टांजा आदर्श था। इसकी गंभीरता और भव्यता ने स्पेंसर को गुणों, vices और दार्शनिक विचारों को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने में मदद की।
बाद के कवियों पर प्रभाव:
स्पेंसरियन स्टांजा इतना प्रभावशाली था कि यह अंग्रेजी साहित्य में एक प्रतिष्ठित छंद-रूप बन गया। बाद के कई महान कवियों ने इसका उपयोग किया, जिनमें शामिल हैं:
- लॉर्ड बायरन (Lord Byron): “चाइल्ड हेरोल्ड्स पिलग्रिमेज” (Childe Harold’s Pilgrimage)
- जॉन कीट्स (John Keats): “द ईव ऑफ सेंट एग्नेस” (The Eve of St. Agnes)
- पर्सी बायशे शेली (Percy Bysshe Shelley): “एडोनैस” (Adonaïs)
- अल्फ्रेड, लॉर्ड टेनीसन (Alfred, Lord Tennyson): “द लोटस-ईटर्स” (The Lotos-Eaters)
इन कवियों ने स्पेंसरियन स्टांजा की संगीतात्मकता और भावनात्मक गहराई का लाभ उठाया, जिससे यह सिद्ध हुआ कि स्पेंसर का यह नवाचार अंग्रेजी कविता के लिए एक स्थायी उपहार था। इस छंद ने स्पेंसर को एक कवि के रूप में अद्वितीय बना दिया और उनकी “द फेयरी क्वीन” को एक ऐसी कलाकृति में बदल दिया जो अपनी भव्यता और सुंदरता के लिए आज भी सराही जाती है।
एडमंड स्पेंसर की “द फेयरी क्वीन” ने अपने समकालीन समाज, यानी 16वीं शताब्दी के अंतिम दशकों के इंग्लैंड (विशेषकर महारानी एलिजाबेथ प्रथम के शासनकाल) पर कई महत्वपूर्ण तरीकों से प्रभाव डाला। यह केवल एक साहित्यिक कृति नहीं थी, बल्कि यह उस समय के सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक ताने-बाने का एक प्रतिबिंब और एक प्रभावक दोनों थी।
यहां कुछ प्रमुख बिंदु दिए गए हैं:
- महारानी एलिजाबेथ प्रथम की प्रशंसा और महिमामंडन:”द फेयरी क्वीन” का सबसे स्पष्ट प्रभाव महारानी एलिजाबेथ I की प्रशंसा और महिमामंडन था। कविता की मुख्य पात्र, फेयरी क्वीन ग्लोरियाना, सीधे तौर पर एलिजाबेथ का प्रतिनिधित्व करती है। स्पेंसर ने अपनी कविता के माध्यम से रानी की बुद्धिमत्ता, शक्ति और गुणों को आदर्श रूप में प्रस्तुत किया। यह तत्कालीन राजनीतिक माहौल में बहुत महत्वपूर्ण था, जहाँ कलाकार अक्सर शाही संरक्षण प्राप्त करने और अपनी निष्ठा दिखाने के लिए ऐसी रचनाएँ करते थे। एलिजाबेथ को यह काम इतना पसंद आया कि उन्होंने स्पेंसर को आजीवन £50 की पेंशन दी।
- नैतिक शिक्षा और आदर्शों का प्रचार:कविता का केंद्रीय उद्देश्य नैतिक गुणों की शिक्षा देना था। प्रत्येक शूरवीर एक विशिष्ट गुण का प्रतीक है, और उनकी यात्राएँ इन गुणों को विकसित करने की मानवीय प्रक्रिया को दर्शाती हैं। स्पेंसर का लक्ष्य अपने पाठकों को धार्मिक और नैतिक रूप से शिक्षित करना था। उस समय के समाज में, नैतिकता और धार्मिकता पर बहुत जोर दिया जाता था, और “द फेयरी क्वीन” ने इन आदर्शों को एक मनोरंजक और भव्य रूपक कथा के माध्यम से प्रस्तुत किया। यह बड़प्पन और दरबारी वर्ग के लिए एक प्रकार की नैतिक गाइडबुक थी।
- प्रोटेस्टेंट पहचान का सुदृढ़ीकरण:स्पेंसर एक प्रोटेस्टेंट थे, और उनकी कविता में प्रोटेस्टेंट धर्मशास्त्र का गहरा प्रभाव है। रोमन कैथोलिक चर्च को अक्सर बुराई और धोखे के रूप में चित्रित किया गया है (उदाहरण के लिए ड्युसा और एरर के पात्रों के माध्यम से)। एलिजाबेथ के शासनकाल में इंग्लैंड ने प्रोटेस्टेंट धर्म को मजबूती से अपनाया था, और “द फेयरी क्वीन” ने इस राष्ट्रीय धार्मिक पहचान को मजबूत करने में मदद की, कैथोलिक धर्म के खिलाफ एक सांस्कृतिक हथियार के रूप में कार्य किया।
- अंग्रेजी राष्ट्रवाद और पहचान का निर्माण:कविता ने अंग्रेजी राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा दिया। यह एक ऐसे समय में लिखी गई थी जब इंग्लैंड खुद को यूरोपीय मंच पर एक मजबूत और स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित कर रहा था। स्पेंसर ने अपनी कविता में अंग्रेजी इतिहास, मिथकों और किंवदंतियों को शामिल किया, जिससे एक विशिष्ट अंग्रेजी पहचान को बढ़ावा मिला। यह उस भावना का हिस्सा थी जिसने शेक्सपियर के ऐतिहासिक नाटकों में भी खुद को अभिव्यक्त किया था।
- साहित्यिक और भाषाई प्रभाव:”द फेयरी क्वीन” ने अपने समय के साहित्यिक परिदृश्य को गहराई से प्रभावित किया। स्पेंसरियन स्टांजा का उनका नवाचार बाद के कवियों के लिए एक प्रेरणा बन गया। उन्होंने अंग्रेजी भाषा को एक नई भव्यता, लचीलापन और संगीतात्मकता प्रदान की। उनकी भाषा की समृद्धि और कल्पना की शक्ति ने उस समय के कवियों और लेखकों को अंग्रेजी में महाकाव्य और विस्तृत कथाएँ लिखने के लिए प्रेरित किया। यह कार्य पुनर्जागरण काल के साहित्यिक महत्वाकांक्षाओं का एक शिखर था।
- सामाजिक टिप्पणी और आलोचना:यद्यपि कविता मुख्य रूप से प्रशंसात्मक और उपदेशात्मक थी, इसमें तत्कालीन समाज पर सूक्ष्म सामाजिक और राजनीतिक टिप्पणियाँ भी शामिल थीं। आयरलैंड में स्पेंसर के अनुभवों ने उनके कुछ लेखन को प्रभावित किया (जैसे जस्टिस पर पुस्तक V), जो अंग्रेजी शासन के कुछ पहलुओं की आलोचना या बचाव करता था। कविता में भ्रष्टाचार, छल और नैतिक पतन का चित्रण भी तत्कालीन समाज की कुछ वास्तविकताओं को दर्शाता है।
“द फेयरी क्वीन” अपने समकालीन समाज के लिए सिर्फ एक लंबी कविता नहीं थी; यह एक सांस्कृतिक प्रतीक थी जिसने महारानी की प्रशंसा की, नैतिक आदर्शों को बढ़ावा दिया, राष्ट्रीय और धार्मिक पहचान को मजबूत किया, और अंग्रेजी भाषा और साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसने एलिजाबेथ के स्वर्णिम युग की साहित्यिक विरासत को परिभाषित करने में मदद की।
एडमंड स्पेंसर का आयरलैंड में लगभग 18 साल का समय (1580 से 1598 तक) उनके जीवन और कार्यों दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। यह वह काल था जब इंग्लैंड आयरलैंड पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा था, और स्पेंसर एक औपनिवेशिक प्रशासक और एक भूमिधारक के रूप में इस प्रक्रिया का हिस्सा थे।
आयरलैंड में स्पेंसर का समय
1580 में, स्पेंसर तत्कालीन आयरलैंड के लॉर्ड डेप्युटी (Lord Deputy) आर्थर ग्रे, 14वें बैरन ग्रे डी विल्टन के सचिव के रूप में आयरलैंड पहुँचे। यह एक चुनौतीपूर्ण और अक्सर हिंसक वातावरण था, क्योंकि आयरलैंड में अंग्रेजी शासन के खिलाफ कई विद्रोह हो रहे थे।
- प्रशासनिक पद और भूमि अधिग्रहण: ग्रे के सचिव के रूप में काम करने के बाद, स्पेंसर आयरलैंड में ही रुक गए और उन्होंने कई आधिकारिक पद प्राप्त किए, जैसे चांसरी कोर्ट में क्लर्कशिप और मन्स्टर प्रांत के अध्यक्षों की परिषद के क्लर्क के रूप में कार्य करना। इन पदों के साथ, उन्हें मुन्स्टर प्लांटेशन (Munster Plantation) परियोजना के तहत आयरलैंड में भूमि भी मिली। 1588 या 1589 में, उन्हें कॉर्क काउंटी में किलकोलमैन कैसल (Kilcolman Castle) के पास लगभग 3,000 एकड़ (1,200 हेक्टेयर) भूमि आवंटित की गई। यहीं उन्होंने अपनी सबसे महत्वपूर्ण रचनाओं पर काम किया।
- सर वाल्टर रैले से दोस्ती: आयरलैंड में, स्पेंसर की दोस्ती प्रसिद्ध खोजकर्ता और कवि सर वाल्टर रैले से हुई, जो स्वयं आयरलैंड में भूमिधारक थे। रैले ने स्पेंसर को अपनी कुछ कविताओं के साथ इंग्लैंड लौटने और उन्हें प्रकाशित करवाने के लिए प्रोत्साहित किया।
- हिंसा और संघर्ष का अनुभव: स्पेंसर ने आयरलैंड में विद्रोह, दमन और अकाल जैसे गंभीर संघर्षों का अनुभव किया। उन्होंने 1580 के स्मर्विक नरसंहार (Smerwick massacre) जैसी घटनाओं को देखा होगा, जहाँ अंग्रेजी सेनाओं ने आयरिश और स्पेनिश विद्रोहियों का क्रूरता से वध किया था। यह प्रत्यक्ष अनुभव उनके लेखन में परिलक्षित हुआ।
- किलकोलमैन से निष्कासन: 1598 में, “नाइन ईयर्स वॉर” (Nine Years’ War) नामक आयरिश विद्रोह के दौरान, स्पेंसर के किलकोलमैन कैसल को आयरिश विद्रोहियों ने जला दिया था। उन्हें और उनके परिवार को भागना पड़ा, और इसके तुरंत बाद 1599 में उनकी इंग्लैंड में मृत्यु हो गई।
उनके कार्यों पर प्रभाव
आयरलैंड में स्पेंसर के समय का उनके साहित्यिक कार्यों पर गहरा और जटिल प्रभाव पड़ा:
- “द फेयरी क्वीन” का सृजन स्थल: आयरलैंड ही वह स्थान था जहाँ स्पेंसर ने अपनी उत्कृष्ट कृति “द फेयरी क्वीन” का अधिकांश भाग लिखा था। एकांत और प्राकृतिक सुंदरता ने उन्हें अपनी कल्पना को विस्तृत करने का अवसर दिया। हालांकि, आयरलैंड में उनके अनुभव कविता में सूक्ष्म रूप से बुने हुए हैं।
- “ए व्यू ऑफ द प्रेजेंट स्टेट ऑफ आयरलैंड” (A View of the Present State of Ireland): यह स्पेंसर का एक गद्य ग्रंथ है, जिसे उन्होंने 1596 के आसपास लिखा था, लेकिन यह उनकी मृत्यु के बाद 1633 तक प्रकाशित नहीं हुआ। यह आयरलैंड में अंग्रेजी शासन को मजबूत करने के बारे में एक विवादास्पद और अक्सर क्रूरतापूर्ण बहस है। इसमें स्पेंसर ने आयरिश संस्कृति, रीति-रिवाजों और कानूनों की कड़ी आलोचना की और तर्क दिया कि आयरलैंड को वश में करने के लिए बल प्रयोग, अकाल और अंग्रेजी कानूनों को लागू करना आवश्यक है। यह उनकी औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाता है और एक कवि के रूप में उनकी सार्वजनिक धारणा को जटिल बनाता है।
- “द फेयरी क्वीन” में आयरिश संदर्भ और रूपक:
- हिंसा और बर्बरता का चित्रण: आयरलैंड में देखे गए संघर्षों और हिंसा ने “द फेयरी क्वीन” में कुछ राक्षसी पात्रों और बर्बरता के दृश्यों को प्रेरित किया होगा। आयरिश विद्रोहियों को अक्सर जंगली और अव्यवस्थित शक्तियों के रूप में चित्रित किया गया है, जिसके खिलाफ सभ्यता (इंग्लैंड द्वारा प्रतिनिधित्व) को खुद का बचाव करना है।
- न्याय का विषय (पुस्तक V): “द फेयरी क्वीन” की पुस्तक V, जो न्याय के गुण पर केंद्रित है, आयरलैंड में स्पेंसर के अनुभवों से गहराई से प्रभावित है। शूरवीर आर्टेगल (जो लॉर्ड ग्रे डी विल्टन का प्रतिनिधित्व करता है) का चरित्र, और उसका न्याय लागू करने का क्रूर तरीका, आयरलैंड में अंग्रेजी शासन की कठोर नीतियों का एक रूपक है। स्पेंसर ने ग्रे के कार्यों का बचाव किया, जिन्हें इंग्लैंड में कुछ लोगों द्वारा बहुत कठोर माना गया था।
- देहाती और प्राकृतिक सौंदर्य: आयरलैंड के ग्रामीण परिदृश्य ने भी स्पेंसर को प्रेरित किया। “द फेयरी क्वीन” में प्रकृति के विस्तृत और सुंदर वर्णन, जैसे कि अर्कडियाई दृश्य, आयरलैंड के अपने अनुभवों से प्रभावित हो सकते हैं, भले ही उनकी राजनीतिक धारणाएं आयरलैंड के लोगों के प्रति कठोर थीं।
- शिकायत और मोहभंग: स्पेंसर के कार्यों में, विशेष रूप से “द फेयरी क्वीन” और “कॉलिन क्लॉट कम्स होम अगेन” (Colin Clout’s Come Home Again) जैसे अन्य कविताओं में, शाही दरबार की उपेक्षा और उनके प्रयासों के लिए पर्याप्त मान्यता न मिलने की शिकायतें मिलती हैं। यह भावना आयरलैंड में एक दूरस्थ और अक्सर खतरनाक पोस्टिंग पर उनके समय से उपजी थी।
आयरलैंड में स्पेंसर का समय उन्हें एक औपनिवेशिक अधिकारी के रूप में स्थापित किया, जिसने उन्हें अपने युग के राजनीतिक और सामाजिक संघर्षों का प्रत्यक्ष अनुभव दिया। इस अनुभव ने न केवल उनके राजनीतिक विचारों को “ए व्यू ऑफ द प्रेजेंट स्टेट ऑफ आयरलैंड” में ढाला, बल्कि “द फेयरी क्वीन” में भी इसकी गूँज सुनी जा सकती है, जहाँ नैतिक रूपक, हिंसा के चित्रण और न्याय की अवधारणा पर उनके विचार आयरलैंड में उनके जीवन से गहरे रूप से जुड़े हुए थे।
एडमंड स्पेंसर को मुख्य रूप से “द फेयरी क्वीन” के लिए जाना जाता है, लेकिन उन्होंने कई अन्य महत्वपूर्ण कविताएँ भी लिखीं जो उनकी बहुमुखी प्रतिभा और अंग्रेजी पुनर्जागरण कविता में उनके योगदान को दर्शाती हैं। यहाँ उनकी कुछ अन्य प्रमुख कृतियों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है:
1. द शेफर्ड्स कैलेंडर (The Shepheardes Calender – 1579)
यह स्पेंसर का पहला बड़ा प्रकाशित कार्य था और इसने उन्हें साहित्यिक हलकों में पहचान दिलाई।
- विषय-वस्तु: यह देहाती कविताओं का एक संग्रह है, जिसमें चरवाहों (shepherds) के जीवन को दर्शाया गया है। प्रत्येक कविता वर्ष के एक महीने के लिए समर्पित है और विभिन्न विषयों जैसे प्रेम, दोस्ती, धर्म, राजनीति और कविता की प्रकृति पर चर्चा करती है।
- शैली: स्पेंसर ने इसमें विभिन्न प्रकार के मीटर, राइम स्कीम और भाषा शैलियों का प्रयोग किया। यह चाउसरियन अंग्रेजी से प्रभावित था और इसमें कुछ पुरातन शब्द भी शामिल थे।
- महत्व: इसने अंग्रेजी देहाती कविता के लिए एक नया मानक स्थापित किया और बाद के कवियों को प्रभावित किया। यह स्पेंसर की “पहचान बनाने की यात्रा” का महत्वपूर्ण पड़ाव था।
2. एम्मोरट्टी (Amoretti – 1595)
“एम्मोरट्टी” 89 सॉनेट्स (चतुर्दशपदियों) का एक चक्र है, जिसे स्पेंसर ने अपनी दूसरी पत्नी एलिजाबेथ बॉयल के साथ अपने प्रेमालाप और विवाह के अनुभवों को दर्शाने के लिए लिखा था।
- विषय-वस्तु: यह एक पारंपरिक प्रेम सॉनेट अनुक्रम है, लेकिन इसमें स्पेंसर ने कुछ नवीनताएँ पेश कीं। यह प्रेम के आनंद, पीड़ा, अलगाव और अंततः आध्यात्मिक और शारीरिक मिलन की यात्रा का वर्णन करता है। यह स्पेंसर और एलिजाबेथ बॉयल के बीच प्रेम की क्रमिक विकास को दर्शाता है।
- शैली: स्पेंसर ने यहाँ शेक्सपीरियन या पेट्रार्कन सॉनेट के बजाय अपनी खुद की एक अनूठी सॉनेट राइम स्कीम (ABAB BCBC CDCD EE) का उपयोग किया। यह राइम स्कीम कविताओं के भीतर एक मजबूत संबंध और प्रवाह बनाती है।
- महत्व: यह 16वीं शताब्दी के अंत में लिखे गए बेहतरीन अंग्रेजी सॉनेट चक्रों में से एक माना जाता है, जो व्यक्तिगत और आध्यात्मिक प्रेम के गहन चित्रण के लिए महत्वपूर्ण है।
3. एपित्थेलेमियन (Epithalamion – 1595)
यह “एम्मोरट्टी” के साथ प्रकाशित हुआ था और यह एलिजाबेथ बॉयल के साथ स्पेंसर की अपनी शादी का उत्सव मनाने वाली एक लंबी और विस्तृत गीतिकाव्य (ode) है।
- विषय-वस्तु: यह कविता शादी के दिन की सुबह से लेकर रात तक की घटनाओं और भावनाओं का वर्णन करती है, जिसमें दुल्हन के जागरण, चर्च की ओर जुलूस, समारोह, उत्सव और अंततः विवाह कक्ष की ओर बढ़ने का चित्रण है। यह प्रेम, खुशी, पवित्रता और विवाह के आध्यात्मिक महत्व का एक सुंदर चित्रण है।
- शैली: “एपित्थेलेमियन” अपनी जटिल और संगीतात्मक संरचना के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें 24 स्टैंजा हैं जो दिन के घंटों को दर्शाते हैं। इसकी लय और मीटर उत्सव और आनंद को व्यक्त करने के लिए सावधानीपूर्वक तैयार किए गए हैं।
- महत्व: इसे अंग्रेजी भाषा में लिखी गई सबसे महान विवाह कविताओं में से एक माना जाता है। यह व्यक्तिगत खुशी और सार्वजनिक उत्सव का एक शानदार मिश्रण है, और स्पेंसर की गीतात्मक प्रतिभा का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
4. प्रोथेलेमियन (Prothalamion – 1596)
“प्रोथेलेमियन” एक “प्री-वेडिंग सॉन्ग” (pre-wedding song) है, जिसे स्पेंसर ने एलिजाबेथ बॉयल की दो बेटियों (लेडी एलिजाबेथ और लेडी कैथरीन सोमरसेट) की आगामी दोहरी शादी का सम्मान करने के लिए लिखा था।
- विषय-वस्तु: कविता में टेम्स नदी और उसके किनारे पर दो सुंदर हंसों (जो दो दुल्हनों का प्रतिनिधित्व करते हैं) के बारे में बताया गया है, जो एक शादी समारोह की ओर बढ़ रहे हैं। इसमें प्रकृति के सौंदर्य, खुशी और भविष्य के सुखों की कल्पना का वर्णन है।
- शैली: यह “एपित्थेलेमियन” की तरह ही एक संगीतमय और गीतात्मक कविता है, लेकिन यह कम व्यक्तिगत और अधिक औपचारिक है। इसकी संरचना एक छंद और एक कोरस के साथ अलग-अलग होती है।
- महत्व: यह स्पेंसर की गीतात्मक प्रतिभा का एक और उदाहरण है, और “एपित्थेलेमियन” के साथ मिलकर यह विवाह और उत्सव की कविताओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
इन कृतियों से पता चलता है कि स्पेंसर केवल “द फेयरी क्वीन” जैसे महाकाव्यों के ही नहीं, बल्कि विभिन्न शैलियों जैसे देहाती कविता, सॉनेट और विवाह गीतों के भी मास्टर थे। उनकी ये रचनाएँ अंग्रेजी पुनर्जागरण की साहित्यिक समृद्धि और प्रयोगशीलता को रेखांकित करती हैं।
स्पेंसर की मृत्यु
एडमंड स्पेंसर की मृत्यु 13 जनवरी 1599 को लंदन में हुई। उनकी मृत्यु की परिस्थितियों को लेकर कुछ मतभेद हैं, लेकिन यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि उनकी मृत्यु आयरलैंड में हुई उथल-पुथल के कारण हुई कठिनाइयों से संबंधित थी।
1598 में, आयरलैंड में “नाइन इयर्स वॉर” (Nine Years’ War) नामक एक बड़े विद्रोह के दौरान, आयरिश विद्रोहियों ने उनके किलकोलमैन कैसल (Kilcolman Castle) को जला दिया था। स्पेंसर और उनका परिवार मुश्किल से अपनी जान बचाकर भाग पाए थे। इस घटना ने उन्हें भावनात्मक और आर्थिक रूप से तोड़ दिया। वह पूरी तरह से बर्बाद हो चुके थे और उन्हें इंग्लैंड लौटना पड़ा।
बेन जॉनसन, जो स्पेंसर के समकालीन थे, ने बाद में दावा किया कि स्पेंसर की मृत्यु “रोटी की कमी के कारण” (for want of bread) हुई थी, जिसका अर्थ है कि वे गरीबी में मर गए थे। हालांकि, यह कथन कुछ हद तक संदिग्ध माना जाता है, क्योंकि स्पेंसर को महारानी से £50 प्रति वर्ष की पेंशन मिलती थी और वह कुछ आधिकारिक संदेशों के साथ लंदन आए थे। संभवतः, जॉनसन का कथन स्पेंसर द्वारा आयरलैंड में झेली गई भयानक परिस्थितियों और उनके अचानक हुए नुकसान पर एक अतिशयोक्तिपूर्ण टिप्पणी थी, न कि शाब्दिक गरीबी का संकेत।
स्पेंसर को लंदन के वेस्टमिंस्टर एब्बे में कवियों के कोने (Poets’ Corner) में दफनाया गया था, जो एक महान सम्मान था। अर्ल ऑफ एसेक्स ने उनके दफ़नाने का खर्चा उठाया था। किंवदंती है कि उनके अंतिम संस्कार में अन्य कवियों ने उनकी कब्र में अपनी कविताएँ और कलम फेंकी थीं, जो अंग्रेजी साहित्य में उनके सम्मान और प्रभाव को दर्शाती है।
अंग्रेजी कविता में उनका स्थायी योगदान
एडमंड स्पेंसर का अंग्रेजी कविता पर स्थायी और गहरा प्रभाव पड़ा है, जिसने उन्हें साहित्य के इतिहास में एक अमर स्थान दिलाया है:
- “द फेयरी क्वीन” का महाकाव्य महत्व: उनकी अधूरी महाकाव्य कविता “द फेयरी क्वीन” अंग्रेजी भाषा में लिखी गई सबसे महत्वाकांक्षी और महत्वपूर्ण कविताओं में से एक है। इसने अंग्रेजी को एक राष्ट्रीय महाकाव्य दिया, जो नैतिक रूपक, कल्पना और भव्यता का एक अनूठा मिश्रण था। इसने बाद के कवियों के लिए एक मानक स्थापित किया कि कैसे एक लंबी कथा कविता लिखी जाए जो गहरी नैतिक और दार्शनिक अंतर्दृष्टि प्रदान कर सके।
- स्पेंसरियन स्टांजा का आविष्कार: स्पेंसर ने एक नई और विशिष्ट छंद-योजना, स्पेंसरियन स्टांजा का आविष्कार किया। नौ पंक्तियों का यह जटिल और संगीतमय छंद, जिसमें एक लंबी अंतिम पंक्ति (अलेक्जेंड्राइन) होती है, ने अंग्रेजी कविता को एक नई लय और भव्यता प्रदान की। यह इतना प्रभावशाली था कि जॉन कीट्स, लॉर्ड बायरन, पर्सी बायशे शेली और अल्फ्रेड, लॉर्ड टेनीसन जैसे बाद के कई महान कवियों ने भी इसका उपयोग किया, जिससे इसकी स्थायी शक्ति और बहुमुखी प्रतिभा सिद्ध हुई।
- भाषा का संवर्धन और विकास: स्पेंसर ने अंग्रेजी भाषा की अभिव्यक्ति क्षमताओं का विस्तार किया। उन्होंने चाउसर से पुरातन शब्दों को पुनर्जीवित किया और नए शब्दों और अभिव्यक्तियों को गढ़ा, जिससे उनकी कविता को एक समृद्ध और अद्वितीय ध्वनि मिली। उनकी भाषा की संगीतात्मकता, जटिलता और दृश्य-चित्रण की क्षमता ने अंग्रेजी को एक सशक्त काव्य माध्यम के रूप में स्थापित किया।
- रूपकात्मक परंपरा का पुनरुत्थान: स्पेंसर ने नैतिक और धार्मिक रूपक (allegory) की परंपरा को पुनर्जीवित और परिष्कृत किया। “द फेयरी क्वीन” में उनके विस्तृत और बहुस्तरीय रूपक ने बाद के लेखकों को प्रभावित किया, जिन्होंने जटिल विचारों और नैतिक पाठों को कथा के माध्यम से व्यक्त करने का प्रयास किया।
- “कवियों के कवि” के रूप में प्रभाव: स्पेंसर को अक्सर “कवियों के कवि” कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अनगिनत बाद के कवियों को सीधे प्रेरित किया। जॉन मिल्टन ने “पैराडाइज लॉस्ट” लिखने के लिए स्पेंसर के महाकाव्य मॉडल से प्रेरणा ली। स्वच्छंदतावादी कवियों (रोमांटिक्स) ने स्पेंसर की कल्पना, प्रकृति प्रेम और मध्यकालीन विषयों के प्रति उनकी रुचि को अपनाया। उनकी शैली, कल्पना और नैतिक दृष्टि ने अंग्रेजी काव्य परंपरा को गहराई से प्रभावित किया।
- पुनर्जागरण आदर्शों का प्रतिनिधित्व: स्पेंसर की कविता अंग्रेजी पुनर्जागरण के उच्चतम आदर्शों – शास्त्रीय ज्ञान, राष्ट्रीय गौरव, नैतिक दृढ़ता और कलात्मक उत्कृष्टता – का प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने इस युग की साहित्यिक महत्वाकांक्षाओं को एक ठोस रूप दिया।
एडमंड स्पेंसर ने अपनी अद्वितीय काव्य शैली, विशेषकर स्पेंसरियन स्टांजा, और अपनी भव्य महाकाव्य “द फेयरी क्वीन” के माध्यम से अंग्रेजी कविता को एक नई दिशा और गहराई दी। उनकी मृत्यु भले ही दुखद परिस्थितियों में हुई हो, लेकिन उनका साहित्यिक योगदान इतना विशाल और स्थायी था कि वे अंग्रेजी साहित्य के इतिहास में एक अपरिहार्य व्यक्ति बन गए।
जॉन मिल्टन: जन्म और बचपन (1608)
जॉन मिल्टन का जन्म 9 दिसंबर, 1608 को लंदन, इंग्लैंड के चीपसाइड क्षेत्र में स्थित ब्रेड स्ट्रीट में हुआ था। वह एक ऐसे परिवार से आते थे जो साहित्य और कला के प्रति गहरी रुचि रखता था, जिसने उनके प्रारंभिक जीवन और बौद्धिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनके पिता, जिनका नाम भी जॉन मिल्टन था, एक सफल नोटरी और एक उत्साही संगीतकार थे। हालाँकि वे एक कठोर प्यूरिटन थे (एक प्रोटेस्टेंट ईसाई समूह जो चर्च के सुधार में विश्वास रखता था और सख्त नैतिक आचरण का पालन करता था), उन्होंने अपने बच्चों की शिक्षा और सांस्कृतिक विकास को बहुत महत्व दिया। मिल्टन के घर में संगीत और साहित्य का समृद्ध वातावरण था, और उनके पिता ने यह सुनिश्चित किया कि जॉन को सर्वोत्तम संभव शिक्षा मिले।
मिल्टन अपने बचपन से ही एक असाधारण छात्र थे। उन्हें अपनी पढ़ाई के प्रति गहरी लगन और कविता में रुचि के लिए जाना जाता था। उनके पिता ने उन्हें घर पर ही विभिन्न ट्यूटरों के माध्यम से पढ़ाया, और मिल्टन ने कम उम्र से ही कई भाषाओं का अध्ययन करना शुरू कर दिया, जिनमें लैटिन, ग्रीक और हिब्रू शामिल थीं। उनकी यह बहुभाषी क्षमता और शास्त्रीय ज्ञान की नींव उनके बाद के साहित्यिक कार्यों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
लगभग 12 साल की उम्र में, 1620 में, मिल्टन ने सेंट पॉल स्कूल में दाखिला लिया, जो लंदन का एक प्रतिष्ठित व्याकरण स्कूल था। यहाँ उन्होंने शास्त्रीय साहित्य और rhetoric (भाषण कला) का गहन अध्ययन जारी रखा। यह स्कूल उनके अकादमिक विकास के लिए महत्वपूर्ण था, जहाँ उन्होंने अपनी बौद्धिक जिज्ञासा को और निखारा।
बचपन से ही मिल्टन को एक गंभीर और समर्पित छात्र के रूप में देखा जाता था। वे अक्सर देर रात तक पढ़ाई करते थे, जिससे उनकी आँखों पर तनाव पड़ता था और अंततः उनके जीवन में बाद में अंधेपन का कारण भी बना। इस प्रारंभिक शिक्षा ने मिल्टन के मन में एक गहरा नैतिक और धार्मिक दृढ़ संकल्प पैदा किया, जो उनके जीवन और उनके महान महाकाव्यों का आधार बना। उनके पिता की इच्छा थी कि वे चर्च में पादरी बनें, लेकिन मिल्टन का अपना मार्ग अलग था, जिसे उन्होंने अपनी कविताओं और राजनीतिक लेखों के माध्यम से आगे बढ़ाया।
जॉन मिल्टन की बौद्धिक क्षमता और विद्वत्ता उनके जीवन और लेखन का एक केंद्रीय पहलू थी। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा से लेकर जीवन भर ज्ञानार्जन के प्रति असाधारण समर्पण दिखाया, जिससे उन्हें विभिन्न भाषाओं और विषयों में अद्वितीय निपुणता हासिल हुई।
गहन शिक्षा का मार्ग
मिल्टन की गहन शिक्षा उनके बचपन से ही शुरू हो गई थी, जिसे उनके पिता ने व्यक्तिगत ट्यूटरिंग और बाद में प्रतिष्ठित संस्थानों में भेजकर बढ़ावा दिया:
- प्रारंभिक घर पर शिक्षा: मिल्टन के पिता, जो स्वयं एक संगीतकार और विद्वान थे, ने सुनिश्चित किया कि उन्हें घर पर ही सर्वोत्तम प्रारंभिक शिक्षा मिले। उन्होंने कम उम्र से ही शास्त्रीय भाषाएँ जैसे लैटिन और ग्रीक सीखना शुरू कर दिया था। कहा जाता है कि वे बचपन से ही देर रात तक पढ़ाई करते थे, जिससे उनकी आँखों पर काफी दबाव पड़ता था।
- सेंट पॉल स्कूल (St. Paul’s School): लगभग 12 साल की उम्र में, मिल्टन ने सेंट पॉल स्कूल में दाखिला लिया, जो उस समय के सबसे बेहतरीन व्याकरण विद्यालयों में से एक था। यहाँ के पाठ्यक्रम में मानविकी के आदर्शों पर जोर दिया गया था, जिसमें शास्त्रीय साहित्य, rhetoric (भाषण कला) और तर्कशास्त्र का गहन अध्ययन शामिल था। इस दौरान उन्होंने वर्जिल, होमर, और थ्यूसिडाइड्स जैसे ग्रीक और लैटिन लेखकों को पढ़ा, साथ ही एडमंड स्पेंसर और फिलिप सिडनी जैसे समकालीन अंग्रेजी कवियों का भी अध्ययन किया।
- क्राइस्ट्स कॉलेज, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (Christ’s College, Cambridge University): 1625 में, मिल्टन ने कैम्ब्रिज के क्राइस्ट्स कॉलेज में प्रवेश लिया, जहाँ उन्होंने 1632 में मास्टर ऑफ़ आर्ट्स की डिग्री प्राप्त की। यहाँ उन्होंने दर्शनशास्त्र, साहित्य और धर्मशास्त्र सहित विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला का अध्ययन किया। कैम्ब्रिज में रहते हुए उन्होंने लैटिन, इतालवी और अंग्रेजी में कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था। हालाँकि उन्हें अपने एक ट्यूटर के साथ विवाद के कारण कुछ समय के लिए “rusticated” (अस्थायी रूप से निष्कासित) किया गया था, उन्होंने अकादमिक रूप से उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।
- स्वतंत्र अध्ययन और यूरोप यात्रा: कैम्ब्रिज से डिग्री प्राप्त करने के बाद, मिल्टन ने चर्च में पादरी बनने की अपनी प्रारंभिक योजना को त्याग दिया। इसके बजाय, उन्होंने लगभग छह साल (1632-1638) अपने पिता के ग्रामीण घर हॉर्टन में बिताए, जहाँ उन्होंने गहन स्वतंत्र अध्ययन किया। इस अवधि में उन्होंने अपनी सबसे महत्वपूर्ण प्रारंभिक कविताओं, जैसे “ऑन द मॉर्निंग ऑफ क्राइस्ट्स नेटिविटी,” “एल’एलेग्रो,” “इल पेंसेरोसो,” और “लिसिडास” की रचना की। 1638-39 में, उन्होंने फ्रांस और इटली की एक लंबी यात्रा की, जहाँ वे गैलीलियो जैसे विद्वानों से मिले और शास्त्रीय कला और साहित्य का अनुभव किया।
विभिन्न भाषाओं व विषयों में निपुणता
मिल्टन की विद्वत्ता उनकी अविश्वसनीय भाषाई क्षमताओं और विविध विषयों में उनकी गहरी समझ से प्रकट होती है:
- बहुभाषाविद्: मिल्टन कम से कम दस भाषाओं में पारंगत थे। इनमें शामिल हैं:
- लैटिन: उनकी कई रचनाएँ, विशेषकर उनके राजनीतिक ट्रैक्ट्स और प्रारंभिक कविताएँ, लैटिन में थीं। यह उस समय यूरोप भर के विद्वानों के बीच संचार की अंतरराष्ट्रीय भाषा थी।
- ग्रीक: उन्होंने प्राचीन यूनानी महाकाव्यों, नाटकों और दर्शनशास्त्र का गहन अध्ययन किया।
- हिब्रू: बाइबिल का गहन ज्ञान प्राप्त करने के लिए उन्होंने हिब्रू में महारत हासिल की, जो उनके महाकाव्य “पैराडाइज लॉस्ट” के लिए केंद्रीय था।
- इतालवी: वे इतालवी में इतने कुशल थे कि उन्होंने कुछ सॉनेट इतालवी में लिखे, और फ्लोरेंस में अपनी यात्रा के दौरान वे मूल इतालवी वक्ताओं की तरह धाराप्रवाह बोल सकते थे।
- फ्रेंच, स्पेनिश, जर्मन, अरामाईक, सिरिएक, और एंग्लो-सैक्सन (पुराना अंग्रेजी): उन्होंने इन भाषाओं का भी अध्ययन किया, जिससे उन्हें व्यापक साहित्यिक और ऐतिहासिक संदर्भों तक पहुँच मिली।
- विषयों की विशालता: मिल्टन के अध्ययन का क्षेत्र अत्यधिक व्यापक था:
- धर्मशास्त्र: एक गहरे प्यूरिटन के रूप में, वे बाइबिल, धर्मशास्त्र और चर्च के इतिहास के गहन विद्वान थे।
- दर्शनशास्त्र: उन्होंने प्राचीन और समकालीन दर्शनशास्त्रियों के कार्यों का अध्ययन किया, जिससे उनके लेखन में दार्शनिक गहराई आई।
- इतिहास: वे इतिहास के भी गहन पाठक थे, और उन्होंने अपने राजनीतिक विचारों को ऐतिहासिक मिसालों के आधार पर आकार दिया।
- गणित और विज्ञान: उन्होंने गणित और विज्ञान में भी रुचि ली।
- संगीत: अपने पिता की तरह, मिल्टन भी एक कुशल संगीतकार थे, और संगीत का प्रभाव उनकी कविताओं की लय और संगीतात्मकता में देखा जा सकता है।
- कानून और राजनीति: अंग्रेजी गृहयुद्ध के दौरान, उन्होंने कानून और राजनीति में गहराई से गोता लगाया, और संप्रभुता, स्वतंत्रता और सरकार के उचित रूप पर कई प्रभावशाली गद्य कार्य लिखे।
मिल्टन की यह गहन शिक्षा और विभिन्न भाषाओं व विषयों में निपुणता उनके साहित्यिक उत्पादन के लिए आधारशिला बनी। इसने उन्हें “पैराडाइज लॉस्ट” जैसे महाकाव्यों की रचना करने की क्षमता दी, जहाँ वे जटिल धार्मिक, दार्शनिक और ऐतिहासिक विचारों को एक भव्य और विद्वत्तापूर्ण काव्य रूप में एकीकृत कर सके। उनकी रचनाएँ उनकी विशाल बौद्धिक क्षमता और ज्ञान की अदम्य प्यास का प्रमाण हैं।
जॉन मिल्टन: प्रारंभिक लेखन और कविता के प्रति उनका समर्पण
जॉन मिल्टन का प्रारंभिक जीवन उनकी गहरी बौद्धिक जिज्ञासा और कविता के प्रति अटूट समर्पण का प्रमाण है। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अपनी शिक्षा के दौरान और उसके ठीक बाद, उन्होंने अपनी काव्य प्रतिभा को निखारना शुरू कर दिया था, हालांकि उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ बाद में ही सामने आईं।
कैम्ब्रिज में प्रारंभिक लेखन
कैम्ब्रिज में रहते हुए (1625-1632), मिल्टन ने मुख्य रूप से लैटिन, ग्रीक और इतालवी में कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था। यह उस समय के विद्वानों के लिए आम बात थी। उन्होंने इन शास्त्रीय भाषाओं में अपनी निपुणता का प्रदर्शन करते हुए कई छोटी कविताएँ और अभ्यास लिखे। उनकी इन प्रारंभिक लैटिन कविताओं में से कुछ उनके “पोएम्स, आदि” (Poems, &c. – 1645) संग्रह में शामिल की गई थीं। इन कविताओं से उनकी शास्त्रीय साहित्य की गहरी समझ और उनकी अपनी काव्य आवाज़ को खोजने की प्रक्रिया का पता चलता है।
कैम्ब्रिज में ही उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण अंग्रेजी कविताएँ भी लिखीं, जिनमें शामिल हैं:
- “ऑन द मॉर्निंग ऑफ क्राइस्ट्स नेटिविटी” (On the Morning of Christ’s Nativity – 1629): यह उनकी सबसे शुरुआती और प्रभावशाली अंग्रेजी कविताओं में से एक है। यह एक विस्तृत और जटिल ode (गीतिकाव्य) है जो यीशु मसीह के जन्म और उसके दुनिया पर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन करती है। यह कविता उनकी गहरी धार्मिक आस्था और काव्य भव्यता की शुरुआती झलक देती है।
- कुछ सॉनेट (Sonnets): उन्होंने इस अवधि में कुछ अंग्रेजी सॉनेट भी लिखे, जिनमें से कुछ निजी या प्रशंसात्मक प्रकृति के थे।
हॉर्टन में आत्म-समर्पण और लेखन
कैम्ब्रिज से स्नातक होने के बाद, मिल्टन ने चर्च में पादरी बनने के बजाय अपने पिता के ग्रामीण घर हॉर्टन, बकिंघमशायर में लगभग छह साल बिताने का निर्णय लिया (1632-1638)। यह उनके लिए गहन स्व-अध्ययन और काव्य आत्म-समर्पण की अवधि थी। उन्होंने इस समय का उपयोग अपनी शिक्षा को और गहरा करने और व्यापक रूप से पढ़ने में किया, जिसमें शास्त्रीय साहित्य, इतिहास, विज्ञान और धर्मशास्त्र शामिल थे।
हॉर्टन में ही उन्होंने अपनी कुछ सबसे बेहतरीन प्रारंभिक अंग्रेजी कविताओं की रचना की, जो उनकी गीतात्मक प्रतिभा और बाद के महाकाव्य कार्यों की नींव थीं:
- “एल’एलेग्रो” (L’Allegro) और “इल पेंसेरोसो” (Il Penseroso – दोनों लगभग 1631): ये दो विरोधाभासी कविताएँ हैं जो क्रमशः उल्लासपूर्ण, सामाजिक जीवन और गंभीर, एकांत चिंतनशील जीवन की प्रशंसा करती हैं। ये मिल्टन की गेय कौशल और प्रकृति व मानवीय भावनाओं के प्रति उनकी गहरी समझ को दर्शाती हैं।
- “लिसिडास” (Lycidas – 1637): यह एक देहाती शोकगीत (pastoral elegy) है जिसे मिल्टन ने अपने कैम्ब्रिज के दोस्त एडवर्ड किंग की आकस्मिक मृत्यु पर लिखा था। यह अंग्रेजी साहित्य के सबसे महान शोकगीतों में से एक मानी जाती है, जो दुःख, अमरता और दैवीय न्याय जैसे विषयों को संबोधित करती है। इसमें मिल्टन की गहन धार्मिक आस्था, शास्त्रीय संदर्भों का उपयोग और उनके असाधारण काव्य शिल्प का प्रदर्शन होता है। यह कविता उनके “महान कवि” बनने की यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर थी।
कविता के प्रति समर्पण
मिल्टन का कविता के प्रति समर्पण उनके जीवन के हर पहलू में स्पष्ट था:
- ईश्वरीय आह्वान: मिल्टन दृढ़ता से मानते थे कि उन्हें ईश्वर द्वारा एक महान कार्य करने के लिए चुना गया है, और उनकी कविता इस ईश्वरीय उद्देश्य को पूरा करने का एक माध्यम थी। उन्होंने महसूस किया कि उन्हें “चीजों को लिखना था जो मरने नहीं देंगी।”
- उत्कृष्टता की खोज: उन्होंने अपनी कला के उच्चतम स्तर को प्राप्त करने के लिए अथक प्रयास किया। वे अपनी कविताओं को पूरी तरह से निखारने के लिए लगातार संशोधन और प्रयोग करते थे।
- दीर्घकालिक लक्ष्य: “पैराडाइज लॉस्ट” जैसे महाकाव्य लिखने का उनका लक्ष्य उनके प्रारंभिक जीवन में ही विकसित हो गया था। उन्होंने अपनी युवावस्था से ही महसूस किया कि उन्हें एक ऐसी रचना करनी है जो अंग्रेजी भाषा के लिए स्थायी महत्व रखती हो।
- व्यक्तिगत त्याग: उन्होंने चर्च में एक आरामदायक करियर को त्याग दिया और खुद को साहित्य और विद्वत्ता के जीवन के लिए समर्पित कर दिया। यहां तक कि अपनी आंखों की रोशनी खोने के बाद भी उन्होंने अपनी काव्य यात्रा जारी रखी।
जॉन मिल्टन का प्रारंभिक लेखन उनके गहन अध्ययन, काव्य प्रतिभा और एक महान कवि बनने के उनके दृढ़ संकल्प का परिणाम था। हॉर्टन में बिताया गया समय उनके लिए एक ‘काव्य कार्यशाला’ जैसा था, जहाँ उन्होंने अपनी कला को परिष्कृत किया और उन विचारों व शैलियों को विकसित किया जो अंततः उन्हें अंग्रेजी के सबसे बड़े महाकाव्य कवि के रूप में स्थापित करेंगे।
जॉन मिल्टन: अंग्रेजी गृहयुद्ध और उनका राजनीतिक जुड़ाव
जॉन मिल्टन का जीवन और लेखन अंग्रेजी गृहयुद्ध (1642-1651) और उसके बाद के राजनीतिक उथल-पुथल से गहराई से प्रभावित था। एक कवि और विद्वान के रूप में अपनी प्रारंभिक पहचान के बावजूद, मिल्टन ने खुद को सक्रिय रूप से राजनीतिक संघर्ष में शामिल किया, अपने गद्य लेखन के माध्यम से संसदीय और प्यूरिटन कारण का समर्थन किया।
राजनीतिक झुकाव और गृहयुद्ध की शुरुआत
मिल्टन एक कट्टर प्यूरिटन थे, और उनकी धार्मिक और नैतिक मान्यताएँ उनकी राजनीतिक विचारधारा का आधार थीं। वह राजा चार्ल्स प्रथम के निरंकुश शासन और एंग्लिकन चर्च की नीतियों के आलोचक थे, जिन्हें वे दमनकारी और भ्रष्ट मानते थे। जब 1642 में राजा और संसद के बीच गृहयुद्ध छिड़ गया, तो मिल्टन ने दृढ़ता से संसद के पक्ष का समर्थन किया।
उन्होंने अपनी कविता लिखना बंद कर दिया और खुद को राजनीतिक और धार्मिक पर्चे लिखने के लिए समर्पित कर दिया। उनका मानना था कि यह ईश्वर और अपने देश की सेवा करने का उनका कर्तव्य है। इस अवधि में उन्होंने कई प्रभावशाली गद्य कार्य लिखे, जिनमें विवाह, तलाक, प्रेस की स्वतंत्रता और राजशाही की वैधता जैसे विवादास्पद विषयों पर उनके विचार प्रस्तुत किए गए।
कॉमनवेल्थ में भूमिका और ओलिवर क्रॉमवेल से संबंध
जब 1649 में राजा चार्ल्स प्रथम को फाँसी दी गई और इंग्लैंड को कॉमनवेल्थ (गणराज्य) घोषित किया गया, तो मिल्टन की राजनीतिक सक्रियता अपने चरम पर पहुँच गई। उन्हें राज्य परिषद के लैटिन सचिव (Latin Secretary to the Council of State) के रूप में नियुक्त किया गया, जो ओलिवर क्रॉमवेल के नेतृत्व वाली नई सरकार में एक महत्वपूर्ण पद था।
इस भूमिका में, मिल्टन का काम मुख्य रूप से कॉमनवेल्थ के आधिकारिक पत्राचार को लैटिन में तैयार करना था, क्योंकि लैटिन उस समय यूरोपीय कूटनीति की भाषा थी। उन्होंने कॉमनवेल्थ के बचाव में और राजशाही के विरोध में कई प्रभावशाली पर्चे भी लिखे। उनके कुछ महत्वपूर्ण राजनीतिक गद्य कार्य इस अवधि के हैं:
- “द टेन्योर ऑफ किंग्स एंड मजिस्ट्रेट्स” (The Tenure of Kings and Magistrates – 1649): इस पर्चे में उन्होंने तर्क दिया कि लोगों को एक अत्याचारी राजा को हटाने और उसे फाँसी देने का अधिकार है। यह चार्ल्स प्रथम के निष्पादन को सही ठहराने का एक प्रयास था।
- “इकोनोक्लास्ट्स” (Eikonoklastes – 1649): यह चार्ल्स प्रथम की कथित आत्मकथा “इकोन बेसिलिके” (Eikon Basilike) का खंडन था, जो राजा को एक शहीद के रूप में चित्रित करती थी। मिल्टन ने इस पर हमला किया और राजा के चरित्र और कार्यों की आलोचना की।
- “डिफेंसियो प्रो पोपुलो एंग्लिकानो” (Defensio pro Populo Anglicano – 1651) / “फर्स्ट डिफेंस”: यह एक लैटिन कृति थी जिसमें उन्होंने कॉमनवेल्थ के कार्यों का बचाव किया और यूरोपीय राजशाहीवादियों द्वारा चार्ल्स प्रथम के निष्पादन की निंदा का जवाब दिया।
- “एरियॉपैजिटिका” (Areopagitica – 1644): यह प्रेस की स्वतंत्रता के पक्ष में एक शक्तिशाली दलील है, जिसमें उन्होंने सेंसरशिप का विरोध किया। यह आज भी मुक्त भाषण के सबसे प्रभावशाली तर्कों में से एक मानी जाती है।
मिल्टन ने ओलिवर क्रॉमवेल को एक ऐसे नेता के रूप में देखा जो इंग्लैंड को धार्मिक और राजनीतिक स्वतंत्रता की ओर ले जा सकता था। उन्होंने क्रॉमवेल के शासन का समर्थन किया और उनके लिए महत्वपूर्ण कार्य किए। हालाँकि, क्रॉमवेल की मृत्यु और बाद में राजशाही की बहाली के साथ, मिल्टन के राजनीतिक सपने टूट गए।
राजशाही की बहाली और उसके बाद
1660 में राजशाही की बहाली (Restoration) के बाद, मिल्टन को गंभीर खतरे का सामना करना पड़ा क्योंकि वह कॉमनवेल्थ सरकार के एक प्रमुख व्यक्ति थे। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन अंततः उन्हें मुक्त कर दिया गया, संभवतः उनके दोस्तों और साहित्यिक संपर्कों के हस्तक्षेप के कारण। इस अवधि के बाद, मिल्टन ने खुद को पूरी तरह से कविता के लिए समर्पित कर दिया, और इसी समय उन्होंने अपनी महानतम कृतियों, “पैराडाइज लॉस्ट” (Paradise Lost), “पैराडाइज रीगेंड” (Paradise Regained), और “सैमसन एगोनिस्ट्स” (Samson Agonistes) की रचना की, जबकि वे पूरी तरह से अंधे हो चुके थे।
अंग्रेजी गृहयुद्ध में मिल्टन का जुड़ाव उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसने उन्हें एक सक्रिय राजनीतिक लेखक के रूप में स्थापित किया और उनके विचारों को आकार दिया, जो उनकी बाद की कविताओं में भी परिलक्षित होते हैं। उनकी रचनाएँ स्वतंत्रता, न्याय और मानव इच्छाशक्ति के विषयों पर उनके गहरे चिंतन को दर्शाती हैं, जो उनके राजनीतिक अनुभवों से प्रभावित थे।
जॉन मिल्टन एक महान कवि होने के साथ-साथ एक प्रभावशाली गद्य लेखक और राजनीतिक विचारक भी थे, जिन्होंने अपनी कलम का उपयोग स्वतंत्रता, धर्म और सरकार से संबंधित विषयों पर अपने कट्टरपंथी विचारों को व्यक्त करने के लिए किया। अंग्रेजी गृहयुद्ध के दौरान उनका गद्य लेखन विशेष रूप से महत्वपूर्ण रहा।
मिल्टन के प्रमुख गद्य कार्य
मिल्टन ने अपने जीवन में कई गद्य ट्रैक्ट्स (लघु ग्रंथ) और पर्चे लिखे, जिनमें से कुछ सबसे प्रमुख हैं:
- “ऑफ रिफॉर्मेशन” (Of Reformation – 1641): यह इंग्लैंड में चर्च सुधार के बारे में उनका प्रारंभिक गद्य कार्य था, जिसमें उन्होंने एंग्लिकन चर्च की पदानुक्रम और कैथोलिक परंपराओं की आलोचना की थी।
- “द डॉक्ट्रिन एंड डिसिप्लिन ऑफ डाइवोर्स” (The Doctrine and Discipline of Divorce – 1643): यह उनके सबसे विवादास्पद कार्यों में से एक था, जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि तलाक केवल व्यभिचार के आधार पर नहीं, बल्कि असंगतता के आधार पर भी वैध होना चाहिए। यह उनके व्यक्तिगत अनुभव से भी जुड़ा था, क्योंकि उनकी पहली शादी असफल रही थी।
- “एरियॉपैजिटिका” (Areopagitica – 1644): यह उनका सबसे प्रसिद्ध गद्य कार्य है, और इसे प्रेस की स्वतंत्रता (freedom of the press) के सबसे प्रभावशाली तर्कों में से एक माना जाता है। यह एक शक्तिशाली भाषण है जो उन्होंने अंग्रेजी संसद को संबोधित करते हुए लिखा था, जिसमें उन्होंने प्री-पब्लिकेशन सेंसरशिप (प्रकाशन पूर्व सेंसरशिप) का विरोध किया था।
- “द टेन्योर ऑफ किंग्स एंड मजिस्ट्रेट्स” (The Tenure of Kings and Magistrates – 1649): इस कार्य में उन्होंने तर्क दिया कि लोगों को एक अत्याचारी राजा को पद से हटाने और उसे फाँसी देने का अधिकार है। यह चार्ल्स प्रथम के निष्पादन को सही ठहराने का एक प्रयास था।
- “इकोनोक्लास्ट्स” (Eikonoklastes – 1649): यह चार्ल्स प्रथम की कथित आत्मकथा “इकोन बेसिलिके” (Eikon Basilike) का खंडन था, जिसमें राजा को एक शहीद के रूप में चित्रित किया गया था। मिल्टन ने इस पर हमला किया और राजा के चरित्र और कार्यों की आलोचना की।
स्वतंत्रता पर उनके विचार
मिल्टन स्वतंत्रता के प्रबल पक्षधर थे, लेकिन उनकी स्वतंत्रता की अवधारणा जटिल और बहुआयामी थी। उनके लिए स्वतंत्रता न केवल राजनीतिक थी बल्कि धार्मिक और व्यक्तिगत भी थी:
- राजनीतिक स्वतंत्रता (Political Liberty): मिल्टन ने राजशाही के निरंकुश शासन का विरोध किया और एक गणतांत्रिक सरकार का समर्थन किया जहाँ नागरिक अपनी सरकार में भाग ले सकें। उन्होंने माना कि जनता को अत्याचारी शासकों को चुनौती देने और उन्हें हटाने का अधिकार है। उनकी पुस्तक “द टेन्योर ऑफ किंग्स एंड मजिस्ट्रेट्स” इसी विचार को पुष्ट करती है।
- धार्मिक स्वतंत्रता (Religious Liberty): वह धार्मिक सहिष्णुता के पैरोकार थे, खासकर प्रोटेस्टेंट संप्रदायों के भीतर। उनका मानना था कि लोगों को अपनी विवेक के अनुसार ईश्वर की पूजा करने का अधिकार होना चाहिए, और किसी भी चर्च या राज्य को उन पर धार्मिक विश्वास थोपना नहीं चाहिए। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि उनकी सहिष्णुता कैथोलिकों तक विस्तारित नहीं थी, जिन्हें वे एक राजनीतिक और धार्मिक खतरा मानते थे।
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Individual Liberty): मिल्टन ने व्यक्तिगत विवेक और तर्क की क्षमता पर बहुत जोर दिया। उनका मानना था कि मनुष्य को सही और गलत के बीच चुनाव करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, क्योंकि इसी से सच्ची नैतिकता और गुण का विकास होता है। उनकी तलाक पर लिखी गई पुस्तक उनके इस विचार को दर्शाती है कि व्यक्तियों को वैवाहिक मामलों में भी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।
सेंसरशिप पर उनके विचार (विशेषकर “एरियॉपैजिटिका” में)
मिल्टन का सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली गद्य कार्य, “एरियॉपैजिटिका” (Areopagitica), सेंसरशिप के खिलाफ एक जोरदार तर्क प्रस्तुत करता है। यह 1643 के एक संसदीय अध्यादेश के जवाब में लिखा गया था, जिसके तहत सभी पुस्तकों को प्रकाशन से पहले लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य था। मिल्टन ने इस अध्यादेश का तीव्र विरोध किया और तर्क दिया कि सेंसरशिप गलत और हानिकारक है:
- सत्य की खोज के लिए हानिकारक: मिल्टन का मानना था कि सत्य एक “स्ट्रीमिंग फाउंटेन” (बहते हुए झरने) की तरह है, और इसे स्वतंत्र और खुले विचारों के टकराव के माध्यम से ही खोजा जा सकता है। उन्होंने प्रसिद्ध रूप से कहा, “सत्य को झोंपड़ी में रखो, और उसे असत्य के साथ जूझने दो; जिसने कभी खुले और स्वतंत्र मुकाबले में सत्य को पराजित होते देखा है?” (Who ever knew Truth put to the worse, in a free and open encounter?). सेंसरशिप सत्य की खोज में बाधा डालती है और ज्ञान के विकास को रोकती है।
- नैतिक विकास के लिए आवश्यक: मिल्टन ने तर्क दिया कि नैतिक गुण निष्क्रिय आज्ञाकारिता से नहीं, बल्कि प्रलोभन और बुराई का सामना करके और जानबूझकर सही का चुनाव करके विकसित होते हैं। यदि व्यक्ति को केवल “अच्छी” किताबें पढ़ने की अनुमति दी जाती है, तो वे बुराई को समझने और उससे बचने के लिए आवश्यक विवेक विकसित नहीं कर पाएंगे। सेंसरशिप व्यक्तियों को नैतिक रूप से अपरिपक्व बनाती है।
- सेंसरशिप का दमनकारी इतिहास: उन्होंने बताया कि प्री-पब्लिकेशन सेंसरशिप का इतिहास कैथोलिक चर्च (विशेष रूप से स्पेनिश इनक्विजिशन) से जुड़ा हुआ है, जिसे वे दमनकारी मानते थे। उन्होंने संसद से आग्रह किया कि वे ऐसी प्रथाओं को न अपनाएँ जो उन लोगों की हैं जिनसे वे लड़ रहे थे।
- अव्यावहारिक और अप्रभावी: मिल्टन ने यह भी तर्क दिया कि सेंसरशिप अव्यावहारिक है क्योंकि इसे प्रभावी ढंग से लागू करना असंभव है। आप विचारों को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं? एक किताब को सेंसर करने का मतलब केवल विचारों को दबाना है, उन्हें मिटाना नहीं।
- ज्ञान और शिक्षा का ह्रास: सेंसरशिप विद्वानों को हतोत्साहित करती है और ज्ञान के प्रसार को धीमा करती है। यह सीखने की प्रक्रिया को बाधित करती है और समाज को समग्र रूप से कम सूचित बनाती है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मिल्टन की “स्वतंत्रता” की अवधारणा आधुनिक उदारवादी अर्थों में पूरी तरह से व्यापक नहीं थी। वह कैथोलिकों या कुछ विशेष धार्मिक पंथों के लिए पूरी तरह से स्वतंत्रता के पक्षधर नहीं थे, जिन्हें वे राज्य के लिए खतरा मानते थे। इसके बावजूद, “एरियॉपैजिटिका” प्रेस की स्वतंत्रता और विचारों के खुले आदान-प्रदान के लिए एक मौलिक और स्थायी तर्क बना हुआ है, जिसने प्रबुद्धता के विचारकों और आधुनिक लोकतांत्रिक समाजों को गहराई से प्रभावित किया है।
जॉन मिल्टन: अंधेपन की चुनौती और उसका उनके जीवन व लेखन पर प्रभाव
जॉन मिल्टन का जीवन उनकी बढ़ती हुई अंधता की चुनौती से गहराई से चिह्नित था, जिसने न केवल उनके दैनिक जीवन को प्रभावित किया बल्कि उनके महानतम साहित्यिक कार्यों को भी आकार दिया। यह उनके दृढ़ संकल्प, ईश्वर में उनकी आस्था और मानवीय भावना की अदम्य शक्ति का एक शक्तिशाली उदाहरण है।
अंधापन का विकास और उसका प्रभाव
मिल्टन को अपनी युवावस्था से ही आँखों की समस्याएँ थीं। वह अत्यधिक अध्ययन करते थे, अक्सर देर रात तक पढ़ते थे, जिससे उनकी आँखों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता था। 1640 के दशक में, उनकी आँखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगी।
1652 तक, 43 वर्ष की आयु में, मिल्टन पूरी तरह से अंधे हो गए थे। यह उनके लिए एक व्यक्तिगत और पेशेवर त्रासदी थी। जिस व्यक्ति ने अपना जीवन सीखने, पढ़ने और लिखने के लिए समर्पित कर दिया था, उसके लिए यह एक असहनीय क्षति थी। इसके बावजूद, उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ा। जिस समय वे पूरी तरह अंधे हुए, उस समय वे कॉमनवेल्थ सरकार में लैटिन सचिव के रूप में कार्य कर रहे थे और यूरोपीय राजशाहीवादियों के खिलाफ ओलिवर क्रॉमवेल के शासन का बचाव करने वाले महत्वपूर्ण गद्य कार्य लिख रहे थे। उन्होंने इन कार्यों को श्रुतलेख (dictation) के माध्यम से पूरा करना जारी रखा।
अंधेपन ने उनके सामाजिक जीवन को भी प्रभावित किया, जिससे वे बाहरी दुनिया से कुछ हद तक कट गए। उन्हें दूसरों पर निर्भर रहना पड़ा, जो एक स्वतंत्र विचारों वाले व्यक्ति के लिए एक कठिन बदलाव था। हालाँकि, उन्होंने इस चुनौती को एक आंतरिक शक्ति में बदल दिया।
लेखन पर गहरा प्रभाव
मिल्टन का अंधापन उनके बाद के और सबसे महत्वपूर्ण लेखन पर कई मायनों में परिलक्षित होता है:
- “पैराडाइज लॉस्ट” का जन्म: मिल्टन की सबसे महान कृति, “पैराडाइज लॉस्ट” (Paradise Lost), उनके अंधे होने के बाद ही पूरी हुई थी। यह एक असाधारण उपलब्धि है। उन्होंने कविता का श्रुतलेख अपनी बेटियों या सहायकों को दिया, जिन्होंने इसे लिखा। यह शारीरिक बाधा उनके आंतरिक “दृष्टि” और कल्पना को और तेज करने वाली प्रतीत होती है।
- आंतरिक प्रकाश की थीम: कविता में अक्सर ‘प्रकाश’ और ‘अंधेरे’ की थीम का उपयोग किया गया है। शैतान के दायरे को ‘अंधकारमय’ चित्रित किया गया है, जबकि स्वर्ग और ईश्वर ‘प्रकाश’ से जुड़े हैं। मिल्टन स्वयं अपनी ‘आंतरिक रोशनी’ (celestial light) के लिए प्रार्थना करते हैं ताकि वे ‘अंधकार’ में भी देख सकें और अपनी कविता को पूरा कर सकें। यह उनके व्यक्तिगत अनुभव का सीधा प्रतिबिंब है।
- आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि पर जोर: अपने अंधापन के कारण बाहरी दुनिया से कट जाने से मिल्टन को अपने भीतर, आध्यात्मिक और बौद्धिक दुनिया में गहरा गोता लगाने का अवसर मिला। “पैराडाइज लॉस्ट” की गहन दार्शनिक और धार्मिक जटिलता शायद इसी आंतरिक यात्रा का परिणाम है।
- “सैमसन एगोनिस्ट्स” (Samson Agonistes – 1671): यह एक नाटकीय कविता है जो बाइबिल के चरित्र सैमसन पर आधारित है, जिसे फिलिस्तीनियों द्वारा अंधा कर दिया गया था। मिल्टन ने सैमसन की कहानी का उपयोग अपनी व्यक्तिगत पीड़ा और निराशा को व्यक्त करने के लिए किया।
- व्यक्तिगत पीड़ा का प्रतिबिंब: सैमसन की अंधता, कारावास और उत्पीड़न मिल्टन के स्वयं के अनुभवों और भावनाओं को दर्शाते हैं: अपनी खोई हुई दृष्टि, राजशाही की बहाली के बाद उनकी राजनीतिक निराशा, और उनकी व्यक्तिगत असुरक्षा।
- धैर्य और दैवीय न्याय: कविता अंधता और अपमान के माध्यम से दैवीय न्याय और धैर्य की थीम का अन्वेषण करती है। सैमसन अंततः ईश्वर की इच्छा को स्वीकार करता है और एक वीर बलिदान देता है, जो मिल्टन के अपने विश्वास और भाग्य के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
- “ऑन हिज ब्लाइंडनेस” (On His Blindness): यह एक प्रसिद्ध सॉनेट (Sonnet XIX) है, जिसे मिल्टन ने अपने अंधेपन के बारे में लिखा था। इसमें उन्होंने अपनी दृष्टि खोने पर अपनी निराशा और संदेह व्यक्त किया, लेकिन अंततः ईश्वर की सेवा में धैर्य और विनम्रता के महत्व को स्वीकार किया। यह उनकी सबसे व्यक्तिगत और मार्मिक कविताओं में से एक है।
- श्रवण और स्मृति पर निर्भरता: अंधेपन ने मिल्टन को अपनी श्रवण शक्ति और स्मृति पर अधिक निर्भर रहने के लिए मजबूर किया। कहा जाता है कि वे अपनी कविताएँ जोर से दोहराते थे ताकि उन्हें याद रख सकें और फिर उन्हें लिखवा सकें। इससे उनकी कविता की संगीतात्मकता और लय पर भी प्रभाव पड़ा होगा, क्योंकि उन्होंने इसे सुनने और बोलने के लिए अनुकूल बनाया होगा।
जॉन मिल्टन का अंधापन उनके जीवन की एक दुखद चुनौती थी, लेकिन उन्होंने इसे अपनी रचनात्मकता के लिए एक प्रेरणा में बदल दिया। इसने उन्हें बाहरी दुनिया से अलग किया और उन्हें अपनी आंतरिक कल्पना और आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर किया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी सबसे गहरी और स्थायी साहित्यिक कृतियाँ सामने आईं। यह उनके अटूट दृढ़ संकल्प और एक कवि के रूप में उनकी महानता का एक शक्तिशाली प्रमाण है।
“पैराडाइज लॉस्ट” की रचना प्रक्रिया और प्रेरणा
जॉन मिल्टन की महाकाव्य कविता “पैराडाइज लॉस्ट” (Paradise Lost) अंग्रेजी साहित्य की सबसे महान कृतियों में से एक है। इसकी रचना प्रक्रिया और प्रेरणा दोनों ही मिल्टन के जीवन, उनकी गहरी विद्वत्ता और उनके समय की ऐतिहासिक-धार्मिक पृष्ठभूमि से गहराई से जुड़ी हुई हैं।
रचना प्रक्रिया
“पैराडाइज लॉस्ट” की रचना एक लंबी और श्रमसाध्य प्रक्रिया थी, जो मिल्टन के जीवन के सबसे चुनौतीपूर्ण समय में पूरी हुई:
- प्रारंभिक विचार (1639 से): मिल्टन के मन में एक महान महाकाव्य लिखने का विचार बहुत पहले, लगभग 1639 में ही आ गया था। उन्होंने शुरू में राजा आर्थर या ब्रूटस (ब्रिटेन के पौराणिक संस्थापक) जैसे अंग्रेजी ऐतिहासिक या पौराणिक विषयों पर विचार किया था। हालाँकि, उन्होंने अंततः बाइबिल के विषय को चुना, क्योंकि उनका मानना था कि इसमें अधिक सार्वभौमिक और नैतिक महत्व है।
- काव्य विराम और गद्य लेखन (1640-1658): अंग्रेजी गृहयुद्ध (1642-1651) के दौरान, मिल्टन ने अपनी कविता लिखना बंद कर दिया और खुद को राजनीतिक और धार्मिक गद्य कार्यों के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने कॉमनवेल्थ सरकार में एक प्रमुख भूमिका निभाई और कई प्रभावशाली पर्चे लिखे। यह अवधि लगभग 20 वर्षों तक चली। इस दौरान उनके महाकाव्य का विचार उनके मन में पृष्ठभूमि में बना रहा।
- रचना की वास्तविक शुरुआत (1658): मिल्टन ने पूरी लगन के साथ “पैराडाइज लॉस्ट” लिखना 1658 में शुरू किया। यह एक आश्चर्यजनक उपलब्धि थी, क्योंकि इस समय तक वह पूरी तरह से अंधे हो चुके थे (1652 में) और राजनीतिक रूप से भी हाशिए पर थे (राजशाही की बहाली आसन्न थी)।
- अंधेपन में श्रुतलेख (Dictation in Blindness): कविता के अधिकांश भाग का श्रुतलेख मिल्टन ने अपनी बेटियों या सहायकों को दिया था, जिन्होंने इसे लिखा था। मिल्टन सुबह उठते ही अपनी कुछ पंक्तियाँ रच लेते थे, और फिर उन्हें दूसरों को लिखवाते थे। यह कार्य उनके लिए अत्यंत कठिन था, क्योंकि उन्हें अपनी विशाल काव्य दृष्टि और जटिल विचारों को केवल अपनी स्मृति और श्रवण शक्ति पर निर्भर रहते हुए व्यक्त करना था।
- पूरा होने और प्रकाशन (1663-1667): मिल्टन ने 1663 में इस महाकाव्य को पूरा किया। इसे पहली बार 1667 में 10 किताबों के रूप में प्रकाशित किया गया था, जिसमें लगभग 10,565 पंक्तियाँ थीं। बाद के 1674 के दूसरे संस्करण में, मिल्टन ने कविता को 12 किताबों में पुनर्गठित किया और कुछ संशोधन किए। यह “ब्लैंक वर्स” (unrhymed iambic pentameter) में लिखा गया है, जिसने इसे एक भव्य और स्वाभाविक प्रवाह दिया।
प्रेरणा के स्रोत
मिल्टन को “पैराडाइज लॉस्ट” लिखने के लिए कई स्रोतों से प्रेरणा मिली:
- बाइबिल और धार्मिक आस्था: यह सबसे महत्वपूर्ण प्रेरणा थी। मिल्टन एक गहरे प्यूरिटन ईसाई थे और बाइबिल के गहन विद्वान थे। “पैराडाइज लॉस्ट” की केंद्रीय कथा बाइबिल के उत्पत्ति ग्रंथ (Book of Genesis) से ली गई है: शैतान का स्वर्ग से पतन, मनुष्य का निर्माण, आदम और हव्वा का ज्ञान के वृक्ष के फल का सेवन करके स्वर्ग से निष्कासन, और मानव जाति पर पाप का प्रभाव। मिल्टन का उद्देश्य “ईश्वर के मार्गों को मनुष्य के प्रति उचित ठहराना” (to justify the ways of God to men) था।
- शास्त्रीय महाकाव्य परंपरा: मिल्टन ने होमर के “इलियड” और “ओडिसी” तथा वर्जिल के “एनीड” जैसे शास्त्रीय महाकाव्यों से प्रेरणा ली। उन्होंने उनकी शैली, संरचना (जैसे ‘इन मीडिया रेस’ – कहानी के बीच में शुरू करना) और भव्यता का अनुकरण किया। उनका लक्ष्य एक ऐसा अंग्रेजी महाकाव्य बनाना था जो इन प्राचीन क्लासिक्स के बराबर हो या उनसे भी बढ़कर हो।
- पुनर्जागरण साहित्य और दर्शन: मिल्टन ने पुनर्जागरण के दौरान विकसित हुए साहित्य और दर्शन का गहन अध्ययन किया था। एडमंड स्पेंसर की “द फेयरी क्वीन” ने उन्हें अंग्रेजी में एक महाकाव्य लिखने के लिए प्रेरित किया होगा। पुनर्जागरण के दौरान मानव की तर्क क्षमता और स्वतंत्र इच्छा पर जोर ने भी उनके विचारों को आकार दिया।
- व्यक्तिगत और राजनीतिक अनुभव:
- अंधापन: जैसा कि पहले बताया गया है, मिल्टन का अंधापन उनके लिए एक व्यक्तिगत त्रासदी थी, लेकिन इसने उन्हें आंतरिक “दृष्टि” और आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि विकसित करने के लिए प्रेरित किया, जो उनकी कविता में ‘प्रकाश’ और ‘अंधेरे’ के विषयों में परिलक्षित होता है।
- राजनीतिक निराशा: राजशाही की बहाली और कॉमनवेल्थ सरकार का पतन मिल्टन के लिए एक बड़ा राजनीतिक झटका था। उन्होंने शायद महसूस किया कि उनके राजनीतिक आदर्श विफल हो गए हैं। “पैराडाइज लॉस्ट” में विद्रोह, स्वतंत्रता, और पतन के विषय उनके इन अनुभवों से प्रेरित हो सकते हैं। शैतान का चरित्र, जो अपने विद्रोह के बावजूद एक शक्तिशाली और करिश्माई व्यक्ति है, कुछ विद्वानों द्वारा मिल्टन के अपने राजनीतिक संघर्षों के प्रतिबिंब के रूप में देखा जाता है।
- मानव स्वतंत्रता: मिल्टन स्वतंत्रता के प्रबल पक्षधर थे। “पैराडाइज लॉस्ट” में, ईश्वर आदम और हव्वा को स्वतंत्र इच्छा देता है, और उनका पतन इसी स्वतंत्र इच्छा के उपयोग का परिणाम है। मिल्टन यह दिखाना चाहते थे कि मानव अपने भाग्य के लिए स्वयं जिम्मेदार है।
“पैराडाइज लॉस्ट” मिल्टन की जीवन भर की बौद्धिक यात्रा, उनकी अटूट धार्मिक आस्था, उनकी शास्त्रीय विद्वत्ता और उनके व्यक्तिगत व राजनीतिक अनुभवों का एक संश्लेषण है। यह एक ऐसी कृति है जो अंधता की चुनौती के बावजूद अदम्य रचनात्मकता और एक गहन, सार्वभौमिक संदेश को प्रस्तुत करती है।
“पैराडाइज लॉस्ट” की केंद्रीय विषय-वस्तु: पतन, स्वतंत्र इच्छा और मोक्ष
जॉन मिल्टन के महाकाव्य “पैराडाइज लॉस्ट” की केंद्रीय विषय-वस्तुएँ गहन धार्मिक और दार्शनिक महत्व रखती हैं। ये तीन स्तंभ – पतन (The Fall), स्वतंत्र इच्छा (Free Will), और मोक्ष (Salvation/Redemption) – पूरी कविता को एक साथ बांधते हैं और मिल्टन के “ईश्वर के मार्गों को मनुष्य के प्रति उचित ठहराने” के घोषित उद्देश्य को पूरा करते हैं।
1. पतन (The Fall)
“पतन” इस महाकाव्य की कथा का मूल है। यह दो मुख्य घटनाओं को संदर्भित करता है:
- शैतान और विद्रोही स्वर्गदूतों का पतन: कविता की शुरुआत स्वर्ग से शैतान और उसके अनुयायी स्वर्गदूतों के पतन से होती है। उन्होंने ईश्वर की संप्रभुता के विरुद्ध विद्रोह किया था, जब ईश्वर ने अपने पुत्र को स्वर्गदूतों का मुखिया घोषित किया। उनके अभिमान, महत्वाकांक्षा और अवज्ञा के कारण उन्हें स्वर्ग से नरक (Hell) में धकेल दिया गया, जिसे ‘पतन’ का पहला रूप माना जाता है। शैतान का पतन उसके अपने भीतर के पाप और ईश्वर के प्रति घृणा का परिणाम था, न कि ईश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित।
- आदम और हव्वा का पतन: यह मानव जाति का ‘पतन’ है, जब आदम और हव्वा ईश्वर के आदेश की अवज्ञा करते हुए ज्ञान के वृक्ष के वर्जित फल को खाते हैं। यह पाप, जिसे ‘मूल पाप’ (Original Sin) कहा जाता है, मानवजाति के दुःख, मृत्यु और स्वर्ग से निष्कासन का कारण बनता है। यह पतन ईश्वर की क्रूरता के कारण नहीं, बल्कि आदम और हव्वा की अपनी स्वतंत्र इच्छा के प्रयोग के कारण होता है। मिल्टन इस घटना को नैतिक, शारीरिक और आध्यात्मिक पतन के रूप में चित्रित करते हैं, जिससे मनुष्य का ईश्वर के साथ सीधा संबंध टूट जाता है।
मिल्टन पतन को आकस्मिक घटना के रूप में नहीं देखते, बल्कि इसे स्वतंत्र नैतिक विकल्प के परिणाम के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
2. स्वतंत्र इच्छा (Free Will)
स्वतंत्र इच्छा “पैराडाइज लॉस्ट” की सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिक विषय-वस्तु है। मिल्टन दृढ़ता से मानते थे कि मनुष्य को नैतिक चुनाव करने की वास्तविक क्षमता प्राप्त है।
- ईश्वर का न्याय और प्रेम: मिल्टन का तर्क है कि ईश्वर न्यायपूर्ण और प्रेमी है क्योंकि उसने अपने प्राणियों (स्वर्गदूतों और मनुष्यों) को स्वतंत्र इच्छा दी है। यदि उनके पास चुनने की स्वतंत्रता नहीं होती, तो उनकी आज्ञाकारिता अर्थहीन होती और उनके गुण वास्तविक नहीं होते। ईश्वर ने उन्हें स्वतंत्र रूप से प्यार करने और उसकी आज्ञा का पालन करने का अवसर दिया, क्योंकि केवल तभी उनका प्रेम और आज्ञाकारिता वास्तविक और मूल्यवान होगी।
- पतन का कारण: शैतान और आदम-हव्वा दोनों अपने पतन के लिए स्वयं जिम्मेदार थे क्योंकि उन्होंने अपनी स्वतंत्र इच्छा का उपयोग ईश्वर की आज्ञा के विरुद्ध किया। शैतान ने जानबूझकर विद्रोह को चुना। आदम और हव्वा को चेतावनी दी गई थी, लेकिन उन्होंने हव्वा के बहकावे और आदम के हव्वा के प्रति प्रेम के कारण अवज्ञा करना चुना। यह दर्शाता है कि उनका पतन किसी पूर्वनियति का परिणाम नहीं था, बल्कि उनके अपने विवेकपूर्ण निर्णय का परिणाम था।
- नैतिकता का आधार: मिल्टन के लिए, स्वतंत्र इच्छा ही नैतिकता का आधार है। यदि मनुष्य को चुनाव करने की स्वतंत्रता नहीं होती, तो ‘अच्छा’ या ‘बुरा’ जैसा कुछ नहीं होता। केवल चुनाव करने की क्षमता ही उन्हें नैतिक प्राणी बनाती है। यही कारण है कि ईश्वर ‘बुराई’ को मौजूद रहने देता है – क्योंकि यदि बुराई नहीं होगी, तो अच्छाई का चुनाव करना संभव नहीं होगा, और इस प्रकार गुण का कोई अर्थ नहीं होगा।
3. मोक्ष (Salvation / Redemption)
पतन और स्वतंत्र इच्छा के परिणामों के बावजूद, मिल्टन आशा और मोक्ष (Redemption) की संभावना प्रस्तुत करते हैं। यह विषय ईश्वर की दया और मनुष्य के लिए उसके प्रेम को दर्शाता है:
- पुत्र की भूमिका: ईश्वर पुत्र (जीसस क्राइस्ट) स्वेच्छा से मानव जाति के पापों के लिए स्वयं को बलिदान करने के लिए तैयार हो जाता है। यह बलिदान मनुष्य को ईश्वर की कृपा और मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग प्रदान करता है। पुत्र मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है, जो मनुष्य के लिए आशा की किरण है।
- अनुग्रह और पश्चाताप: मोक्ष केवल पुत्र के बलिदान के माध्यम से ही संभव नहीं है, बल्कि इसके लिए मनुष्य के पश्चाताप (repentance) और विनम्रता की भी आवश्यकता होती है। आदम और हव्वा का सच्चा पश्चाताप और ईश्वर की दया के लिए उनकी प्रार्थनाएँ ही उन्हें मोक्ष के मार्ग पर लाती हैं। यह ईश्वर के अनुग्रह (grace) के विचार को दर्शाता है, जो पश्चाताप करने वालों के लिए उपलब्ध है।
- आशा का अंत: हालांकि आदम और हव्वा को स्वर्ग से निष्कासित कर दिया जाता है, कविता का अंत पूरी निराशा में नहीं होता। उन्हें भविष्य में मसीह के आने और मानव जाति के लिए मोक्ष की संभावना का दर्शन कराया जाता है। यह अंत पाठकों को आशा और विश्वास के साथ छोड़ता है कि पतन अंतिम शब्द नहीं है, और मनुष्य के लिए उद्धार का मार्ग हमेशा खुला है।
“पैराडाइज लॉस्ट” केवल एक महाकाव्य नहीं है जो बाइबिल की कहानी सुनाता है; यह मनुष्य के सबसे गहन दार्शनिक प्रश्नों का पता लगाता है: बुराई कहाँ से आती है? हम स्वतंत्र कैसे हो सकते हैं यदि ईश्वर सर्वशक्तिमान है? और पतन के बाद भी मोक्ष की आशा कहाँ है? मिल्टन इन प्रश्नों का उत्तर अपनी गहन धार्मिक आस्था और स्वतंत्र इच्छा में अटूट विश्वास के माध्यम से देते हैं, यह दर्शाते हुए कि मनुष्य को अपने कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाता है, लेकिन ईश्वर का प्रेम और मोक्ष हमेशा उन लोगों के लिए उपलब्ध है जो पश्चाताप करते हैं।
“पैराडाइज लॉस्ट” की साहित्यिक शैली और बाइबिल के संदर्भ
जॉन मिल्टन की “पैराडाइज लॉस्ट” केवल एक धार्मिक महाकाव्य नहीं है, बल्कि एक साहित्यिक कृति भी है जो अपनी अनूठी शैली और बाइबिल के गहन संदर्भों के लिए जानी जाती है। ये दोनों पहलू मिलकर इसे अंग्रेजी साहित्य में एक अद्वितीय स्थान दिलाते हैं।
साहित्यिक शैली
“पैराडाइज लॉस्ट” कई काव्यगत और अलंकारिक विशेषताओं को प्रदर्शित करती है जो इसे इसकी विशिष्ट शैली प्रदान करती हैं:
- ब्लैंक वर्स (Blank Verse): मिल्टन ने “पैराडाइज लॉस्ट” को अनराइम्ड आइम्बिक पेंटामीटर (unrhymed iambic pentameter) में लिखा था। इसे आमतौर पर “ब्लैंक वर्स” के नाम से जाना जाता है। उस समय के लिए यह एक क्रांतिकारी चुनाव था, क्योंकि अधिकांश महाकाव्य कविताओं में तुकबंदी (rhyme) का उपयोग किया जाता था। मिल्टन का मानना था कि ब्लैंक वर्स अधिक गरिमापूर्ण, गंभीर और “वीर” (heroic) है, जो उनकी भव्य विषय-वस्तु के लिए उपयुक्त है। यह उन्हें भाषा को अधिक स्वाभाविक, नाटकीय और विचारों को बिना किसी कृत्रिमता के प्रवाहित करने की अनुमति देता है।
- उदाहरण: “Of Man’s first disobedience, and the fruit / Of that forbidden tree, whose mortal taste / Brought Death into the World, and all our woe…”
- महाकाव्यीय आह्वान (Epic Invocation): शास्त्रीय महाकाव्यों की परंपरा का पालन करते हुए, मिल्टन अपनी कविता की शुरुआत में म्यूज (काव्य देवी) या पवित्र आत्मा का आह्वान करते हैं। यह आह्वान उन्हें अपने ‘महान और अप्रयुक्त’ विषय के लिए दैवीय प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त करने का अनुरोध है। यह कविता के भव्य पैमाने और धार्मिक उद्देश्य को तुरंत स्थापित करता है।
- महाकाव्यीय सिमिली (Epic Similes): मिल्टन ने लंबे, विस्तृत और अक्सर जटिल महाकाव्यीय उपमाओं का उपयोग किया। ये उपमाएँ अक्सर प्रकृति, पौराणिक कथाओं, या इतिहास से ली जाती हैं, और वे मुख्य कथा से हटकर एक नया दृश्य प्रस्तुत करती हैं, जिससे वर्णन में समृद्धि और गहराई आती है। उदाहरण के लिए, शैतान के विशाल आकार की तुलना मिस्र के फिरौन की सेना के खिलाफ खड़े हुए विशाल सेना से की जाती है।
- लैटिनकृत वाक्य-विन्यास और शब्द-चयन (Latinate Syntax and Diction): मिल्टन ने अपनी कविता में अक्सर लैटिन भाषा के वाक्य-विन्यास (word order) और शब्दावली का उपयोग किया। इससे उनकी भाषा भव्य, औपचारिक और विद्वत्तापूर्ण लगती है, लेकिन कभी-कभी आधुनिक पाठक के लिए जटिल भी हो सकती है। उन्होंने साधारण शब्दों को भी लैटिन अर्थ में प्रयोग किया।
- उच्च और गंभीर स्वर (Elevated and Grand Tone): कविता का समग्र स्वर गंभीर, नैतिक और भव्य है। मिल्टन का लक्ष्य सबसे बड़े विषयों को संबोधित करना था – ब्रह्मांड का निर्माण, बुराई का मूल, और मोक्ष की आशा – और उनकी शैली इस महत्वाकांक्षा को दर्शाती है।
- व्यापक साहित्यिक और पौराणिक संदर्भ (Extensive Allusions): बाइबिल के संदर्भों के अलावा, मिल्टन ने शास्त्रीय ग्रीक और रोमन पौराणिक कथाओं, इतिहास, दर्शनशास्त्र और अन्य यूरोपीय साहित्यों से भी व्यापक संदर्भ लिए हैं, जो उनकी व्यापक विद्वत्ता को प्रदर्शित करते हैं।
बाइबिल के संदर्भ
“पैराडाइज लॉस्ट” बाइबिल, विशेष रूप से उत्पत्ति ग्रंथ (Book of Genesis) और नए नियम (New Testament) पर आधारित है, और यह इन ग्रंथों के भीतर के विषयों को गहराई से खोजती है:
- उत्पत्ति ग्रंथ (Book of Genesis) – मुख्य कथा स्रोत:
- शैतान का विद्रोह और पतन: यद्यपि बाइबिल में शैतान के स्वर्ग से पतन का विस्तृत वर्णन नहीं है, मिल्टन ने इस घटना को अपनी कल्पना से विस्तार दिया, इसे अभिमान और अवज्ञा के रूप में चित्रित किया।
- आदम और हव्वा का निर्माण: मिल्टन मनुष्य के निर्माण का वर्णन करते हैं, जिसमें आदम और हव्वा की सुंदरता, निर्दोषता और ईश्वर के साथ उनके संबंध पर जोर दिया गया है।
- वर्जित फल का सेवन: ज्ञान के वृक्ष और वर्जित फल का सेवन कविता का केंद्रीय घटना बिंदु है। मिल्टन शैतान द्वारा हव्वा को बहकाने और फिर हव्वा द्वारा आदम को बहकाने की प्रक्रिया का विस्तार से वर्णन करते हैं।
- स्वर्ग से निष्कासन: पतन के बाद आदम और हव्वा का ईडन गार्डन से निष्कासन और मानव जाति पर पाप और मृत्यु का प्रभाव बाइबिल से सीधे लिया गया है।
- नए नियम और मोक्ष की अवधारणा:
- मसीह का बलिदान: मिल्टन का महाकाव्य केवल पतन तक सीमित नहीं है, बल्कि भविष्य के मोक्ष की ओर भी इशारा करता है। ईश्वर पुत्र (Jesus Christ) का स्वेच्छा से मानव जाति के पापों के लिए स्वयं को बलिदान करने का प्रस्ताव नए नियम की केंद्रीय थीम है, और मिल्टन इसे काव्य रूप में प्रस्तुत करते हैं।
- मानवजाति का उद्धार: कविता का अंत आशा के साथ होता है, जिसमें आदम को भविष्य में मसीह के आने और मानव जाति के लिए मोक्ष प्राप्त करने का दर्शन कराया जाता है। यह बाइबिल के उद्धार की योजना को दर्शाता है।
- स्वतंत्र इच्छा और जवाबदेही: यद्यपि बाइबिल स्वतंत्र इच्छा का प्रत्यक्ष रूप से एक दार्शनिक अवधारणा के रूप में वर्णन नहीं करती है, मिल्टन ने इस विचार को बाइबिल के न्यायपूर्ण ईश्वर की अवधारणा के साथ सामंजस्य बिठाने के लिए उपयोग किया। ईश्वर मनुष्य को चुनने की स्वतंत्रता देता है, जिससे उनके पाप उनके अपने चुनाव का परिणाम बनते हैं।
- बाइबिल के पात्रों की जटिलता: मिल्टन शैतान, आदम, हव्वा, ईश्वर और ईश्वर पुत्र जैसे बाइबिल के पात्रों को एक नई गहराई और जटिलता देते हैं, जिससे वे केवल धार्मिक प्रतीक नहीं बल्कि त्रि-आयामी प्राणी बन जाते हैं। विशेष रूप से, शैतान का चरित्र, उसकी करिश्माई बुराई और ईश्वर के विरुद्ध उसकी अदम्य इच्छाशक्ति, बाइबिल के स्रोत से आगे बढ़कर एक शक्तिशाली साहित्यिक निर्माण बन जाती है।
“पैराडाइज लॉस्ट” बाइबिल की कथाओं और विषयों का एक गहरा काव्य अन्वेषण है, जिसे मिल्टन ने अपनी अद्वितीय साहित्यिक शैली, विद्वत्ता और कल्पना शक्ति से एक सार्वभौमिक महाकाव्य में बदल दिया, जिसने अंग्रेजी साहित्य की दिशा को हमेशा के लिए बदल दिया।
“पैराडाइज लॉस्ट” की अगली कड़ी “पैराडाइज रिगेन्ड” का विश्लेषण
जॉन मिल्टन की “पैराडाइज रिगेन्ड” (Paradise Regained), जो 1671 में प्रकाशित हुई थी, उनकी महान महाकाव्य “पैराडाइज लॉस्ट” की प्रत्यक्ष अगली कड़ी है। हालांकि यह “पैराडाइज लॉस्ट” जितनी लंबी या प्रसिद्ध नहीं है, यह मिल्टन के धार्मिक और दार्शनिक विचारों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। इसे अक्सर “लघु महाकाव्य” (miniature epic) के रूप में देखा जाता है, जो आकार में छोटा लेकिन विचारों में गहरा है।
“पैराडाइज रिगेन्ड” की पृष्ठभूमि और विषय-वस्तु
- नाम का अर्थ: “पैराडाइज लॉस्ट” (खोया हुआ स्वर्ग) के विपरीत, “पैराडाइज रिगेन्ड” का अर्थ है “पुनः प्राप्त स्वर्ग”। यह शीर्षक ही इसकी केंद्रीय विषय-वस्तु को स्पष्ट करता है: मानव जाति के लिए खोए हुए स्वर्ग (ईडन गार्डन में innocence) को कैसे और किसके माध्यम से पुनः प्राप्त किया गया।
- बाइबिल का आधार: यह कविता बाइबिल के नए नियम (New Testament) पर आधारित है, विशेष रूप से यीशु मसीह के जंगल में शैतान द्वारा की गई परीक्षाओं (Temptations of Christ in the Wilderness) की कहानी पर।
- केंद्रीय संघर्ष: कविता का मुख्य संघर्ष शैतान द्वारा यीशु को शारीरिक, राजनीतिक और आध्यात्मिक रूप से बहकाने का प्रयास है। शैतान विभिन्न प्रकार के प्रलोभन प्रस्तुत करता है:
- शारीरिक प्रलोभन: जंगल में यीशु की भूख का लाभ उठाना और उन्हें पत्थरों को रोटी में बदलने का आग्रह करना।
- राजनीतिक/सांसारिक प्रलोभन: यीशु को दुनिया के सभी साम्राज्यों और उनकी शक्ति का प्रस्ताव देना।
- आध्यात्मिक प्रलोभन: यीशु को मंदिर के उच्चतम बिंदु से कूदने और स्वयं को बचाने के लिए दैवीय हस्तक्षेप दिखाने का आग्रह करना।
- आंतरिक विजय: “पैराडाइज लॉस्ट” में आदम और हव्वा बाहरी प्रलोभन के आगे झुक जाते हैं, जिससे उनका पतन होता है। इसके विपरीत, “पैराडाइज रिगेन्ड” में यीशु बाहरी प्रलोभनों का दृढ़ता से विरोध करते हैं, शैतान को तर्क और धर्मशास्त्र से हराते हैं। यह बाहरी शक्ति से नहीं, बल्कि आंतरिक शक्ति, संयम और विश्वास के माध्यम से प्राप्त विजय है।
साहित्यिक शैली और मिल्टन का दृष्टिकोण
- संक्षिप्तता और तीव्रता: “पैराडाइज रिगेन्ड” केवल चार किताबों में है, जो “पैराडाइज लॉस्ट” की बारह किताबों की तुलना में बहुत छोटी है। मिल्टन ने जानबूझकर इसे संक्षिप्त और केंद्रित रखा, जिससे हर शब्द और विचार का गहरा प्रभाव पड़े।
- ब्लैंक वर्स (Blank Verse): “पैराडाइज लॉस्ट” की तरह, यह कविता भी ब्लैंक वर्स (अतुकान्त आइम्बिक पेंटामीटर) में लिखी गई है, जो इसे एक गंभीर और औपचारिक स्वर प्रदान करती है।
- मनोवैज्ञानिक गहराई: यह कविता बाहरी युद्धों या भव्य दृश्यों पर कम ध्यान केंद्रित करती है और इसके बजाय मनुष्य के आंतरिक संघर्षों और प्रलोभनों की मनोवैज्ञानिक गहराई पर अधिक ध्यान केंद्रित करती है। यह बुद्धि, ज्ञान और विवेक के माध्यम से शैतान पर यीशु की विजय को दर्शाती है।
- कम नाटकीय, अधिक चिंतनशील: “पैराडाइज लॉस्ट” के विशाल, नाटकीय और युद्ध-उन्मुख दृश्यों की तुलना में, “पैराडाइज रिगेन्ड” अधिक चिंतनशील, दार्शनिक और शांत है। इसमें विचारों का टकराव अधिक है, न कि शारीरिक बल का।
- सच्ची वीरता की अवधारणा: मिल्टन इस कविता में यह तर्क देते हैं कि सच्ची वीरता और विजय युद्ध के मैदान पर सैन्य शक्ति दिखाने में नहीं है, बल्कि आंतरिक आत्म-संयम, प्रलोभन का विरोध करने और ईश्वर की इच्छा का पालन करने में है। यीशु की विजय आत्म-नियंत्रण और बौद्धिक श्रेष्ठता की विजय है, जो शारीरिक शक्ति पर विजय से कहीं अधिक महान है।
“पैराडाइज लॉस्ट” से संबंध और तुलना
- पूरक कार्य: “पैराडाइज रिगेन्ड” को “पैराडाइज लॉस्ट” का पूरक कार्य माना जाता है। “लॉस्ट” मानव जाति के पतन और स्वर्ग के नुकसान को दर्शाता है, जबकि “रिगेन्ड” इसे पुनः प्राप्त करने के तरीके को दर्शाता है।
- पुनर्प्राप्ति का मॉडल: यीशु मसीह, “दूसरे आदम” के रूप में, मानवजाति को मोक्ष प्राप्त करने का मॉडल प्रदान करते हैं। जहाँ पहला आदम विफल रहा, वहीं दूसरा आदम सफल होता है, और इस प्रकार मानव जाति के लिए उद्धार का मार्ग खुलता है।
- शैतान का कमजोर चित्रण: “पैराडाइज रिगेन्ड” में शैतान “पैराडाइज लॉस्ट” जितना करिश्माई या शक्तिशाली नहीं है। वह अब एक भ्रमित और हताश आकृति है, जो यीशु की दृढ़ता के सामने लगातार असफल रहता है। यह इस बात पर जोर देता है कि ईश्वर के पुत्र की आंतरिक शक्ति शैतान की सभी बाहरी युक्तियों पर भारी है।
“पैराडाइज रिगेन्ड” मिल्टन की एक गहन दार्शनिक और धार्मिक कविता है जो मानवीय पतन के बाद मोक्ष की संभावना पर केंद्रित है। यह तर्क देती है कि सच्ची विजय बाहरी शक्ति के बजाय आंतरिक विवेक और आत्म-संयम के माध्यम से प्राप्त होती है, और यह यीशु मसीह को मानवजाति के लिए खोए हुए स्वर्ग को पुनः प्राप्त करने के मॉडल के रूप में प्रस्तुत करती है। यह “पैराडाइज लॉस्ट” के भव्य कैनवास का एक सूक्ष्म लेकिन आवश्यक निष्कर्ष है।
“सैमसन एगोनिस्टेस” और मिल्टन की त्रासदी की अवधारणा
“सैमसन एगोनिस्टेस” (Samson Agonistes), जो 1671 में “पैराडाइज रिगेन्ड” के साथ प्रकाशित हुई, जॉन मिल्टन की एक नाटकीय कविता है। इसे शास्त्रीय ग्रीक त्रासदी के मॉडल पर लिखा गया है, लेकिन इसमें मिल्टन की अपनी धार्मिक, व्यक्तिगत और राजनीतिक अवधारणाएँ निहित हैं, खासकर त्रासदी और दुःख के संबंध में।
“सैमसन एगोनिस्टेस” का परिचय
- बाइबिल का आधार: यह कविता बाइबिल के न्यायाधीशों (Book of Judges) की पुस्तक में सैमसन की कहानी पर आधारित है। सैमसन एक नाज़री था जिसे ईश्वर ने इस्राएलियों को फिलिस्तीनियों से बचाने के लिए असाधारण शारीरिक शक्ति के साथ चुना था। हालांकि, वह अपनी शक्ति के स्रोत (बाल) का रहस्य अपनी प्रेमिका डेलिलाह को बता देता है, जो उसे धोखा देती है। फिलिस्तीनी सैमसन को पकड़ लेते हैं, उसकी आँखें फोड़ देते हैं, और उसे गाजा में कैद कर लेते हैं।
- शैली: यह एक ‘ड्रामा फॉर रीडिंग’ है, जिसे मंचन के लिए नहीं बल्कि पढ़ने के लिए लिखा गया था। यह शास्त्रीय ग्रीक त्रासदी की सभी विशेषताओं को वहन करती है: एक कोरस, लंबे भाषण, और एकता (समय, स्थान और कार्य की एकता)।
- सैमसन की पीड़ा: कविता सैमसन की कारावास में उसकी अंधता, अपमान और पश्चाताप पर केंद्रित है। वह अपने भाग्य पर विचार करता है और अपनी कमजोरियों के लिए खुद को दोषी ठहराता है, साथ ही ईश्वर की इच्छा को समझने का भी प्रयास करता है।
मिल्टन की त्रासदी की अवधारणा
“सैमसन एगोनिस्टेस” मिल्टन की त्रासदी की अवधारणा को गहराई से व्यक्त करती है, जो केवल यूनानी परंपरा का अनुकरण नहीं है, बल्कि उसमें मिल्टन की अपनी अनूठी व्याख्या और अनुभव भी शामिल हैं:
- व्यक्तिगत और आत्मकथात्मक संबंध:
- अंधता: मिल्टन स्वयं 1652 तक पूरी तरह से अंधे हो चुके थे। सैमसन की अंधता मिल्टन की अपनी व्यक्तिगत त्रासदी का सीधा प्रतिबिंब है। यह उन्हें सैमसन की पीड़ा, अलगाव और उस अंधेरे की शारीरिक और मानसिक वेदना को पूरी तरह से समझने और व्यक्त करने में सक्षम बनाता है।
- राजनीतिक निराशा: मिल्टन ने इंग्लैंड के कॉमनवेल्थ (गणराज्य) के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था, लेकिन 1660 में राजशाही की बहाली (Restoration) ने उनके राजनीतिक सपनों को चकनाचूर कर दिया। सैमसन का पतन, जो एक बार अपने लोगों का उद्धारकर्ता था लेकिन अब अपमानित और शक्तिहीन है, मिल्टन की अपनी निराशा और अपने आदर्शों के पतन को दर्शाता है।
- आंतरिक कैद: जिस तरह सैमसन शारीरिक रूप से कैद है, मिल्टन खुद को राजशाही के तहत एक “कैदी” महसूस करते थे, जहाँ उनके विचार और प्यूरिटन कारण अब स्वीकृत नहीं थे।
- पाप, पश्चाताप और दैवीय न्याय:
- मानवीय त्रुटि: मिल्टन की त्रासदी की अवधारणा में नायक अक्सर अपनी ही गलतियों या पापों के कारण पीड़ित होता है। सैमसन की त्रासदी उसके अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल करने, डेलिलाह जैसे अयोग्य व्यक्ति पर भरोसा करने और ईश्वर के निर्देशों की अवज्ञा करने के कारण आती है।
- पश्चाताप और शुद्धि (Catharsis): त्रासदी का उद्देश्य केवल दुःख दिखाना नहीं है, बल्कि नायक और दर्शकों/पाठकों में पश्चाताप, आत्म-ज्ञान और आध्यात्मिक शुद्धि (कैथार्सिस) लाना है। सैमसन अपनी गलतियों पर पश्चाताप करता है और अंततः ईश्वर की इच्छा के प्रति आत्मसमर्पण करता है।
- ईश्वर का न्याय: मिल्टन के लिए, त्रासदी अंततः ईश्वर के न्याय को दर्शाती है। भले ही सैमसन को पीड़ा उठानी पड़ती है, उसका अंतिम कार्य (फिलिस्तीनियों पर मंदिर को गिराना) ईश्वर की योजना का हिस्सा बन जाता है, और वह अपने लोगों का बदला लेता है। यह दर्शाता है कि ईश्वर दुख और आपदा के माध्यम से भी अपने उद्देश्य को पूरा कर सकता है।
- भीतरी शक्ति और धैर्य (Inner Strength and Patience):
- त्रासदी बाहरी घटनाओं से नहीं, बल्कि नायक के आंतरिक संघर्ष और बाहरी दबावों का सामना करने की क्षमता से उत्पन्न होती है। सैमसन अपनी आंतरिक शक्ति और दृढ़ता से प्रलोभन और निराशा का सामना करता है।
- “पवित्र धैर्य” (Holy Patience): मिल्टन अक्सर ‘धैर्य’ के गुण पर जोर देते हैं, खासकर “ऑन हिज ब्लाइंडनेस” और “सैमसन एगोनिस्टेस” में। दुःख और हानि का सामना करते हुए भी ईश्वर की इच्छा को स्वीकार करना और धैर्य रखना एक महान गुण है।
- ग्रीक त्रासदी से भिन्नता (और समानताएँ):
- समानताएँ: मिल्टन ग्रीक त्रासदी की औपचारिकताओं का पालन करते हैं – एक स्थान पर केंद्रित कार्रवाई (गाजा), 24 घंटे की अवधि में घटित होने वाली घटनाएँ, और कोरस का उपयोग जो नैतिक टिप्पणी प्रदान करता है।
- भिन्नताएँ: ग्रीक त्रासदी अक्सर भाग्य (fate) के अपरिहार्य प्रभाव पर जोर देती है। मिल्टन की त्रासदी भाग्य पर नहीं, बल्कि स्वतंत्र इच्छा (free will) और मानवीय चुनाव पर अधिक केंद्रित है। सैमसन का पतन उसके अपने निर्णयों का परिणाम है, न कि केवल नियति का। मिल्टन का ईश्वर एक दूरस्थ भाग्य नहीं है, बल्कि एक सक्रिय और नैतिक सत्ता है।
“सैमसन एगोनिस्टेस” मिल्टन की त्रासदी की अवधारणा का एक शक्तिशाली उदाहरण है, जो व्यक्तिगत पीड़ा, राजनीतिक मोहभंग और गहरी धार्मिक आस्था का मिश्रण है। यह दिखाती है कि कैसे मानवीय गलतियाँ दुःख और पतन का कारण बन सकती हैं, लेकिन धैर्य, पश्चाताप और ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण के माध्यम से मोक्ष और अंतिम विजय भी संभव है। यह केवल एक नाटक नहीं, बल्कि मानवीय स्थिति, विश्वास और कठिनाई के माध्यम से शक्ति के पुनरुत्थान पर एक गहन चिंतन है।
जॉन मिल्टन: उनकी साहित्यिक यात्रा का अंतिम चरण
जॉन मिल्टन की साहित्यिक यात्रा का अंतिम चरण, जो लगभग 1660 में राजशाही की बहाली (Restoration) के बाद शुरू हुआ और 1674 में उनकी मृत्यु तक चला, उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और उत्पादक काल साबित हुआ, विशेषकर उनके महाकाव्य लेखन के संदर्भ में। यह एक ऐसा समय था जब वे पूरी तरह से अंधे हो चुके थे, राजनीतिक रूप से हाशिए पर थे, और व्यक्तिगत रूप से भी कई कठिनाइयों का सामना कर रहे थे।
राजनीतिक मोहभंग और व्यक्तिगत चुनौतियाँ
1660 में चार्ल्स द्वितीय के सिंहासन पर लौटने के साथ, मिल्टन के लिए दुनिया उलट गई। वह एक कट्टर गणराज्यवादी (republican) और कॉमनवेल्थ सरकार के एक प्रमुख अधिकारी थे, जिन्होंने राजशाही के खिलाफ जमकर लिखा था। इस नए राजनीतिक माहौल में, मिल्टन की जान को खतरा था। उन्हें गिरफ्तार किया गया और कुछ समय के लिए जेल में रखा गया, हालाँकि उनके प्रभावशाली दोस्तों और समर्थकों के हस्तक्षेप से उन्हें अंततः माफ कर दिया गया और रिहा कर दिया गया।
यह अवधि मिल्टन के लिए गहरी निराशा और मोहभंग का समय था। उनके राजनीतिक आदर्श टूट गए थे, और वह एक ऐसी दुनिया में जी रहे थे जो उनके मूल्यों के ठीक विपरीत थी। शारीरिक रूप से, वे पूरी तरह से अंधे थे, जिसने उनकी बाहरी दुनिया के साथ बातचीत को सीमित कर दिया था और उन्हें दूसरों पर निर्भर बना दिया था। उनकी व्यक्तिगत जिंदगी में भी दुख था; उनकी दूसरी पत्नी (कैथरीन वुडकॉक) और शिशु पुत्री की 1658 में मृत्यु हो गई थी, और उनकी सबसे बड़ी बेटी मैरी के साथ उनके संबंध तनावपूर्ण थे, क्योंकि वह उनके लिए श्रुतलेख का काम करने में अरुचि रखती थी।
साहित्यिक पुनरुत्थान: महाकाव्यों का युग
इन चुनौतियों के बावजूद, मिल्टन ने अपनी रचनात्मकता को अप्रत्याशित रूप से नए सिरे से समर्पित कर दिया। उन्होंने अपनी साहित्यिक महत्वाकांक्षाओं को आंतरिक और आध्यात्मिक विषयों की ओर मोड़ दिया, जो उन्हें भौतिक और राजनीतिक दुनिया की निराशा से परे ले गए। उनकी सबसे महान कृतियाँ इसी अवधि में सामने आईं:
- पैराडाइज लॉस्ट (Paradise Lost – 1667):यह मिल्टन की उत्कृष्ट कृति और अंग्रेजी भाषा का सबसे महान महाकाव्य है। उन्होंने इसे लगभग 1658 में लिखना शुरू किया और 1663 तक इसे पूरा कर लिया। जैसा कि पहले चर्चा की गई है, उन्होंने इसे पूरी तरह से अंधे होते हुए भी श्रुतलेख के माध्यम से लिखा। यह मानवजाति के पतन, शैतान के विद्रोह, स्वतंत्र इच्छा और मोक्ष की बाइबिल की कहानी पर केंद्रित है। यह राजशाही की बहाली के बाद मिल्टन के ‘वीर’ प्रयास का प्रतीक था, एक ऐसा कार्य जिसके माध्यम से उन्होंने ईश्वर के तरीकों को ‘मनुष्य के प्रति’ उचित ठहराने का प्रयास किया।
- पैराडाइज रिगेन्ड (Paradise Regained – 1671):यह “पैराडाइज लॉस्ट” की एक छोटी लेकिन गहरी अगली कड़ी है। यह बाइबिल में यीशु मसीह के जंगल में शैतान द्वारा की गई परीक्षाओं पर केंद्रित है। जहाँ “पैराडाइज लॉस्ट” मानव के पतन को दर्शाता है, वहीं “पैराडाइज रिगेन्ड” यह दर्शाता है कि कैसे यीशु की आंतरिक शक्ति और संयम के माध्यम से खोया हुआ स्वर्ग (पुनः प्राप्त) किया जाता है। यह मिल्टन की इस अवधारणा को उजागर करता है कि सच्ची विजय बाहरी बल के बजाय आंतरिक आत्म-संयम में निहित है।
- सैमसन एगोनिस्टेस (Samson Agonistes – 1671):यह एक नाटकीय कविता है, जिसे शास्त्रीय ग्रीक त्रासदी के मॉडल पर लिखा गया है, लेकिन इसमें मिल्टन के अपने व्यक्तिगत अनुभव (अंधापन, अपमान) और प्यूरिटन धार्मिक विचार गहराई से बुने हुए हैं। यह बाइबिल के चरित्र सैमसन की कहानी पर आधारित है, जो अंधा और कैद है, और अपने लोगों के पतन का दुःख झेल रहा है। यह मिल्टन के धैर्य, ईश्वर में विश्वास और अपनी गलतियों पर पश्चाताप करने के विचार को व्यक्त करती है, अंततः एक वीर बलिदान और दैवीय न्याय में समाप्त होती है।
स्थायी प्रभाव
मिल्टन की साहित्यिक यात्रा का अंतिम चरण उनके अदम्य साहस और रचनात्मकता का प्रमाण है। अंधेपन, राजनीतिक निराशा और व्यक्तिगत हानि के बावजूद, उन्होंने ऐसी कृतियों का निर्माण किया जो अंग्रेजी साहित्य में बेजोड़ हैं। इन कार्यों ने न केवल बाइबिल की कहानियों को एक नई गहराई दी, बल्कि मानव स्वतंत्रता, नैतिक विकल्प, पीड़ा और मोक्ष जैसे सार्वभौमिक विषयों का भी अन्वेषण किया।
यह चरण मिल्टन को एक ऐसे कवि के रूप में स्थापित करता है जिसने अपनी परिस्थितियों से ऊपर उठकर शाश्वत सत्य और मानव स्थिति पर चिंतन किया। उनकी ये अंतिम रचनाएँ अंग्रेजी साहित्य को उनका सबसे मूल्यवान योगदान मानी जाती हैं, और वे आज भी विद्वानों और पाठकों को समान रूप से प्रेरित करती हैं।
एडमंड स्पेंसर और जॉन मिल्टन, दोनों ही अंग्रेजी साहित्य के दिग्गज हैं, लेकिन उनकी काव्य शैलियों और विषयों में कई समानताएँ और महत्वपूर्ण अंतर हैं। इन दोनों कवियों ने अपने-अपने युग की साहित्यिक, धार्मिक और राजनीतिक प्रवृत्तियों को आत्मसात किया और उन्हें अपनी अनूठी आवाज़ में प्रस्तुत किया।
काव्य शैलियों की तुलना
एडमंड स्पेंसर (पुनर्जागरण)
- संगीतात्मकता और प्रवाह: स्पेंसर की कविता अपनी संगीतात्मकता, गीतात्मकता और प्रवाह के लिए प्रसिद्ध है। उन्होंने भाषा की सुंदरता और लय पर विशेष ध्यान दिया।
- स्पेंसरियन स्टांजा (Spenserian Stanza): यह उनकी सबसे विशिष्ट शैलीगत पहचान है। नौ पंक्तियों का यह जटिल छंद (ABABBCBCC, पहली आठ पंक्तियाँ आइम्बिक पेंटामीटर में और अंतिम एक अलेक्जेंड्राइन) “द फेयरी क्वीन” को एक विशिष्ट धीमी और भव्य गति प्रदान करता है।
- पुरातन भाषा और नवाचार: स्पेंसर ने जानबूझकर चाउसर से पुरातन शब्दों और अभिव्यक्तियों का उपयोग किया, जिससे उनकी कविता को एक प्राचीन, गौरवपूर्ण एहसास मिला। साथ ही, उन्होंने नए शब्द गढ़े और भाषा को समृद्ध किया।
- समृद्ध और विस्तृत वर्णन: उनकी कविताएँ विस्तृत और समृद्ध कल्पना, विशेष रूप से प्रकृति और वेशभूषा के वर्णनों से भरी होती हैं।
- रूपक (Allegory): स्पेंसर एक रूपकात्मक कवि थे। उनके पात्र, स्थान और घटनाएँ अक्सर गहन नैतिक, धार्मिक और राजनीतिक अर्थों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
- क्लासिकलिज़्म और मध्यकालीन रोमांस का मिश्रण: उन्होंने शास्त्रीय महाकाव्य परंपराओं को मध्ययुगीन रोमांस और आर्थरियन किंवदंतियों के साथ मिलाया।
जॉन मिल्टन (17वीं शताब्दी, उत्तर-पुनर्जागरण/प्यूरिटन युग)
- ब्लैंक वर्स (Blank Verse): “पैराडाइज लॉस्ट” और “पैराडाइज रिगेन्ड” में मिल्टन का सबसे महत्वपूर्ण शैलीगत चुनाव ब्लैंक वर्स (अनराइम्ड आइम्बिक पेंटामीटर) का उपयोग था। उन्होंने इसे महाकाव्य के लिए सबसे उपयुक्त, गरिमापूर्ण और स्वाभाविक शैली माना, जो तुकबंदी की कृत्रिमता से मुक्त थी।
- भव्यता और उदात्तता (Grandeur and Sublimity): मिल्टन की शैली को अक्सर “भव्य शैली” (Grand Style) कहा जाता है। उनकी भाषा गंभीर, औपचारिक और बुलंद है, जो उनके विशाल और धार्मिक विषयों के अनुरूप है।
- लैटिनकृत वाक्य-विन्यास (Latinate Syntax) और उच्च शब्दावली: मिल्टन ने अपनी कविता में अक्सर जटिल लैटिन-प्रभावित वाक्य-विन्यास और उच्च, विद्वत्तापूर्ण शब्दावली का उपयोग किया, जिससे उनकी पंक्तियाँ शक्तिशाली और गहन लगती हैं।
- महाकाव्यीय आह्वान और उपमाएँ (Epic Invocations and Similes): होमर और वर्जिल की तरह, मिल्टन भी अपनी कविताओं की शुरुआत में दैवीय प्रेरणा के लिए आह्वान करते हैं और विस्तृत, तुलनात्मक महाकाव्यीय उपमाओं का उपयोग करते हैं जो अक्सर कई पंक्तियों तक फैली होती हैं।
- कम वर्णनात्मक, अधिक चिंतनशील: स्पेंसर की तुलना में, मिल्टन के विवरण कम सजावटी और अधिक कार्यात्मक होते हैं। उनकी कविताएँ अक्सर बाहरी दृश्यों के बजाय आंतरिक विचार, दार्शनिक बहस और नैतिक द्वंद्व पर केंद्रित होती हैं।
विषयों की तुलना
एडमंड स्पेंसर
- नैतिक गुण (Moral Virtues): उनके कार्य, विशेष रूप से “द फेयरी क्वीन,” नैतिकता और व्यक्तिगत गुणों (जैसे पवित्रता, संयम, न्याय, शुद्धता, मित्रता और शिष्टाचार) के अन्वेषण पर केंद्रित हैं।
- प्रेम और विवाह (Love and Marriage): “एम्मोरट्टी” और “एपित्थेलेमियन” जैसे उनके गीतात्मक कार्य प्रेम, प्रेमालाप और विवाह की पवित्रता के व्यक्तिगत और आनंदमय अनुभवों का जश्न मनाते हैं।
- एलिजाबेथ I का महिमामंडन: “द फेयरी क्वीन” क्वीन एलिजाबेथ I और ट्यूडर राजवंश की प्रशंसा और राजनीतिक महिमामंडन से भरी है।
- धार्मिक और राजनीतिक रूपक: वे अपने रूपकों के माध्यम से प्रोटेस्टेंटवाद के आदर्शों को बढ़ावा देते हैं और रोमन कैथोलिक धर्म की आलोचना करते हैं, साथ ही तत्कालीन राजनीतिक घटनाओं और दरबार के बारे में भी टिप्पणी करते हैं।
- प्रकृति और देहाती जीवन: “द शेफर्ड्स कैलेंडर” जैसे कार्यों में देहाती जीवन और प्रकृति के सौंदर्य का चित्रण मिलता है।
जॉन मिल्टन
- पतन, स्वतंत्र इच्छा और मोक्ष (The Fall, Free Will, and Salvation): ये “पैराडाइज लॉस्ट” की केंद्रीय विषय-वस्तुएँ हैं। मिल्टन मनुष्य के पतन, ईश्वर के न्याय और मनुष्य की चुनाव करने की स्वतंत्रता पर गहराई से विचार करते हैं।
- ईश्वर का न्याय और मनुष्य के प्रति उसके मार्ग: मिल्टन का लक्ष्य “ईश्वर के मार्गों को मनुष्य के प्रति उचित ठहराना” था, जो उनके धार्मिक उद्देश्य का केंद्र था।
- विद्रोह और अधिकार (Rebellion and Authority): शैतान का चरित्र और उसका ईश्वर के खिलाफ विद्रोह मिल्टन के सत्ता, विद्रोह और स्वतंत्रता पर विचारों को दर्शाता है, जो उनके अपने राजनीतिक अनुभवों से भी प्रभावित थे।
- आंतरिक बनाम बाहरी संघर्ष: “पैराडाइज रिगेन्ड” और “सैमसन एगोनिस्टेस” में मिल्टन बाहरी भौतिक संघर्षों के बजाय आंतरिक नैतिक और आध्यात्मिक संघर्षों पर जोर देते हैं।
- स्वतंत्रता (Liberty): मिल्टन स्वतंत्रता के एक प्रबल पक्षधर थे – धार्मिक, व्यक्तिगत और राजनीतिक स्वतंत्रता। “एरियॉपैजिटिका” में उनकी सेंसरशिप विरोधी दलीलें इसका प्रमाण हैं।
- दुःख, धैर्य और दैवीय योजना: “सैमसन एगोनिस्टेस” में व्यक्तिगत पीड़ा, अंधापन और मोहभंग के बावजूद धैर्य और ईश्वर की योजना में विश्वास के विषयों का पता लगाया गया है।
प्रमुख समानताएँ और अंतर
समानताएँ:
- क्लासिकलिज़्म: दोनों ने शास्त्रीय ग्रीक और रोमन साहित्य का गहन अध्ययन किया और अपने कार्यों में क्लासिकल शैलियों (महाकाव्य, देहाती कविता, त्रासदी) और संदर्भों का उपयोग किया।
- धार्मिक विषय-वस्तु: दोनों गहरे धार्मिक कवि थे (स्पेंसर एक एलिजाबेथन प्रोटेस्टेंट, मिल्टन एक प्यूरिटन) और उनकी कविताओं में ईसाई धर्मशास्त्र और नैतिकता प्रमुखता से दिखाई देती है।
- महाकाव्यीय महत्वाकांक्षा: दोनों ने अंग्रेजी भाषा में महान राष्ट्रीय या सार्वभौमिक महाकाव्य लिखने की महत्वाकांक्षा रखी।
- भाषा का विस्तार: दोनों ने अंग्रेजी भाषा की सीमाओं को आगे बढ़ाया, उसे समृद्ध किया और काव्य अभिव्यक्ति की नई संभावनाएँ खोलीं।
अंतर:
- काल और सांस्कृतिक संदर्भ: स्पेंसर एलिजाबेथन पुनर्जागरण के ‘स्वर्णिम युग’ के कवि थे, जहाँ उत्साह और महिमामंडन का बोलबाला था। मिल्टन 17वीं शताब्दी के राजनीतिक और धार्मिक उथल-पुथल (गृहयुद्ध, राजशाही की बहाली) के कवि थे, जिसके कारण उनके लेखन में एक अधिक गंभीर, चिंतनशील और कभी-कभी निराशावादी स्वर आता है।
- काव्यगत स्वर: स्पेंसर का स्वर अक्सर संगीतमय, रोमांटिक और अलंकृत होता है। मिल्टन का स्वर अधिक भव्य, गंभीर और बौद्धिक होता है।
- सेंसरशिप और राजनीतिक सक्रियता: जहाँ स्पेंसर ने अपनी कविताओं में सत्ता की प्रशंसा की, वहीं मिल्टन सीधे तौर पर राजनीतिक संघर्ष में शामिल थे और उन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता और राजशाही विरोधी विचारों का जोरदार बचाव किया।
- रूपक बनाम सीधा धार्मिक महाकाव्य: स्पेंसर ने व्यापक रूप से रूपक का उपयोग किया, जहाँ पात्रों के कई अर्थ हो सकते हैं। मिल्टन के महाकाव्य अधिक सीधे धार्मिक कथाएँ हैं, भले ही उनमें गहरी प्रतीकात्मकता भी हो।
स्पेंसर ने अंग्रेजी पुनर्जागरण की भव्यता और नैतिक आदर्शों को अपनी संगीतमय और रूपकात्मक कविता में दर्शाया, जबकि मिल्टन ने 17वीं शताब्दी की धार्मिक और राजनीतिक उथल-पुथल को अपनी बुलंद और दार्शनिक महाकाव्य शैली में प्रस्तुत किया। दोनों ने अंग्रेजी कविता को अकल्पनीय ऊंचाइयों तक पहुँचाया और आने वाली पीढ़ियों के कवियों को प्रेरित किया।
एडमंड स्पेंसर और जॉन मिल्टन, दोनों ही अंग्रेजी साहित्य के दिग्गज, ने अंग्रेजी कविता और गद्य पर गहरा और स्थायी सामूहिक प्रभाव डाला। हालाँकि वे अलग-अलग समय में रहते थे और उनकी शैलियाँ भिन्न थीं, उनके संयुक्त योगदान ने अंग्रेजी भाषा को आकार दिया, नई काव्य शैलियों को विकसित किया और बौद्धिक परंपरा को समृद्ध किया।
अंग्रेजी कविता पर सामूहिक प्रभाव
- महाकाव्यीय परंपरा का उत्थान:
- स्पेंसर ने “द फेयरी क्वीन” के साथ अंग्रेजी में एक भव्य, कल्पनाशील महाकाव्य की नींव रखी, जिसने एलिजाबेथन युग के आदर्शों और रूपक की शक्ति का प्रदर्शन किया।
- मिल्टन ने इस परंपरा को “पैराडाइज लॉस्ट” के साथ अपने चरम पर पहुँचाया, जिसने बाइबिल के विषयों को एक सार्वभौमिक और दार्शनिक महाकाव्य में बदल दिया। उन्होंने सिद्ध किया कि अंग्रेजी भाषा प्राचीन ग्रीक और लैटिन के समान ही महान काव्य कृतियों को वहन कर सकती है।
- उनके सामूहिक प्रयासों ने अंग्रेजी महाकाव्य कविता के लिए एक उच्च मानक स्थापित किया, जिसने बाद के कवियों को चुनौती दी और प्रेरित किया।
- काव्य शैलियों का नवाचार और विकास:
- स्पेंसर ने स्पेंसरियन स्टांजा का आविष्कार किया, जो अपनी जटिल राइम स्कीम और लंबी अंतिम पंक्ति के साथ अंग्रेजी कविता को एक नई संगीतात्मकता और गति प्रदान करता है। यह छंद बाद के रोमांटिक कवियों (जैसे कीट्स, शेली) द्वारा व्यापक रूप से अपनाया गया।
- मिल्टन ने ब्लैंक वर्स (अतुकान्त आइम्बिक पेंटामीटर) को महाकाव्य कविता के लिए प्रमुख माध्यम के रूप में स्थापित किया। उन्होंने दिखाया कि बिना तुकबंदी के भी कविता में गरिमा, शक्ति और प्राकृतिक प्रवाह हो सकता है। उनके उपयोग के बाद, ब्लैंक वर्स अंग्रेजी नाटक और महाकाव्य के लिए मानक बन गया।
- उनकी संयुक्त विरासत ने कवियों को छंद और रूप के साथ प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया, जिससे अंग्रेजी कविता अधिक लचीली और विविध बनी।
- भाषा का संवर्धन और भव्यता:
- दोनों कवियों ने अंग्रेजी भाषा की अभिव्यक्ति क्षमता को बढ़ाया। स्पेंसर ने पुरातन शब्दों को पुनर्जीवित किया और नए शब्द गढ़े, जिससे उनकी भाषा समृद्ध और संगीतमय बनी।
- मिल्टन ने लैटिनकृत वाक्य-विन्यास और एक उच्च, औपचारिक शब्दावली का उपयोग करके अंग्रेजी को एक उदात्त और विद्वत्तापूर्ण स्वर प्रदान किया।
- उनके सामूहिक योगदान ने अंग्रेजी को एक सशक्त, परिष्कृत और महाकाव्यीय विचारों को व्यक्त करने में सक्षम भाषा के रूप में स्थापित किया।
- नैतिक और दार्शनिक गहराई:
- स्पेंसर ने अपनी रूपकात्मक कविताओं के माध्यम से नैतिक गुणों और ईसाई धर्मशास्त्र का अन्वेषण किया, पाठकों को सदाचार के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
- मिल्टन ने अपनी कविताओं में स्वतंत्र इच्छा, दैवीय न्याय, पतन और मोक्ष जैसे गहन दार्शनिक और धार्मिक प्रश्नों पर विचार किया।
- उन्होंने सामूहिक रूप से अंग्रेजी कविता को केवल मनोरंजन से परे, गहन नैतिक और आध्यात्मिक चिंतन के माध्यम के रूप में elevated किया।
अंग्रेजी गद्य पर सामूहिक प्रभाव
हालाँकि स्पेंसर मुख्य रूप से एक कवि थे और उनका गद्य कार्य सीमित था (“ए व्यू ऑफ द प्रेजेंट स्टेट ऑफ आयरलैंड”), मिल्टन का गद्य लेखन अंग्रेजी विचार और अभिव्यक्ति पर बहुत प्रभावशाली था।
- मिल्टन का गद्य और स्वतंत्रता पर उसका प्रभाव:
- मिल्टन ने गद्य को एक शक्तिशाली राजनीतिक और धार्मिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। उनके पर्चे, जैसे “एरियॉपैजिटिका” (प्रेस की स्वतंत्रता पर) और “द टेन्योर ऑफ किंग्स एंड मजिस्ट्रेट्स” (शासकों को हटाने के अधिकार पर), ने बहस, असहमति और मुक्त भाषण के महत्व को स्थापित किया।
- उनके गद्य ने तर्क, बयानबाजी और बौद्धिक गहराई के उच्च मानकों को स्थापित किया, जिससे बाद के लेखकों को राजनीतिक और दार्शनिक विषयों पर विचार व्यक्त करने के लिए एक मॉडल मिला।
- हालांकि स्पेंसर का गद्य आयरलैंड पर उनकी विवादास्पद राजनीतिक टिप्पणियों तक सीमित था, मिल्टन के गद्य ने राजनीतिक विचार को सीधे चुनौती दी और व्यक्तिगत और सार्वजनिक स्वतंत्रता के लिए आधार तैयार किया।
- विद्वत्तापूर्ण और तर्कपूर्ण लेखन:
- दोनों कवियों की गहरी शास्त्रीय विद्वत्ता उनके गद्य और कविता दोनों में परिलक्षित होती है। उन्होंने जटिल तर्कों को प्रस्तुत करने और अपने विचारों का समर्थन करने के लिए ऐतिहासिक, धार्मिक और दार्शनिक ज्ञान का उपयोग किया।
- विशेष रूप से मिल्टन ने अपने गद्य में तर्क और खंडन की कला में महारत हासिल की, जिससे अंग्रेजी गद्य की बौद्धिक कठोरता बढ़ी।
एडमंड स्पेंसर और जॉन मिल्टन का अंग्रेजी कविता और गद्य पर सामूहिक प्रभाव अद्वितीय है। स्पेंसर ने पुनर्जागरण की भव्यता और रूपक की शक्ति के साथ अंग्रेजी कविता को समृद्ध किया, जबकि मिल्टन ने इसे नैतिक और दार्शनिक गहराई, और महाकाव्यीय उदात्तता के साथ एक नई दिशा दी। उनके संयुक्त योगदान ने न केवल काव्य शैलियों का विस्तार किया और भाषा को संवर्धित किया, बल्कि स्वतंत्रता, नैतिकता और मानवीय स्थिति पर गहन विचार भी प्रस्तुत किए। वे अंग्रेजी साहित्यिक परंपरा के ऐसे स्तंभ हैं जिनके बिना आधुनिक अंग्रेजी कविता और गद्य की कल्पना करना असंभव है।
एडमंड स्पेंसर और जॉन मिल्टन: साहित्यिक विरासत में उनकी अद्वितीय स्थिति
एडमंड स्पेंसर और जॉन मिल्टन दोनों ही अंग्रेजी साहित्यिक विरासत में एक अद्वितीय और अपरिहार्य स्थान रखते हैं। वे सिर्फ महान कवि नहीं थे, बल्कि ऐसे दूरदर्शी थे जिन्होंने अपनी भाषा, शैली और विषयों के साथ प्रयोग करके अंग्रेजी कविता की दिशा को हमेशा के लिए बदल दिया। उनकी अद्वितीय स्थिति को कई प्रमुख बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:
एडमंड स्पेंसर: “कवियों के कवि” और पुनर्जागरण के प्रतीक
- महाकाव्य का पथ-प्रदर्शक: स्पेंसर ने अंग्रेजी में एक भव्य, रूपकात्मक महाकाव्य लिखने की क्षमता का प्रदर्शन किया। उनकी “द फेयरी क्वीन” ने सिद्ध किया कि अंग्रेजी भाषा में ऐसी लंबी, जटिल और नैतिक रूप से गहरी कथाएँ लिखी जा सकती हैं जो शास्त्रीय महाकाव्यों के बराबर हों। उन्होंने अंग्रेजी को अपनी वीर काव्य परंपरा दी।
- काव्य रूप का आविष्कारक: स्पेंसरियन स्टांजा का उनका आविष्कार एक स्थायी योगदान है। यह छंद इतना सुंदर, संगीतमय और अभिव्यंजक था कि यह बाद के महान कवियों (जैसे कीट्स, शेली और बायरन) के लिए एक प्रेरणा बन गया, जिन्होंने इसे अपनी उत्कृष्ट कृतियों में प्रयोग किया। यह उनकी शैलीगत नवीनता का प्रमाण है।
- भाषा का संवर्धक: स्पेंसर ने अंग्रेजी भाषा को लचीलापन और समृद्धि प्रदान की। उन्होंने चाउसर से प्रेरणा लेकर पुरातन शब्दों को पुनर्जीवित किया और नए शब्द गढ़े, जिससे अंग्रेजी कविता की शब्दावली और अभिव्यक्ति क्षमता का विस्तार हुआ।
- पुनर्जागरण के आदर्शों का मूर्त रूप: वे एलिजाबेथन युग के उत्साह, नैतिक दृढ़ता और सौंदर्यबोध के प्रतीक थे। उनकी कविता तत्कालीन इंग्लैंड की सांस्कृतिक और राजनीतिक आकांक्षाओं का दर्पण थी, जिसने क्वीन एलिजाबेथ I के शासनकाल को साहित्यिक गौरव प्रदान किया।
स्पेंसर को “कवियों के कवि” के रूप में जाना जाता है क्योंकि उनकी भव्यता, कल्पना और संगीतात्मकता ने बाद की पीढ़ियों को काव्य लिखने के लिए प्रेरित किया।
जॉन मिल्टन: महाकाव्य का शिखर और आधुनिक बौद्धिक कवि
- महाकाव्य का सर्वोच्च आचार्य: मिल्टन की “पैराडाइज लॉस्ट” को व्यापक रूप से अंग्रेजी भाषा का सबसे महान महाकाव्य माना जाता है। उन्होंने बाइबिल के विषयों को एक सार्वभौमिक और दार्शनिक आयाम दिया, जिसमें मानव की स्वतंत्र इच्छा, पाप, मोक्ष और दैवीय न्याय जैसे शाश्वत प्रश्नों पर विचार किया गया। यह उनके बाद किसी भी अन्य महाकाव्य लेखक के लिए एक मानदंड बन गया।
- ब्लैंक वर्स का स्वामी: उन्होंने ब्लैंक वर्स (अतुकान्त आइम्बिक पेंटामीटर) को अंग्रेजी में महाकाव्य कविता के लिए प्रमुख माध्यम के रूप में स्थापित किया। उनकी ब्लैंक वर्स की शक्ति, भव्यता और लचीलेपन ने अंग्रेजी काव्य ध्वनि को फिर से परिभाषित किया और शेक्सपियर के बाद इसे नई ऊँचाइयों पर ले गए।
- बौद्धिक और दार्शनिक गहराई: मिल्टन केवल एक कथाकार नहीं थे, बल्कि एक गहन विचारक थे। उनकी कविताएँ जटिल धर्मशास्त्रीय और दार्शनिक मुद्दों पर विचार करती हैं, जो पाठकों को गहन बौद्धिक चिंतन के लिए मजबूर करती हैं।
- स्वतंत्रता के चैंपियन: उनके गद्य कार्य, विशेष रूप से “एरियॉपैजिटिका”, ने प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए एक मौलिक तर्क प्रस्तुत किया। ये विचार आज भी आधुनिक लोकतांत्रिक समाजों के मूल में हैं, जो उन्हें न केवल एक कवि बल्कि एक दूरदर्शी राजनीतिक विचारक के रूप में स्थापित करते हैं।
- विपरीत परिस्थितियों में रचनात्मकता: अंधेपन, राजनीतिक निराशा और व्यक्तिगत त्रासदियों के बावजूद अपनी सबसे बड़ी कृतियों का सृजन करने की उनकी क्षमता उन्हें मानवीय भावना की अदम्य शक्ति का प्रतीक बनाती है।
सामूहिक रूप से उनकी अद्वितीय स्थिति
- अंग्रेजी भाषा के स्तंभ: स्पेंसर और मिल्टन दोनों ने अंग्रेजी भाषा की अभिव्यक्ति क्षमताओं का विस्तार किया, उसे समृद्ध किया और उसे इतनी गरिमा और शक्ति प्रदान की कि वह महानतम काव्य विचारों को वहन कर सके।
- परिवर्तन और निरंतरता के सेतु: स्पेंसर ने पुनर्जागरण की भव्यता को दर्शाया, जबकि मिल्टन ने 17वीं शताब्दी की धार्मिक और राजनीतिक उथल-पुथल को नेविगेट करते हुए एक नए प्रकार के महाकाव्य और बौद्धिक कविता का सृजन किया। वे अंग्रेजी साहित्य में एक महत्वपूर्ण सेतु का काम करते हैं, जो मध्ययुगीन परंपराओं से लेकर आधुनिकता की ओर संक्रमण को दर्शाते हैं।
- प्रेरणा के शाश्वत स्रोत: दोनों ने बाद के अनगिनत कवियों और लेखकों को प्रेरित किया। रोमांटिक कवियों ने स्पेंसर की कल्पना और मिल्टन की भव्यता से प्रेरणा ली, जबकि विक्टोरियन और आधुनिक कवियों ने भी उनके प्रभाव को स्वीकार किया।
एडमंड स्पेंसर और जॉन मिल्टन अंग्रेजी साहित्यिक कैनन में केवल महत्वपूर्ण हस्तियाँ नहीं हैं, बल्कि वे ऐसे मौलिक बल हैं जिन्होंने अंग्रेजी कविता और गद्य की नींव रखी। उनकी कृतियाँ न केवल अपने युग को दर्शाती हैं, बल्कि वे कालातीत मानव अनुभवों और विचारों का पता लगाती हैं, जिससे साहित्यिक विरासत में उनकी स्थिति वास्तव में अद्वितीय और स्थायी हो जाती है।
एडमंड स्पेंसर और जॉन मिल्टन: जीवन और कार्यों का संक्षिप्त पुनरावलोकन
एडमंड स्पेंसर और जॉन मिल्टन, अंग्रेजी साहित्य के दो महान स्तंभ, ने अपनी अद्वितीय प्रतिभा और दृढ़ समर्पण से काव्य जगत को समृद्ध किया। उनके जीवन और कार्यों का संक्षिप्त पुनरावलोकन उनकी साहित्यिक यात्राओं और स्थायी योगदान को स्पष्ट करता है।
एडमंड स्पेंसर (लगभग 1552–1599)
जीवन:
एडमंड स्पेंसर का जन्म लगभग 1552 में लंदन में एक विनम्र परिवार में हुआ था। उन्होंने लंदन के मर्चेंट टेलर्स स्कूल और फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के पेमब्रोक कॉलेज में उत्कृष्ट शिक्षा प्राप्त की। यहीं उनकी दोस्ती विद्वान गेब्रियल हार्वे से हुई और उन्होंने अपनी काव्य प्रतिभा को निखारा। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने कुछ समय इंग्लैंड में बिताया और 1579 में “द शेफर्ड्स कैलेंडर” प्रकाशित करके साहित्यिक पहचान हासिल की। 1580 में, वे आयरलैंड चले गए, जहाँ उन्होंने एक अधिकारी के रूप में काम किया और किलकोलमैन कैसल में रहते हुए अपनी अधिकांश महान रचनाएँ लिखीं। आयरिश विद्रोह के दौरान उनका महल जल जाने के बाद वे इंग्लैंड लौट आए और 1599 में लंदन में उनका निधन हो गया। उन्हें वेस्टमिंस्टर एब्बे के कवियों के कोने में दफनाया गया।
कार्य और योगदान:
स्पेंसर को मुख्य रूप से उनकी अधूरी महाकाव्य कविता “द फेयरी क्वीन” के लिए जाना जाता है। यह कार्य नैतिकता, chivalry और एलिजाबेथन इंग्लैंड के आदर्शों का एक विशाल रूपक है, जिसे उन्होंने अपने स्वयं के आविष्कार किए गए स्पेंसरियन स्टांजा में लिखा था। “द फेयरी क्वीन” के माध्यम से उन्होंने अंग्रेजी को एक भव्य राष्ट्रीय महाकाव्य दिया। उनकी अन्य प्रमुख कृतियों में प्रेम सॉनेट का चक्र “एम्मोरट्टी” और उनकी शादी का उत्सव मनाने वाला गीतात्मक विवाह गीत “एपित्थेलेमियन” शामिल है, जो उनकी गीतात्मक प्रतिभा को दर्शाते हैं। स्पेंसर ने अंग्रेजी भाषा को समृद्ध किया, उसे संगीतात्मकता और भव्यता प्रदान की, और बाद के अनगिनत कवियों, विशेषकर स्वच्छंदतावादी कवियों को प्रेरित किया, जिसके कारण उन्हें “कवियों के कवि” कहा जाता है।
जॉन मिल्टन (1608–1674)
जीवन:
जॉन मिल्टन का जन्म 1608 में लंदन में एक समृद्ध और सुसंस्कृत परिवार में हुआ था। उनके पिता एक संगीतकार थे और उन्होंने जॉन को बेहतरीन शिक्षा प्रदान की। मिल्टन ने बचपन से ही विभिन्न भाषाओं (लैटिन, ग्रीक, हिब्रू, इतालवी) और विषयों का गहन अध्ययन किया। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के क्राइस्ट्स कॉलेज में पढ़ाई की और उसके बाद लगभग छह साल अपने पारिवारिक घर हॉर्टन में बिताए, जहाँ उन्होंने गहन स्व-अध्ययन किया और अपनी कुछ प्रारंभिक महत्वपूर्ण कविताएँ जैसे “लिसिडास” लिखीं। अंग्रेजी गृहयुद्ध के दौरान, मिल्टन ने अपनी काव्य महत्वाकांक्षाओं को रोक दिया और सक्रिय रूप से संसदीय और कॉमनवेल्थ सरकार का समर्थन किया। वे राज्य परिषद के लैटिन सचिव बने और स्वतंत्रता, सेंसरशिप (जिस पर उन्होंने अपनी प्रसिद्ध कृति “एरियॉपैजिटिका” लिखी) और राजशाही विरोधी विचारों पर प्रभावशाली गद्य कार्य लिखे। 1652 तक, वे पूरी तरह से अंधे हो चुके थे। 1660 में राजशाही की बहाली के बाद, उन्हें खतरा हुआ, लेकिन अंततः उन्हें बख्श दिया गया। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में, अंधे और राजनीतिक रूप से निराश होने के बावजूद, उन्होंने अपनी महानतम कृतियाँ श्रुतलेख के माध्यम से लिखीं। 1674 में उनका निधन हो गया।
कार्य और योगदान:
मिल्टन की साहित्यिक विरासत का शिखर उनका महाकाव्य “पैराडाइज लॉस्ट” है, जो 1667 में प्रकाशित हुआ। यह बाइबिल के उत्पत्ति ग्रंथ पर आधारित है और शैतान के पतन, आदम और हव्वा के निर्माण, उनके अवज्ञा और स्वर्ग से निष्कासन की कहानी कहता है। इस महाकाव्य को उन्होंने ब्लैंक वर्स में लिखा, जिसने अंग्रेजी कविता को नई उदात्तता और गंभीरता प्रदान की। उनके अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में इसकी अगली कड़ी “पैराडाइज रिगेन्ड” शामिल है, जो यीशु मसीह के जंगल में परीक्षाओं और आंतरिक विजय पर केंद्रित है। उनकी नाटकीय कविता “सैमसन एगोनिस्टेस” उनके अपने अंधेपन और राजनीतिक निराशा को दर्शाती है, जो बाइबिल के अंधे नायक सैमसन की कहानी पर आधारित है। मिल्टन ने अंग्रेजी भाषा को एक अभूतपूर्व भव्यता और बौद्धिक गहराई प्रदान की, और उनकी कविताएँ स्वतंत्र इच्छा, न्याय और ईश्वर के मार्गों पर गहन दार्शनिक विचार प्रस्तुत करती हैं।
स्पेंसर ने एलिजाबेथन पुनर्जागरण की भव्यता और नैतिक आदर्शों को अपनी संगीतमय और रूपकात्मक कविता के माध्यम से स्थापित किया, जबकि मिल्टन ने 17वीं शताब्दी की धार्मिक और राजनीतिक उथल-पुथल को अपनी बुलंद और दार्शनिक महाकाव्य शैली में प्रस्तुत किया। दोनों ने अंग्रेजी कविता को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया और आने वाली पीढ़ियों के कवियों को प्रेरित करते हुए अंग्रेजी साहित्यिक विरासत में एक अद्वितीय और स्थायी स्थान अर्जित किया।
एडमंड स्पेंसर और जॉन मिल्टन: आधुनिक युग में उनकी प्रासंगिकता
एडमंड स्पेंसर और जॉन मिल्टन, अपने-अपने युगों के प्रमुख साहित्यिक सितारे होने के बावजूद, आज भी आधुनिक युग में अत्यधिक प्रासंगिक बने हुए हैं। उनकी कृतियाँ केवल ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं हैं, बल्कि वे ऐसे शाश्वत विषयों और साहित्यिक नवाचारों को प्रस्तुत करती हैं जो समकालीन पाठकों, लेखकों और विचारकों को प्रभावित करते रहते हैं।
एडमंड स्पेंसर की आधुनिक प्रासंगिकता
- भाषा और काव्य शैली का प्रभाव:
- स्पेंसरियन स्टांजा (Spenserian Stanza) का उनका आविष्कार आधुनिक कवियों को आज भी रूप और शैली के साथ प्रयोग करने के लिए प्रेरित करता है। यह अंग्रेजी कविता में लय और संगीतात्मकता की शक्ति का एक स्थायी उदाहरण है।
- उनकी भाषा की समृद्धि, भले ही कुछ हद तक पुरातन हो, अंग्रेजी के विकास और इसकी अभिव्यक्ति क्षमता पर प्रकाश डालती है, जो भाषा के छात्रों और प्रेमियों के लिए प्रासंगिक है।
- रूपक और प्रतीकवाद का निरंतर महत्व:
- “द फेयरी क्वीन” में निहित नैतिक, धार्मिक और राजनीतिक रूपक आधुनिक पाठकों को जटिल विचारों को कथा के माध्यम से समझने की क्षमता सिखाते हैं। समकालीन साहित्य, फिल्म और अन्य मीडिया में भी रूपक का प्रयोग जारी है, और स्पेंसर इसके एक महान गुरु थे।
- उनकी कविताएँ अच्छे और बुरे, कर्तव्य और इच्छा, आदर्शवाद और यथार्थवाद के बीच सार्वभौमिक संघर्षों का अन्वेषण करती हैं, जो किसी भी युग में प्रासंगिक हैं।
- साम्राज्य और उपनिवेशवाद की पड़ताल:
- स्पेंसर का गद्य कार्य “ए व्यू ऑफ द प्रेजेंट स्टेट ऑफ आयरलैंड” उस समय के उपनिवेशवाद और साम्राज्यवादी मानसिकता पर एक महत्वपूर्ण (हालांकि विवादास्पद) अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। आधुनिक युग में, जहाँ उपनिवेशवाद के इतिहास और उसके प्रभावों पर गहन बहस होती है, स्पेंसर का यह काम उस समय की मानसिकता को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
- स्वच्छंदतावादी कवियों पर प्रभाव: कीट्स, शेली और बायरन जैसे स्वच्छंदतावादी कवियों पर स्पेंसर का गहरा प्रभाव आज भी उनके कार्यों के माध्यम से देखा जा सकता है, जो साहित्यिक प्रभाव के स्थायी चक्र को दर्शाता है।
जॉन मिल्टन की आधुनिक प्रासंगिकता
- स्वतंत्रता और मुक्त भाषण के अग्रदूत:
- मिल्टन का सबसे महत्वपूर्ण और स्थायी योगदान स्वतंत्रता पर उनके विचार हैं। उनकी “एरियॉपैजिटिका” (प्रेस की स्वतंत्रता पर) आज भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of expression) के लिए एक मौलिक और प्रेरक तर्क बनी हुई है। आधुनिक लोकतांत्रिक समाजों में, जहाँ सेंसरशिप और मुक्त भाषण की सीमाएँ लगातार बहस का विषय हैं, मिल्टन के तर्क अत्यधिक प्रासंगिक हैं।
- उनकी स्वतंत्रता की अवधारणा – चाहे वह राजनीतिक, धार्मिक या व्यक्तिगत हो – आज भी मानवीय अधिकारों और स्वशासन पर चर्चाओं को सूचित करती है।
- मानव अस्तित्व और नैतिकता का अन्वेषण:
- “पैराडाइज लॉस्ट” में स्वतंत्र इच्छा, पतन, पाप और मोक्ष जैसे विषय मानव अनुभव के मूल में हैं। ये प्रश्न कि हम अपनी पसंद के लिए कितने जिम्मेदार हैं, बुराई कहाँ से आती है, और प्रतिकूल परिस्थितियों में आशा कैसे बनाए रखी जाए, आधुनिक दर्शकों के लिए भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने 17वीं शताब्दी में थे।
- शैतान का चरित्र, जो अपने विद्रोह और करिश्माई व्यक्तित्व के साथ, आधुनिक संस्कृति में नायक-विरोधी (anti-hero) की अवधारणा को प्रभावित करता है, फिल्म, साहित्य और संगीत में विद्रोह के प्रतीक के रूप में बार-बार सामने आता है।
- विपरीत परिस्थितियों में रचनात्मकता का प्रतीक:
- मिल्टन का अंधेपन और राजनीतिक पराजय के बावजूद “पैराडाइज लॉस्ट” जैसी उत्कृष्ट कृतियों का सृजन करना, मानवीय दृढ़ता और रचनात्मकता की शक्ति का एक शाश्वत उदाहरण है। यह कलाकारों, लेखकों और किसी भी व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
- भाषा का प्रभावशाली उपयोग:
- मिल्टन की भव्य और जटिल भाषा, जिसे उन्होंने ब्लैंक वर्स में विकसित किया, अंग्रेजी भाषा की शक्ति और लचीलेपन का एक शानदार उदाहरण है। उनका प्रभाव अंग्रेजी गद्य और काव्य शैली पर इतना गहरा रहा है कि अनगिनत लेखकों ने उनसे प्रेरणा ली है।
सामूहिक प्रासंगिकता
- साहित्यिक प्रेरणा: दोनों कवियों ने अंग्रेजी काव्य परंपरा के लिए मानक स्थापित किए और बाद के लेखकों की पीढ़ियों को प्रभावित किया। उनके कार्यों का अध्ययन आज भी साहित्यिक शिल्प, शैली और विषय-वस्तु में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
- सार्वभौमिक विषय: नैतिकता, स्वतंत्रता, विद्रोह, प्रेम, हानि, और मोक्ष जैसे उनके द्वारा अन्वेषित विषय मानव अनुभव के सार्वभौमिक पहलू हैं, जो उन्हें किसी भी समय और संस्कृति के पाठकों के लिए प्रासंगिक बनाते हैं।
- विचारधारात्मक जड़ें: पश्चिमी विचार और संस्कृति में मिल्टन के विचारों की जड़ें इतनी गहरी हैं कि उनके बिना आधुनिक राजनीतिक दर्शन और साहित्यिक आलोचना को समझना मुश्किल होगा।
एडमंड स्पेंसर और जॉन मिल्टन केवल अकादमिक अध्ययन के विषय नहीं हैं; वे जीवित आवाज़ें हैं जो आधुनिक दुनिया के नैतिक, बौद्धिक और कलात्मक संवाद को आकार देना जारी रखती हैं। उनकी कविताएँ और गद्य हमें अपनी भाषा की शक्ति, अपने विकल्पों के परिणामों और स्वतंत्रता की स्थायी खोज के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करते हैं।
उनका साहित्य क्यों आज भी पढ़ा और सराहा जाता है
एडमंड स्पेंसर और जॉन मिल्टन का साहित्य आज भी पढ़ा और सराहा जाता है, इसके कई गहरे कारण हैं। उनकी रचनाएँ केवल ऐतिहासिक जिज्ञासा का विषय नहीं हैं, बल्कि वे कालातीत मानव अनुभवों, दार्शनिक अंतर्दृष्टि और अद्वितीय साहित्यिक शिल्प का खजाना हैं जो आधुनिक पाठकों के साथ प्रतिध्वनित होती हैं।
1. सार्वभौमिक मानवीय विषयों की पड़ताल
उनकी कविताएँ ऐसे विषयों पर विचार करती हैं जो समय और संस्कृति की सीमाओं से परे हैं:
- प्रेम और संबंध: स्पेंसर के “एम्मोरट्टी” और “एपित्थेलेमियन” प्रेम, विवाह और मानवीय संबंधों की खुशियों और जटिलताओं को दर्शाते हैं। ये भावनाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी 16वीं शताब्दी में थीं।
- नैतिकता और सदाचार: “द फेयरी क्वीन” में गुणों (जैसे पवित्रता, न्याय, संयम) की खोज और “पैराडाइज लॉस्ट” में नैतिक चुनाव का संघर्ष मानव स्थिति के केंद्र में है। हम आज भी सही और गलत के बीच चयन करने, प्रलोभनों का सामना करने और नैतिक चुनौतियों से जूझने के बारे में सोचते हैं।
- स्वतंत्रता और सत्ता: मिल्टन के स्वतंत्रता पर विचार, विशेष रूप से “एरियॉपैजिटिका” में मुक्त भाषण की उनकी वकालत, आधुनिक लोकतांत्रिक समाजों के लिए मौलिक हैं। शैतान का विद्रोह और मानव की स्वतंत्र इच्छा का अन्वेषण हमें सत्ता, अधिकार और व्यक्तिगत स्वायत्तता के बारे में सोचने पर मजबूर करता है।
- पतन, दुःख और मोक्ष: “पैराडाइज लॉस्ट” और “सैमसन एगोनिस्टेस” में मानव पीड़ा, विश्वास का संकट और मोक्ष की आशा का चित्रण आज भी उन लोगों को सांत्वना और अंतर्दृष्टि प्रदान करता है जो व्यक्तिगत या सामूहिक त्रासदियों का सामना कर रहे हैं।
2. अद्वितीय साहित्यिक शिल्प और सौंदर्य
उनकी कविताएँ अपनी भाषा और शैली के कारण शुद्ध सौंदर्य और कलात्मक आनंद प्रदान करती हैं:
- भाषा की भव्यता और समृद्धि: दोनों कवियों ने अंग्रेजी भाषा की सीमाओं को आगे बढ़ाया। स्पेंसर की संगीतात्मकता और पुरातनता का मिश्रण, और मिल्टन की बुलंद, लैटिन-प्रभावित शब्दावली और वाक्य-विन्यास, अंग्रेजी को एक नई अभिव्यक्ति क्षमता देते हैं। उनकी कविताएँ भाषा का उपयोग करने की शक्ति का एक मास्टरक्लास हैं।
- काव्यगत नवाचार: स्पेंसरियन स्टांजा और मिल्टन के ब्लैंक वर्स का शक्तिशाली उपयोग अंग्रेजी काव्य रूप को समृद्ध करता है। ये शैलियाँ आज भी कवियों द्वारा अध्ययन और अनुकरण की जाती हैं, और वे हमें यह समझने में मदद करती हैं कि भाषा के माध्यम से भावना और विचार को कैसे प्रभावी ढंग से संप्रेषित किया जाए।
- कल्पना की विशालता: “द फेयरी क्वीन” की जादुई दुनिया, उसके शूरवीर और राक्षस, और “पैराडाइज लॉस्ट” के स्वर्ग, नरक और नव-निर्मित ब्रह्मांड की कल्पना इतनी विशाल और ज्वलंत है कि यह पाठक को मोहित कर लेती है। यह मानव कल्पना की असीमित क्षमता का प्रमाण है।
3. बौद्धिक गहराई और दार्शनिक विचार
उनका साहित्य पाठकों को केवल मनोरंजन नहीं करता, बल्कि उन्हें गहन बौद्धिक चिंतन में संलग्न करता है:
- धर्मशास्त्र और दर्शन: मिल्टन की रचनाएँ धर्मशास्त्र, नैतिकता और दर्शन के जटिल प्रश्नों पर विचार करती हैं, जैसे ईश्वर का न्याय, बुराई का मूल और मानवजाति की नियति। ये बहसें आज भी अकादमिक और धार्मिक हलकों में प्रासंगिक हैं।
- मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि: शैतान के चरित्र की जटिलता, उसकी अभिमान, ईर्ष्या और दृढ़ता का चित्रण, मानवीय मनोविज्ञान की गहरी समझ प्रदान करता है। सैमसन की पीड़ा और पश्चाताप व्यक्तिगत कमजोरी और आत्म-ज्ञान पर प्रकाश डालते हैं।
4. साहित्यिक इतिहास और प्रभाव
इन कवियों का अध्ययन अंग्रेजी साहित्य के विकास को समझने के लिए अपरिहार्य है:
- वे अपने-अपने युग के साहित्यिक स्वाद और बौद्धिक धाराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- उनके कार्यों ने बाद के अनगिनत लेखकों और कवियों (जैसे रोमांटिक कवियों से लेकर 20वीं सदी के आधुनिकतावादियों तक) को गहराई से प्रभावित किया है, जिससे उनकी साहित्यिक विरासत एक निरंतर चलने वाली नदी की तरह है।
एडमंड स्पेंसर और जॉन मिल्टन का साहित्य आज भी इसलिए पढ़ा और सराहा जाता है क्योंकि यह शाश्वत मानवीय प्रश्नों को अद्वितीय साहित्यिक सौंदर्य और बौद्धिक गहराई के साथ प्रस्तुत करता है। उनकी रचनाएँ हमें सिखाती हैं कि कैसे भाषा का उपयोग करें, कैसे गहराई से सोचें, और कैसे मानव आत्मा की जटिलताओं का अन्वेषण करें। वे साहित्यिक रत्न हैं जो हर पीढ़ी के लिए नए अर्थ और प्रेरणा प्रदान करते रहते हैं।
