थॉमस पेन का जन्म 29 जनवरी, 1737 को थेटफ़ोर्ड, नॉरफ़ॉक, इंग्लैंड में हुआ था। उनके पिता, जोसेफ पेन, एक क्वेकर थे और पेशे से एक कॉर्सेट-मेकर (कंचुकी बनाने वाले) थे। उनकी माँ, फ़्रांसिस पेन (नी ब्लेज़), एंग्लिकन थीं।
पेन के शुरुआती साल अपेक्षाकृत सामान्य थे, लेकिन क्वेकर प्रभावों ने उनके विचारों को गहराई से आकार दिया। क्वेकर सिद्धांतों ने समानता, सादगी और धार्मिक सहिष्णुता पर जोर दिया, जो बाद में उनके राजनीतिक लेखन में स्पष्ट रूप से दिखाई दिए। उन्हें 12 साल की उम्र तक थेटफ़ोर्ड ग्रामर स्कूल में शिक्षा मिली, जिसके बाद उन्होंने अपने पिता के साथ कॉर्सेट-मेकिंग का काम सीखा। हालांकि, उन्हें इस पेशे में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी।
उन्होंने विभिन्न छोटे-मोटे काम किए, जिनमें एक आबकारी अधिकारी (उत्पाद शुल्क इकट्ठा करने वाला) के रूप में काम करना भी शामिल था। इस दौरान उन्हें आम लोगों की कठिनाइयों और सरकारी भ्रष्टाचार का करीब से अनुभव हुआ, जिसने उनके भीतर सामाजिक और राजनीतिक अन्याय के प्रति गहरी संवेदना पैदा की। अपने जीवन के शुरुआती वर्षों में पेन ने कई असफलताओं और आर्थिक कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन इन अनुभवों ने उन्हें एक तीक्ष्ण पर्यवेक्षक और एक मुखर आलोचक बनने में मदद की, जिसने बाद में उन्हें एक क्रांतिकारी लेखक के रूप में उभारा।
पारिवारिक पृष्ठभूमि:
- पिता: जोसेफ पेन। वे पेशे से एक कॉर्सेट-मेकर (कंचुकी बनाने वाले) थे और क्वेकर संप्रदाय के अनुयायी थे। क्वेकर एक ईसाई धार्मिक समूह है जो सादगी, समानता, शांतिवाद और सीधे ईश्वर के साथ व्यक्तिगत संबंध पर जोर देता है। जोसेफ पेन एक सामान्य साधन वाले व्यक्ति थे, जिसका अर्थ है कि परिवार बहुत धनी नहीं था।
- माता: फ़्रांसिस पेन (नी ब्लेज़)। वे एंग्लिकन थीं। यह तथ्य कि उनके माता-पिता अलग-अलग ईसाई संप्रदायों से थे, उनके बचपन में धार्मिक विचारों के प्रति एक खुलेपन या शायद कुछ आंतरिक संघर्ष का कारण बना होगा। यह निश्चित रूप से उनके बाद के धार्मिक विचारों को प्रभावित किया होगा, विशेष रूप से उनकी पुस्तक “द एज ऑफ रीज़न” में।
- पारिवारिक प्रभाव: क्वेकर पिता का प्रभाव पेन के जीवन पर गहरा था। समानता के क्वेकर सिद्धांत, अन्याय के प्रति विरोध, और किसी भी प्रकार के पदानुक्रम को अस्वीकार करना पेन के क्रांतिकारी विचारों की नींव बने। उन्होंने जीवन भर उत्पीड़ितों और वंचितों के अधिकारों के लिए बात की, जिसकी जड़ें उनके क्वेकर परवरिश में देखी जा सकती हैं। वे अपने परिवार की सीमित आर्थिक स्थिति के कारण शुरू से ही जीवन की कठिनाइयों से परिचित थे, जिसने उन्हें सामाजिक-आर्थिक असमानताओं के प्रति संवेदनशील बनाया।
शैक्षिक पृष्ठभूमि:
- औपचारिक शिक्षा: थॉमस पेन की औपचारिक शिक्षा बहुत सीमित थी। उन्होंने 12 साल की उम्र तक अपने गृहनगर थेटफ़ोर्ड में थेटफ़ोर्ड ग्रामर स्कूल में पढ़ाई की। उस समय, अनिवार्य शिक्षा जैसी कोई चीज नहीं थी, और अक्सर बच्चे कम उम्र में ही काम पर लग जाते थे।
- पिता के साथ काम: 13 साल की उम्र में, पेन ने स्कूल छोड़ दिया और अपने पिता के साथ कॉर्सेट-मेकिंग के काम में प्रशिक्षु के रूप में लग गए। यह एक ऐसा पेशा था जिसमें उनकी कोई खास रुचि नहीं थी।
- स्व-शिक्षा और बौद्धिक जिज्ञासा: औपचारिक शिक्षा की कमी के बावजूद, पेन एक तीव्र बुद्धि वाले व्यक्ति थे और उनमें ज्ञान प्राप्त करने की गहरी प्यास थी। उन्होंने अपना अधिकांश ज्ञान स्व-अध्ययन के माध्यम से प्राप्त किया। वे जहाँ भी संभव होता, व्याख्यानों में भाग लेते, विशेषकर विज्ञान और यांत्रिकी से संबंधित विषयों पर। उन्होंने अपनी सीमित कमाई से किताबें और वैज्ञानिक उपकरण खरीदे। उन्होंने स्वयं कहा था कि वे अपने जीवन का शायद ही कोई ऐसा क्षण बिताते थे, जिसमें उन्हें कुछ नया ज्ञान न मिलता हो। यह आत्म-शिक्षा की निरंतर प्रक्रिया उनके जीवन भर जारी रही और इसने उन्हें एक बहुमुखी विचारक और लेखक बनने में मदद की।
- अनुभवों से सीखना: पेन ने विभिन्न छोटे-मोटे व्यवसायों और अनुभवों से भी सीखा, जिनमें आबकारी अधिकारी के रूप में उनका काम भी शामिल था। इन अनुभवों ने उन्हें आम लोगों की समस्याओं, सरकारी अक्षमता और भ्रष्टाचार का प्रत्यक्ष ज्ञान दिया, जिसने उनके राजनीतिक और सामाजिक विचारों को और परिपक्व किया।
थॉमस पेन का परिवारिक जीवन साधारण था, लेकिन उनके क्वेकर पिता के सिद्धांतों ने उनके नैतिक और राजनीतिक दृष्टिकोण को गहराई से प्रभावित किया। उनकी औपचारिक शिक्षा भले ही कम थी, लेकिन उनकी असाधारण बौद्धिक जिज्ञासा और स्व-शिक्षा के प्रति समर्पण ने उन्हें एक आत्मज्ञानी और प्रभावशाली विचारक के रूप में विकसित किया, जिसने उन्हें भविष्य की क्रांतियों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में सक्षम बनाया।
थॉमस पेन के प्रारंभिक व्यवसायों ने उनके सामाजिक-राजनीतिक विचारों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन अनुभवों ने उन्हें जमीनी स्तर पर समाज की कार्यप्रणाली, अन्याय और सरकारी नीतियों के प्रभावों को समझने का अवसर दिया।
प्रारंभिक व्यवसाय और अनुभव:
- कॉर्सेट-मेकर (कंचुकी बनाने वाला):
- अपने पिता के साथ कॉर्सेट-मेकिंग का काम सीखते हुए पेन ने हाथ से काम करने वाले कारीगरों के जीवन और उनकी आर्थिक चुनौतियों को करीब से देखा। यह अनुभव उन्हें श्रम और उत्पादन के महत्व के साथ-साथ छोटे व्यवसायों की कठिनाइयों से परिचित कराता है।
- इस पेशे में उनकी कोई खास रुचि नहीं थी, जिससे उन्हें एक अधिक बौद्धिक या सामाजिक रूप से सार्थक कार्य की तलाश करने की प्रेरणा मिली।
- शिक्षक और तंबाकू व्यापारी:
- युवावस्था में उन्होंने कुछ समय के लिए शिक्षक के रूप में भी काम किया।
- उन्होंने कुछ समय के लिए तंबाकू व्यापार में भी हाथ आजमाया, लेकिन यह उद्यम भी सफल नहीं रहा। ये शुरुआती व्यावसायिक विफलताएँ उन्हें लगातार नई दिशाओं की तलाश करने के लिए प्रेरित करती रहीं।
- आबकारी अधिकारी (एक्साइज़ ऑफ़िसर):
- यह पेन का सबसे महत्वपूर्ण प्रारंभिक व्यवसाय था, जिसने उनके विचारों को सबसे अधिक प्रभावित किया। उन्होंने लगभग 1762 से 1765 तक और फिर 1768 से 1774 तक इस पद पर काम किया।
- प्रत्यक्ष अनुभव: एक आबकारी अधिकारी के रूप में, उनका काम शराब और तंबाकू जैसे उत्पादों पर कर इकट्ठा करना था। इस भूमिका ने उन्हें सीधे आम लोगों के संपर्क में लाया और उन्हें देखा कि कैसे सरकारी नीतियां और कर सीधे उनके दैनिक जीवन और आजीविका को प्रभावित करते हैं।
- भ्रष्टाचार और अन्याय: उन्होंने सरकारी अधिकारियों के बीच व्यापक भ्रष्टाचार, अक्षमता और छोटे व्यापारियों व किसानों के प्रति अन्यायपूर्ण व्यवहार को देखा। उन्हें खुद भी अक्सर खराब वेतन और नौकरी की असुरक्षा का सामना करना पड़ता था।
- प्रतिनिधित्व की कमी: 1772 में, उन्होंने आबकारी अधिकारियों के लिए वेतन वृद्धि की वकालत करते हुए एक याचिका लिखी। इस याचिका में उन्होंने उनके खराब वेतन और काम करने की खराब परिस्थितियों को उजागर किया। इस अनुभव ने उन्हें यह महसूस कराया कि आम लोगों और श्रमिकों की आवाज को कैसे दबाया जाता है और उन्हें उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है। यह “प्रतिनिधित्व के बिना कराधान” (taxation without representation) के विचार के प्रति उनकी संवेदनशीलता को बढ़ाता है, जो बाद में अमेरिकी क्रांति का एक प्रमुख नारा बन गया।
- बर्खास्तगी: अपनी वकालत और अन्य उल्लंघनों के कारण उन्हें दो बार आबकारी सेवा से बर्खास्त किया गया। इन बर्खास्तगियों ने उन्हें सरकारी व्यवस्था के प्रति और अधिक कटु बना दिया और अन्याय के खिलाफ खड़े होने की उनकी इच्छा को मजबूत किया।
सामाजिक-राजनीतिक विचारों का विकास:
इन प्रारंभिक अनुभवों ने पेन के सामाजिक-राजनीतिक विचारों को कई तरह से आकार दिया:
- सामाजिक न्याय के प्रति संवेदनशीलता: गरीबों, श्रमिकों और छोटे व्यापारियों की कठिनाइयों को देखने से उनमें सामाजिक न्याय की गहरी भावना विकसित हुई। उन्होंने महसूस किया कि मौजूदा व्यवस्था में आम लोगों का शोषण होता है।
- सरकारी भ्रष्टाचार और अक्षमता की आलोचना: आबकारी अधिकारी के रूप में अपने अनुभव ने उन्हें सरकारी संस्थानों में व्याप्त भ्रष्टाचार और अक्षमता का firsthand अनुभव कराया। इससे उनमें सत्ता के दुरुपयोग और उसकी जवाबदेही की कमी के प्रति गहरा अविश्वास पैदा हुआ।
- समानता और मानव अधिकारों में विश्वास: क्वेकर परवरिश से प्रेरित होकर और अपने अनुभवों से पुष्ट होकर, पेन ने यह विश्वास विकसित किया कि सभी मनुष्य समान हैं और उनके कुछ अंतर्निहित अधिकार हैं जिन्हें सरकार द्वारा छीना नहीं जा सकता। “आम आदमी” के दृष्टिकोण से दुनिया को देखने की उनकी क्षमता उनके लेखन में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होगी।
- प्रतिनिधित्व और लोकप्रिय संप्रभुता की अवधारणा: जब उन्हें आबकारी अधिकारियों की ओर से याचिका लिखने का अनुभव हुआ, तो उन्होंने समझा कि जब लोगों को सरकार में अपनी आवाज उठाने का अवसर नहीं मिलता, तो उनके अधिकारों का हनन होता है। यह विचार कि सरकार को लोगों की सहमति से शासन करना चाहिए (लोकप्रिय संप्रभुता) उनके लेखन का एक केंद्रीय विषय बन गया।
- ब्रिटिश राजशाही और अभिजात वर्ग का विरोध: इंग्लैंड में अपने अनुभवों से उन्होंने ब्रिटिश राजशाही और अभिजात वर्ग की विरासत और विशेषाधिकारों को देखा। उन्हें लगा कि यह व्यवस्था आम लोगों को दबाती है और उनके अधिकारों को सीमित करती है। उनके मन में यह विचार जड़ पकड़ने लगा कि राजशाही और वंशानुगत शासन अन्यायपूर्ण और तर्कहीन है।
- क्रांतिकारी परिवर्तन की आवश्यकता: इन अनुभवों ने पेन को यह विश्वास दिलाया कि मौजूदा व्यवस्था में सुधार संभव नहीं है, और मौलिक परिवर्तन (क्रांति) ही एकमात्र रास्ता है जिससे वास्तविक स्वतंत्रता और न्याय प्राप्त किया जा सकता है।
थॉमस पेन के प्रारंभिक व्यवसायों ने उन्हें केवल आजीविका प्रदान नहीं की, बल्कि उन्हें एक व्यावहारिक शिक्षा दी जिसने उनके सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण को आकार दिया। इन अनुभवों ने उन्हें अन्याय के प्रति संवेदनशील बनाया, सरकारी अक्षमता की आलोचना करने की क्षमता दी, और समानता तथा मानव अधिकारों के प्रति उनके विश्वास को पुष्ट किया, जो बाद में उनके क्रांतिकारी लेखन का आधार बने।
थॉमस पेन के इंग्लैंड में शुरुआती संघर्ष और उनके भीतर असंतोष की भावना का उदय उनके जीवन के अनुभवों और तत्कालीन ब्रिटिश समाज की परिस्थितियों का परिणाम था। यह उनके क्रांतिकारी विचारों की नींव रखने में महत्वपूर्ण था।
संघर्ष के प्रमुख बिंदु:
- आर्थिक अस्थिरता और व्यावसायिक विफलताएं:
- पेन ने अपने पिता के कॉर्सेट-मेकिंग के व्यवसाय में काम किया, लेकिन उन्हें इसमें कोई रुचि नहीं थी और यह सफल नहीं हुआ।
- उन्होंने विभिन्न अन्य व्यवसायों जैसे शिक्षक, तंबाकू व्यापारी और यहां तक कि एक निजी जहाज (privateer) पर भी काम किया, लेकिन इनमें से कोई भी उन्हें स्थायी आर्थिक स्थिरता प्रदान नहीं कर सका।
- उनकी पहली शादी (मैरी लैम्बर्ट से) और दूसरी शादी (एलिजाबेथ ऑलिव से) दोनों ही व्यक्तिगत त्रासदियों और व्यावसायिक असफलताओं के साथ जुड़ी थीं। उनकी पहली पत्नी और बच्चा प्रसव के दौरान मर गए, और उनकी दूसरी शादी भी असफल रही।
- ये लगातार आर्थिक संघर्ष और व्यावसायिक विफलताएं उन्हें व्यवस्था के प्रति असंतोष की भावना से भरती गईं। उन्हें लगा कि समाज में आगे बढ़ने के अवसर सीमित हैं, खासकर उन लोगों के लिए जो अभिजात वर्ग से संबंधित नहीं थे।
- आबकारी अधिकारी के रूप में अनुभव और सरकारी व्यवस्था से मोहभंग:
- आबकारी अधिकारी के रूप में उनका अनुभव उनके असंतोष का एक बड़ा कारण बना। उन्होंने देखा कि कैसे सरकारी कर्मचारी (जिनमें वे स्वयं भी शामिल थे) कम वेतन पाते थे, जो उन्हें भ्रष्टाचार के लिए मजबूर करता था।
- उन्होंने अधिकारियों के खराब वेतन और काम करने की परिस्थितियों में सुधार के लिए एक याचिका (“द केस ऑफ द ऑफिसर्स ऑफ एक्साइज़” – 1772) लिखी। यह उनका पहला महत्वपूर्ण सार्वजनिक लेखन था, जिसमें उन्होंने व्यवस्थागत समस्याओं को उजागर किया।
- इस याचिका के कारण उन्हें दूसरी बार आबकारी सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। इस घटना ने उन्हें यह स्पष्ट रूप से दिखा दिया कि आवाज उठाने वाले को कैसे चुप कराया जाता है और सत्ताधारी वर्ग अपनी गलतियों को स्वीकार करने या सुधारने को तैयार नहीं होता। यह अनुभव उनके भीतर ब्रिटिश सरकार और उसकी नीतियों के प्रति गहरा अविश्वास पैदा करता है।
- सामाजिक असमानता और विशेषाधिकारों का अवलोकन:
- पेन ने इंग्लैंड में रहते हुए समाज में व्याप्त गहरी असमानता को करीब से देखा। उन्होंने देखा कि कैसे अभिजात वर्ग और धनी लोग विशेषाधिकारों का आनंद लेते थे, जबकि आम जनता को गरीबी और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था।
- उन्हें यह भी महसूस हुआ कि ब्रिटिश संसदीय प्रणाली, जिसे अक्सर स्वतंत्रता का प्रतीक माना जाता था, वास्तव में कुछ ही लोगों के हाथों में सत्ता केंद्रित करती थी और आम लोगों का इसमें कोई वास्तविक प्रतिनिधित्व नहीं था।
- बौद्धिक विकास और ज्ञानोदय के विचारों का प्रभाव:
- अपनी औपचारिक शिक्षा की कमी के बावजूद, पेन ने व्यापक रूप से स्व-अध्ययन किया। उन्होंने ज्ञानोदय (Enlightenment) के दार्शनिकों जैसे जॉन लोके, रूसो और वोल्टेयर के विचारों को पढ़ा।
- इन विचारों ने उन्हें तर्क, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, मानवाधिकार और सरकार की वैधता के सिद्धांतों से परिचित कराया। उन्होंने देखा कि ब्रिटिश व्यवस्था इन सिद्धांतों से कितनी दूर थी।
- इन बौद्धिक प्रभावों ने उनके व्यक्तिगत अनुभवों से उपजे असंतोष को एक वैचारिक आधार प्रदान किया। उन्हें लगने लगा कि मौजूदा व्यवस्था न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि अतार्किक और अप्रचलित भी है।
असंतोष की भावना का उदय:
इन सभी कारकों ने मिलकर पेन के भीतर एक गहरी असंतोष की भावना को जन्म दिया। उन्हें लगा कि इंग्लैंड में उनके लिए कोई भविष्य नहीं है, और यह कि समाज में मौलिक बदलाव की आवश्यकता है। वे एक ऐसी जगह की तलाश में थे जहाँ उनके विचारों को अभिव्यक्ति मिल सके और जहाँ वे एक अधिक न्यायपूर्ण और तर्कसंगत समाज के निर्माण में योगदान दे सकें।
बेंजामिन फ्रैंकलिन से उनकी मुलाकात और फ्रैंकलिन द्वारा अमेरिका जाने के सुझाव ने उन्हें एक नया रास्ता दिखाया। पेन ने इंग्लैंड में अपने सभी असफलताओं और निराशाओं को पीछे छोड़ते हुए, एक नई शुरुआत और एक नए उद्देश्य की तलाश में 1774 में अमेरिका की ओर प्रस्थान किया। उनके इंग्लैंड के संघर्षों ने ही उन्हें एक ऐसे क्रांतिकारी लेखक के रूप में तैयार किया, जो अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांतियों को अपनी कलम से प्रज्वलित करेगा।
थॉमस पेन का अमेरिका की यात्रा का निर्णय उनके इंग्लैंड में बढ़ते असंतोष और एक नए जीवन की तलाश का सीधा परिणाम था। इस यात्रा के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण थे, और बेंजामिन फ्रैंकलिन से उनका परिचय इसमें एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ।
अमेरिका की यात्रा के पीछे के कारण
पेन ने इंग्लैंड में अपने जीवन के पहले 37 साल बिताए थे, जो काफी हद तक संघर्ष, आर्थिक अस्थिरता और पेशेवर असफलताओं से भरे थे। अमेरिका जाने के उनके मुख्य कारण निम्नलिखित थे:
- निरंतर आर्थिक संघर्ष और व्यावसायिक असफलताएँ: जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, पेन ने कई व्यवसायों में हाथ आजमाया – कॉर्सेट-मेकर, शिक्षक, तंबाकू व्यापारी, और आबकारी अधिकारी – लेकिन किसी में भी उन्हें स्थायी सफलता या आर्थिक सुरक्षा नहीं मिली। वे लगातार कर्ज में डूबे रहते थे और भविष्य अनिश्चित था।
- सरकारी व्यवस्था से मोहभंग और असंतोष: आबकारी अधिकारी के रूप में उनके अनुभव ने उन्हें ब्रिटिश सरकार की अक्षमता, भ्रष्टाचार और आम लोगों के प्रति अन्यायपूर्ण रवैये को करीब से दिखाया। अपनी नौकरी से दो बार बर्खास्तगी, विशेष रूप से आबकारी अधिकारियों के लिए वेतन वृद्धि की वकालत करने के बाद, ने उन्हें यह स्पष्ट कर दिया कि इंग्लैंड में सुधार की गुंजाइश बहुत कम है और वहाँ उनकी आवाज नहीं सुनी जाएगी।
- सामाजिक असमानता और राजशाही से निराशा: पेन ने इंग्लैंड में गहरी सामाजिक असमानता देखी, जहाँ जन्म और धन ने लोगों के भाग्य का निर्धारण किया। उन्हें लगा कि ब्रिटिश राजशाही और अभिजात वर्ग की व्यवस्था अनुचित और तर्कहीन है, और यह आम लोगों की प्रगति को बाधित करती है। वे एक ऐसे समाज की तलाश में थे जहाँ योग्यता और कड़ी मेहनत को महत्व दिया जाए।
- बौद्धिक और राजनीतिक विचारों के लिए एक मंच की तलाश: पेन के मन में ज्ञानोदय के विचार (स्वतंत्रता, समानता, मानवाधिकार, तर्कसंगत सरकार) गहराई से घर कर चुके थे। उन्हें इंग्लैंड में इन विचारों को खुलकर व्यक्त करने या उन्हें लागू करने का कोई अवसर नहीं दिख रहा था। उन्हें एक ऐसे स्थान की तलाश थी जहाँ उनके क्रांतिकारी विचारों को पनपने का मौका मिले।
- नई दुनिया के अवसर और स्वतंत्रता की अपील: उस समय अमेरिका को एक “नई दुनिया” के रूप में देखा जा रहा था, जो स्वतंत्रता, अवसर और आत्म-निर्माण की संभावनाओं से भरा था। यूरोपीय लोगों के लिए यह पुरानी दुनिया की रूढ़ियों और सीमाओं से बचने का एक रास्ता था। पेन, जो पहले से ही अन्याय से असंतुष्ट थे, अमेरिकी उपनिवेशों में पनप रही स्वतंत्रता की भावना से आकर्षित हुए होंगे।
बेंजामिन फ्रैंकलिन से परिचय
थॉमस पेन की अमेरिका यात्रा में बेंजामिन फ्रैंकलिन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी।
- परिचय का समय और स्थान: पेन की फ्रैंकलिन से मुलाकात लंदन में हुई थी। 1774 में, जब पेन आबकारी सेवा से अपनी दूसरी बर्खास्तगी के बाद बेरोजगारी और गरीबी से जूझ रहे थे, वे फ्रैंकलिन से मिले। फ्रैंकलिन उस समय अमेरिकी उपनिवेशों के प्रतिनिधि के रूप में लंदन में रह रहे थे और ब्रिटिश सरकार के साथ उनके अधिकारों की वकालत कर रहे थे।
- फ्रैंकलिन की सिफारिश: फ्रैंकलिन ने पेन की तीव्र बुद्धि, उनके लेखन कौशल और उनकी गहन वैचारिक सोच को पहचाना। उन्हें पेन की ईमानदारी और सिद्धांतों के प्रति उनके जुनून ने प्रभावित किया। फ्रैंकलिन ने पेन को अमेरिका जाने के लिए प्रोत्साहित किया और उन्हें सिफारिश का एक पत्र भी दिया। यह पत्र फिलाडेल्फिया में फ्रैंकलिन के दामाद, रिचर्ड बाचे, और अन्य प्रभावशाली व्यक्तियों के नाम पर था।
- यात्रा का निर्णय: फ्रैंकलिन की सलाह और सिफारिश पत्र ने पेन को अमेरिका जाने का अंतिम धक्का दिया। उनके पास इंग्लैंड में खोने के लिए कुछ खास नहीं था, और फ्रैंकलिन जैसे प्रतिष्ठित व्यक्ति का समर्थन एक अमूल्य सहायता थी। पेन ने इंग्लैंड में अपने सभी पुराने संबंधों को तोड़ दिया और एक नई शुरुआत की उम्मीद में यात्रा पर निकल पड़े।
- कठिन यात्रा और फिलाडेल्फिया आगमन: पेन ने अक्टूबर 1774 में इंग्लैंड से यात्रा शुरू की, लेकिन यह यात्रा बेहद कठिन थी। वे टाइफस से गंभीर रूप से बीमार हो गए और लगभग मरते-मरते बचे। जब वे 30 नवंबर, 1774 को फिलाडेल्फिया पहुँचे, तो वे इतने कमजोर थे कि उन्हें जहाज से उतारने के लिए मदद की आवश्यकता पड़ी। फ्रैंकलिन के दामाद रिचर्ड बाचे ने उनकी देखभाल की और उन्हें ठीक होने में मदद की।
बेंजामिन फ्रैंकलिन की सिफारिश और समर्थन ने थॉमस पेन को अमेरिका आने का अवसर प्रदान किया, जहाँ उन्हें अपनी वास्तविक क्षमता का एहसास हुआ और उन्होंने अपनी क्रांतिकारी कलम से अमेरिकी क्रांति को एक नई दिशा दी। यह मुलाकात पेन के जीवन का एक ऐसा मोड़ साबित हुई, जिसने न केवल उनके भाग्य को बदला बल्कि दो महाद्वीपों के इतिहास को भी प्रभावित किया।
फिलाडेल्फिया में थॉमस पेन का प्रारंभिक जीवन
नवंबर 1774 में, लगभग मृत्यु के मुहाने से लौटकर, थॉमस पेन फिलाडेल्फिया पहुंचे। बेंजामिन फ्रैंकलिन के सिफारिशी पत्र की बदौलत, उन्हें तुरंत मदद मिली और वे फ्रैंकलिन के दामाद, रिचर्ड बाचे, और डॉ. बेंजामिन रश जैसे प्रभावशाली लोगों से मिले। फिलाडेल्फिया उस समय अमेरिकी उपनिवेशों में सबसे बड़ा और सबसे जीवंत शहर था, जो राजनीतिक बहस और बौद्धिक गतिविधियों का केंद्र था।
स्वास्थ्य लाभ के बाद, पेन ने जल्द ही फिलाडेल्फिया के बौद्धिक और राजनीतिक माहौल में खुद को ढाल लिया। यह इंग्लैंड के उनके पिछले अनुभवों से बिल्कुल अलग था, जहाँ उनके विचार और क्षमताएँ अक्सर अनसुनी रह जाती थीं। यहां उन्हें विचारों के आदान-प्रदान और बहस के लिए एक खुला मंच मिला।
पत्रकारिता की शुरुआत: “पेन्सिलवानिया मैगज़ीन”
फिलाडेल्फिया में आने के कुछ ही महीनों के भीतर, थॉमस पेन की किस्मत चमकने लगी। डॉ. बेंजामिन रश, जो एक प्रमुख चिकित्सक और बुद्धिजीवी थे, ने पेन की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें “पेन्सिलवानिया मैगज़ीन, या अमेरिकन मंथली म्यूजियम” (Pennsylvania Magazine, or American Monthly Museum) के संपादन का प्रस्ताव दिया। यह पत्रिका जनवरी 1775 में शुरू हुई थी।
पेन ने तत्काल इस अवसर को लपक लिया। मार्च 1775 से वे इस पत्रिका के संपादक बन गए। यह उनकी पत्रकारिता करियर की आधिकारिक शुरुआत थी। इस भूमिका में रहते हुए, उन्होंने न केवल पत्रिका के लेखों का संपादन किया, बल्कि खुद भी कई गुमनाम लेख लिखे। इन लेखों में वे विभिन्न विषयों पर अपने विचार व्यक्त करते थे, जिनमें विज्ञान, नैतिकता, और सामाजिक सुधार शामिल थे।
उनकी शुरुआती पत्रकारिता ने दर्शाया कि उनके पास सरल और प्रभावी भाषा में जटिल विचारों को व्यक्त करने की असाधारण क्षमता थी। उन्होंने अपनी लेखन शैली में आम बोलचाल की भाषा का उपयोग किया, जिससे उनके विचार आम जनता तक आसानी से पहुँच सकें।
प्रमुख शुरुआती लेखन और विचार:
- दासता-विरोधी लेख: पेन ने दासता के खिलाफ कई तीखे लेख लिखे। उनका मानना था कि दासता एक नैतिक पाप है और मानव अधिकारों का उल्लंघन है। “अफ्रीकी दासों पर एक गंभीर विचार” (Serious Thoughts on the Slave Trade) जैसे उनके लेखों ने उपनिवेशों में दासता-विरोधी भावना को बढ़ावा देने में मदद की।
- महिलाओं के अधिकार: उन्होंने कुछ लेखों में महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा के महत्व पर भी बात की, जो उस समय के हिसाब से काफी प्रगतिशील विचार थे।
- आम आदमी के अधिकार: उनके लेखों में ब्रिटिश शासन की आलोचना धीरे-धीरे मुखर होने लगी। वे ब्रिटिश राजशाही की वंशानुगत प्रकृति और उसके अन्यायपूर्ण कानूनों पर सवाल उठाने लगे। उन्होंने तर्क दिया कि सरकारों को लोगों की सहमति से शासन करना चाहिए, न कि दैवीय अधिकार से।
- वैज्ञानिक और सामाजिक सुधार: पेन ने विज्ञान की प्रगति, शिक्षा के महत्व और अन्य सामाजिक सुधारों पर भी लिखा।
“पेन्सिलवानिया मैगज़ीन” में संपादक के रूप में उनका कार्यकाल छोटा रहा (केवल 18 महीने), लेकिन यह अविश्वसनीय रूप से उत्पादक था। इस दौरान उन्होंने अपने लेखन कौशल को निखारा और अपने राजनीतिक विचारों को सार्वजनिक मंच पर रखने का अभ्यास किया। यह अनुभव उनके भविष्य के क्रांतिकारी कार्य, विशेष रूप से “कॉमन सेंस” के लिए एक महत्वपूर्ण पूर्वाभ्यास था। फिलाडेल्फिया ने उन्हें वह स्वतंत्रता और मंच दिया जिसकी उन्हें इंग्लैंड में कमी खल रही थी, और यहीं से वे एक क्रांतिकारी लेखक के रूप में उभरे।
थॉमस पेन के अमेरिका आगमन (1774) और “कॉमन सेंस” (1776) के प्रकाशन के समय, अमेरिकी क्रांति अपने चरम पर पहुंचने वाली थी। उपनिवेशों और ब्रिटेन के बीच संबंध बेहद तनावपूर्ण थे, और स्वतंत्रता की ओर बढ़ने का माहौल धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से बन रहा था। अमेरिकी क्रांति की दहलीज पर अमेरिका की स्थिति को कई पहलुओं में समझा जा सकता है:
1. राजनीतिक तनाव और ब्रिटिश उत्पीड़न:
- “नो टैक्सेशन विदाउट रिप्रेजेंटेशन” (प्रतिनिधित्व के बिना कराधान नहीं): यह उपनिवेशवादियों का मुख्य नारा था। ब्रिटिश संसद ने फ्रांसीसी और भारतीय युद्ध (Seven Years’ War) के बाद अपने विशाल ऋण को चुकाने के लिए अमेरिकी उपनिवेशों पर कई नए कर लगाए थे (जैसे शुगर एक्ट, स्टैम्प एक्ट, टाउनशेंड एक्ट, टी एक्ट)। उपनिवेशवादियों का तर्क था कि चूंकि ब्रिटिश संसद में उनका कोई प्रतिनिधि नहीं था, इसलिए उन पर ऐसे कर लगाना अवैध और अन्यायपूर्ण था।
- “इंटोलरेबल एक्ट्स” (असहनीय अधिनियम): बोस्टन टी पार्टी (1773) के जवाब में, ब्रिटिश संसद ने क्यूएक्ट्स (Coercive Acts), जिन्हें उपनिवेशवादियों ने “इंटोलरेबल एक्ट्स” कहा, पारित किए। इनमें बोस्टन बंदरगाह को बंद करना, मैसाचुसेट्स की स्व-शासन क्षमता को कम करना और ब्रिटिश सैनिकों को उपनिवेशों में ठहराने के लिए मजबूर करना शामिल था। इन कृत्यों ने उपनिवेशवादियों के गुस्से को भड़काया और उन्हें एकता की ओर धकेला।
- शाही राज्यपालों का शासन: प्रत्येक उपनिवेश में एक शाही राज्यपाल (Royal Governor) होता था जिसे ब्रिटिश ताज द्वारा नियुक्त किया जाता था। ये राज्यपाल अक्सर उपनिवेशों की विधानसभाओं और जनता की इच्छाओं की अनदेखी करते थे, जिससे संघर्ष बढ़ता था।
- सैल्यूटरी नेग्लेक्ट (Salutary Neglect) का अंत: दशकों तक, ब्रिटेन ने उपनिवेशों के आंतरिक मामलों में अपेक्षाकृत कम हस्तक्षेप किया था, जिससे उपनिवेशों को एक हद तक स्वशासन का अनुभव हुआ। लेकिन फ्रांसीसी और भारतीय युद्ध के बाद, ब्रिटेन ने इस “सैल्यूटरी नेग्लेक्ट” की नीति को समाप्त कर दिया और उपनिवेशों पर अधिक नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की, जिससे उपनिवेशवादियों में नाराजगी बढ़ी।
2. सामाजिक और आर्थिक स्थिति:
- विविध उपनिवेश: 13 उपनिवेश भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से विविध थे।
- उत्तरी उपनिवेश (न्यू इंग्लैंड): मछली पकड़ने, जहाज निर्माण और छोटे पैमाने पर खेती पर निर्भर थे। यहाँ प्यूरिटन प्रभाव मजबूत था और शहर केंद्रित समाज था।
- मध्य उपनिवेश: अधिक विविध अर्थव्यवस्था थी, जिसमें कृषि (अनाज), व्यापार और कुछ उद्योग शामिल थे। यहाँ अधिक धार्मिक और जातीय विविधता थी।
- दक्षिणी उपनिवेश: बड़े बागानों (तंबाकू, कपास) और बड़े पैमाने पर दास श्रम पर आधारित कृषि अर्थव्यवस्था थी। यहाँ सामाजिक पदानुक्रम अधिक स्पष्ट था।
- बढ़ती पहचान: उपनिवेशवादी खुद को धीरे-धीरे ब्रिटिश के बजाय “अमेरिकी” के रूप में देखने लगे थे। उन्होंने अपनी साझा कठिनाइयों और ब्रिटिश उत्पीड़न के खिलाफ एकजुटता महसूस करना शुरू कर दिया था।
- दासता की समस्या: दक्षिणी उपनिवेशों में दासता गहराई से जमी हुई थी, जबकि उत्तरी उपनिवेशों में भी दास प्रथा मौजूद थी, हालांकि कम व्यापक रूप से। स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की बात करते हुए भी, दासता का अंतर्निहित विरोधाभास मौजूद था।
- शिक्षित वर्ग का उदय: उपनिवेशों में एक बढ़ता हुआ शिक्षित वर्ग था, जिसमें वकील, व्यापारी और पत्रकार शामिल थे। ये लोग ज्ञानोदय के विचारों से परिचित थे और स्वतंत्रता और स्वशासन के सिद्धांतों पर बहस कर रहे थे।
3. वैचारिक और बौद्धिक माहौल:
- ज्ञानोदय का प्रभाव: जॉन लोके, मॉन्टेस्क्यू, और रूसो जैसे ज्ञानोदय के दार्शनिकों के विचार अमेरिकी बुद्धिजीवियों के बीच बहुत लोकप्रिय थे। प्राकृतिक अधिकार, सामाजिक अनुबंध, लोकप्रिय संप्रभुता और शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत राजनीतिक बहस का केंद्र थे।
- प्रचार और पम्फलेट्स: उपनिवेशों में राजनीतिक पम्फलेट्स और समाचार पत्रों का प्रसार तेजी से हो रहा था। इन माध्यमों से ब्रिटिश नीतियों की आलोचना की जाती थी और स्वतंत्रता के विचारों को बढ़ावा दिया जाता था। पेन की “पेन्सिलवानिया मैगज़ीन” इसका एक प्रमुख उदाहरण थी।
- विद्रोही भावना का उदय: बोस्टन नरसंहार (1770), बोस्टन टी पार्टी (1773), और लेक्सिंगटन और कॉनकॉर्ड की लड़ाई (अप्रैल 1775) जैसी घटनाओं ने उपनिवेशवादियों के बीच एक विद्रोही भावना को प्रज्वलित किया। इन घटनाओं ने ब्रिटिश शासन के प्रति बढ़ते प्रतिरोध को दर्शाया।
4. सैन्य तैयारी:
- मिलिशिया का गठन: ब्रिटिश सेना के खिलाफ, उपनिवेशवादियों ने अपनी स्वयं की स्थानीय मिलिशिया (स्वयंसेवी सेना) का गठन करना शुरू कर दिया था, जिसे अक्सर “मिनिटमेन” कहा जाता था। ये छोटी, स्थानीय रूप से संगठित इकाइयां थीं।
- पहला और दूसरा कॉन्टिनेंटल कांग्रेस: 1774 में, पहला कॉन्टिनेंटल कांग्रेस फिलाडेल्फिया में आयोजित किया गया था, जिसमें उपनिवेशों के प्रतिनिधियों ने ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ एकजुट होकर कार्रवाई करने का संकल्प लिया। अप्रैल 1775 में लेक्सिंगटन और कॉनकॉर्ड में लड़ाई शुरू होने के बाद, दूसरा कॉन्टिनेंटल कांग्रेस मिला और उसने जॉर्ज वाशिंगटन को कॉन्टिनेंटल आर्मी का कमांडर-इन-चीफ नियुक्त किया, जिससे युद्ध की औपचारिक शुरुआत हुई।
जब थॉमस पेन अमेरिका पहुँचे, तो उपनिवेश ब्रिटेन से निर्णायक रूप से टूटने की कगार पर थे। राजनीतिक, आर्थिक और वैचारिक तनाव अपनी चरम सीमा पर था, और संघर्ष को सुलझाने के लिए एक स्पष्ट आह्वान की आवश्यकता थी। “कॉमन सेंस” ठीक इसी समय आया और उस ज्वलंत माहौल में एक चिंगारी का काम किया, जिसने हिचकिचा रहे उपनिवेशवादियों को स्वतंत्रता की दिशा में निर्णायक कदम उठाने के लिए प्रेरित किया।
थॉमस पेन का अमेरिकी स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ना उनके अमेरिका आगमन के तुरंत बाद शुरू हो गया और यह एक ऐसा जुड़ाव था जिसने अमेरिकी क्रांति की दिशा ही बदल दी। इंग्लैंड में अपने अनुभवों से पहले से ही असंतोष और अन्याय के प्रति संवेदनशील, पेन को अमेरिका में वह उपजाऊ जमीन मिली जहाँ उनके क्रांतिकारी विचार फल-फूल सकते थे।
फिलाडेल्फिया पहुँचने के बाद, पेन ने स्वयं को एक ऐसे शहर में पाया जो राजनीतिक बहस और असंतोष के केंद्र में था। ब्रिटिश सरकार के प्रति गुस्सा और उपनिवेशवादियों के अधिकारों के हनन पर चर्चाएँ हर जगह थीं। पेन ने इन चर्चाओं में गहरी रुचि ली और जल्द ही स्थानीय बुद्धिजीवियों और राजनीतिक नेताओं के एक समूह के साथ घुलमिल गए।
डॉ. बेंजामिन रश का प्रभाव: पेन को अमेरिकी क्रांति से जोड़ने में डॉ. बेंजामिन रश की भूमिका महत्वपूर्ण थी। रश, जो स्वयं एक प्रमुख चिकित्सक और स्वतंत्रता के समर्थक थे, ने पेन की बौद्धिक क्षमता और उनके लेखन कौशल को पहचाना। यह रश ही थे जिन्होंने पेन को “पेन्सिलवानिया मैगज़ीन” का संपादक बनने का अवसर दिया। इस पत्रिका के माध्यम से, पेन ने उपनिवेशों के सामने आने वाले सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त करना शुरू किया। उनके शुरुआती लेखों ने दासता की आलोचना की, महिलाओं के अधिकारों की वकालत की और ब्रिटिश नीतियों के अन्याय पर सवाल उठाए, जिससे उन्हें सार्वजनिक पहचान मिली।
राजनीतिक माहौल में बढ़ती भागीदारी: जैसे-जैसे ब्रिटिश-अमेरिकी संबंध बिगड़ते गए, पेन की पत्रकारिता अधिक राजनीतिक और प्रत्यक्ष होती गई। उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक घटनाओं पर गहरी टिप्पणी करना शुरू कर दिया, अक्सर गुमनाम रूप से, जिससे उनके विचारों को व्यापक पाठक वर्ग तक पहुँचने का मौका मिला। उन्होंने लेक्सिंगटन और कॉनकॉर्ड की लड़ाई (अप्रैल 1775) जैसी घटनाओं को बहुत करीब से देखा, जिसने उपनिवेशों और ब्रिटिश ताज के बीच सशस्त्र संघर्ष की शुरुआत को चिह्नित किया।
इन घटनाओं ने पेन को यह विश्वास दिलाया कि अब सुलह का कोई रास्ता नहीं बचा है और उपनिवेशों के लिए स्वतंत्रता ही एकमात्र व्यवहार्य विकल्प है। वह तर्क के माध्यम से लोगों को इस विचार के लिए राजी करने की आवश्यकता महसूस करने लगे।
“कॉमन सेंस” की नींव: पेन ने महसूस किया कि अमेरिकी उपनिवेशों के लोगों को अभी भी ब्रिटिश शासन से पूरी तरह से अलग होने के लिए एक स्पष्ट और मजबूत तर्क की आवश्यकता थी। बहुत से लोग अभी भी जॉर्ज III के प्रति वफादार थे या सोचते थे कि ब्रिटिश संसद के साथ सुलह संभव है। पेन ने इस खालीपन को भरने का बीड़ा उठाया।
डॉ. रश के साथ अपनी चर्चाओं में, पेन ने राजशाही की निरर्थकता और अमेरिकी स्वतंत्रता की अनिवार्यता के बारे में अपने विचारों को व्यक्त किया। रश ने ही उन्हें इन विचारों को एक पम्फलेट के रूप में लिखने के लिए प्रोत्साहित किया।
पेन, जो पहले से ही अन्याय से असंतुष्ट थे और तर्कसंगतता में विश्वास करते थे, ने अपने अनुभवों और ज्ञानोदय के सिद्धांतों का उपयोग करते हुए एक ऐसा पाठ तैयार करना शुरू किया जो सीधे आम लोगों की भावनाओं और समझ को संबोधित करेगा। उनका लक्ष्य था कि वे आम भाषा का उपयोग करें ताकि उनके तर्क किसानों, कारीगरों और व्यापारियों तक आसानी से पहुँच सकें, न कि केवल शिक्षित अभिजात वर्ग तक।
पेन का अमेरिकी स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ना उनके व्यक्तिगत संघर्षों, एक नए अवसर की तलाश, और सबसे बढ़कर, उनके गहरे विश्वास से प्रेरित था कि सभी मनुष्यों को स्वतंत्रता और न्याय का अधिकार है। उनकी कलम ही उनका हथियार बनी, और “कॉमन सेंस” के माध्यम से, उन्होंने एक राष्ट्र को स्वतंत्रता के लिए उठ खड़े होने के लिए प्रेरित किया।
“कॉमन सेंस” (Common Sense) के लेखन की पृष्ठभूमि
थॉमस पेन ने जनवरी 1776 में “कॉमन सेंस” प्रकाशित किया, जो अमेरिकी क्रांति के इतिहास में एक निर्णायक क्षण था। इसके लेखन के पीछे कई महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि कारक थे:
- अमेरिकी उपनिवेशों में बढ़ती अनिश्चितता और अनिर्णय (1775-1776):
- सशस्त्र संघर्ष का आरंभ: अप्रैल 1775 में लेक्सिंगटन और कॉनकॉर्ड में हुई लड़ाइयों और उसके बाद बंकर हिल की लड़ाई (जून 1775) ने ब्रिटिश सेना और उपनिवेशवादियों के मिलिशिया के बीच वास्तविक सशस्त्र संघर्ष शुरू कर दिया था।
- स्वतंत्रता पर हिचकिचाहट: इन लड़ाइयों के बावजूद, अधिकांश उपनिवेशवादी अभी भी ब्रिटेन से पूर्ण स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे थे। एक बड़ी संख्या अभी भी किंग जॉर्ज III के प्रति वफादार थी और उम्मीद कर रही थी कि ब्रिटिश संसद के साथ सुलह संभव है। वे केवल अपने अधिकारों की बहाली और ब्रिटिश सरकार से बेहतर व्यवहार चाहते थे, न कि पूरी तरह से अलगाव।
- द्वितीय कॉन्टिनेंटल कांग्रेस की स्थिति: द्वितीय कॉन्टिनेंटल कांग्रेस, जो उपनिवेशों का प्रतिनिधित्व कर रही थी, भी स्वतंत्रता की घोषणा करने में हिचकिचा रही थी। उन्होंने “ऑलिव ब्रांच पिटीशन” (जुलाई 1775) जैसी सुलह की अंतिम कोशिशें की थीं, जिसे किंग जॉर्ज III ने अस्वीकार कर दिया था। इससे यह स्पष्ट हो गया कि ब्रिटेन झुकने वाला नहीं है।
- विचारों का टकराव: उपनिवेशों के भीतर “वफादारों” (Loyalists) और “देशभक्तों” (Patriots) के बीच तीव्र वैचारिक बहस चल रही थी। देशभक्त भी पूरी तरह से स्वतंत्र होने के विचार पर एकमत नहीं थे। कुछ सोचते थे कि यह बहुत कट्टरपंथी कदम होगा।
- पेन का इंग्लैंड में असंतोष और अमेरिकी अनुभव:
- पेन स्वयं इंग्लैंड में ब्रिटिश राजशाही और अभिजात वर्ग के अन्याय और भ्रष्टाचार के प्रत्यक्ष गवाह थे। उन्होंने देखा था कि कैसे सत्ताधारी वर्ग आम लोगों के अधिकारों की उपेक्षा करता था।
- अमेरिका में उन्हें बौद्धिक स्वतंत्रता और विचारों के आदान-प्रदान के लिए एक खुला मंच मिला, जो इंग्लैंड में नहीं था। उन्होंने देखा कि ब्रिटिश शासन के तहत उपनिवेशवादी भी उसी तरह के उत्पीड़न का सामना कर रहे थे जैसा उन्होंने इंग्लैंड में महसूस किया था।
- ज्ञानोदय के विचारों का प्रभाव:
- पेन ज्ञानोदय के प्रमुख दार्शनिकों जैसे जॉन लोके (प्राकृतिक अधिकार, सामाजिक अनुबंध), रूसो (लोकप्रिय संप्रभुता) और मॉन्टेस्क्यू (शक्ति का पृथक्करण) के विचारों से गहरे प्रभावित थे। उन्होंने इन सिद्धांतों को उपनिवेशों की वर्तमान स्थिति पर लागू करने की आवश्यकता महसूस की।
- डॉ. बेंजामिन रश का प्रोत्साहन:
- पेन ने फिलाडेल्फिया में डॉ. बेंजामिन रश जैसे प्रमुख विचारकों के साथ गहन चर्चा की। रश ने पेन की तार्किक क्षमता और उनके राजशाही-विरोधी विचारों को पहचाना और उन्हें उपनिवेशों की जनता को समझाने के लिए एक शक्तिशाली पम्फलेट लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। रश ने ही “कॉमन सेंस” नाम का सुझाव भी दिया था।
“कॉमन सेंस” के उद्देश्य
“कॉमन सेंस” को एक विशिष्ट उद्देश्य के साथ लिखा गया था:
- ब्रिटिश राजशाही और वंशानुगत शासन की वैधता पर सवाल उठाना:
- पेन का प्राथमिक उद्देश्य ब्रिटिश राजशाही और वंशानुगत उत्तराधिकार के सिद्धांत को तर्कहीन, अन्यायपूर्ण और अनावश्यक साबित करना था। उन्होंने तर्क दिया कि राजा का अधिकार दैवीय नहीं, बल्कि मानव निर्मित है, और इसलिए इसे चुनौती दी जा सकती है।
- उन्होंने इस विचार पर हमला किया कि राजा और संसद का शासन स्वाभाविक और अपरिहार्य है।
- सुलह के सभी तर्कों को खंडित करना:
- पेन ने उन सभी तर्कों का खंडन किया जो अभी भी ब्रिटेन के साथ सुलह का समर्थन कर रहे थे। उन्होंने दिखाया कि ब्रिटेन उपनिवेशों का वास्तविक “मूल देश” नहीं था, बल्कि एक उत्पीड़नकारी शक्ति थी जिसने उनके आर्थिक और राजनीतिक हितों को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल किया।
- उन्होंने तर्क दिया कि सुलह से केवल भविष्य में और संघर्ष होंगे और यह एक अस्थिर समाधान होगा।
- पूर्ण स्वतंत्रता के लिए एक स्पष्ट और शक्तिशाली तर्क प्रस्तुत करना:
- यह पम्फलेट स्वतंत्रता के लिए एक स्पष्ट, सुसंगत और भावनात्मक रूप से प्रेरक तर्क प्रस्तुत करने के लिए लिखा गया था। पेन ने इस बात पर जोर दिया कि अब सुलह का समय नहीं रहा, बल्कि अब कार्रवाई करने और एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपना भाग्य निर्धारित करने का समय है।
- उन्होंने स्वतंत्रता के व्यावहारिक लाभों पर प्रकाश डाला: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंध स्थापित करने की क्षमता, यूरोपीय संघर्षों से बचने की क्षमता, और एक अधिक न्यायपूर्ण और प्रतिनिधि सरकार स्थापित करने का अवसर।
- आम जनता को समझाना और एकजुट करना:
- पेन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य केवल शिक्षित अभिजात वर्ग को ही नहीं, बल्कि आम किसान, कारीगर और व्यापारियों को भी अपने विचारों से जोड़ना था। उन्होंने जटिल राजनीतिक और दार्शनिक विचारों को सरल, सीधी और आम बोलचाल की भाषा में प्रस्तुत किया, जिससे हर कोई इसे समझ सके।
- उन्होंने पाठकों से “कॉमन सेंस” (सामान्य ज्ञान) और तर्क का उपयोग करने का आग्रह किया, न कि परंपरा या भावना का।
- एक नए, गणतांत्रिक सरकार की दृष्टि प्रस्तुत करना:
- पेन ने केवल ब्रिटिश शासन की आलोचना ही नहीं की, बल्कि स्वतंत्रता के बाद अमेरिकी उपनिवेशों के लिए एक लोकतांत्रिक, गणतांत्रिक सरकार की रूपरेखा भी प्रस्तुत की। उन्होंने एक ऐसे शासन की कल्पना की जहाँ शक्ति लोगों के हाथों में होगी और जहाँ प्रतिनिधियों को नियमित रूप से चुना जाएगा।
“कॉमन सेंस” को एक ऐसे समय में लिखा गया था जब अमेरिकी क्रांति एक चौराहे पर खड़ी थी। इसका उद्देश्य अमेरिकी लोगों के मन से सुलह की अंतिम आशाओं को मिटाना, ब्रिटिश राजशाही की वैधता पर हमला करना, और उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता की अनिवार्यता के लिए प्रेरित करना था, एक स्वतंत्र गणराज्य के रूप में अपने स्वयं के भाग्य का निर्धारण करने के लिए। यह एक ऐसी पुस्तक थी जिसने केवल विचारों को ही नहीं, बल्कि एक क्रांति की दिशा को भी बदल दिया।
“कॉमन सेंस” के मुख्य तर्क और अमेरिकी जनता पर इसका तत्काल प्रभाव
थॉमस पेन का “कॉमन सेंस” एक संक्षिप्त, लगभग 47-पृष्ठ का पम्फलेट था, लेकिन इसके तर्क इतने शक्तिशाली और सुलभ थे कि इसने अमेरिकी स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा को ही बदल दिया।
पुस्तक के मुख्य तर्क:
पेन ने अपने तर्कों को सरल, सीधी और आम बोलचाल की भाषा में प्रस्तुत किया, जिससे वे व्यापक जनता तक पहुंच सकें। उन्होंने बाइबिल के दृष्टांतों और सामान्य ज्ञान के सिद्धांतों का उपयोग किया।
- सरकार और समाज के बीच अंतर (Difference Between Government and Society):
- पेन ने तर्क दिया कि समाज एक आशीर्वाद है, जो हमारी जरूरतों से उत्पन्न होता है और सहयोग को बढ़ावा देता है।
- इसके विपरीत, सरकार एक “आवश्यक बुराई” है, जो हमारी खामियों से उत्पन्न होती है। इसकी आवश्यकता इसलिए है ताकि मनुष्य एक-दूसरे को नुकसान न पहुँचाएँ, लेकिन अपनी सबसे अच्छी स्थिति में भी यह केवल एक आवश्यक बुराई है, और अपनी सबसे खराब स्थिति में यह असहनीय है। उन्होंने इस भेद को स्थापित करके यह विचार दिया कि सरकार को कम से कम हस्तक्षेपकारी और सबसे अधिक प्रतिनिधि होना चाहिए।
- राजशाही और वंशानुगत उत्तराधिकार का खंडन (Rejection of Monarchy and Hereditary Succession):
- यह पेन का सबसे मौलिक और क्रांतिकारी तर्क था। उन्होंने राजशाही को “बेतुका” और “अतार्किक” बताया।
- उन्होंने बाइबिल के उदाहरणों का उपयोग करते हुए तर्क दिया कि राजाओं का कोई दैवीय अधिकार नहीं है।
- वंशानुगत उत्तराधिकार को उन्होंने विशेष रूप से मूर्खतापूर्ण बताया, यह कहते हुए कि यह अक्सर अयोग्य या क्रूर शासकों को सत्ता में लाता है। उन्होंने इसे एक “उत्तराधिकार के क्रम में पैदा हुआ गधा” जैसा बताया।
- उन्होंने ब्रिटिश राजा जॉर्ज III को एक “शाही जानवर” और “कसाई” के रूप में वर्णित किया, जिसने सुलह की किसी भी धारणा को असंभव बना दिया।
- ब्रिटेन से स्वतंत्रता की अनिवार्यता (Necessity of Independence from Britain):
- सुलह की असंभवता: पेन ने तर्क दिया कि ब्रिटेन के साथ सुलह का समय बीत चुका है। ब्रिटिश सरकार की पिछली कार्रवाइयों (जैसे स्टैम्प एक्ट, टाउनशेंड एक्ट, और इंटोलरेबल एक्ट्स) ने स्पष्ट कर दिया है कि ब्रिटेन उपनिवेशों को अपने दास के रूप में देखता है, न कि समान नागरिक के रूप में।
- भौगोलिक दूरी और व्यावहारिकता: उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एक छोटे से द्वीप से एक विशाल महाद्वीप (अमेरिका) का शासन करना स्वाभाविक नहीं है। उन्होंने पूछा कि एक छोटे से देश को हजारों मील दूर स्थित एक बड़े महाद्वीप पर कैसे स्थायी रूप से शासन करना चाहिए।
- आर्थिक लाभ: पेन ने तर्क दिया कि स्वतंत्रता से उपनिवेशों को बहुत आर्थिक लाभ होगा। वे स्वतंत्र रूप से व्यापार कर सकेंगे और यूरोपीय संघर्षों में घसीटे जाने से बचेंगे। ब्रिटिश नियंत्रण के कारण अमेरिका का व्यापार केवल ब्रिटेन तक सीमित था, लेकिन स्वतंत्रता उन्हें दुनिया भर से व्यापार करने का अवसर देगी।
- नैतिक अनिवार्यता: उन्होंने स्वतंत्रता को एक नैतिक अनिवार्यता के रूप में प्रस्तुत किया – यह न केवल अमेरिकी लोगों का अधिकार है, बल्कि मानव जाति के लिए एक महान कार्य है। उन्होंने कहा कि अमेरिका को स्वतंत्रता के माध्यम से “दुनिया के लिए एक आश्रय” (asylum for mankind) बनना चाहिए।
- एक गणतांत्रिक सरकार का प्रस्ताव (Proposal for a Republican Government):
- केवल आलोचना करने के बजाय, पेन ने स्वतंत्रता के बाद के लिए एक वैकल्पिक सरकार का खाका भी प्रस्तुत किया। उन्होंने एक गणतांत्रिक सरकार का सुझाव दिया जहाँ लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि कानून बनाएंगे।
- उन्होंने कांग्रेस की कल्पना एक ऐसे निकाय के रूप में की जहाँ प्रत्येक उपनिवेश को उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा और जहाँ निर्णय लेने की प्रक्रिया लोकतांत्रिक होगी।
अमेरिकी जनता पर इसका तत्काल प्रभाव:
“कॉमन सेंस” का प्रभाव अभूतपूर्व और तत्काल था, जिसने क्रांति के पाठ्यक्रम को मौलिक रूप से बदल दिया:
- सार्वजनिक राय में बदलाव:
- स्वतंत्रता का विचार मुख्यधारा में आया: पेन के पम्फलेट से पहले, स्वतंत्रता का विचार कुछ कट्टरपंथियों तक ही सीमित था। “कॉमन सेंस” ने इस विचार को आम बातचीत का हिस्सा बना दिया और इसे लोकप्रिय कल्पना में स्थापित कर दिया।
- सुलह की उम्मीदों का अंत: पेन के तर्कों ने उन लाखों लोगों को मना लिया जो अभी भी ब्रिटेन के प्रति वफादार थे या सुलह की उम्मीद कर रहे थे। उन्होंने तर्क की शक्ति से दिखाया कि सुलह असंभव और अवांछनीय दोनों है।
- अभूतपूर्व प्रसार और लोकप्रियता:
- “कॉमन सेंस” अमेरिकी इतिहास में सबसे अधिक बिकने वाला पम्फलेट बन गया। इसके प्रकाशन के कुछ ही महीनों के भीतर 120,000 से अधिक प्रतियाँ बिकीं (और कुछ अनुमान 500,000 तक बताते हैं, जो उस समय की आबादी के अनुपात में अविश्वसनीय था)।
- इसे जोर से पढ़ा गया, कॉपी किया गया और पूरे उपनिवेशों में वितरित किया गया। यह सराय, कॉफीहाउस और बैठक कक्षों में चर्चा का विषय बन गया।
- आम जनता को सशक्त बनाना:
- पेन की सीधी और सशक्त भाषा ने इसे सभी स्तरों के लोगों के लिए सुलभ बनाया। अशिक्षित लोग भी इसे सुनकर या चर्चा करके इसके संदेश को समझ सकते थे।
- इसने आम आदमी को महसूस कराया कि उनके पास राजनीतिक विचार रखने और बड़े मुद्दों पर निर्णय लेने का अधिकार है। यह एक लोकतांत्रिक सशक्तिकरण था।
- कॉन्टिनेंटल कांग्रेस पर दबाव:
- पम्फलेट की अपार लोकप्रियता ने कॉन्टिनेंटल कांग्रेस पर स्वतंत्रता की घोषणा करने के लिए बहुत दबाव डाला। जनता की राय इतनी स्पष्ट रूप से स्वतंत्रता के पक्ष में हो गई कि कांग्रेस के लिए अब हिचकिचाना मुश्किल हो गया।
- स्वतंत्रता की घोषणा के लिए उत्प्रेरक:
- “कॉमन सेंस” को अक्सर अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा के लिए सबसे महत्वपूर्ण एकल साहित्यिक उत्प्रेरक माना जाता है। इसने बौद्धिक और भावनात्मक आधार तैयार किया जिसके बिना घोषणा शायद उस समय संभव नहीं होती। जॉन एडम्स ने भी स्वीकार किया कि पेन के लेखन ने जनता के मन में बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
“कॉमन सेंस” एक ऐसा मास्टरपीस था जिसने केवल राजनीतिक विचारों को ही नहीं बदला, बल्कि लाखों लोगों के दिल और दिमाग को भी बदल दिया। इसने तर्क और भावना के मिश्रण से ब्रिटिश राजशाही के प्रति शेष निष्ठा को तोड़ दिया और अमेरिकी लोगों को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपने भाग्य को गले लगाने के लिए प्रेरित किया।
थॉमस पेन की सरल और शक्तिशाली भाषा शैली का विश्लेषण
थॉमस पेन की भाषा शैली उनके लेखन की सबसे विशिष्ट और प्रभावी विशेषताओं में से एक थी, जिसने उन्हें एक सामान्य पम्फलेट लेखक से एक क्रांतिकारी प्रवर्तक में बदल दिया। उनकी शैली जटिल विचारों को समझने में आसान बनाती थी और सीधे पाठक की भावनाओं को छूती थी।
यहाँ उनकी भाषा शैली के प्रमुख तत्व दिए गए हैं:
1. प्रत्यक्ष और सुलभ शब्दावली (Direct and Accessible Vocabulary)
- आम आदमी के लिए लेखन: पेन का प्राथमिक लक्ष्य शिक्षित अभिजात वर्ग नहीं, बल्कि आम किसान, कारीगर, व्यापारी और सैनिक थे। इसलिए, उन्होंने जटिल अकादमिक या दार्शनिक शब्दावली से परहेज किया। उन्होंने ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जो रोजमर्रा की बातचीत में इस्तेमाल होते थे।
- समझ में आसान: उनके लेखन में लंबी, घुमावदार वाक्य या अप्रचलित शब्द नहीं होते थे। उन्होंने जानबूझकर सरल वाक्य संरचनाओं का उपयोग किया ताकि उनके विचारों को न्यूनतम प्रयास से समझा जा सके। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण था क्योंकि उस समय कई लोग पूरी तरह से साक्षर नहीं थे और अक्सर पम्फलेटों को जोर से पढ़कर सुनाया जाता था।
2. सशक्त और भावनात्मक अपील (Powerful and Emotional Appeal)
- नैतिक आग्रह: पेन ने केवल तर्कों को ही नहीं, बल्कि एक मजबूत नैतिक आग्रह को भी अपने लेखन में शामिल किया। उन्होंने स्वतंत्रता और न्याय को “सामान्य ज्ञान” और “नैतिक अनिवार्यता” के रूप में प्रस्तुत किया।
- भावनात्मक भाषा का उपयोग: उन्होंने अपनी बात को स्पष्ट करने और पाठक के भीतर एक भावनात्मक प्रतिक्रिया जगाने के लिए सशक्त शब्दों और कल्पना का उपयोग किया। उदाहरण के लिए, “कॉमन सेंस” में जॉर्ज III को “शाही जानवर” या “कसाई” कहना उनकी निराशा और घृणा को सीधे व्यक्त करता है।
- उदाहरणात्मक भाषा: उन्होंने ऐसी कल्पनाओं का प्रयोग किया जो आम लोगों के जीवन से जुड़ी थीं, जैसे एक माँ जो अपने बच्चों को बचाने के लिए लड़ रही हो, या एक जहाज जो डूबने वाला हो।
3. अलंकारिक प्रश्न और वक्तृत्व कला (Rhetorical Questions and Oratory)
- पाठक को शामिल करना: पेन अक्सर अपने तर्कों को मजबूत करने के लिए अलंकारिक प्रश्नों का उपयोग करते थे, जो पाठक को सोचने और उनके निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए प्रेरित करते थे। उदाहरण के लिए, “यदि कोई बच्चा जन्म से भूखा है, तो क्या वह अपने माता-पिता पर निर्भर नहीं है?” जैसे प्रश्न पाठक को स्वयं उत्तर खोजने के लिए मजबूर करते थे।
- सार्वजनिक भाषण की तरह: उनके लेखन में एक वक्तृत्वपूर्ण गुण था, मानो वे सार्वजनिक रूप से किसी भीड़ को संबोधित कर रहे हों। यह शैली श्रोताओं को बांधे रखती है और उनके तर्कों को अधिक प्रभावशाली बनाती है। यह “कॉमन सेंस” की लोकप्रियता का एक कारण था, क्योंकि इसे अक्सर जोर से पढ़ा जाता था।
4. तर्क की स्पष्टता और तार्किक प्रगति (Clarity of Argument and Logical Progression)
- स्पष्ट संरचना: पेन अपने तर्कों को बहुत स्पष्ट और तार्किक तरीके से प्रस्तुत करते थे। उन्होंने एक विचार से शुरुआत की, उसे विकसित किया, और फिर एक निष्कर्ष पर पहुँचे, जिससे पाठक को पूरी तर्क श्रृंखला को समझना आसान हो जाता था।
- आम भावना (Common Sense) पर जोर: उन्होंने पाठकों से जटिल दार्शनिक सिद्धांतों के बजाय “सामान्य ज्ञान” और “तर्क” का उपयोग करने की अपील की। यह उनकी शैली को अधिक समावेशी बनाता था और लोगों को यह महसूस कराता था कि वे स्वयं इन सत्यों तक पहुंच सकते हैं।
- कठोर खंडन: उन्होंने अपने विरोधियों के तर्कों का सीधे और व्यवस्थित रूप से खंडन किया, जिससे उनके अपने विचार और अधिक पुष्ट होते थे।
5. बाइबिल और धार्मिक रूपकों का उपयोग (Use of Biblical and Religious Metaphors)
- सांस्कृतिक संदर्भ: 18वीं शताब्दी के अमेरिका में, बाइबिल का ज्ञान व्यापक था। पेन ने अपने तर्कों को धार्मिक संदर्भों से जोड़कर अपनी बात को और अधिक विश्वसनीय और स्वीकार्य बनाया। उदाहरण के लिए, राजशाही के खिलाफ तर्क देते समय, उन्होंने यहूदियों के एक राजा की मांग करने और ईश्वर द्वारा इसे अस्वीकार करने की बाइबिल कहानी का उल्लेख किया।
- नैतिक औचित्य: इन रूपकों ने उनके राजनीतिक तर्कों को एक नैतिक और यहां तक कि दैवीय औचित्य प्रदान किया, जिससे वे धार्मिक जनता के लिए अधिक प्रभावी बन गए।
उदाहरण: “कॉमन सेंस” से
“समाज हर हालत में एक वरदान है, लेकिन सरकार, अपनी सर्वोत्तम स्थिति में भी, एक आवश्यक बुराई है; अपनी सबसे खराब स्थिति में, यह असहनीय है।” (Society in every state is a blessing, but government even in its best state is but a necessary evil; in its worst state an intolerable one.)
यह वाक्य पेन की शैली का बेहतरीन उदाहरण है:
- सरल शब्द: सभी शब्द सामान्य हैं और आसानी से समझे जा सकते हैं।
- स्पष्ट तुलना: समाज और सरकार के बीच एक तीखी और स्पष्ट तुलना।
- तार्किक निष्कर्ष: एक संक्षिप्त और प्रभावी निष्कर्ष जो पाठक के मन में बैठ जाता है।
- प्रत्यक्षता: कोई घुमावदार भाषा नहीं, सीधे मुद्दे पर।
थॉमस पेन की भाषा शैली उनके समय के लिए एक क्रांतिकारी उपकरण थी। उन्होंने अपनी सीधी, सशक्त और भावनात्मक भाषा के माध्यम से जटिल राजनीतिक विचारों को आम लोगों तक पहुंचाया, जिससे वे केवल सूचनात्मक पम्फलेट नहीं, बल्कि जनता को कार्रवाई के लिए प्रेरित करने वाले शक्तिशाली घोषणापत्र बन गए। उनकी शैली ने अमेरिकी क्रांति को वैचारिक ईंधन प्रदान किया और यह दिखाया कि कैसे शब्द स्वयं युद्ध को प्रभावित कर सकते हैं।
“कॉमन सेंस” ने अमेरिकी उपनिवेशों को स्वतंत्रता की घोषणा के लिए कैसे प्रेरित किया
थॉमस पेन का “कॉमन सेंस” अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा (4 जुलाई, 1776) के लिए एक उत्प्रेरक साबित हुआ। इसने उपनिवेशों में सार्वजनिक राय को मौलिक रूप से बदल दिया और स्वतंत्रता के विचार को एक नैतिक और व्यावहारिक अनिवार्यता के रूप में स्थापित किया। इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को इन बिंदुओं से समझा जा सकता है:
1. सुलह की उम्मीदों का अंत किया
“कॉमन सेंस” से पहले, कई उपनिवेशवादी अभी भी ब्रिटेन के साथ सुलह की उम्मीद पाले हुए थे। उनका मानना था कि उनके अधिकारों को बहाल किया जा सकता है और राजा जॉर्ज III के साथ मतभेदों को सुलझाया जा सकता है। पेन ने इस धारणा पर जोरदार हमला किया। उन्होंने तर्क दिया कि:
- ब्रिटिश शासन उपनिवेशों के लिए बर्बादी का कारण है, न कि लाभ का।
- किंग जॉर्ज III एक तानाशाह है, “एक शाही जानवर” है, और उससे सुलह असंभव है।
- ब्रिटेन का अमेरिका से संबंध एक शोषणकारी रिश्ता है, न कि एक संरक्षक का।
- सुलह से भविष्य में केवल और अधिक संघर्ष और उत्पीड़न होंगे।
पेन ने इन तर्कों को इतनी स्पष्टता और दृढ़ता से रखा कि उन्होंने उन हिचकिचाते हुए लोगों के मन में बसी सुलह की अंतिम उम्मीदों को चकनाचूर कर दिया।
2. स्वतंत्रता के विचार को तर्कसंगत और सामान्य बनाया
पेन ने स्वतंत्रता के विचार को अभिजात वर्ग के दर्शनशास्त्र से निकालकर आम आदमी के ‘सामान्य ज्ञान’ (common sense) का हिस्सा बना दिया। उन्होंने जटिल राजनीतिक और दार्शनिक सिद्धांतों को सरल, सीधी भाषा में समझाया।
- उन्होंने राजशाही को अतार्किक और बेतुका साबित किया, जिसे कोई भी तर्कसंगत व्यक्ति आसानी से समझ सकता था।
- उन्होंने स्वतंत्रता को न केवल एक अधिकार बल्कि एक व्यावहारिक आवश्यकता के रूप में प्रस्तुत किया – एक ऐसी चीज जो अमेरिका के आर्थिक और राजनीतिक भविष्य के लिए अनिवार्य थी।
- उनकी भाषा इतनी सुलभ थी कि इसे सराय में, घरों में और सार्वजनिक चौराहों पर जोर-जोर से पढ़ा जाता था, जिससे हर वर्ग के लोगों तक इसका संदेश पहुंचा। इसने स्वतंत्रता के विचार को एक सार्वभौमिक अपील दी।
3. नैतिक और धार्मिक औचित्य प्रदान किया
पेन ने स्वतंत्रता के लिए एक मजबूत नैतिक और यहां तक कि धार्मिक औचित्य भी प्रदान किया।
- उन्होंने तर्क दिया कि ब्रिटिश शासन ईश्वर के प्राकृतिक नियमों के खिलाफ है।
- उन्होंने बाइबिल के उदाहरणों का उपयोग करके राजशाही को मानव इतिहास में एक दुखद गलती के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे धार्मिक लोगों के लिए स्वतंत्रता का विचार अधिक स्वीकार्य हो गया।
- उन्होंने उपनिवेशों से आग्रह किया कि वे मानव जाति के लिए एक “आश्रय” (asylum for mankind) बनें, जो स्वतंत्रता और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित एक नया समाज स्थापित करें। इस उच्च नैतिक आह्वान ने उपनिवेशवादियों को एक बड़े उद्देश्य के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया।
4. जनता की राय को एकजुट किया और कॉन्टिनेंटल कांग्रेस पर दबाव डाला
“कॉमन सेंस” की अभूतपूर्व लोकप्रियता (लाखों प्रतियां बिकीं) ने पूरे उपनिवेशों में सार्वजनिक राय में एक बड़ा बदलाव ला दिया।
- इससे पहले, कांग्रेस में स्वतंत्रता के पक्ष में एक महत्वपूर्ण विभाजन था। लेकिन जैसे-जैसे पम्फलेट फैला, लोगों की मांगें स्पष्ट होती गईं।
- आम जनता ने अब खुलकर स्वतंत्रता की बात करना शुरू कर दिया था, और इस जनता के दबाव ने द्वितीय कॉन्टिनेंटल कांग्रेस को स्वतंत्रता के पक्ष में निर्णायक कदम उठाने के लिए मजबूर किया। कांग्रेस के सदस्यों को यह स्पष्ट हो गया कि यदि वे जनता की इच्छा का पालन नहीं करते, तो वे अपनी वैधता खो देंगे।
5. एक स्पष्ट कार्य योजना प्रदान की
“कॉमन सेंस” ने न केवल समस्याओं की आलोचना की, बल्कि एक स्पष्ट समाधान भी प्रस्तुत किया: ब्रिटेन से पूर्ण स्वतंत्रता और एक गणतांत्रिक सरकार की स्थापना।
- पेन ने स्वतंत्रता के बाद एक नई सरकार के लिए एक सामान्य खाका भी दिया, जिसने लोगों को भविष्य के बारे में सोचने और एक व्यवहार्य विकल्प की कल्पना करने में मदद की।
- यह पम्फलेट एक रोडमैप की तरह था, जिसने यह समझाया कि उपनिवेशों को क्या करना चाहिए और क्यों करना चाहिए।
“कॉमन सेंस” ने अमेरिकी उपनिवेशों में सार्वजनिक विचार-विमर्श के स्वरूप को बदल दिया। इसने तर्क, भावना और सामान्य ज्ञान की अपील का उपयोग करके लाखों लोगों के मन में स्वतंत्रता की भावना को प्रज्वलित किया। इसने अमेरिकी लोगों को ब्रिटिश शासन से अलग होने की आवश्यकता के बारे में न केवल सोचने पर मजबूर किया, बल्कि उन्हें विश्वास दिलाया कि यह संभव और वांछनीय है। इस प्रकार, इसने जुलाई 1776 में स्वतंत्रता की औपचारिक घोषणा के लिए अटूट आधार तैयार किया।
1. “द अमेरिकन क्राइसिस” (The American Crisis) श्रृंखला का लेखन
“कॉमन सेंस” के बाद, पेन का सबसे महत्वपूर्ण योगदान “द अमेरिकन क्राइसिस” नामक पम्फलेट्स की एक श्रृंखला थी। यह श्रृंखला दिसंबर 1776 से अप्रैल 1783 तक प्रकाशित हुई, जब युद्ध चल रहा था।
- कम मनोबल को बढ़ाना: युद्ध के शुरुआती चरण में, विशेष रूप से 1776 के अंत में, कॉन्टिनेंटल आर्मी का मनोबल बहुत गिर गया था। जॉर्ज वाशिंगटन की सेना को लगातार हार का सामना करना पड़ रहा था, सैनिक भाग रहे थे, और अमेरिकी कारण निराशाजनक लग रहा था।
- “ये वो समय हैं जो पुरुषों की आत्माओं को परखते हैं”: “द अमेरिकन क्राइसिस” के पहले अंक की शुरुआती पंक्तियाँ – “ये वो समय हैं जो पुरुषों की आत्माओं को परखते हैं: ग्रीष्मकालीन सैनिक और धूप वाला देशभक्त इस संकट में सेवा से पीछे हट जाएगा; लेकिन जो इसमें अब खड़ा है, वह प्रेम और धन्यवाद के योग्य है।” (These are the times that try men’s souls: The summer soldier and the sunshine patriot will, in this crisis, shrink from the service of their country; but he that stands by it now, deserves the love and thanks of man and woman.) – इतनी शक्तिशाली और प्रेरणादायक थीं कि जॉर्ज वाशिंगटन ने आदेश दिया कि उन्हें ट्रेंटन की लड़ाई से पहले अपनी सेना को पढ़कर सुनाया जाए।
- सैनिकों और नागरिकों को प्रेरित करना: इन पम्फलेट्स ने सैनिकों को दृढ़ रहने और नागरिकों को क्रांतिकारी कारण का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया। पेन ने ब्रिटिशों की क्रूरता और अमेरिकी कारण की पवित्रता पर जोर दिया, जिससे लोगों में लड़ने की भावना बनी रहे।
2. सैनिक के रूप में स्वयंसेवा
पेन सिर्फ कागजों पर ही नहीं लड़ रहे थे। उन्होंने कॉन्टिनेंटल आर्मी में एक स्वयंसेवक सैनिक के रूप में भी सेवा की।
- उन्होंने जनरल नथनेल ग्रीन के एडे-डी-कैंप (aide-de-camp) यानी सहायक के रूप में काम किया। इस भूमिका में रहते हुए, उन्होंने युद्ध के मैदान की वास्तविकताओं को करीब से देखा और सैनिकों द्वारा सहन की जा रही कठिनाइयों को समझा।
- उन्होंने वाशिंगटन की प्रसिद्ध डेलावेयर नदी पार करने की घटना और ट्रेंटन की लड़ाई में भी भाग लिया, जहाँ “द अमेरिकन क्राइसिस” का पहला अंक सैनिकों को पढ़कर सुनाया गया था।
3. युद्ध के प्रयासों के लिए वित्तीय योगदान
पेन ने अपने लेखन से होने वाली आय को व्यक्तिगत लाभ के लिए इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया।
- उन्होंने “कॉमन सेंस” से होने वाली कमाई को कॉन्टिनेंटल कांग्रेस को युद्ध के प्रयासों के लिए दान कर दिया।
- उन्होंने युद्ध के लिए धन जुटाने में भी मदद की, जिसमें जॉर्ज वाशिंगटन की सेना के लिए दस्ताने और अन्य आवश्यक आपूर्तियाँ खरीदने के लिए एक सदस्यता अभियान शुरू करना शामिल था।
4. विभिन्न सरकारी भूमिकाओं में सेवा
युद्ध के दौरान पेन ने विभिन्न सरकारी पदों पर भी कार्य किया, जिससे युद्ध के प्रयासों को प्रशासनिक और कूटनीतिक सहायता मिली:
- सेक्रेटरी टू द कमिटी फॉर फॉरेन अफेयर्स (1777-1779): उन्हें कॉन्टिनेंटल कांग्रेस की विदेश मामलों की समिति का सचिव नियुक्त किया गया। इस भूमिका में रहते हुए, उन्होंने विदेशी सरकारों के साथ अमेरिका के संबंधों को प्रबंधित करने में मदद की और अमेरिकी कूटनीति पर महत्वपूर्ण दस्तावेज तैयार किए।
- पेन्सिलवेनिया जनरल असेंबली के क्लर्क (1779-1780): इस पद पर रहते हुए, पेन ने राज्य स्तर पर विधायी प्रक्रियाओं में मदद की और युद्ध के प्रयासों का समर्थन करने वाले कानून बनाने में योगदान दिया।
- फ्रांस में कूटनीतिक मिशन (1781): वित्तीय संकट से जूझ रही कॉन्टिनेंटल आर्मी के लिए धन और आपूर्ति जुटाने के लिए पेन जॉन लॉरेन्स के साथ फ्रांस गए। यह मिशन सफल रहा और वे अपने साथ पैसा, कपड़े और गोला-बारूद वापस लाने में कामयाब रहे, जो क्रांति की अंतिम सफलता के लिए महत्वपूर्ण थे।
5. पेन्सिलवेनिया के संविधान पर प्रभाव
पेन ने 1776 में पेन्सिलवेनिया के नए राज्य संविधान के मसौदे पर भी प्रभाव डाला। उन्होंने मतदान और पद धारण करने के लिए संपत्ति की योग्यता को समाप्त करने के radical विचार का समर्थन किया, जिससे यह अमेरिकी राज्यों में सबसे लोकतांत्रिक संविधानों में से एक बन गया।
थॉमस पेन की अमेरिकी क्रांतिकारी युद्ध में भागीदारी उनकी लेखन प्रतिभा से कहीं अधिक थी। उन्होंने न केवल अपने प्रेरणादायक पम्फलेट्स के माध्यम से जनता की राय को आकार दिया और सैनिकों का मनोबल बढ़ाया, बल्कि उन्होंने सक्रिय रूप से सैन्य सेवा की, युद्ध के प्रयासों के लिए धन जुटाया, और महत्वपूर्ण प्रशासनिक व कूटनीतिक भूमिकाएँ निभाईं। वह एक सच्चे “क्रांतिकारी” थे, जिन्होंने अपनी कलम और अपने कार्यों दोनों से अमेरिकी स्वतंत्रता के लिए अथक प्रयास किया।
थॉमस पेन की “द अमेरिकन क्राइसिस” (The American Crisis) श्रृंखला अमेरिकी क्रांतिकारी युद्ध के सबसे काले दिनों में सैनिकों और नागरिकों के मनोबल को बढ़ाने में एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह “कॉमन सेंस” के बाद पेन का सबसे प्रभावशाली लेखन था और इसने युद्ध के दौरान अमेरिकी कारण को जीवित रखने में मदद की।
“द अमेरिकन क्राइसिस” श्रृंखला का लेखन: पृष्ठभूमि और उद्देश्य
“द अमेरिकन क्राइसिस” की शुरुआत दिसंबर 1776 में हुई, जो अमेरिकी क्रांति के लिए एक अत्यंत कठिन समय था।
- सैन्य संकट: कॉन्टिनेंटल आर्मी को न्यूयॉर्क और लॉन्ग आइलैंड की लड़ाइयों में भारी हार का सामना करना पड़ा था। जॉर्ज वाशिंगटन की सेना पीछे हट रही थी, सैनिक हताश थे, और कई लोग अपनी भर्ती की अवधि समाप्त होने पर घर लौट रहे थे। सेना का आकार तेजी से घट रहा था और अनुशासन टूट रहा था।
- सार्वजनिक निराशा: उपनिवेशों में स्वतंत्रता के प्रति उत्साह कम हो रहा था। कई लोगों को लगने लगा था कि ब्रिटिश सेना बहुत शक्तिशाली है और अमेरिकी कारण हारने वाला है।
- पेन की प्रतिक्रिया: पेन, जो स्वयं वाशिंगटन की सेना के साथ थे और इन कठिनाइयों के प्रत्यक्षदर्शी थे, ने महसूस किया कि इस निराशा को दूर करने के लिए तुरंत कुछ करना होगा। उन्होंने अपनी कलम को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का फैसला किया।
श्रृंखला का मुख्य उद्देश्य था:
- सैनिकों का मनोबल बढ़ाना: युद्ध के मैदान में लड़ रहे सैनिकों को प्रेरित करना, उन्हें दृढ़ रहने और हार न मानने के लिए प्रोत्साहित करना।
- नागरिकों को एकजुट करना: उन नागरिकों को फिर से जगाना जो हताश हो गए थे या ब्रिटिश शासन के प्रति वफादारी पर लौट रहे थे।
- अमेरिकी कारण की पवित्रता को दोहराना: यह याद दिलाना कि वे किस उच्च उद्देश्य के लिए लड़ रहे हैं – स्वतंत्रता, न्याय और आत्मनिर्णय।
- ब्रिटिश क्रूरता को उजागर करना: ब्रिटिश सेना और उनके भाड़े के सैनिकों (हेजियन) द्वारा किए गए अत्याचारों को उजागर करके उपनिवेशवादियों के गुस्से को फिर से भड़काना।
युद्ध के दौरान सैनिकों का मनोबल बढ़ाना:
“द अमेरिकन क्राइसिस” के पहले अंक की शुरुआती पंक्तियाँ सबसे प्रसिद्ध हैं और उन्होंने सैनिकों के मनोबल पर गहरा प्रभाव डाला:
“ये वो समय हैं जो पुरुषों की आत्माओं को परखते हैं: ग्रीष्मकालीन सैनिक और धूप वाला देशभक्त इस संकट में सेवा से पीछे हट जाएगा; लेकिन जो इसमें अब खड़ा है, वह प्रेम और धन्यवाद के योग्य है।” (These are the times that try men’s souls: The summer soldier and the sunshine patriot will, in this crisis, shrink from the service of their country; but he that stands by it now, deserves the love and thanks of man and woman.)
इन पंक्तियों और पूरे पम्फलेट ने सैनिकों के मनोबल को बढ़ाने में निम्नलिखित तरीकों से मदद की:
- तत्काल प्रेरणा: जॉर्ज वाशिंगटन ने आदेश दिया कि “द अमेरिकन क्राइसिस” का पहला अंक ट्रेंटन की लड़ाई (दिसंबर 1776) से पहले अपनी सेना को पढ़कर सुनाया जाए। यह एक हताश कर देने वाला समय था, जब वाशिंगटन की सेना डेलावेयर नदी को पार करने वाली थी और ठंड और निराशा से जूझ रही थी। पेन के शब्दों ने सैनिकों में एक नई ऊर्जा और दृढ़ संकल्प भर दिया।
- कर्तव्य और सम्मान का आह्वान: पेन ने उन लोगों की आलोचना की जो केवल आसान समय में ही देशभक्त थे (“ग्रीष्मकालीन सैनिक”) और उन लोगों की प्रशंसा की जो कठिन समय में भी दृढ़ रहे। इसने सैनिकों को अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान रहने और त्याग करने के लिए प्रेरित किया।
- उद्देश्य की स्पष्टता: पेन ने सैनिकों को याद दिलाया कि वे केवल एक युद्ध नहीं लड़ रहे थे, बल्कि एक महान उद्देश्य के लिए लड़ रहे थे – स्वतंत्रता और एक बेहतर भविष्य। उन्होंने ब्रिटिश अत्याचारों को उजागर करके उनके गुस्से को फिर से जगाया और उन्हें लड़ने के लिए एक स्पष्ट कारण दिया।
- एकजुटता की भावना: पम्फलेट ने सैनिकों और नागरिकों के बीच एक साझा पहचान और उद्देश्य की भावना को बढ़ावा दिया। इसने उन्हें यह महसूस कराया कि वे अकेले नहीं थे और पूरे उपनिवेश उनके साथ खड़े थे।
- नियमित अनुस्मारक: “द अमेरिकन क्राइसिस” की श्रृंखला में कुल 16 अंक थे, जो युद्ध के विभिन्न चरणों में प्रकाशित हुए। यह सुनिश्चित करता था कि प्रेरणा और देशभक्ति की भावना पूरे युद्ध के दौरान बनी रहे, खासकर जब भी कोई बड़ा सैन्य झटका लगता था।
पेन की सरल, सीधी और भावनात्मक भाषा शैली ने सुनिश्चित किया कि उनके संदेश को हर कोई समझ सके, चाहे वह एक पढ़ा-लिखा अधिकारी हो या एक साधारण सैनिक। “द अमेरिकन क्राइसिस” ने अमेरिकी क्रांति के सबसे अंधेरे क्षणों में आशा की किरण प्रदान की और सैनिकों को लड़ने के लिए आवश्यक नैतिक शक्ति दी, जिससे अंततः स्वतंत्रता की जीत हुई।
थॉमस पेन और जॉर्ज वाशिंगटन के बीच संबंध अमेरिकी क्रांति के सबसे महत्वपूर्ण और जटिल पहलुओं में से एक थे। पेन के लेखन ने वाशिंगटन के सैनिकों को प्रेरित किया और युद्ध के प्रयासों में महत्वपूर्ण योगदान दिया, हालांकि उनके व्यक्तिगत संबंध हमेशा सहज नहीं रहे।
जॉर्ज वाशिंगटन के साथ संबंध:
- आपसी सम्मान और प्रशंसा (शुरुआती दौर में):
- वाशिंगटन पर प्रभाव: जॉर्ज वाशिंगटन “कॉमन सेंस” के शुरुआती और उत्साही पाठकों में से एक थे। उन्होंने स्वीकार किया कि पेन के इस पम्फलेट ने उपनिवेशवादियों के मन में स्वतंत्रता की भावना को जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वाशिंगटन ने अपने अधिकारियों को इसे सैनिकों को पढ़कर सुनाने का आदेश दिया।
- पेन की प्रशंसा: पेन ने भी वाशिंगटन की नेतृत्व क्षमता की बहुत प्रशंसा की, खासकर युद्ध के शुरुआती, कठिन दिनों में। “द अमेरिकन क्राइसिस” श्रृंखला में, पेन ने वाशिंगटन को एक दृढ़ और समर्पित नेता के रूप में प्रस्तुत किया, जिसने सैनिकों और नागरिकों को उनके प्रति विश्वास बनाए रखने में मदद की।
- युद्ध के दौरान सहयोग:
- “द अमेरिकन क्राइसिस” का उपयोग: वाशिंगटन ने पेन के लेखन की शक्ति को पहचाना। दिसंबर 1776 में ट्रेंटन की लड़ाई से पहले, जब सेना का मनोबल गिरा हुआ था, वाशिंगटन ने “द अमेरिकन क्राइसिस” के पहले अंक को सैनिकों को पढ़कर सुनाया। पेन के शक्तिशाली शब्दों ने सैनिकों में नई ऊर्जा भर दी, जिससे उन्हें जीत हासिल करने में मदद मिली। यह युद्ध के सबसे महत्वपूर्ण मोड़ में से एक था।
- स्वयंसेवक सहायक: पेन ने स्वयंसेवक सहायक के रूप में जनरल नथनेल ग्रीन (जो वाशिंगटन के करीबी थे) के अधीन सेवा की। इस भूमिका में रहते हुए, वे वाशिंगटन के करीब आए और युद्ध के मैदान की कठिनाइयों को प्रत्यक्ष रूप से देखा।
- बाद में संबंधों में तनाव:
- “राइट्स ऑफ मैन” और “एज ऑफ रीज़न”: क्रांति के बाद, पेन के लेखन ने उन्हें विवादों में ला दिया। उनकी पुस्तक “राइट्स ऑफ मैन” (फ्रांसीसी क्रांति का बचाव) और “एज ऑफ रीज़न” (संगठित धर्म की आलोचना) ने अमेरिका में कई लोगों को नाराज कर दिया, जिनमें कुछ संस्थापक पिता भी शामिल थे।
- वाशिंगटन की आलोचना: पेन ने बाद में वाशिंगटन की आलोचना की, खासकर जब पेन फ्रांसीसी क्रांति के दौरान फ्रांस में जेल में थे और उन्हें लगा कि वाशिंगटन ने उनकी रिहाई के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए। पेन ने वाशिंगटन पर “कृतघ्न” होने और “अमीरों का दोस्त और गरीबों का दुश्मन” होने का आरोप लगाया।
- वाशिंगटन की प्रतिक्रिया: वाशिंगटन ने पेन की आलोचना का सार्वजनिक रूप से जवाब नहीं दिया, लेकिन उनके संबंध निश्चित रूप से खराब हो गए। वाशिंगटन, जो एक अधिक रूढ़िवादी व्यक्ति थे और नए राष्ट्र की स्थिरता को प्राथमिकता देते थे, पेन के कट्टरपंथी विचारों और उनकी सार्वजनिक आलोचना से असहज थे।
युद्ध के प्रयासों में पेन का योगदान:
पेन का योगदान केवल लेखन तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने कई व्यावहारिक तरीकों से युद्ध के प्रयासों में मदद की:
- जनमत को आकार देना:
- “कॉमन सेंस”: इस पम्फलेट ने अमेरिकी उपनिवेशों को स्वतंत्रता की घोषणा के लिए तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने सुलह की अंतिम उम्मीदों को तोड़ दिया और स्वतंत्रता के विचार को आम जनता के लिए तर्कसंगत और वांछनीय बना दिया।
- “द अमेरिकन क्राइसिस”: यह श्रृंखला युद्ध के सबसे कठिन समय में सैनिकों और नागरिकों के मनोबल को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण थी। इसने निराशा को दूर किया और देशभक्ति की भावना को फिर से जगाया।
- सैन्य सेवा:
- उन्होंने कॉन्टिनेंटल आर्मी में स्वयंसेवक के रूप में सेवा की, जिससे उन्हें युद्ध की वास्तविकताओं का अनुभव हुआ और वे सैनिकों की कठिनाइयों को समझ सके। यह अनुभव उनके लेखन को और अधिक प्रामाणिक बनाता था।
- वित्तीय सहायता और आपूर्ति जुटाना:
- पेन ने “कॉमन सेंस” से होने वाली अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा युद्ध के प्रयासों के लिए दान कर दिया।
- उन्होंने जॉन लॉरेन्स के साथ फ्रांस की यात्रा की, जहाँ उन्होंने अमेरिकी सेना के लिए महत्वपूर्ण वित्तीय सहायता, कपड़े और गोला-बारूद जुटाने में मदद की। यह मिशन युद्ध के लिए महत्वपूर्ण था, खासकर जब कॉन्टिनेंटल आर्मी संसाधनों की कमी से जूझ रही थी।
- प्रशासनिक और कूटनीतिक भूमिकाएँ:
- कॉन्टिनेंटल कांग्रेस की विदेश मामलों की समिति के सचिव के रूप में, उन्होंने अमेरिकी कूटनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- पेन्सिलवेनिया जनरल असेंबली के क्लर्क के रूप में, उन्होंने राज्य स्तर पर युद्ध के प्रयासों का समर्थन करने वाले कानून बनाने में मदद की।
जॉर्ज वाशिंगटन और थॉमस पेन के बीच संबंध एक जटिल मिश्रण थे – आपसी सम्मान और प्रशंसा से लेकर बाद में कड़वी सार्वजनिक आलोचना तक। हालांकि, यह निर्विवाद है कि पेन के लेखन और उनकी सक्रिय भागीदारी ने अमेरिकी क्रांतिकारी युद्ध में एक महत्वपूर्ण और निर्णायक भूमिका निभाई, विशेष रूप से सैनिकों का मनोबल बढ़ाने और स्वतंत्रता के लिए जनमत को एकजुट करने में। उनकी कलम ने वाशिंगटन की तलवार के साथ मिलकर अमेरिकी स्वतंत्रता की नींव रखी।
वित्तीय संघर्ष और युद्ध के बाद के अमेरिका में थॉमस पेन का स्थान
अमेरिकी क्रांति की विजय में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, थॉमस पेन ने युद्ध के बाद के अमेरिका में गंभीर वित्तीय संघर्षों का सामना किया और उनका स्थान उतना प्रतिष्ठित नहीं रहा जितना उन्हें मिलना चाहिए था। उनके बाद के जीवन में प्रशंसा के बजाय अक्सर उपेक्षा और विवाद का सामना करना पड़ा।
वित्तीय संघर्ष के कारण:
- अपने काम से व्यक्तिगत लाभ लेने से इनकार:
- पेन ने अपनी सबसे प्रभावशाली कृतियों, जैसे “कॉमन सेंस” और “द अमेरिकन क्राइसिस,” से व्यक्तिगत लाभ कमाने से इनकार कर दिया। उन्होंने इन पम्फलेट्स से होने वाली आय को युद्ध के प्रयासों के लिए दान कर दिया। उनका मानना था कि उनके लेखन का उद्देश्य सार्वजनिक सेवा था, न कि व्यक्तिगत संवर्धन। यह एक महान नैतिक सिद्धांत था, लेकिन इसने उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर बना दिया।
- सरकारी वेतन का अभाव या अपर्याप्तता:
- उन्होंने कॉन्टिनेंटल कांग्रेस और पेन्सिलवेनिया राज्य के लिए विभिन्न भूमिकाओं में काम किया, लेकिन इन पदों पर उन्हें या तो बहुत कम भुगतान मिला या अनियमित रूप से भुगतान किया गया। उस समय, नई अमेरिकी सरकार स्वयं वित्तीय संकट में थी।
- उन्हें अपने योगदान के लिए किसी प्रकार की महत्वपूर्ण पेंशन या पुरस्कार नहीं मिला, जैसा कि अन्य प्रमुख हस्तियों को मिला।
- भूमि अनुदान में देरी और विवाद:
- यद्यपि न्यूयॉर्क राज्य ने उन्हें न्यू रोशेल में एक छोटी सी संपत्ति (लगभग 300 एकड़) प्रदान की थी, जो उनके क्रांतिकारी योगदान की मान्यता में थी, इस पर बसने और इसे लाभदायक बनाने में उन्हें समय और प्रयास लगा। यह अनुदान उनके तत्काल वित्तीय बोझ को कम करने के लिए पर्याप्त नहीं था।
- व्यक्तिगत और व्यावसायिक असफलताओं का सिलसिला:
- युद्ध के बाद, पेन ने इंग्लैंड में अपने आविष्कारों (जैसे लोहे का पुल) को बढ़ावा देने की कोशिश की। इसमें उन्हें कुछ सफलता मिली, लेकिन यह उनके लिए कोई स्थायी वित्तीय सुरक्षा नहीं ला सका।
- फ्रांस में उनके कारावास ने उनकी आर्थिक स्थिति को और खराब कर दिया।
युद्ध के बाद के अमेरिका में उनका स्थान:
युद्ध के तुरंत बाद पेन को एक राष्ट्रीय नायक के रूप में देखा गया था, लेकिन उनकी स्थिति जल्द ही जटिल और विवादास्पद हो गई।
- घटती लोकप्रियता और अलगाव:
- यूरोपीय मामलों में भागीदारी: पेन ने अमेरिकी क्रांति के बाद यूरोप की यात्रा की और विशेष रूप से फ्रांसीसी क्रांति में सक्रिय रूप से शामिल हो गए। इस दौरान उनका ध्यान अमेरिका से हट गया।
- “द राइट्स ऑफ मैन” (The Rights of Man) (1791-1792): यह पुस्तक, जिसने फ्रांसीसी क्रांति का बचाव किया और ब्रिटिश राजशाही की आलोचना की, ने उन्हें यूरोप में एक कट्टरपंथी के रूप में देखा और अमेरिका में भी कुछ हद तक विवादास्पद बना दिया, खासकर जब अमेरिका ब्रिटेन के साथ संबंध सुधार रहा था।
- “द एज ऑफ रीज़न” (The Age of Reason) (1794-1795): यह पुस्तक पेन के धार्मिक विचारों को सामने लाई, जिसमें उन्होंने बाइबिल की आलोचना की और संगठित धर्म पर सवाल उठाए, जबकि ईश्वरवाद (Deism) का समर्थन किया। यह अमेरिका में एक अत्यधिक धार्मिक समाज के लिए एक बड़ा झटका था। इसने उन्हें “नास्तिक” के रूप में ब्रांडेड कर दिया, जिससे उनकी लोकप्रियता में तेजी से गिरावट आई और उन्हें कई लोगों द्वारा बहिष्कृत कर दिया गया।
- जॉर्ज वाशिंगटन पर हमला: फ्रांस में अपनी कैद के बाद, पेन ने वाशिंगटन पर आरोप लगाया कि उन्होंने उनकी रिहाई के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए। उनकी यह सार्वजनिक आलोचना (एक पम्फलेट में) अमेरिका में बेहद अलोकप्रिय थी, क्योंकि वाशिंगटन एक पूजनीय व्यक्ति थे। इस हमले ने उनकी शेष प्रतिष्ठा को भी काफी नुकसान पहुँचाया।
- नये राजनीतिक गुटों से दूरी:
- युद्ध के बाद के अमेरिका में, राजनीतिक दल (संघवादी और डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन) उभर रहे थे। पेन ने खुद को पूरी तरह से किसी एक गुट से नहीं जोड़ा। उनके कट्टरपंथी विचार अक्सर संघीयवादियों को असहज करते थे, और यहां तक कि डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन भी “द एज ऑफ रीज़न” के बाद उनसे दूरी बनाने लगे थे।
- विस्मृति और गरीबी में मृत्यु:
- जब 1802 में पेन अमेरिका लौटे, तो वे काफी हद तक भुला दिए गए थे और वित्तीय रूप से परेशान थे। उन्हें अपने जीवन के अंतिम वर्ष गरीबी और सामाजिक अलगाव में बिताने पड़े।
- 8 जून, 1809 को न्यूयॉर्क शहर में उनकी मृत्यु हो गई। उनके अंतिम संस्कार में केवल मुट्ठी भर लोग ही शामिल हुए थे, जो उनके सार्वजनिक जीवन के अंत में उनकी स्थिति का एक दुखद प्रतिबिंब था।
थॉमस पेन एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी कलम से अमेरिकी क्रांति को प्रज्वलित किया और स्वतंत्र अमेरिका की नींव रखने में मदद की। हालांकि, युद्ध के बाद उन्होंने अपने लेखन से व्यक्तिगत लाभ लेने से इनकार करके और अपने बाद के, अधिक विवादास्पद विचारों (विशेषकर धर्म पर) के कारण गंभीर वित्तीय संघर्षों का सामना किया। इन कारकों और उनके वाशिंगटन पर हमलों ने युद्ध के बाद के अमेरिका में उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल कर दिया, जिससे वे जीवन के अंत में काफी हद तक उपेक्षित और विस्मृत हो गए। इतिहास ने बाद में उनके योगदान को फिर से पहचाना, लेकिन उनके अपने जीवनकाल में उन्हें अक्सर वह सम्मान और सुरक्षा नहीं मिली जिसके वे हकदार थे।
फ्रांस की यात्रा और फ्रांसीसी क्रांति में थॉमस पेन की रुचि
अमेरिकी क्रांति की समाप्ति और अमेरिकी संविधान के निर्माण के बाद, थॉमस पेन ने एक बार फिर अपना ध्यान यूरोप की ओर मोड़ा, विशेष रूप से फ्रांस, जहाँ एक और विशाल क्रांति आकार ले रही थी। उनकी फ्रांस यात्रा और फ्रांसीसी क्रांति में उनकी गहरी रुचि उनके वैश्विक क्रांतिकारी दृष्टिकोण का प्रमाण थी।
फ्रांस की यात्रा (1787) के पीछे के कारण
- आविष्कारों को बढ़ावा देना: पेन मुख्य रूप से अपने कुछ वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग आविष्कारों को बढ़ावा देने के लिए 1787 में यूरोप (मुख्यतः फ्रांस और इंग्लैंड) गए थे। उनका सबसे प्रसिद्ध आविष्कार एक लोहे का पुल (iron bridge) था, जिसे उन्होंने डिजाइन किया था। उन्हें उम्मीद थी कि इस पुल के डिजाइन को इंग्लैंड या फ्रांस में बेचा जा सकेगा, जिससे उन्हें वित्तीय स्थिरता मिलेगी।
- पुराने दोस्तों से मिलना: उन्होंने इस यात्रा का उपयोग अमेरिका और इंग्लैंड दोनों में अपने पुराने दोस्तों और परिचितों से मिलने के लिए भी किया।
- यूरोपीय राजनीतिक माहौल में बढ़ती रुचि: पेन हमेशा से वैश्विक राजनीतिक विकास में रुचि रखते थे। जब वे यूरोप पहुँचे, तो उन्होंने फ्रांस में बढ़ते राजनीतिक तनाव और सुधारों की बढ़ती मांग को देखा, जिसने उन्हें आकर्षित किया।
फ्रांसीसी क्रांति में उनकी रुचि का उदय
जब पेन फ्रांस पहुँचे, तो देश एक बड़े सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल की कगार पर था। फ्रांस के राजशाही शासन, वित्तीय संकट और सामाजिक असमानता के खिलाफ जनता का गुस्सा बढ़ रहा था। पेन ने इस माहौल को तुरंत भांप लिया और उनकी स्वाभाविक क्रांतिकारी प्रवृत्ति जागृत हो गई।
- ज्ञानोदय के सिद्धांतों का प्रभाव: पेन ज्ञानोदय के कट्टर समर्थक थे, और उन्होंने देखा कि फ्रांसीसी क्रांति उन्हीं सिद्धांतों (स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा, तर्क और मानवाधिकार) पर आधारित थी जिनकी उन्होंने अमेरिकी क्रांति के दौरान वकालत की थी। उन्हें लगा कि यह अमेरिकी क्रांति के सिद्धांतों का एक स्वाभाविक विस्तार है।
- अन्याय और निरंकुशता के प्रति स्वाभाविक विरोध: पेन हमेशा से निरंकुश शासन और विशेषाधिकारों के विरोधी रहे थे। फ्रांसीसी राजशाही और अभिजात वर्ग की अत्यधिक शक्ति और आम लोगों की दुर्दशा ने उनके भीतर न्याय की भावना को फिर से जगाया।
- एक वैश्विक क्रांतिकारी का दृष्टिकोण: पेन का मानना था कि क्रांति केवल एक देश तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह एक सार्वभौमिक आंदोलन है जो मानव स्वतंत्रता और न्याय के लिए है। उन्हें लगा कि फ्रांसीसी क्रांति दुनिया भर में मुक्ति की लहर फैला सकती है।
- एडमंड बर्क की आलोचना का जवाब: फ्रांसीसी क्रांति में पेन की रुचि का एक बड़ा हिस्सा एडमंड बर्क की पुस्तक “रिफ्लेक्शन्स ऑन द रिवोल्यूशन इन फ्रांस” (Reflections on the Revolution in France) से आया था। बर्क ने फ्रांसीसी क्रांति की तीखी आलोचना की थी और इसे अराजकता और विनाश का मार्ग बताया था। पेन को लगा कि बर्क के विचारों को चुनौती देना और क्रांति का बचाव करना उनका नैतिक कर्तव्य है, खासकर अमेरिकी सिद्धांतों के प्रकाश में। यही चुनौती उनकी प्रसिद्ध कृति “द राइट्स ऑफ मैन” के लेखन का सीधा कारण बनी।
थॉमस पेन की फ्रांस यात्रा की शुरुआत भले ही व्यावसायिक उद्देश्यों से हुई हो, लेकिन फ्रांस के राजनीतिक उथल-पुथल ने उनकी क्रांतिकारी भावना को फिर से प्रज्वलित कर दिया। उन्होंने फ्रांसीसी क्रांति को अमेरिकी क्रांति के बाद स्वतंत्रता और मानव अधिकारों के लिए एक और महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा, और उन्होंने अपनी कलम का उपयोग करके इस नए क्रांतिकारी आंदोलन का पूरी ताकत से समर्थन करने का फैसला किया।
एडमंड बर्क के विचारों का खंडन करने के लिए “द राइट्स ऑफ मैन” (The Rights of Man) का लेखन
थॉमस पेन की सबसे प्रभावशाली और विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त कृतियों में से एक, “द राइट्स ऑफ मैन” (The Rights of Man), सीधे तौर पर ब्रिटिश राजनेता और दार्शनिक एडमंड बर्क द्वारा फ्रांसीसी क्रांति की आलोचना के जवाब में लिखी गई थी। यह केवल एक राजनीतिक बहस नहीं थी, बल्कि ज्ञानोदय के विचारों और परंपरावादी रूढ़िवाद के बीच एक मौलिक टकराव था।
एडमंड बर्क और “रिफ्लेक्शन्स ऑन द रिवोल्यूशन इन फ्रांस”
- एडमंड बर्क कौन थे? बर्क (1729-1797) एक प्रसिद्ध आयरिश राजनेता, सिद्धांतवादी और दार्शनिक थे जो ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्य थे। उन्हें अक्सर आधुनिक रूढ़िवाद के संस्थापकों में से एक माना जाता है।
- बर्क की आलोचना: 1790 में, बर्क ने अपनी पुस्तक “रिफ्लेक्शन्स ऑन द रिवोल्यूशन इन फ्रांस” (Reflections on the Revolution in France) प्रकाशित की। इस पुस्तक में, उन्होंने फ्रांसीसी क्रांति पर तीखा हमला किया। उनके मुख्य तर्क थे:
- परंपरा और इतिहास का महत्व: बर्क ने तर्क दिया कि समाज धीरे-धीरे विकसित होता है और परंपराएं, संस्थाएं और विरासत में मिले अधिकार (जैसे राजशाही) सदियों के अनुभव और ज्ञान का परिणाम होते हैं।
- क्रमिक सुधार बनाम कट्टरपंथी परिवर्तन: उन्होंने धीरे-धीरे और सावधानीपूर्वक सुधारों का समर्थन किया, न कि कट्टरपंथी और हिंसक क्रांति का।
- मनुष्य की अपूर्णता: बर्क का मानना था कि मनुष्य अपूर्ण प्राणी हैं और उन्हें सामाजिक व्यवस्था और स्थापित संस्थानों की आवश्यकता होती है ताकि वे अराजकता में न बदलें।
- फ्रांसीसी क्रांति की निंदा: उन्होंने फ्रांसीसी क्रांति को अराजकता, हिंसा और विनाश की ओर ले जाने वाले एक खतरनाक प्रयोग के रूप में देखा, जिसमें अतीत की सभी अच्छी चीजों को नष्ट किया जा रहा था। उन्होंने विशेष रूप से फ्रांसीसी शाही परिवार, विशेषकर मैरी एंटोनेट के प्रति क्रांति के व्यवहार की आलोचना की।
पेन की प्रतिक्रिया: “द राइट्स ऑफ मैन” का लेखन
पेन, जो अमेरिकी क्रांति में एक केंद्रीय व्यक्ति थे और स्वतंत्रता के कट्टर समर्थक थे, बर्क के विचारों से व्यक्तिगत रूप से आहत और वैचारिक रूप से असहमत थे। उन्हें लगा कि बर्क के तर्क न केवल फ्रांसीसी क्रांति के लिए हानिकारक थे, बल्कि स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के सार्वभौमिक सिद्धांतों के लिए भी खतरनाक थे।
- ज्ञानोदय के सिद्धांतों का बचाव: पेन ने “द राइट्स ऑफ मैन” को ज्ञानोदय के उन सिद्धांतों का बचाव करने के लिए लिखा था जिनकी बर्क ने आलोचना की थी। उन्होंने तर्क दिया कि सरकारों की वैधता उनके इतिहास या परंपरा में नहीं, बल्कि उन लोगों की सहमति में निहित है जिन पर वे शासन करती हैं।
- मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता: पेन का केंद्रीय तर्क यह था कि मनुष्य के कुछ प्राकृतिक और अहरणीय (inalienable) अधिकार होते हैं – जैसे जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति का अधिकार – जो किसी सरकार या परंपरा द्वारा नहीं दिए जाते, बल्कि मनुष्य के जन्मसिद्ध अधिकार होते हैं। बर्क के विपरीत, पेन ने इन अधिकारों को सार्वभौमिक और सभी मनुष्यों पर लागू होने वाला माना, चाहे उनकी राष्ट्रीयता या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो।
- वंशानुगत सरकार की आलोचना: पेन ने ब्रिटिश राजशाही और वंशानुगत उत्तराधिकार के विचार पर बर्क की प्रशंसा को खारिज कर दिया। उन्होंने इसे “तर्कहीन” और “अन्यायपूर्ण” करार दिया। उन्होंने तर्क दिया कि कोई भी पीढ़ी आने वाली पीढ़ी को शासन करने का अधिकार नहीं दे सकती। प्रत्येक पीढ़ी को अपनी सरकार चुनने का अधिकार है।
- क्रांति का औचित्य: पेन ने तर्क दिया कि जब सरकारें लोगों के अधिकारों का उल्लंघन करती हैं या लोगों की सहमति के बिना शासन करती हैं, तो लोगों को ऐसी सरकारों को उखाड़ फेंकने और अपनी शर्तों पर एक नई सरकार स्थापित करने का अधिकार है। उन्होंने फ्रांसीसी क्रांति को लोगों के अधिकारों की बहाली के लिए एक वैध और आवश्यक संघर्ष के रूप में देखा।
- लोकतांत्रिक गणराज्यों का समर्थन: पेन ने वंशानुगत राजशाही के बजाय लोकतांत्रिक गणराज्यों का समर्थन किया, जहाँ सरकार के प्रतिनिधि जनता द्वारा चुने जाते हैं और जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं।
“द राइट्स ऑफ मैन” को 1791 में दो भागों में प्रकाशित किया गया था। पहला भाग बर्क के तर्कों का सीधा खंडन था, जबकि दूसरा भाग एक गणतांत्रिक सरकार की स्थापना और सामाजिक कल्याणकारी नीतियों के लिए एक विस्तृत ब्लूप्रिंट प्रदान करता था।
प्रभाव:
“द राइट्स ऑफ मैन” ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका तीनों में एक तत्काल बेस्टसेलर बन गई। इसने राजनीतिक बहस को और तेज कर दिया और दुनिया भर में क्रांतिकारी और सुधारवादी आंदोलनों को प्रेरित किया। यह पुस्तक मानवाधिकारों की अवधारणा और लोकतांत्रिक गणराज्यों की नींव पर एक मूलभूत पाठ बन गई। पेन ने अपनी कलम का उपयोग करके दिखाया कि स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय का विचार केवल अमेरिकी उपनिवेशों तक सीमित नहीं था, बल्कि एक सार्वभौमिक मानव अधिकार था।
“द राइट्स ऑफ मैन” के मुख्य सिद्धांत: मानवाधिकार, गणतंत्रवाद और लोकप्रिय संप्रभुता
थॉमस पेन की प्रभावशाली कृति “द राइट्स ऑफ मैन” (The Rights of Man) केवल एडमंड बर्क के विचारों का खंडन नहीं थी, बल्कि यह ज्ञानोदय के युग के तीन मूलभूत राजनीतिक सिद्धांतों की एक शक्तिशाली वकालत थी: मानवाधिकार, गणतंत्रवाद, और लोकप्रिय संप्रभुता (Popular Sovereignty)। ये सिद्धांत ही आधुनिक लोकतांत्रिक सरकारों की नींव बने हैं।
1. मानवाधिकार (Human Rights)
- प्राकृतिक और अहरणीय अधिकार (Natural and Inalienable Rights): पेन का केंद्रीय तर्क यह था कि सभी मनुष्यों के कुछ अंतर्निहित, प्राकृतिक अधिकार होते हैं जो किसी भी सरकार या परंपरा द्वारा नहीं दिए जाते, और न ही छीने जा सकते हैं। ये अधिकार मनुष्य के जन्म के साथ ही आते हैं, क्योंकि वे मनुष्य होने की मानवीय गरिमा और तर्कसंगतता का हिस्सा हैं। इनमें जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति, और खुशी की खोज के अधिकार शामिल हैं।
- सरकार का कर्तव्य: पेन ने तर्क दिया कि सरकार का प्राथमिक कर्तव्य इन मानवाधिकारों की रक्षा करना है, न कि उन्हें परिभाषित करना या सीमित करना। यदि कोई सरकार इन अधिकारों का उल्लंघन करती है, तो लोगों को उसे बदलने का अधिकार है।
- सार्वभौमिकता: बर्क के विपरीत, पेन ने जोर दिया कि ये अधिकार सार्वभौमिक हैं और सभी मनुष्यों पर लागू होते हैं, चाहे उनकी राष्ट्रीयता, सामाजिक वर्ग या ऐतिहासिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो। उन्होंने वंशानुगत विशेषाधिकारों और कुलीनता के विचारों को खारिज कर दिया, यह तर्क देते हुए कि किसी भी व्यक्ति का जन्म दूसरे व्यक्ति से बेहतर या कमतर नहीं होता।
2. गणतंत्रवाद (Republicanism)
- राजशाही का पूर्ण खंडन: पेन ने राजशाही और वंशानुगत शासन को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया। उन्होंने इसे तर्कहीन, अन्यायपूर्ण, और अप्रचलित बताया। उनका मानना था कि कोई भी पीढ़ी आने वाली पीढ़ियों पर शासन करने का अधिकार नहीं थोप सकती, और प्रत्येक पीढ़ी को अपनी सरकार चुनने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि “सभी पुरुष समान पैदा हुए हैं,” और इसलिए किसी भी व्यक्ति को केवल जन्म के आधार पर शासन करने का अधिकार नहीं होना चाहिए।
- प्रतिनिधि सरकार: पेन ने एक गणतांत्रिक सरकार की वकालत की, जहाँ शासन लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से होता है। इन प्रतिनिधियों को जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिए और उनकी सहमति से शासन करना चाहिए।
- कानून का शासन: गणराज्यों में, कानून का शासन सर्वोपरि होता है, न कि किसी शासक की सनक। सभी नागरिक कानून के समक्ष समान होते हैं।
- नैतिक आधार: पेन के लिए, गणतंत्रवाद न केवल एक व्यावहारिक शासन प्रणाली थी, बल्कि एक नैतिक आवश्यकता भी थी, क्योंकि यह मानव समानता और तर्कसंगतता के सिद्धांतों के साथ सबसे अच्छी तरह से संरेखित होती थी।
3. लोकप्रिय संप्रभुता (Popular Sovereignty)
- सत्ता का अंतिम स्रोत लोग हैं: पेन का मानना था कि राजनीतिक शक्ति का अंतिम और एकमात्र वैध स्रोत स्वयं लोग हैं। सरकारें अपनी शक्ति जनता से प्राप्त करती हैं, न कि किसी दैवीय अधिकार, परंपरा, या वंशानुगत दावे से।
- जनता की सहमति से शासन: सरकार तभी वैध होती है जब वह उन लोगों की सहमति से शासन करती है जिन पर वह शासन करती है। यदि सरकार इस सहमति को खो देती है या लोगों के अधिकारों का उल्लंघन करती है, तो लोगों को उसे बदलने या हटाने का अधिकार है। यह अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा में निहित “शासकों की सहमति” (consent of the governed) के सिद्धांत का एक विस्तार था।
- क्रांति का औचित्य: लोकप्रिय संप्रभुता के सिद्धांत ने क्रांति को न्यायसंगत ठहराया। यदि एक सरकार अत्याचारी बन जाती है और लोगों की इच्छा के खिलाफ शासन करती है, तो जनता को अपने संप्रभु अधिकार का प्रयोग करके उस सरकार को उखाड़ फेंकने और एक नई, प्रतिनिधि सरकार स्थापित करने का अधिकार है। फ्रांसीसी क्रांति इसी सिद्धांत का एक उदाहरण थी।
“द राइट्स ऑफ मैन” में थॉमस पेन ने एक ऐसे राजनीतिक दर्शन की वकालत की जहाँ सरकारें लोगों के प्राकृतिक और अहरणीय मानवाधिकारों की रक्षा के लिए मौजूद हों; जहाँ शासन गणतांत्रिक हो, जिसका अर्थ है कि यह वंशानुगत राजशाही के बजाय निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा शासित हो; और जहाँ सत्ता का अंतिम स्रोत लोकप्रिय संप्रभुता में निहित हो, यानी लोगों की इच्छा में। ये विचार आज भी आधुनिक लोकतंत्रों की आधारशिला बने हुए हैं और पेन के स्थायी बौद्धिक योगदान को दर्शाते हैं।
थॉमस पेन की “द राइट्स ऑफ मैन” (The Rights of Man) का यूरोप में स्वागत और इसने जो विवाद खड़े किए, वे उनके विचारों की शक्ति और तत्कालीन राजनीतिक व्यवस्थाओं के लिए उनके खतरे को दर्शाते हैं। यह पुस्तक केवल एक दार्शनिक बहस नहीं थी, बल्कि एक राजनीतिक चिंगारी थी जिसने महाद्वीप में यथास्थिति को चुनौती दी।
यूरोप में पुस्तक का स्वागत:
- अभूतपूर्व लोकप्रियता और प्रसार:
- “द राइट्स ऑफ मैन” यूरोप में एक तत्काल बेस्टसेलर बन गई, खासकर ब्रिटेन में। इसके लाखों प्रतियां बिकीं, जो 18वीं सदी के अंत में एक अभूतपूर्व संख्या थी।
- इसे गुप्त रूप से प्रकाशित और वितरित किया गया, विशेषकर उन देशों में जहाँ सेंसरशिप थी। यह मजदूर वर्ग, सुधारकों, और असंतुष्टों के बीच “फायरब्रांड” साहित्य के रूप में लोकप्रिय हुई।
- इसे सराय, कार्यशालाओं और कॉफीहाउस में जोर-जोर से पढ़ा जाता था, जिससे उन लोगों तक भी इसका संदेश पहुंचता था जो पढ़ नहीं सकते थे।
- फ्रांस में नायक का दर्जा:
- पेन ने फ्रांसीसी क्रांति का दृढ़ता से बचाव किया, और परिणामस्वरूप, फ्रांस में उन्हें एक नायक के रूप में देखा गया।
- उन्हें 1792 में फ्रांसीसी राष्ट्रीय सम्मेलन (National Convention) के लिए मानद नागरिकता से सम्मानित किया गया और काले (Calais) के प्रतिनिधि के रूप में चुना गया। यह उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि थी और उनके क्रांतिकारी आदर्शों की मान्यता थी।
- उनकी पुस्तक ने फ्रांसीसी क्रांतिकारी नेताओं को अपने सिद्धांतों को मजबूत करने में मदद की और क्रांति को एक सार्वभौमिक अपील दी।
- ब्रिटेन में सुधारवादियों के लिए प्रेरणा:
- ब्रिटेन में, पेन के विचारों ने उन लोगों को प्रेरित किया जो संसदीय सुधार, मताधिकार का विस्तार और सामाजिक न्याय चाहते थे।
- रैडिकल क्लबों, जैसे कि लंदन कॉरेस्पोंडिंग सोसाइटी (London Corresponding Society), ने पेन के सिद्धांतों को अपनाया और उन्हें बढ़ावा दिया।
- इसने आयरलैंड में भी राष्ट्रवादी और सुधारवादी आंदोलनों को बढ़ावा दिया, जैसे यूनाइटेड आयरिशमेन (United Irishmen)।
- सामाजिक कल्याण के विचारों की शुरुआत:
- “द राइट्स ऑफ मैन” के दूसरे भाग में, पेन ने एक विस्तृत सामाजिक कल्याण प्रणाली का प्रस्ताव रखा, जिसमें गरीबों के लिए शिक्षा, सेवानिवृत्ति पेंशन और बेरोजगारी लाभ शामिल थे। ये विचार उस समय के लिए क्रांतिकारी थे और एक आधुनिक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा की नींव रखी। इन विचारों ने विशेष रूप से गरीब और कामकाजी वर्ग के लोगों को आकर्षित किया।
विवाद और आधिकारिक प्रतिक्रिया:
“द राइट्स ऑफ मैन” ने तुरंत यूरोप भर की स्थापित सरकारों के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर दिया, जिससे गंभीर विवाद और दमन हुए:
- ब्रिटेन में राजद्रोह का आरोप:
- ब्रिटिश सरकार ने पेन की पुस्तक को राजद्रोही (seditious) माना। उन्होंने देखा कि पेन के विचार राजशाही और मौजूदा ब्रिटिश संविधान के लिए सीधा खतरा थे।
- मई 1792 में, पेन पर राजद्रोह के लिए मुकदमा चलाया गया। उन्हें देशद्रोह का दोषी पाया गया, लेकिन तब तक वे फ्रांस भाग गए थे, इसलिए उन्हें ब्रिटेन में गिरफ्तार नहीं किया जा सका। उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी रहा।
- सरकार ने “द राइट्स ऑफ मैन” की प्रतियों को जब्त करने और जलाने का आदेश दिया और इसके प्रसार को रोकने के लिए कड़ी सेंसरशिप और दमन अभियान चलाया।
- यूरोप भर में भय और दमन:
- अन्य यूरोपीय राजशाहियों ने भी पेन के विचारों को एक खतरे के रूप में देखा, क्योंकि वे अपनी ही जनता में विद्रोह को भड़का सकते थे।
- कई देशों में, पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया और इसके पाठकों या प्रचारकों को गिरफ्तार किया गया। शासकों को डर था कि फ्रांसीसी क्रांति की “संक्रामक” प्रकृति उनके अपने राज्यों में फैल जाएगी।
- अभिजात वर्ग और संरक्षकों द्वारा विरोध:
- एडमंड बर्क के अलावा, कई अन्य रूढ़िवादी बुद्धिजीवियों और कुलीनों ने पेन के विचारों का दृढ़ता से खंडन किया। उन्होंने तर्क दिया कि पेन के विचार अराजकता, अव्यवस्था और रक्तपात को जन्म देंगे, जैसा कि फ्रांसीसी क्रांति के बढ़ते कट्टरपंथ में देखा जा रहा था।
- उन्होंने “परंपरा, व्यवस्था और धर्म” के मूल्यों का बचाव किया, जिनके बारे में उनका मानना था कि पेन उन्हें नष्ट कर रहे थे।
- पेन की व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरा:
- ब्रिटेन में मुकदमे का सामना करने से बचने के लिए पेन को ब्रिटेन से भागना पड़ा। फ्रांसीसी क्रांति के दौरान भी, जब जैकोबिन शासन सत्ता में आया, पेन को जेल में डाल दिया गया क्योंकि वे एक ब्रिटिश नागरिक थे और उनके कुछ विचार (जैसे लुई XVI को मृत्युदंड के खिलाफ) जैकोबिन के अनुरूप नहीं थे।
“द राइट्स ऑफ मैन” ने यूरोप में एक तूफान ला दिया। जबकि इसने सुधारकों और आम लोगों के बीच स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय की गहरी इच्छा को आवाज दी, इसने स्थापित शक्तियों के बीच गहरा भय और आक्रोश भी पैदा किया। पुस्तक की लोकप्रियता और उस पर किया गया दमन दोनों ही पेन के लेखन की असाधारण शक्ति और प्रभाव का प्रमाण थे, जिसने यूरोप को हमेशा के लिए बदल दिया।
फ्रांस में थॉमस पेन की राजनीतिक भागीदारी और जैकोबिन शासन के साथ उनके संबंध
थॉमस पेन की फ्रांस में राजनीतिक भागीदारी एक जटिल और अंततः खतरनाक अनुभव साबित हुई, विशेषकर जैकोबिन शासन के उदय के साथ। अमेरिकी क्रांति के नायक के रूप में, उन्हें फ्रांसीसी क्रांति में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन फ्रांस की राजनीति की बदलती लहरों ने उन्हें एक क्रांतिकारी से कैदी बना दिया।
फ्रांस में राजनीतिक भागीदारी की शुरुआत (1792):
- फ्रांसीसी राष्ट्रीय सम्मेलन में चुनाव:
- “द राइट्स ऑफ मैन” के माध्यम से फ्रांसीसी क्रांति के लिए अपने मजबूत समर्थन और मानव अधिकारों की वकालत के कारण, पेन को 1792 में फ्रांसीसी राष्ट्रीय सम्मेलन (National Convention) के लिए चुना गया था। यह निकाय फ्रांस के नए गणतंत्र की विधायिका और सरकार के रूप में कार्य कर रहा था।
- उन्हें काले (Calais) निर्वाचन क्षेत्र से प्रतिनिधि चुना गया, भले ही वे एक अंग्रेज थे और फ्रांसीसी भाषा नहीं जानते थे (हालांकि उन्होंने फ्रेंच में अनुवादित भाषण दिए)। यह उनके वैश्विक क्रांतिकारी कद का एक प्रमाण था।
- गिरोंदिन्स से संबंध:
- पेन ने सम्मेलन में गिरोंदिन्स (Girondins) नामक राजनीतिक गुट के साथ खुद को जोड़ा। गिरोंदिन्स मध्यममार्गी गणतंत्रवादी थे जो राजशाही को समाप्त करना चाहते थे लेकिन क्रांति के चरमपंथी पहलुओं (जैसे बड़े पैमाने पर हिंसा) से सावधान थे। वे अधिक उदारवादी और संवैधानिक विचारों का प्रतिनिधित्व करते थे।
- लुई XVI के मुकदमे में भूमिका:
- लुई XVI को देशद्रोह के आरोप में मुकदमा चलाया जा रहा था। जब उनकी मृत्युदंड पर वोटिंग हुई, तो पेन ने राजा को मृत्युदंड दिए जाने का विरोध किया।
- उन्होंने इसके बजाय राजा को अमेरिका निर्वासित करने का सुझाव दिया, यह तर्क देते हुए कि राजा को मारना प्रति-उत्पादक होगा और क्रांति के नैतिक सिद्धांतों को कमजोर करेगा। उनका मानना था कि अमेरिकी क्रांति ने बिना किसी फांसी के जीत हासिल की थी।
- यह निर्णय पेन के लिए एक खतरनाक स्थिति बन गई, क्योंकि जैकोबिन (अधिक कट्टरपंथी गुट) राजा को मृत्युदंड देने पर अड़े हुए थे।
जैकोबिन शासन के साथ संबंध और कैद:
- जैकोबिन का उदय और गिरोंदिन्स का पतन:
- 1793 में, जैकोबिन (Jacobins), मैक्सिमिलियन रॉबस्पियर के नेतृत्व में, सत्ता में आए। जैकोबिन अधिक कट्टरपंथी और हिंसक थे, और उन्होंने अपने विरोधियों को दबाने के लिए “आतंक के शासन” (Reign of Terror) की शुरुआत की।
- गिरोंदिन्स को शुद्ध किया गया और उनमें से कई को गिलोटिन पर मार दिया गया। पेन, जो गिरोंदिन्स के साथ जुड़े हुए थे और उन्होंने राजा की फांसी का विरोध किया था, अब खतरे में थे।
- पेन की गिरफ्तारी और कारावास (दिसंबर 1793):
- जैकोबिन ने विदेशी लोगों और राजशाही के प्रति सहानुभूति रखने वालों के खिलाफ कार्रवाई करना शुरू कर दिया था। हालांकि पेन एक ब्रिटिश नागरिक थे (ब्रिटेन उस समय फ्रांस के साथ युद्ध में था), संयुक्त राज्य अमेरिका के राजदूत गुवर्नर मॉरिस (एक संघीयवादी जो पेन को नापसंद करते थे) ने उनकी ओर से हस्तक्षेप नहीं किया।
- 28 दिसंबर, 1793 को, पेन को लक्ज़मबर्ग पैलेस की जेल में गिरफ्तार कर लिया गया और कैद कर लिया गया। आरोप स्पष्ट नहीं थे, लेकिन यह मुख्य रूप से उनके ब्रिटिश नागरिक होने, उनके गिरोंदिनों के साथ संबंध और लुई XVI के प्रति उनके रुख के कारण था।
- अपनी गिरफ्तारी के दौरान, पेन “द एज ऑफ रीज़न” (The Age of Reason) नामक अपनी धार्मिक पुस्तक पर काम कर रहे थे। जेल में रहते हुए भी उन्होंने इसे पूरा किया।
- कारावास के दौरान के हालात:
- पेन लगभग दस महीने तक जेल में रहे और बीमारी से गंभीर रूप से पीड़ित थे। उन्हें हर दिन गिलोटिन पर ले जाने के डर का सामना करना पड़ा।
- सौभाग्य से, जब रॉबस्पियर को जुलाई 1794 में निष्पादित किया गया (थर्मिडोरियन रिएक्शन), आतंक का शासन समाप्त हो गया।
- जेम्स मोनरो (James Monroe), जो गुवर्नर मॉरिस के बाद अमेरिका के नए राजदूत बने थे (और पेन के प्रति अधिक सहानुभूति रखते थे), ने पेन की रिहाई के लिए सफलतापूर्वक हस्तक्षेप किया। मोनरो ने तर्क दिया कि पेन अमेरिकी नागरिक थे (हालांकि तकनीकी रूप से, ब्रिटेन में जन्मे थे)। पेन को नवंबर 1794 में रिहा कर दिया गया।
फ्रांस में थॉमस पेन की राजनीतिक भागीदारी अमेरिकी क्रांति के उनके आदर्शों का एक स्वाभाविक विस्तार थी – वे मानव स्वतंत्रता के एक सच्चे वैश्विक समर्थक थे। हालांकि, फ्रांसीसी क्रांति के उग्र और अस्थिर राजनीतिक परिदृश्य ने उनके अनुभव को खतरनाक बना दिया। जैकोबिन शासन के कट्टरपंथीकरण और आतंक के शासन के दौरान, उनके उदारवादी विचार और लुई XVI के प्रति उनका रुख उनके लिए घातक साबित हो सकता था। उनकी कैद उनके लिए एक बड़ा व्यक्तिगत आघात थी और इसने उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रति निराश कर दिया, खासकर वाशिंगटन के प्रशासन के प्रति, जिनके बारे में उन्हें लगा कि उन्होंने उनकी मदद के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए।
आतंक के शासन (Reign of Terror) के दौरान थॉमस पेन की गिरफ्तारी और कारावास
फ्रांसीसी क्रांति के दौरान थॉमस पेन की यात्रा उनके लिए एक गहरा व्यक्तिगत संकट बन गई, खासकर जब फ्रांस में आतंक का शासन (Reign of Terror) शुरू हुआ। यह वही क्रांतिकारी थे जिन्होंने अमेरिका को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया था, अब वे एक और क्रांति के हिंसक उथल-पुथल में फंस गए थे।
आतंक के शासन की पृष्ठभूमि:
- जैकोबिन का उदय: 1793 में, मैक्सिमिलियन रॉबस्पियर के नेतृत्व में कट्टरपंथी जैकोबिन (Jacobins) गुट फ्रांसीसी राष्ट्रीय सम्मेलन पर हावी हो गया। उन्होंने क्रांति को “शुद्ध” करने और आंतरिक और बाहरी दुश्मनों को खत्म करने का संकल्प लिया।
- अत्यधिक संदेह और हिंसा: जैकोबिन ने उन सभी को क्रांति का दुश्मन मानना शुरू कर दिया जो उनके विचारों से थोड़ा भी असहमत थे या जिन्हें शाहीवादी या प्रति-क्रांतिकारी होने का संदेह था। इसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां, मुकदमे और गिलोटिन द्वारा निष्पादन हुए। यह अवधि सितंबर 1793 से जुलाई 1794 तक चली।
पेन की गिरफ्तारी के कारण:
थॉमस पेन की गिरफ्तारी सीधे तौर पर आतंक के शासन के दौरान की गई कठोर कार्रवाईयों का परिणाम थी, और इसके कई कारण थे:
- गिरोंदिन्स से संबंध: पेन ने खुद को राष्ट्रीय सम्मेलन में गिरोंदिन्स (Girondins) गुट के साथ जोड़ा था। गिरोंदिन्स, जो राजशाही के खिलाफ थे लेकिन जैकोबिन के जितनी कट्टरपंथी हिंसा के पक्षधर नहीं थे, को 1793 के मध्य में जैकोबिन द्वारा शुद्ध कर दिया गया था। उन्हें “क्रांति के दुश्मन” के रूप में देखा गया और उनमें से कई को गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया। पेन, उनके सहयोगी होने के नाते, स्वाभाविक रूप से जैकोबिन के संदेह के घेरे में आ गए।
- लुई XVI को मृत्युदंड का विरोध: जब पूर्व राजा लुई XVI पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया (दिसंबर 1792 – जनवरी 1793), तो पेन ने उनकी फांसी का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने सुझाव दिया कि राजा को अमेरिका में निर्वासन में भेज दिया जाए। पेन का मानना था कि एक “किंग-किलिंग” क्रांति के उच्च नैतिक आधार को दूषित कर देगी। यह स्थिति जैकोबिन के विचारों के बिल्कुल विपरीत थी, जो राजा को क्रांति के प्रतीक दुश्मन के रूप में देखते थे। यह विरोध पेन के लिए जैकोबिन की नजर में एक “संदिग्ध” व्यक्ति बना दिया।
- ब्रिटिश नागरिकता: ब्रिटेन उस समय फ्रांस के साथ युद्ध में था। 1793 में, फ्रांसीसी राष्ट्रीय सम्मेलन ने एक फरमान जारी किया जिसमें युद्ध में फ्रांस के साथ लड़ रहे देशों के सभी विदेशी नागरिकों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया गया। चूंकि पेन एक ब्रिटिश नागरिक थे (हालांकि उन्हें फ्रांसीसी मानद नागरिकता दी गई थी), उन्हें इस फरमान के तहत एक “शत्रु एलियन” के रूप में देखा गया।
- अमेरिकी राजदूत का हस्तक्षेप न करना: संयुक्त राज्य अमेरिका के राजदूत गुवर्नर मॉरिस (Gouverneur Morris), एक संघीयवादी जो व्यक्तिगत रूप से पेन को नापसंद करते थे और उनके कट्टरपंथी विचारों से असहज थे, ने पेन को अमेरिकी नागरिक के रूप में मान्यता देने और उनकी ओर से हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। मॉरिस का तर्क था कि चूंकि पेन ने फ्रांसीसी नागरिकता स्वीकार कर ली थी, इसलिए अमेरिका उनके लिए जिम्मेदार नहीं था।
कारावास: लक्ज़मबर्ग पैलेस की जेल
- गिरफ्तारी की तारीख: 28 दिसंबर, 1793 को थॉमस पेन को गिरफ्तार कर लिया गया।
- कारावास का स्थान: उन्हें पेरिस में लक्ज़मबर्ग पैलेस (Luxembourg Palace) की जेल में रखा गया, जो आतंक के शासन के दौरान राजनीतिक कैदियों के लिए एक कुख्यात स्थान था।
- भयंकर स्थितियाँ: जेल की स्थितियाँ दयनीय थीं। पेन बीमार पड़ गए, शायद टाइफस या किसी अन्य गंभीर बीमारी से। उन्होंने अपने कारावास के दौरान अपनी पुस्तक “द एज ऑफ रीज़न” (The Age of Reason) के दूसरे भाग का अधिकांश लेखन किया, जो उनकी मानसिक दृढ़ता का प्रमाण है।
- मृत्यु के करीब: पेन को एक बार गिलोटिन के लिए निर्धारित कैदियों की सूची में भी गलती से शामिल कर लिया गया था। भाग्य से, उनके सेल का दरवाजा गलती से खुला छोड़ दिया गया, जिससे निशान लगाने वाले व्यक्ति ने उन्हें मरा हुआ मान लिया और उनकी पहचान चिह्नित नहीं की। यह एक संकीर्ण बचाव था।
मोनरो के हस्तक्षेप से रिहाई:
- आतंक के शासन का अंत जुलाई 1794 में रॉबस्पियर के पतन और निष्पादन के साथ हुआ। यह एक महत्वपूर्ण मोड़ था।
- नए अमेरिकी राजदूत जेम्स मोनरो (James Monroe), जिन्होंने गुवर्नर मॉरिस की जगह ली थी, पेन के प्रति अधिक सहानुभूति रखते थे। उन्होंने सक्रिय रूप से पेन की ओर से हस्तक्षेप किया, यह तर्क देते हुए कि पेन वास्तव में एक अमेरिकी नागरिक थे (उन्होंने कभी अपनी अमेरिकी नागरिकता नहीं त्यागी थी)।
- रिहाई: मोनरो के प्रयासों के परिणामस्वरूप, थॉमस पेन को 4 नवंबर, 1794 को लक्ज़मबर्ग जेल से रिहा कर दिया गया। वे काफी कमजोर और बीमार थे, लेकिन जीवित थे।
पेन की आतंक के शासन के दौरान गिरफ्तारी और कारावास उनके जीवन का एक दुखद और चुनौतीपूर्ण अध्याय था। यह उस जोखिम का प्रमाण था जो उन्होंने अपने क्रांतिकारी आदर्शों के लिए उठाया था, और यह दर्शाता है कि कैसे क्रांतिकारी ज्वार अपने ही सबसे उत्साही समर्थकों को निगल सकता है। इस अनुभव ने उन्हें अमेरिका और विशेष रूप से जॉर्ज वाशिंगटन के प्रति कड़वाहट से भर दिया, जिनसे उन्हें उम्मीद थी कि वे उनकी मदद करेंगे।
कारावास के दौरान थॉमस पेन के अनुभव और “द एज ऑफ रीज़न” (The Age of Reason) का प्रारंभिक लेखन
फ्रांस में आतंक के शासन (Reign of Terror) के दौरान थॉमस पेन का कारावास उनके जीवन का सबसे कठिन और परिवर्तनकारी अनुभवों में से एक था। इस अवधि में उन्हें शारीरिक और मानसिक कष्टों का सामना करना पड़ा, लेकिन यह उनके सबसे विवादास्पद और महत्वपूर्ण कार्यों में से एक, “द एज ऑफ रीज़न” (The Age of Reason) के प्रारंभिक लेखन का भी समय था।
कारावास के दौरान अनुभव:
- शारीरिक कष्ट और बीमारी:
- पेन को पेरिस के लक्ज़मबर्ग पैलेस (Luxembourg Palace) की जेल में लगभग दस महीने (दिसंबर 1793 से नवंबर 1794) तक रखा गया था। जेल की स्थितियाँ अमानवीय थीं। भीड़भाड़, खराब स्वच्छता और अपर्याप्त भोजन आम था।
- इन परिस्थितियों में, पेन गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। उन्हें शायद टाइफस या किसी अन्य संक्रामक बीमारी हो गई थी, जिसने उन्हें मृत्यु के कगार पर ला दिया था। उनकी हालत इतनी खराब हो गई थी कि एक समय उन्हें मृत मान लिया गया था।
- मृत्यु का निरंतर भय:
- आतंक के शासन के दौरान, गिलोटिन पर निष्पादन एक दैनिक वास्तविकता थी। पेन हर दिन इस डर में जीते थे कि उनका नाम अगली सूची में हो सकता है। उनके कई परिचितों और सहयोगियों को निष्पादित किया गया था।
- एक प्रसिद्ध घटना में, उनके सेल के दरवाजे पर एक निशान लगाया गया था जो इंगित करता था कि उस सेल के कैदी को अगले दिन निष्पादित किया जाना था। लेकिन गलती से, जब निशान लगाया गया, तो दरवाजा अंदर की ओर खुला हुआ था, और जब दरवाजा बंद किया गया, तो निशान अंदर की तरफ आ गया, जिससे बाहर से यह नहीं दिखा। जब सुबह अधिकारी कैदियों को लेने आए, तो उन्होंने निशान नहीं देखा और पेन को छोड़ दिया। इसे पेन ने एक चमत्कारी बचाव माना।
- मानसिक और भावनात्मक आघात:
- कारावास, बीमारी और मृत्यु के निरंतर खतरे ने पेन पर गहरा मानसिक और भावनात्मक प्रभाव डाला। उन्हें अकेलापन, निराशा और अपने अमेरिकी दोस्तों और सरकार द्वारा परित्याग की भावना का सामना करना पड़ा। इस अनुभव ने जॉर्ज वाशिंगटन के प्रति उनकी कड़वाहट को और बढ़ा दिया, जिनसे उन्हें उम्मीद थी कि वे उनकी रिहाई के लिए हस्तक्षेप करेंगे।
“द एज ऑफ रीज़न” का प्रारंभिक लेखन:
इन भयानक परिस्थितियों के बावजूद, पेन ने अपनी बौद्धिक ऊर्जा को बनाए रखा और अपने सबसे साहसी कार्यों में से एक पर काम करना जारी रखा।
- प्रेरणा और उद्देश्य:
- पेन ने “द एज ऑफ रीज़न” को मुख्य रूप से दो कारणों से लिखा:
- बढ़ते नास्तिकता का मुकाबला करना: फ्रांसीसी क्रांति के दौरान, कुछ कट्टरपंथी तत्वों ने धर्म को पूरी तरह से खारिज कर दिया और नास्तिकता को बढ़ावा दिया। पेन, जो एक ईश्वरवादी (Deist) थे (ईश्वर में विश्वास करते थे लेकिन संगठित धर्म, बाइबिल की शाब्दिक व्याख्या और चमत्कारों को अस्वीकार करते थे), उन्हें लगा कि यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है। वह नास्तिकता और अंधविश्वास दोनों के बीच एक तर्कसंगत मध्य मार्ग प्रस्तुत करना चाहते थे।
- अपने विचारों को संरक्षित करना: मृत्यु के लगातार खतरे के कारण, पेन को लगा कि उन्हें अपने धार्मिक और दार्शनिक विचारों को रिकॉर्ड करना होगा, इससे पहले कि उन्हें निष्पादित कर दिया जाए और उनके विचार खो जाएं। उन्होंने अपनी पांडुलिपि को एक दोस्त को सौंप दिया, ताकि यदि उन्हें मार दिया जाए तो इसे प्रकाशित किया जा सके।
- पेन ने “द एज ऑफ रीज़न” को मुख्य रूप से दो कारणों से लिखा:
- मुख्य विषय-वस्तु:
- ईश्वरवाद की वकालत: पुस्तक ईश्वरवाद के सिद्धांतों की वकालत करती है, यह तर्क देते हुए कि ब्रह्मांड एक बुद्धिमान निर्माता (ईश्वर) द्वारा बनाया गया था, लेकिन यह ईश्वर प्राकृतिक नियमों के माध्यम से कार्य करता है, न कि चमत्कारों या दैवीय हस्तक्षेप के माध्यम से।
- संगठित धर्मों की आलोचना: पेन ने बाइबिल (विशेषकर पुराने नियम), ईसाई धर्म के सिद्धांतों और चर्चों के पाखंड की तीखी आलोचना की। उन्होंने तर्क दिया कि बाइबिल मानव निर्मित है, त्रुटियों से भरी है, और अक्सर अनैतिक है। उन्होंने संगठित धर्मों को सत्ता और नियंत्रण के उपकरण के रूप में देखा।
- तर्क और विज्ञान का महत्व: पेन ने तर्क और वैज्ञानिक जांच को सत्य प्राप्त करने के प्राथमिक साधन के रूप में बढ़ावा दिया, न कि अंध विश्वास या धार्मिक हठधर्मिता को।
- व्यक्तिगत विवेक: उन्होंने व्यक्तिगत विवेक और तर्क के माध्यम से ईश्वर और नैतिकता को समझने के महत्व पर जोर दिया, न कि किसी धार्मिक संस्था के माध्यम से।
- प्रकाशन:
- “द एज ऑफ रीज़न” का पहला भाग 1794 में, पेन के जेल से रिहा होने से ठीक पहले, प्रकाशित हुआ था। दूसरा भाग 1795 में प्रकाशित हुआ।
कारावास के दौरान पेन के अनुभव ने उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से तोड़ दिया था, लेकिन इसने उनकी बौद्धिक दृढ़ता और अपने विचारों को दुनिया के सामने रखने की इच्छा को और मजबूत किया। “द एज ऑफ रीज़न” ने यूरोप और अमेरिका दोनों में एक बड़ा विवाद खड़ा किया, जिससे उनकी लोकप्रियता में और गिरावट आई, लेकिन यह उनकी बौद्धिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनी हुई है।
जेम्स मोनरो के हस्तक्षेप से थॉमस पेन की रिहाई
फ्रांस में आतंक के शासन (Reign of Terror) के दौरान थॉमस पेन की कैद उनके लिए एक भयानक अनुभव था, लेकिन अमेरिकी राजदूत जेम्स मोनरो (James Monroe) के समय पर और निर्णायक हस्तक्षेप ने उन्हें गिलोटिन से बचा लिया और उनकी रिहाई सुनिश्चित की।
पृष्ठभूमि: पेन की गिरफ्तारी और मॉरिस का इनकार
दिसंबर 1793 में पेन को ब्रिटिश नागरिक होने के कारण (हालांकि उन्हें फ्रांसीसी मानद नागरिकता दी गई थी) और उनके गिरोंदिन्स (Girondins) से संबंध रखने व राजा लुई XVI को मृत्युदंड दिए जाने के विरोध के कारण गिरफ्तार कर लिया गया था।
उस समय के अमेरिकी राजदूत, गुवर्नर मॉरिस (Gouverneur Morris), पेन के लिए कोई खास सहानुभूति नहीं रखते थे। मॉरिस एक रूढ़िवादी संघीयवादी थे जो पेन के कट्टरपंथी विचारों और उनकी ब्रिटिश राजशाही की तीखी आलोचना को नापसंद करते थे। उन्होंने पेन को अमेरिकी नागरिक के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया, यह तर्क देते हुए कि पेन ने फ्रांसीसी नागरिकता स्वीकार कर ली थी, और इसलिए वे अब अमेरिकी सुरक्षा के पात्र नहीं थे। मॉरिस का यह कदम पेन के लिए एक बड़ा झटका था और उन्हें अमेरिकी सरकार द्वारा परित्यक्त महसूस हुआ।
जेम्स मोनरो का आगमन और हस्तक्षेप
जुलाई 1794 में, जेम्स मोनरो को गुवर्नर मॉरिस के स्थान पर फ्रांस में नए अमेरिकी राजदूत के रूप में नियुक्त किया गया। मोनरो, जो बाद में अमेरिका के राष्ट्रपति भी बने, पेन के प्रति अधिक सहानुभूति रखते थे और उनके क्रांतिकारी योगदान का सम्मान करते थे। वह स्वयं एक डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन थे और पेन के सिद्धांतों के प्रति अधिक झुकाव रखते थे।
फ्रांस पहुँचने के तुरंत बाद, मोनरो को पेन की गिरफ्तारी और उनकी बिगड़ती हालत के बारे में पता चला। उन्होंने तुरंत कार्रवाई करने का फैसला किया:
- अमेरिकी नागरिकता का दावा: मोनरो ने फ्रांसीसी अधिकारियों के सामने दृढ़ता से तर्क दिया कि थॉमस पेन एक अमेरिकी नागरिक थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पेन ने कभी भी अपनी अमेरिकी नागरिकता का त्याग नहीं किया था, भले ही उन्हें फ्रांसीसी मानद नागरिकता दी गई हो।
- राजनयिक दबाव: मोनरो ने फ्रांसीसी सरकार पर राजनयिक दबाव डाला, यह समझाते हुए कि पेन को कैद करना संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ उनके संबंधों को नुकसान पहुँचा सकता है, एक ऐसे देश के साथ जिसे फ्रांस को अभी भी समर्थन की आवश्यकता थी।
- आतंक के शासन का अंत: सौभाग्य से, मोनरो का हस्तक्षेप ऐसे समय में आया जब फ्रांस में राजनीतिक माहौल बदल रहा था। रॉबस्पियर को जुलाई 1794 में गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया था, जिससे आतंक का शासन समाप्त हो गया था और जेलों से राजनीतिक कैदियों को रिहा करने का एक सामान्य चलन शुरू हो गया था।
रिहाई और उसके बाद:
मोनरो के लगातार प्रयासों के परिणामस्वरूप, थॉमस पेन को 4 नवंबर, 1794 को लक्ज़मबर्ग पैलेस की जेल से रिहा कर दिया गया।
- स्वास्थ्य लाभ: रिहाई के समय पेन बेहद कमजोर और बीमार थे। मोनरो और उनकी पत्नी एलिजाबेथ ने पेन को अपने घर ले जाकर उनकी देखभाल की। पेन कई महीनों तक मोनरो के पेरिस स्थित घर में रहे, जहाँ उन्होंने धीरे-धीरे स्वास्थ्य लाभ किया।
- कृतज्ञता और कड़वाहट: पेन मोनरो के हस्तक्षेप के लिए बहुत आभारी थे। हालांकि, उनका यह अनुभव जॉर्ज वाशिंगटन और तत्कालीन अमेरिकी प्रशासन के प्रति गहरी कड़वाहट का कारण बना। पेन को लगा कि वाशिंगटन ने उनकी मदद के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए, और उन्होंने बाद में वाशिंगटन की कड़ी आलोचना करते हुए एक पम्फलेट लिखा, जिससे अमेरिका में उनकी प्रतिष्ठा को और नुकसान पहुँचा।
मोनरो का हस्तक्षेप पेन के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसने न केवल उनकी जान बचाई, बल्कि उन्हें “द एज ऑफ रीज़न” के दूसरे भाग को पूरा करने और बाद में अमेरिका लौटने की अनुमति दी, हालांकि उनके अंतिम वर्ष विवादों और एकांत में बीते। यह घटना अमेरिकी कूटनीति की एक महत्वपूर्ण मिसाल भी थी, जिसमें एक अमेरिकी राजदूत ने एक नागरिक के अधिकारों की रक्षा के लिए हस्तक्षेप किया, भले ही वह नागरिक कितना भी विवादास्पद क्यों न हो।
“द एज ऑफ रीज़न” (The Age of Reason) का लेखन और प्रकाशन
थॉमस पेन की पुस्तक “द एज ऑफ रीज़न” उनके जीवन के सबसे विवादास्पद और उनके सार्वजनिक जीवन को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाने वाले कार्यों में से एक थी। इसका लेखन और प्रकाशन फ्रांसीसी क्रांति के उथल-पुथल भरे माहौल में हुआ, और यह पेन के तर्कवाद और धार्मिक कट्टरता के प्रति उनके विरोध का एक शक्तिशाली बयान था।
लेखन की पृष्ठभूमि और प्रेरणा
“द एज ऑफ रीज़न” का लेखन दो मुख्य अवधियों में हुआ:
- फ्रांस में प्रारंभिक लेखन (कारावास से पहले, 1793):
- पेन ने इस पुस्तक को तब लिखना शुरू किया जब वे फ्रांसीसी क्रांति के दौरान राजनीतिक उथल-पुथल के बीच थे, लेकिन जेल जाने से पहले।
- नास्तिकता का उदय: क्रांति के कट्टरपंथी चरण में, फ्रांस में कई लोगों ने संगठित धर्म को पूरी तरह से खारिज कर दिया और नास्तिकता को अपना रहे थे। पेन, जो एक ईश्वरवादी (Deist) थे, को यह प्रवृत्ति खतरनाक लगी। उनका मानना था कि नास्तिकता एक रिक्तता पैदा करती है जिसे अज्ञानता या अंधविश्वास भर सकता है। वे तर्कसंगत ईश्वरवाद और नास्तिकता दोनों के बीच एक मध्य मार्ग प्रस्तुत करना चाहते थे।
- मौत का आसन्न भय: जैसा कि आतंक का शासन तेज हो रहा था और पेन को अपनी गिरफ्तारी का आभास हो रहा था, उन्हें लगा कि उन्हें अपने धार्मिक और दार्शनिक विचारों को रिकॉर्ड करना होगा। उन्होंने अपनी पांडुलिपि के पहले भाग को एक मित्र, जोएल बार्लो (Joel Barlow) को सौंप दिया, ताकि यदि उन्हें मार दिया जाए तो इसे प्रकाशित किया जा सके।
- कारावास के दौरान लेखन (1793-1794):
- लक्ज़मबर्ग जेल में अपने दस महीने के दौरान, जहाँ उन्हें मृत्यु का सामना करना पड़ा, पेन ने “द एज ऑफ रीज़न” के दूसरे भाग का अधिकांश लेखन किया। यह उनकी असाधारण मानसिक शक्ति और दृढ़ संकल्प का प्रमाण है कि वे ऐसी भयानक परिस्थितियों में भी बौद्धिक कार्य जारी रख सके।
पुस्तक के मुख्य तर्क और विषय-वस्तु
“द एज ऑफ रीज़न” पेन के ईश्वरवादी दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती है, जो ईसाई सिद्धांतों और बाइबिल की पारंपरिक व्याख्याओं को चुनौती देती है।
- ईश्वरवाद की वकालत:
- पेन ने एक निर्माता ईश्वर में विश्वास का तर्क दिया, लेकिन यह ईश्वर चमत्कारों या प्रत्यक्ष हस्तक्षेप के बजाय प्राकृतिक नियमों के माध्यम से ब्रह्मांड पर शासन करता है।
- उन्होंने कहा कि प्रकृति ही ईश्वर की सच्ची बाइबिल है; विज्ञान और खगोल विज्ञान के अध्ययन से ही ईश्वर की शक्ति और ज्ञान का पता चलता है, न कि किसी प्राचीन ग्रंथ से।
- संगठित धर्म और बाइबिल की आलोचना:
- पेन ने बाइबिल की तीखी आलोचना की, विशेष रूप से पुराने नियम को। उन्होंने इसे “नैतिकता, न्याय और ईश्वर की गरिमा के लिए एक अपमान” बताया। उन्होंने इसकी विसंगतियों, क्रूरता और असंगतताओं को उजागर करने की कोशिश की।
- उन्होंने ईसाई धर्म की केंद्रीय अवधारणाओं जैसे कुंवारी जन्म, पुनरुत्थान और मोक्ष को खारिज कर दिया, उन्हें तर्कहीन और अविश्वसनीय बताया।
- उन्होंने संगठित धर्मों और पादरियों (पुरोहितों) को सत्ता के उपकरण के रूप में देखा, जो लोगों को अज्ञानता और अंधविश्वास में रखते हैं ताकि वे उन्हें नियंत्रित कर सकें।
- तर्क और विवेक पर जोर:
- पेन ने तर्क और व्यक्तिगत विवेक को सत्य प्राप्त करने का प्राथमिक साधन बताया। उन्होंने लोगों से अंध विश्वास या धार्मिक हठधर्मिता के बजाय अपनी बुद्धि का उपयोग करने का आग्रह किया।
- उनका मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने मन और तर्क के आधार पर ईश्वर और नैतिकता का निर्धारण करना चाहिए।
प्रकाशन और प्रभाव
- प्रकाशन की तारीखें:
- “द एज ऑफ रीज़न, पार्ट I” 1794 की शुरुआत में पेरिस में और फिर फिलाडेल्फिया में प्रकाशित हुआ।
- “द एज ऑफ रीज़न, पार्ट II” 1795 में प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने बाइबिल के विभिन्न भागों की अधिक विस्तृत आलोचना की।
- “द एज ऑफ रीज़न, पार्ट III” बाद में, 1807 में प्रकाशित हुआ, जिसमें बाइबिल के कुछ और हिस्सों की जांच की गई।
- तत्काल और विवादास्पद स्वागत:
- पुस्तक ने यूरोप और अमेरिका दोनों में भारी विवाद खड़ा कर दिया। जबकि कुछ बुद्धिजीवियों और मुक्त विचारकों ने पेन के विचारों का समर्थन किया, अधिकांश लोगों और विशेष रूप से धार्मिक प्रतिष्ठानों ने इसे भयावह और निंदनीय पाया।
- पेन पर नास्तिक होने का आरोप लगाया गया, हालांकि वे स्पष्ट रूप से एक ईश्वरवादी थे। उन्हें “शैतान का सचिव” कहा गया और उनके चरित्र पर व्यक्तिगत हमले किए गए।
- पेन की प्रतिष्ठा पर नकारात्मक प्रभाव:
- “द एज ऑफ रीज़न” ने अमेरिकी क्रांति में उनके अमूल्य योगदान के बावजूद, संयुक्त राज्य अमेरिका में पेन की लोकप्रियता को बर्बाद कर दिया। एक अत्यधिक धार्मिक समाज में, उनके धार्मिक विचारों को देशद्रोह के रूप में देखा गया।
- कई संस्थापक पिता, जिन्होंने कभी उनकी प्रशंसा की थी, अब उनसे दूरी बनाने लगे। जॉन एडम्स ने टिप्पणी की कि “पेन की पुस्तक में जितना नुकसान है, उतना किसी और पुस्तक में नहीं है।”
“द एज ऑफ रीज़न” ने पेन की एक ऐसे व्यक्ति के रूप में छवि को मजबूत किया जो अपने सिद्धांतों पर समझौता नहीं करता था, चाहे उसकी व्यक्तिगत कीमत कुछ भी हो। हालांकि इसने उन्हें उनके जीवनकाल में भारी आलोचना और अलगाव दिलाया, यह पुस्तक आज भी तर्कसंगतता, मुक्त सोच और संगठित धर्म की आलोचना पर एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक पाठ बनी हुई है।
“द एज ऑफ रीज़न” में थॉमस पेन के धार्मिक विचारों की पड़ताल: ईश्वरवाद और संगठित धर्म की आलोचना
थॉमस पेन की पुस्तक “द एज ऑफ रीज़न” (The Age of Reason) उनके राजनीतिक लेखन से बहुत अलग थी, लेकिन इसने उनके मूलभूत सिद्धांतों — तर्क, स्वतंत्रता और सत्ता के प्रति अविश्वास — को धार्मिक क्षेत्र में विस्तारित किया। इस पुस्तक में उन्होंने अपने ईश्वरवादी (Deist) विचारों को स्पष्ट किया और संगठित धर्मों, विशेषकर ईसाई धर्म की तीखी आलोचना की।
1. ईश्वरवाद (Deism) की वकालत:
पेन एक नास्तिक नहीं थे; वे एक प्रबल ईश्वरवादी थे। उनका ईश्वर में दृढ़ विश्वास था, लेकिन उनका ईश्वर पारंपरिक धार्मिक अवधारणाओं से भिन्न था:
- निर्माता ईश्वर (Creator God): पेन का मानना था कि एक परम शक्ति या निर्माता (Creator) है जिसने ब्रह्मांड को बनाया है। वे ब्रह्मांड के व्यवस्थित और तार्किक डिजाइन से ईश्वर के अस्तित्व का प्रमाण देखते थे, जैसे कि ग्रह, तारे और प्राकृतिक नियम।
- प्राकृतिक नियम और तर्क (Natural Laws and Reason): उनके लिए, ईश्वर ने ब्रह्मांड को बनाया और उसे चलाने के लिए प्राकृतिक नियम स्थापित किए। इसके बाद, ईश्वर सीधे मानव मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता, न ही चमत्कारों के माध्यम से, न ही भविष्यवाणियों के माध्यम से। ईश्वर की इच्छा और उसकी रचना को समझने का एकमात्र तरीका तर्क (Reason) और विज्ञान (Science) के माध्यम से प्राकृतिक दुनिया का अध्ययन करना है।
- प्रकृति ही “सच्ची बाइबिल” है: पेन ने तर्क दिया कि ईश्वर का सच्चा रहस्योद्घाटन किसी पवित्र पुस्तक में नहीं, बल्कि स्वयं प्रकृति की पुस्तक में है। खगोल विज्ञान, भौतिकी और अन्य विज्ञानों का अध्ययन करना ही ईश्वर के कार्यों और उसकी महानता को समझने का वास्तविक तरीका है। उनके अनुसार, “पृथ्वी ही ईश्वर का सिंहासन है, और ब्रह्मांड उसका मंदिर।”
- व्यक्तिगत विवेक (Individual Conscience): पेन ने व्यक्तिगत विवेक और अंतर्ज्ञान के माध्यम से ईश्वर से सीधा संबंध स्थापित करने पर जोर दिया, न कि किसी मध्यस्थ (पादरी) या संस्था के माध्यम से। प्रत्येक व्यक्ति को अपने तर्क से सत्य को खोजना चाहिए।
2. संगठित धर्म (Organized Religion) की आलोचना:
पेन ने संगठित धर्मों, विशेषकर ईसाई धर्म और बाइबिल की कड़ी निंदा की। उनकी आलोचना कई बिंदुओं पर आधारित थी:
- बाइबिल की शाब्दिक व्याख्या का खंडन (Rejection of Literal Biblical Interpretation):
- पेन ने बाइबिल को ईश्वर का शब्द मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने इसे मानव निर्मित कहानियों, किंवदंतियों और मिथकों का संग्रह बताया।
- उन्होंने बाइबिल में कई विसंगतियों, विरोधाभासों और नैतिक रूप से आपत्तिजनक कहानियों को उजागर करने की कोशिश की, जैसे कि नरसंहार, हिंसा और अन्याय का समर्थन। उन्होंने पुराने नियम की विशेष रूप से कड़ी आलोचना की, इसे “राक्षसी क्रूरता और असहिष्णुता की कहानी” बताया।
- उन्होंने कहा कि बाइबिल में ऐसी बातें हैं जो “ईश्वर की गरिमा के लिए अपमान” हैं।
- चमत्कारों का खंडन (Rejection of Miracles):
- पेन ने चमत्कारों को तर्कहीन बताया। यदि ईश्वर ने प्राकृतिक नियम स्थापित किए हैं, तो वह स्वयं उनका उल्लंघन क्यों करेगा? उन्होंने चमत्कारों को केवल धोखाधड़ी या गलत व्याख्या के रूप में देखा।
- रहस्यों की आलोचना (Critique of Mysteries):
- ईसाई धर्म के कई केंद्रीय रहस्यमय सिद्धांतों (जैसे ट्रिनिटी, ईसा मसीह का कुंवारी जन्म, पुनरुत्थान) को पेन ने तर्क के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि “रहस्य” अक्सर उन चीजों को छिपाने के लिए एक बहाना होता है जो तार्किक रूप से समझ में नहीं आतीं या जिन्हें समझाया नहीं जा सकता।
- सत्ता और नियंत्रण के उपकरण के रूप में धर्म (Religion as a Tool of Power and Control):
- पेन का मानना था कि संगठित धर्मों को पुरोहितों और शासकों द्वारा लोगों को नियंत्रित करने, उन्हें अज्ञानता में रखने और उनकी स्वतंत्रता को दबाने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया गया है। उन्होंने कहा कि “चर्च और राज्य” का गठबंधन हमेशा उत्पीड़न और भ्रष्टाचार का कारण रहा है।
- उन्होंने विशेष रूप से पादरियों (पुरोहित वर्ग) की शक्ति और संपत्ति की आलोचना की, यह तर्क देते हुए कि वे लोगों का शोषण करते हैं।
- अंधविश्वास और कट्टरता के खिलाफ (Against Superstition and Fanaticism):
- पेन ने अंधविश्वास और धार्मिक कट्टरता को मानव प्रगति और तर्क के लिए हानिकारक माना। वे एक ऐसे समाज की कल्पना करते थे जहाँ व्यक्ति तर्क और मानवीय मूल्यों के आधार पर नैतिकता का पालन करें, न कि धार्मिक भय या प्रतिशोध के डर से।
पेन के लिए, “द एज ऑफ रीज़न” का उद्देश्य अंधविश्वास, धार्मिक अत्याचार और अज्ञानता की “रात्रि” को समाप्त करके तर्क के “युग” (Age of Reason) का सूत्रपात करना था। यह पुस्तक, भले ही इसने उन्हें उनके जीवनकाल में भारी आलोचना और सामाजिक बहिष्करण का शिकार बनाया, आधुनिक मुक्त विचार, धर्मनिरपेक्षता और वैज्ञानिक जांच के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बनी हुई है।
“द एज ऑफ रीज़न” को लेकर उठे विवाद और उनकी प्रतिष्ठा पर इसका प्रभाव
थॉमस पेन की पुस्तक “द एज ऑफ रीज़न” (The Age of Reason) ने अमेरिकी और यूरोपीय समाज में एक ऐसा तूफान खड़ा कर दिया जिसकी शायद ही किसी ने उम्मीद की थी। इसने उनके राजनीतिक लेखन से कहीं अधिक तीव्र और व्यक्तिगत विवाद पैदा किए, और उनकी प्रतिष्ठा पर इसका नकारात्मक प्रभाव विनाशकारी था।
पुस्तक को लेकर उठे विवाद:
- “नास्तिक” होने का आरोप, जबकि वे ईश्वरवादी थे:
- पेन ने स्पष्ट रूप से एक निर्माता ईश्वर में अपने विश्वास की घोषणा की थी और नास्तिकता का खंडन किया था। वे एक ईश्वरवादी (Deist) थे, जिसका अर्थ है कि वे प्रकृति और तर्क के माध्यम से ईश्वर में विश्वास करते थे, न कि बाइबिल या चर्च के माध्यम से।
- इसके बावजूद, उनके आलोचकों ने उन्हें तुरंत “नास्तिक” (Atheist) करार दिया। उस समय, बाइबिल की आलोचना करना या संगठित धर्म पर सवाल उठाना ही नास्तिकता के बराबर माना जाता था। यह आरोप उन पर आजीवन लगा रहा और उनकी छवि को धूमिल करता रहा।
- बाइबिल और ईसाई धर्म की तीव्र आलोचना:
- पेन ने बाइबिल को ईश्वर का शब्द मानने से इनकार कर दिया और उसकी नैतिक विसंगतियों, क्रूरता और असंगतताओं को उजागर करने का प्रयास किया।
- उन्होंने ईसा मसीह के दैवीय स्वभाव, कुंवारी जन्म, पुनरुत्थान जैसे ईसाई धर्म के केंद्रीय सिद्धांतों को “मिथक” और “बकवास” बताया।
- यह उस समय के एक बड़े, गहरे धार्मिक समाज के लिए एक बड़ा झटका था, जहाँ बाइबिल को ईश्वर का अचूक वचन माना जाता था। उनके विचार को ईशनिंदा और विश्वास का अपमान माना गया।
- संगठित धर्मों और पादरियों पर हमला:
- पेन ने संगठित धर्मों और पादरियों (पुरोहित वर्ग) पर आरोप लगाया कि वे लोगों को अज्ञानता में रखते हैं और उन्हें नियंत्रित करने के लिए डर और अंधविश्वास का उपयोग करते हैं। उन्होंने धर्म को सत्ता के एक उपकरण के रूप में देखा।
- इस आलोचना ने धार्मिक प्रतिष्ठानों और उनके समर्थकों में भारी आक्रोश पैदा किया, जिन्होंने पेन के खिलाफ एक जोरदार प्रचार अभियान चलाया।
- “कॉमन सेंस” से विपरीत:
- कई लोगों को यह समझ नहीं आया कि “कॉमन सेंस” जैसा देशभक्तिपूर्ण काम लिखने वाला व्यक्ति अब धार्मिक विश्वासों पर इतना कट्टरपंथी हमला क्यों कर रहा था। उन्हें लगा कि पेन ने अपनी सीमा पार कर दी है।
उनकी प्रतिष्ठा पर इसका प्रभाव:
“द एज ऑफ रीज़न” ने थॉमस पेन की प्रतिष्ठा को अमेरिका और ब्रिटेन दोनों में पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया।
- अमेरिका में नायक से बहिष्कृत:
- तत्काल लोकप्रियता में गिरावट: अमेरिकी क्रांति में उनके अमूल्य योगदान के बावजूद, पेन की लोकप्रियता तेजी से और नाटकीय रूप से गिरी। उन्हें एक राष्ट्रीय नायक के बजाय एक खतरनाक कट्टरपंथी और ईशनिंदक के रूप में देखा जाने लगा।
- संस्थापक पिता द्वारा अलगाव: कई संस्थापक पिता, जिन्होंने कभी उनकी प्रशंसा की थी (जैसे जॉन एडम्स, पैट्रिक हेनरी), अब उनसे दूरी बनाने लगे। जॉन एडम्स ने टिप्पणी की कि “पेन की पुस्तक में जितना नुकसान है, उतना किसी और पुस्तक में नहीं है।” जॉर्ज वाशिंगटन ने भी पेन से दूरी बना ली।
- सामाजिक बहिष्कार: जब पेन 1802 में अमेरिका लौटे, तो उन्हें सामाजिक रूप से बहिष्कृत कर दिया गया। उन्हें “कुख्यात नास्तिक” के रूप में देखा जाता था और कई लोगों ने उनके साथ व्यवहार करने से इनकार कर दिया। उन्हें अक्सर अपने अंतिम वर्षों में गरीबी और एकांत में रहना पड़ा।
- मृत्यु पर प्रभाव: 1809 में जब उनकी मृत्यु हुई, तो उनके अंतिम संस्कार में केवल छह लोग ही शामिल हुए, जो उनके सार्वजनिक जीवन के अंत में उनकी स्थिति का एक दुखद प्रतिबिंब था।
- ब्रिटेन में दमन और राजद्रोह का आरोप:
- ब्रिटेन में, जहां वे पहले से ही “द राइट्स ऑफ मैन” के कारण राजद्रोह के आरोपी थे, “द एज ऑफ रीज़न” ने सरकार के हाथों में एक और हथियार दे दिया।
- ब्रिटिश सरकार ने पुस्तक के प्रसार को रोकने के लिए और भी कड़े कानून लागू किए और इसके विक्रेताओं और वितरकों पर मुकदमा चलाया।
- नाम पर स्थायी दाग:
- पीढ़ियों तक, “थॉमस पेन” का नाम अमेरिका में एक विवादास्पद और विभाजनकारी व्यक्ति के रूप में जुड़ा रहा। उनके धार्मिक विचारों ने उनके राजनीतिक और क्रांतिकारी योगदान पर भारी पड़ गया।
- उन्हें अक्सर इतिहास की किताबों से बाहर रखा गया या उनके धार्मिक विचारों के कारण नकारात्मक रूप से प्रस्तुत किया गया।
हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पेन ने इन हमलों के बावजूद कभी भी अपने विचारों से समझौता नहीं किया। उनका मानना था कि वे सत्य बोल रहे हैं और लोगों को अंधविश्वास से मुक्ति दिला रहे हैं, भले ही इसकी व्यक्तिगत कीमत कुछ भी हो।
आज, आधुनिक विद्वान “द एज ऑफ रीज़न” को मुक्त विचार, तर्कवाद और धर्मनिरपेक्षता के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज के रूप में देखते हैं। लेकिन 18वीं सदी के अंत में, इसने निस्संदेह थॉमस पेन की प्रतिष्ठा को धूमिल कर दिया और उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में छोड़ दिया जिसने अपनी सबसे बड़ी सफलता के बाद सबसे गहरी व्यक्तिगत गिरावट का अनुभव किया।
थॉमस पेन की धार्मिक स्वतंत्रता और तर्कसंगतता के लिए वकालत
थॉमस पेन, अपने राजनीतिक लेखन की तरह, धार्मिक मामलों में भी स्वतंत्रता और तर्कसंगतता के प्रबल पैरोकार थे। उनकी पुस्तक “द एज ऑफ रीज़न” (The Age of Reason) उनके इन सिद्धांतों का सबसे मुखर प्रमाण है। उन्होंने न केवल सरकारों से स्वतंत्रता की बात की, बल्कि अंधविश्वास और धार्मिक हठधर्मिता से विचारों की स्वतंत्रता की भी वकालत की।
धार्मिक स्वतंत्रता के लिए वकालत:
पेन के लिए, धार्मिक स्वतंत्रता केवल चर्च और राज्य के अलगाव से कहीं अधिक थी; यह व्यक्तियों को अपनी मान्यताओं को चुनने और व्यक्त करने का मौलिक अधिकार था।
- चर्च और राज्य का पृथक्करण (Separation of Church and State):
- पेन ने दृढ़ता से तर्क दिया कि सरकार को धर्म के मामलों में कोई भूमिका नहीं निभानी चाहिए। उन्होंने देखा कि जब चर्च और राज्य आपस में जुड़े होते हैं, तो यह हमेशा उत्पीड़न, भ्रष्टाचार और संघर्ष को जन्म देता है।
- उनके अनुसार, “मनुष्य का मन ही उसका अपना चर्च है।” इसका अर्थ यह था कि धार्मिक विश्वास एक व्यक्तिगत मामला होना चाहिए, जिस पर राज्य को कोई अधिकार नहीं होना चाहिए।
- उन्होंने धार्मिक संस्थाओं को सरकारी शक्ति से मुक्त करने की वकालत की ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी अंतरात्मा के अनुसार पूजा कर सके या न कर सके।
- विविधता और सहिष्णुता (Diversity and Tolerance):
- पेन ने धार्मिक सहिष्णुता का समर्थन किया। उन्होंने विभिन्न विश्वास प्रणालियों के लोगों के सह-अस्तित्व की वकालत की, बशर्ते वे एक-दूसरे के अधिकारों का उल्लंघन न करें।
- उनका मानना था कि धार्मिक विचार व्यक्तिगत पसंद का विषय होना चाहिए, और किसी को भी उनके विश्वासों के कारण सताया या दंडित नहीं किया जाना चाहिए।
- स्वैच्छिक धर्म (Voluntary Religion):
- पेन का मानना था कि धार्मिक आस्था स्वेच्छा से आनी चाहिए, न कि जबरदस्ती या सामाजिक दबाव से। उन्होंने धार्मिक शिक्षा और विश्वास में किसी भी प्रकार के दबाव का विरोध किया।
- उनके लिए, एक सच्चा विश्वास वही था जो व्यक्तिगत तर्क और विवेक से उभरा हो, न कि पारंपरिक या संस्थागत हठधर्मिता से।
तर्कसंगतता के लिए वकालत:
पेन ज्ञानोदय के सच्चे पुत्र थे और उन्होंने मानव तर्क की शक्ति में गहरा विश्वास किया। उन्होंने तर्कसंगतता को सत्य, ज्ञान और मुक्ति के प्राथमिक मार्ग के रूप में देखा।
- अंधविश्वास और हठधर्मिता का खंडन (Rejection of Superstition and Dogma):
- पेन ने बाइबिल की शाब्दिक व्याख्याओं, चमत्कारों और धार्मिक रहस्यों को अंधविश्वास और असत्य बताया। उन्होंने लोगों से तर्कहीन विश्वासों को त्यागने और अपनी बुद्धि का उपयोग करने का आग्रह किया।
- उनका मानना था कि इन अंधविश्वासों ने मानव प्रगति को रोका है और लोगों को अज्ञानता के अंधेरे में रखा है।
- विज्ञान और प्रकृति का सम्मान (Respect for Science and Nature):
- पेन ने कहा कि ईश्वर को समझने का सच्चा तरीका प्रकृति का अध्ययन करना है, न कि प्राचीन धार्मिक ग्रंथों का। उनके लिए, वैज्ञानिक खोजें और ब्रह्मांड के प्राकृतिक नियम ही ईश्वर की रचना और उसकी महानता का वास्तविक प्रमाण थे।
- उन्होंने लोगों से कहा कि वे खगोल विज्ञान, भौतिकी और अन्य विज्ञानों का अध्ययन करें, क्योंकि ये ही “ईश्वर की सच्ची बाइबिल” हैं।
- व्यक्तिगत विवेक और आलोचनात्मक सोच (Individual Reason and Critical Thinking):
- पेन ने प्रत्येक व्यक्ति को अपने विवेक और तर्क का उपयोग करके धार्मिक और नैतिक सत्य को खोजने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने लोगों से धर्मगुरुओं या स्थापित संस्थानों द्वारा उन्हें बताए गए विचारों को बिना सोचे-समझे स्वीकार करने के बजाय, आलोचनात्मक रूप से सोचने का आग्रह किया।
- उनके लिए, ज्ञान कोई ऐसी चीज नहीं थी जिसे कुछ विशेष लोगों द्वारा नियंत्रित किया जाए, बल्कि यह हर व्यक्ति के लिए सुलभ होना चाहिए जो तर्क का उपयोग करने को तैयार हो।
- नैतिकता का तर्कसंगत आधार (Rational Basis for Morality):
- पेन ने तर्क दिया कि नैतिकता का आधार धार्मिक भय या दैवीय आज्ञाएँ नहीं होनी चाहिए, बल्कि मानव तर्क और सामाजिक सद्भाव के सिद्धांत होने चाहिए। उन्होंने सार्वभौमिक नैतिक मूल्यों में विश्वास किया जिन्हें तर्क से समझा जा सकता है और जो मानवीय गरिमा को बढ़ावा देते हैं।
पेन की धार्मिक स्वतंत्रता और तर्कसंगतता के लिए वकालत उनके राजनीतिक दर्शन का एक अभिन्न अंग थी। उनका मानना था कि एक सच्चा स्वतंत्र समाज वह है जहाँ लोग न केवल राजनीतिक रूप से मुक्त हों, बल्कि अपने विचारों में भी स्वतंत्र हों, विशेषकर धार्मिक मामलों में। भले ही उनके विचारों ने उन्हें उनके जीवनकाल में भारी आलोचना और व्यक्तिगत कष्ट दिए, उन्होंने आधुनिक धर्मनिरपेक्षता, मुक्त विचार और नागरिक स्वतंत्रता की नींव रखने में मदद की।
फ्रांस से अमेरिका में थॉमस पेन की वापसी और बदलते राजनीतिक परिदृश्य
फ्रांस में लगभग 15 साल बिताने के बाद, जिनमें से कई वर्ष अशांति और व्यक्तिगत कष्टों से भरे थे (विशेषकर आतंक के शासन के दौरान उनकी कैद), थॉमस पेन 1802 में संयुक्त राज्य अमेरिका लौट आए। हालाँकि, उन्होंने जिस अमेरिका को छोड़ा था, वह अब वैसा नहीं था, और बदलता राजनीतिक परिदृश्य उनके लिए चुनौतीपूर्ण साबित हुआ।
फ्रांस से अमेरिका में वापसी (1802):
- कड़वे अनुभव और स्वास्थ्य: पेन ने फ्रांस को शारीरिक और मानसिक रूप से टूटे हुए व्यक्ति के रूप में छोड़ा। जेल में बिताए गए समय और लगातार संघर्षों ने उनके स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित किया था। उन्हें अपने जीवन के प्रति वाशिंगटन प्रशासन की कथित उदासीनता से भी गहरी कड़वाहट थी।
- जेफरसन का निमंत्रण: पेन अमेरिका के राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन के निमंत्रण पर लौटे थे। जेफरसन, जो स्वयं पेन के राजनीतिक विचारों (विशेषकर “कॉमन सेंस” और “राइट्स ऑफ मैन” में व्यक्त किए गए) के प्रशंसक थे और एक डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन के रूप में संघीयवादियों के विरोधी थे, पेन को अमेरिका में वापस पाकर प्रसन्न थे। जेफरसन ने पेन के योगदान को मान्यता दी और उन्हें वित्तीय सहायता का भी प्रस्ताव दिया।
- अमेरिका वापसी की उम्मीदें: पेन को उम्मीद थी कि अमेरिका में उनका स्वागत एक राष्ट्रीय नायक के रूप में किया जाएगा और वे नए गणराज्य में अपनी भूमिका निभाते रहेंगे।
बदलते अमेरिकी राजनीतिक परिदृश्य:
जब पेन अमेरिका लौटे, तो देश राजनीतिक और वैचारिक रूप से बहुत बदल चुका था:
- राजनीतिक ध्रुवीकरण और दलीय राजनीति का उदय:
- 1790 के दशक में, अमेरिका में स्पष्ट रूप से दो प्रमुख राजनीतिक दल उभरे थे:
- संघवादी (Federalists): अलेक्जेंडर हैमिल्टन और जॉन एडम्स के नेतृत्व में, ये एक मजबूत केंद्रीय सरकार, औद्योगिक विकास और ब्रिटेन के साथ घनिष्ठ संबंधों के पक्षधर थे। वे अक्सर अभिजात वर्ग और परंपरावादी मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते थे।
- डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन (Democratic-Republicans): थॉमस जेफरसन और जेम्स मैडिसन के नेतृत्व में, ये राज्य अधिकारों, कृषि अर्थव्यवस्था और फ्रांस के साथ अधिक सहानुभूतिपूर्ण संबंधों के पक्षधर थे। वे आम आदमी और अधिक लोकतांत्रिक आदर्शों का प्रतिनिधित्व करते थे।
- पेन के लौटने पर, उन्होंने खुद को इस तीव्र दलीय विभाजन के बीच पाया।
- 1790 के दशक में, अमेरिका में स्पष्ट रूप से दो प्रमुख राजनीतिक दल उभरे थे:
- फ्रांसीसी क्रांति पर अमेरिकी दृष्टिकोण में बदलाव:
- अमेरिकी क्रांति के शुरुआती दिनों में, फ्रांसीसी क्रांति को अमेरिकी आदर्शों के एक विस्तार के रूप में देखा गया था।
- हालाँकि, आतंक के शासन (Reign of Terror) की हिंसा, फ्रांसीसी क्रांति के बढ़ते कट्टरपंथ और फ्रांस के साथ अमेरिकी तटस्थता की नीति ने कई अमेरिकियों को फ्रांसीसी क्रांति से दूर कर दिया था। पेन, जो फ्रांसीसी क्रांति के प्रबल समर्थक थे, को अब कुछ हलकों में एक कट्टरपंथी और यहां तक कि अराजकतावादी के रूप में देखा जाने लगा था।
- धार्मिक रूढ़िवाद का पुनरुत्थान:
- पेन की पुस्तक “द एज ऑफ रीज़न” (जो उनके कैद के दौरान लिखी गई थी और 1794-1795 में प्रकाशित हुई थी) ने अमेरिका में धार्मिक भावनाओं को गहरा आघात पहुँचाया था। यह एक बेहद धार्मिक समाज था, जहाँ बाइबिल को पवित्र माना जाता था।
- पेन के ईश्वरवादी विचार, जिन्होंने बाइबिल और संगठित धर्म की आलोचना की थी, ने उन्हें “नास्तिक” के रूप में ब्रांडेड कर दिया। उनके लौटने पर, कई पल्पिट (चर्च के मंच) से उनके खिलाफ उपदेश दिए गए, और उन्हें जनता द्वारा बहिष्कृत कर दिया गया। उनकी क्रांतिकारी प्रतिष्ठा पर उनके धार्मिक विचारों ने भारी पड़ गया।
- जॉर्ज वाशिंगटन की विरासत:
- जॉर्ज वाशिंगटन 1799 में अपनी मृत्यु के बाद एक पूजनीय राष्ट्रीय प्रतीक बन चुके थे। जब पेन फ्रांस में अपनी कैद के लिए वाशिंगटन की कथित निष्क्रियता पर गुस्से में थे, तो उन्होंने वाशिंगटन पर कठोर शब्दों में हमला किया (एक पम्फलेट में)।
- यह हमला उस समय के अमेरिकी समाज में अकल्पनीय था और इसने पेन की शेष लोकप्रियता को भी समाप्त कर दिया। अधिकांश अमेरिकियों के लिए, वाशिंगटन की आलोचना अक्षम्य थी।
- बदलती राजनीतिक प्राथमिकताएँ:
- अमेरिकी क्रांति के उग्र आदर्शवाद के बजाय, नए राष्ट्र की प्राथमिकता अब स्थिरता, विकास और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को स्थापित करना था। पेन के कट्टरपंथी और अक्सर विवादास्पद विचार इन नई प्राथमिकताओं के अनुरूप नहीं थे।
पेन ने अमेरिका लौटने पर कुछ समय जेफरसन के साथ बिताया और सार्वजनिक जीवन में फिर से प्रवेश करने की कोशिश की, उन्होंने जेफरसन के समाचार पत्र “द नेशनल इंटेलिजेंसर” में कुछ लेख भी लिखे। हालांकि, उन्हें जल्द ही एहसास हो गया कि उनके सबसे प्रभावशाली दिन बीत चुके थे। अमेरिका, जिसे उन्होंने स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया था, ने अब उन्हें उस तरह से गले नहीं लगाया जिसकी उन्होंने उम्मीद की थी, और उनके अंतिम वर्ष एकांत और उपेक्षा में बीते।
जेफरसन प्रशासन के साथ थॉमस पेन के संबंध और उनकी घटती लोकप्रियता
फ्रांस से अमेरिका लौटने के बाद, थॉमस पेन ने राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन के प्रशासन के साथ एक जटिल संबंध का अनुभव किया। जेफरसन ने उनका स्वागत किया, लेकिन पेन की घटती लोकप्रियता और उनके विवादास्पद विचारों ने उन्हें अमेरिकी राजनीतिक परिदृश्य में एक प्रभावी भूमिका निभाने से रोक दिया।
जेफरसन प्रशासन के साथ संबंध:
- जेफरसन का निमंत्रण और स्वागत:
- थॉमस जेफरसन, जो स्वयं पेन के विचारों (विशेषकर “कॉमन सेंस” और “द राइट्स ऑफ मैन” में व्यक्त किए गए) के प्रबल प्रशंसक थे, ने पेन को अमेरिका लौटने के लिए व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित किया था। जेफरसन एक डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन थे और पेन के क्रांतिकारी और लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रति सहानुभूति रखते थे।
- जेफरसन ने पेन के योगदान को मान्यता दी और उन्हें वित्तीय सहायता का भी प्रस्ताव दिया, जिसमें वाशिंगटन डी.सी. में उनके रहने की व्यवस्था और कुछ सरकारी भुगतान शामिल थे। यह पेन के लिए एक राहत थी, क्योंकि वे फ्रांस से वित्तीय और शारीरिक रूप से टूटकर लौटे थे।
- जेफरसन ने पेन को अपने समाचार पत्र “द नेशनल इंटेलिजेंसर” (The National Intelligencer) में लिखने के लिए प्रोत्साहित किया, जहाँ पेन ने जेफरसन के प्रशासन का समर्थन किया और संघीयवादियों की आलोचना की।
- आपसी सम्मान, लेकिन सीमित प्रभाव:
- पेन और जेफरसन के बीच वैचारिक समानताएं थीं, खासकर गणतंत्रवाद, लोकप्रिय संप्रभुता और चर्च व राज्य के अलगाव के संबंध में।
- हालांकि, पेन का प्रभाव अब सीमित था। जेफरसन, एक चतुर राजनीतिज्ञ के रूप में, पेन की अत्यधिक विवादास्पद छवि से अवगत थे, खासकर “द एज ऑफ रीज़न” के प्रकाशन के बाद। उन्होंने पेन को औपचारिक सरकारी पद नहीं दिया, शायद इसलिए कि वे पेन के धार्मिक विचारों से जुड़े विवाद से बचना चाहते थे।
पेन की घटती लोकप्रियता के कारण:
पेन की लोकप्रियता, जो कभी अमेरिकी क्रांति के दौरान आसमान छू रही थी, उनके अमेरिका लौटने पर लगभग न के बराबर हो चुकी थी, और इसके कई कारण थे:
- “द एज ऑफ रीज़न” के धार्मिक विचार:
- यह उनकी घटती लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण था। पेन के ईश्वरवादी विचार, जिन्होंने बाइबिल और संगठित ईसाई धर्म की तीखी आलोचना की थी, ने उन्हें एक अत्यधिक धार्मिक अमेरिकी समाज में एक “नास्तिक” के रूप में ब्रांडेड कर दिया।
- चर्चों और धार्मिक नेताओं ने उनके खिलाफ जोरदार प्रचार किया, उन्हें अनैतिक और खतरनाक व्यक्ति के रूप में चित्रित किया। आम लोग, जो धार्मिक विश्वासों से गहराई से जुड़े थे, उनसे दूर हो गए।
- जॉर्ज वाशिंगटन पर हमला:
- फ्रांस में अपनी कैद के दौरान, पेन को लगा कि जॉर्ज वाशिंगटन ने उनकी रिहाई के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए। इस कड़वाहट के कारण, उन्होंने 1796 में एक तीखा पम्फलेट लिखा, जिसमें वाशिंगटन पर “अक्षमता,” “कृतघ्नता” और “अमीरों का दोस्त और गरीबों का दुश्मन” होने का आरोप लगाया।
- वाशिंगटन उस समय एक पूजनीय राष्ट्रीय नायक थे, और उन पर इस तरह का व्यक्तिगत हमला अमेरिकी जनता के लिए अक्षम्य था। इस हमले ने पेन की शेष लोकप्रियता को भी समाप्त कर दिया और उन्हें एक कड़वे और ईर्ष्यालु व्यक्ति के रूप में देखा जाने लगा।
- फ्रांसीसी क्रांति के साथ संबंध:
- अमेरिकी जनता का फ्रांसीसी क्रांति के प्रति उत्साह आतंक के शासन की हिंसा और फ्रांस के साथ अमेरिकी संबंधों की जटिलताओं के कारण कम हो गया था। पेन, जो फ्रांसीसी क्रांति के प्रबल समर्थक थे, को अब कुछ हलकों में एक कट्टरपंथी और यहां तक कि अराजकतावादी के रूप में देखा जाने लगा था।
- बदलते राजनीतिक माहौल:
- अमेरिकी क्रांति के बाद, देश स्थिरता और विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहा था। पेन के कट्टरपंथी विचार, जो अक्सर स्थापित संस्थानों को चुनौती देते थे, अब उतने प्रासंगिक या वांछनीय नहीं माने जाते थे।
- दलीय राजनीति के उदय ने भी उन्हें किनारे कर दिया, क्योंकि उनके विचार किसी भी प्रमुख दल के साथ पूरी तरह से फिट नहीं बैठते थे।
अंतिम वर्ष:
पेन ने अपने अंतिम वर्ष न्यूयॉर्क में अपनी संपत्ति (जो उन्हें क्रांति के लिए दी गई थी) पर बिताए, लेकिन वे अक्सर बीमार रहते थे और गरीबी में रहते थे। उन्हें सामाजिक रूप से बहिष्कृत कर दिया गया था और उनके कुछ ही दोस्त थे। 8 जून, 1809 को उनकी मृत्यु हो गई, और उनके अंतिम संस्कार में केवल मुट्ठी भर लोग ही शामिल हुए, जो उनके जीवन के अंत में उनकी दुखद स्थिति का प्रतीक था।
जेफरसन ने पेन का समर्थन किया और उनके योगदान को महत्व दिया, पेन की अपनी विवादास्पदता और बदलती अमेरिकी जनता की राय ने उन्हें एक प्रभावी सार्वजनिक व्यक्ति के रूप में अपनी पुरानी भूमिका फिर से हासिल करने से रोक दिया।
राजनीतिक हमलों और व्यक्तिगत कठिनाइयों का सामना
थॉमस पेन का जीवन, विशेषकर अमेरिकी क्रांति के बाद और उनके अंतिम वर्षों में, राजनीतिक हमलों और व्यक्तिगत कठिनाइयों का एक निरंतर सिलसिला था। जिस व्यक्ति ने अपनी कलम से दो क्रांतियों को प्रज्वलित किया था, उसे अपने जीवन के अंत में अक्सर उपेक्षा, गरीबी और तिरस्कार का सामना करना पड़ा।
राजनीतिक हमले:
- “द एज ऑफ रीज़न” पर विवाद:
- यह पेन के जीवन में सबसे बड़ा राजनीतिक और सामाजिक हमला था। उनकी पुस्तक, जिसने बाइबिल की शाब्दिक व्याख्या और संगठित धर्मों की आलोचना की, ने उन्हें तत्कालीन अमेरिकी समाज में “नास्तिक” के रूप में ब्रांडेड कर दिया।
- धार्मिक नेताओं और रूढ़िवादी प्रेस ने पेन के खिलाफ एक व्यापक और दुर्भावनापूर्ण अभियान चलाया, उन्हें अनैतिक और खतरनाक व्यक्ति के रूप में चित्रित किया। इस हमले ने उनकी सार्वजनिक प्रतिष्ठा को पूरी तरह से नष्ट कर दिया।
- जॉर्ज वाशिंगटन पर हमला:
- फ्रांस में अपनी कैद से रिहा होने के बाद, पेन को जॉर्ज वाशिंगटन और अमेरिकी प्रशासन द्वारा कथित परित्याग के लिए गहरा गुस्सा था। उन्होंने 1796 में एक तीखा पम्फलेट लिखा, जिसमें वाशिंगटन पर कृतघ्नता और कुप्रबंधन का आरोप लगाया।
- यह अमेरिकी जनता के लिए अक्षम्य था, क्योंकि वाशिंगटन एक पूजनीय राष्ट्रीय नायक थे। इस हमले ने पेन की शेष लोकप्रियता को भी समाप्त कर दिया और उन्हें एक कड़वे, ईर्ष्यालु और देशद्रोही व्यक्ति के रूप में देखा जाने लगा।
- ब्रिटिश सरकार द्वारा राजद्रोह का आरोप:
- ब्रिटेन में, उनकी पुस्तक “द राइट्स ऑफ मैन” के कारण उन पर 1792 में ही राजद्रोह का आरोप लग चुका था। उन्हें दोषी ठहराया गया था, लेकिन तब तक वे फ्रांस भाग चुके थे। ब्रिटिश सरकार ने उनके लेखन के प्रसार को रोकने के लिए कड़ी सेंसरशिप और दमन अभियान चलाया।
- दलीय राजनीति में अलगाव:
- जब वे 1802 में अमेरिका लौटे, तो देश की राजनीतिक भावना बदल चुकी थी। संघीयवादी और डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन के बीच तीव्र दलीय ध्रुवीकरण था। पेन के कट्टरपंथी विचार अक्सर किसी भी पक्ष के साथ पूरी तरह फिट नहीं बैठते थे, और उनकी विवादास्पद छवि के कारण दोनों पक्ष उनसे दूरी बनाए रखते थे।
व्यक्तिगत कठिनाइयाँ:
- वित्तीय संघर्ष:
- अपने सबसे प्रभावशाली लेखन से व्यक्तिगत लाभ कमाने से इनकार करने के कारण पेन ने लगातार वित्तीय कठिनाइयों का सामना किया। उन्होंने “कॉमन सेंस” और “द अमेरिकन क्राइसिस” से होने वाली आय युद्ध के प्रयासों के लिए दान कर दी थी।
- युद्ध के बाद उन्हें अपनी सेवाओं के लिए कोई पर्याप्त पेंशन या पुरस्कार नहीं मिला। उन्हें मिली न्यूयॉर्क की संपत्ति (न्यू रोशेल में) भी पर्याप्त आय नहीं देती थी, और उन्हें अक्सर गरीबी में रहना पड़ता था।
- खराब स्वास्थ्य:
- फ्रांस में कारावास के दौरान हुई गंभीर बीमारी ने पेन के स्वास्थ्य को स्थायी रूप से प्रभावित किया। वे अपने जीवन के अंतिम वर्षों में अक्सर कमजोर और बीमार रहते थे।
- उनकी शारीरिक गिरावट ने उनकी मानसिक स्थिति को भी प्रभावित किया होगा, जिससे उनका अकेलापन और हताशा बढ़ गई होगी।
- सामाजिक अलगाव और अकेलापन:
- “द एज ऑफ रीज़न” और वाशिंगटन पर उनके हमलों के बाद, पेन को व्यापक सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा। उनके कई पुराने दोस्त और सहयोगी उनसे दूर हो गए।
- उनके अंतिम वर्षों में, वे न्यूयॉर्क शहर और न्यू रोशेल में अपनी संपत्ति के बीच अकेले रहते थे। कुछ ही लोग उनसे मिलने आते थे या उनकी परवाह करते थे।
- पारिवारिक जीवन में असफलता:
- पेन का व्यक्तिगत जीवन भी दुखद रहा। उनकी पहली पत्नी और बच्चा प्रसव के दौरान मर गए थे। उनकी दूसरी शादी असफल रही और वे अलग हो गए। उनके कोई बच्चे नहीं थे।
थॉमस पेन की मृत्यु 8 जून, 1809 को न्यूयॉर्क शहर में हुई, जिसमें केवल मुट्ठी भर लोग ही शामिल हुए थे। यह उनके जीवन के अंत में उनकी दुखद स्थिति का एक मार्मिक प्रतिबिंब था – एक व्यक्ति जिसने एक राष्ट्र को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया, उसे अंततः अपने ही देश में उपेक्षा और बदनामी का सामना करना पड़ा।
थॉमस पेन ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष (1802 से 1809) निराशा, गरीबी और गंभीर स्वास्थ्य चुनौतियों के बीच बिताए। जिस व्यक्ति ने अपनी कलम से एक क्रांति को प्रज्वलित किया था, उसे अब अपने ही देश में उपेक्षा और बदनामी का सामना करना पड़ा।
जीवन के अंतिम वर्ष: उपेक्षा और एकांत
जब थॉमस पेन 1802 में फ्रांस से अमेरिका लौटे, तो उन्हें राष्ट्रपति जेफरसन ने गर्मजोशी से आमंत्रित किया था, लेकिन आम जनता और मीडिया ने उन्हें लगभग पूरी तरह से नकार दिया था। उनके अंतिम वर्ष मुख्य रूप से न्यूयॉर्क शहर में और न्यूयॉर्क के न्यू रोशेल में उनकी संपत्ति (जो उन्हें अमेरिकी क्रांति के लिए दी गई थी) पर एकांत में बीते।
- सामाजिक बहिष्कार: “द एज ऑफ रीज़न” में उनके धार्मिक विचारों और जॉर्ज वाशिंगटन पर उनके तीखे हमले ने उन्हें अमेरिकी समाज में एक “नास्तिक” और “अनैतिक” व्यक्ति के रूप में स्थापित कर दिया था। कई पूर्व मित्र और सहयोगी उनसे दूरी बनाने लगे। चर्चों से उनके खिलाफ तीखे उपदेश दिए जाते थे।
- सार्वजनिक जीवन से अलगाव: राजनीतिक रूप से सक्रिय रहने की उनकी शुरुआती उम्मीदें ध्वस्त हो गईं। उन्हें अब प्रमुख राजनीतिक बहसों में शामिल नहीं किया जाता था, और उनके विचार, जो कभी क्रांतिकारी और प्रेरक थे, अब कई लोगों द्वारा बहुत कट्टरपंथी माने जाते थे।
- कुछ वफादार मित्र: इन कठिनाइयों के बावजूद, कुछ वफादार मित्र और प्रशंसक उनके साथ रहे, जिनमें जेफरसन, जेम्स मोनरो और क्वेकर्स का एक छोटा समूह शामिल था। हालांकि, उनकी संख्या बहुत कम थी।
- गरीबी: पेन ने अपनी कमाई को क्रांतियों के लिए दान कर दिया था और उन्हें कभी भी पर्याप्त वित्तीय पुरस्कार नहीं मिला। अपनी वृद्धावस्था में, वे अक्सर वित्तीय संकट में रहते थे, और उन्हें अपने रहने के खर्चों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता था।
स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ:
पेन के अंतिम वर्ष लगातार बिगड़ते स्वास्थ्य से चिह्नित थे, जो उनके फ्रांस में बिताए कठिन समय का परिणाम था।
- फ्रांस में कारावास का स्थायी प्रभाव: लक्ज़मबर्ग जेल में लगभग दस महीने का कारावास, जहाँ उन्हें बीमारी और कुपोषण का सामना करना पड़ा था, ने उनके शरीर को स्थायी रूप से कमजोर कर दिया था। उन्हें शायद टाइफस या किसी अन्य गंभीर संक्रमण का सामना करना पड़ा था जिससे वे कभी पूरी तरह से उबर नहीं पाए।
- शराब की समस्या: कुछ ऐतिहासिक खातों के अनुसार, पेन ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में शराब का अत्यधिक सेवन करना शुरू कर दिया था। यह संभवतः उनके एकांत, निराशा और शारीरिक दर्द से निपटने का एक तरीका था। शराब ने उनके पहले से ही कमजोर स्वास्थ्य को और खराब कर दिया होगा।
- वृद्धावस्था संबंधी बीमारियाँ: एक व्यक्ति के रूप में जो 72 वर्ष की आयु तक जीवित रहा (उस समय के मानकों के अनुसार यह काफी लंबी उम्र थी), उन्हें निश्चित रूप से वृद्धावस्था से जुड़ी कई बीमारियों का सामना करना पड़ा होगा। इसमें शारीरिक दुर्बलता और विभिन्न आंतरिक अंग प्रणालियों की विफलता शामिल हो सकती है।
- गठिया और अन्य पुरानी स्थितियाँ: उपलब्ध जानकारी सीमित है, लेकिन संभव है कि उन्हें गठिया या अन्य पुरानी दर्दनाक स्थितियों का भी सामना करना पड़ा हो, जो उनके दैनिक जीवन को और कठिन बनाती थीं।
मृत्यु:
थॉमस पेन का निधन 8 जून, 1809 को न्यूयॉर्क शहर में हुआ। उनकी मृत्यु गरीबी और सामाजिक एकांत की स्थिति में हुई। उनके अंतिम संस्कार में केवल छह लोग ही शामिल हुए, जिनमें कुछ वफादार मित्र और एक अफ्रीकी-अमेरिकी परिवार के सदस्य थे। उनके धार्मिक विचारों के कारण उन्हें ईसाई कब्रिस्तान में दफनाने से भी इनकार कर दिया गया था, और उन्हें अपनी न्यू रोशेल संपत्ति पर दफनाया गया था।
पेन के अंतिम वर्ष उनके जीवन की विडंबना को दर्शाते हैं: एक व्यक्ति जिसने स्वतंत्रता और न्याय के लिए अथक संघर्ष किया, उसे अपने जीवन के अंत में उसी समाज द्वारा त्याग दिया गया जिसकी स्थापना में उसने मदद की थी। हालांकि, इतिहास ने बाद में उनके अमूल्य योगदान को फिर से पहचाना और उन्हें अमेरिकी और वैश्विक क्रांतियों के एक सच्चे वास्तुकार के रूप में सम्मानित किया।
अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांतियों पर थॉमस पेन के विचारों का स्थायी प्रभाव
थॉमस पेन के विचार, जो उनकी शक्तिशाली और प्रेरक लेखन शैली के माध्यम से व्यक्त किए गए थे, ने अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांतियों के पाठ्यक्रम को आकार देने और उनके बाद के प्रभाव को निर्धारित करने में एक स्थायी भूमिका निभाई। भले ही उनके जीवनकाल में उन्हें अक्सर विवाद और उपेक्षा का सामना करना पड़ा, उनके सिद्धांत आधुनिक लोकतांत्रिक सरकारों और मानवाधिकारों की अवधारणा की आधारशिला बने हुए हैं।
अमेरिकी क्रांति पर स्थायी प्रभाव:
- स्वतंत्रता के लिए जन-समर्थन को प्रज्वलित करना:
- पेन की पुस्तक “कॉमन सेंस” (Common Sense) (1776) ने अमेरिकी उपनिवेशवादियों के मन में स्वतंत्रता के विचार को स्पष्ट और सुलभ बनाया। इससे पहले, कई लोग अभी भी ब्रिटेन के साथ सुलह की उम्मीद कर रहे थे। पेन ने तर्क दिया कि राजशाही एक निरंकुश और तर्कहीन संस्था है, और उपनिवेशों के लिए स्वतंत्रता ही एकमात्र तार्किक विकल्प है।
- यह पुस्तक इतनी प्रभावशाली थी कि इसे अमेरिकी क्रांति की चिंगारी माना जाता है, जिसने आम लोगों को स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया।
- लोकतांत्रिक गणराज्य की नींव:
- पेन ने वंशानुगत राजशाही के बजाय एक लोकतांत्रिक गणराज्य की वकालत की, जहाँ सरकार लोगों द्वारा चुनी जाती है और उनके प्रति जवाबदेह होती है। उनके विचार अमेरिकी संविधान के निर्माण और एक प्रतिनिधि सरकार की स्थापना के लिए एक महत्वपूर्ण वैचारिक आधार प्रदान करते थे।
- उन्होंने लोकप्रिय संप्रभुता के सिद्धांत को मजबूत किया, यह तर्क देते हुए कि सत्ता का अंतिम स्रोत लोग हैं।
- मानवाधिकारों की अवधारणा का प्रसार:
- यद्यपि “द राइट्स ऑफ मैन” फ्रांसीसी क्रांति के जवाब में लिखी गई थी, इसके मानवाधिकारों के सार्वभौमिक सिद्धांतों ने अमेरिकी राजनीतिक विचार को और मजबूत किया। इसने अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा में निहित “अहरणीय अधिकारों” (inalienable rights) की अवधारणा को व्यापक बनाया।
- आम आदमी की आवाज:
- पेन ने अपनी सरल और सीधी भाषा के माध्यम से राजनीतिक विचारों को आम आदमी तक पहुँचाया। उन्होंने राजनीतिक बहस को अभिजात वर्ग के दायरे से बाहर निकालकर जनता के बीच ला दिया, जिससे अमेरिकी लोकतंत्र की समावेशी प्रकृति को बढ़ावा मिला।
फ्रांसीसी क्रांति पर स्थायी प्रभाव:
- क्रांति के सिद्धांतों का बचाव और स्पष्टीकरण:
- पेन की पुस्तक “द राइट्स ऑफ मैन” (The Rights of Man) (1791) ने एडमंड बर्क की आलोचना के खिलाफ फ्रांसीसी क्रांति के सिद्धांतों का जोरदार बचाव किया। इसने क्रांति के पीछे के ज्ञानोदय के विचारों – स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे – को स्पष्ट किया।
- यह पुस्तक फ्रांसीसी क्रांतिकारियों के लिए एक वैचारिक मार्गदर्शक बन गई, जिसने उन्हें अपने आंदोलन को न्यायसंगत ठहराने में मदद की।
- मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता पर जोर:
- पेन ने तर्क दिया कि मानवाधिकार किसी विशेष राष्ट्र या परंपरा तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सार्वभौमिक हैं और सभी मनुष्यों पर लागू होते हैं। इस विचार ने फ्रांसीसी क्रांति के “मानव और नागरिक के अधिकारों की घोषणा” (Declaration of the Rights of Man and of the Citizen) के सिद्धांतों को मजबूत किया और इसे एक वैश्विक आंदोलन के रूप में देखा।
- वंशानुगत शासन का खंडन:
- पेन ने वंशानुगत राजशाही और कुलीनता को तर्कहीन और अन्यायपूर्ण बताया। उनके विचारों ने फ्रांसीसी क्रांति के राजशाही को उखाड़ फेंकने और एक गणराज्य स्थापित करने के अभियान को वैचारिक समर्थन दिया।
- सामाजिक कल्याण के विचार:
- “द राइट्स ऑफ मैन” के दूसरे भाग में, पेन ने एक विस्तृत सामाजिक कल्याण प्रणाली का प्रस्ताव रखा, जिसमें गरीबों के लिए शिक्षा, पेंशन और बेरोजगारी लाभ शामिल थे। ये विचार उस समय के लिए क्रांतिकारी थे और एक आधुनिक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा की नींव रखी, जिसने भविष्य के सामाजिक सुधार आंदोलनों को प्रभावित किया।
व्यापक और स्थायी विरासत:
- आधुनिक लोकतंत्रों की नींव: पेन के विचार, विशेषकर लोकप्रिय संप्रभुता, प्रतिनिधि सरकार और मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता पर उनके जोर ने आधुनिक लोकतांत्रिक सरकारों की नींव रखी है।
- मुक्त विचार और धर्मनिरपेक्षता: “द एज ऑफ रीज़न” में उनके धार्मिक विचारों ने धार्मिक स्वतंत्रता, तर्कसंगतता और चर्च और राज्य के पृथक्करण के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम की। भले ही यह विवादास्पद था, इसने मुक्त विचार और धर्मनिरपेक्षता के विकास में योगदान दिया।
- क्रांतिकारी भावना का प्रतीक: पेन आज भी एक ऐसे व्यक्ति के रूप में याद किए जाते हैं जिन्होंने अपनी कलम का उपयोग करके यथास्थिति को चुनौती दी और मानव स्वतंत्रता और न्याय के लिए अथक संघर्ष किया। वे वैश्विक क्रांतिकारी भावना के प्रतीक बने हुए हैं।
थॉमस पेन के विचार अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांतियों के लिए केवल एक टिप्पणी नहीं थे; वे उनके प्रेरक बल थे। उन्होंने उन सिद्धांतों को व्यक्त किया जो इन क्रांतियों को परिभाषित करेंगे और दुनिया भर में स्वतंत्रता, लोकतंत्र और मानवाधिकारों के लिए भविष्य के आंदोलनों को प्रेरित करेंगे। उनकी विरासत, उनके जीवनकाल की कठिनाइयों के बावजूद, आधुनिक राजनीतिक विचार के लिए मौलिक बनी हुई है।
लोकतंत्र, मानवाधिकार और सामाजिक न्याय के लिए थॉमस पेन की वकालत
थॉमस पेन केवल क्रांतियों के उद्घोषक नहीं थे; वे लोकतंत्र, मानवाधिकार और सामाजिक न्याय के गहरे और दूरदर्शी पैरोकार थे। उनके लेखन ने इन अवधारणाओं को न केवल सैद्धांतिक रूप से परिभाषित किया, बल्कि उन्हें आम लोगों के लिए सुलभ और कार्रवाई योग्य भी बनाया।
1. लोकतंत्र के लिए वकालत:
पेन वंशानुगत राजशाही और कुलीनता के कट्टर विरोधी थे। उनके लिए, सच्चा शासन केवल लोकतंत्र में ही निहित था:
- लोकप्रिय संप्रभुता (Popular Sovereignty): पेन का मानना था कि सरकार की शक्ति का अंतिम स्रोत जनता है। उन्होंने तर्क दिया कि कोई भी व्यक्ति या परिवार जन्म के अधिकार से शासन करने के लिए योग्य नहीं होता; बल्कि, सरकार को लोगों की सहमति से स्थापित किया जाना चाहिए और उनके प्रति जवाबदेह होना चाहिए।
- प्रतिनिधि सरकार (Representative Government): उन्होंने एक गणतांत्रिक प्रणाली की वकालत की जहाँ नागरिक अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं। “कॉमन सेंस” में उन्होंने तर्क दिया कि एक छोटी सी सरकार सबसे अच्छी होती है, और एक बड़ी आबादी के लिए प्रतिनिधि प्रणाली आवश्यक है।
- संविधानवाद (Constitutionalism): पेन ने एक लिखित संविधान के महत्व पर जोर दिया जो सरकार की शक्तियों को सीमित करता है और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है। उनके लिए, संविधान लोगों और सरकार के बीच एक अनुबंध था।
- सरल और पारदर्शी शासन: उन्होंने जटिल और अस्पष्ट सरकारी संरचनाओं की आलोचना की, जो आम आदमी के लिए समझना मुश्किल था। उन्होंने एक सरल, पारदर्शी और कुशल सरकार की वकालत की जो जनता की सेवा करे।
2. मानवाधिकारों के लिए वकालत:
“द राइट्स ऑफ मैन” (The Rights of Man) पेन का मानवाधिकारों पर सबसे महत्वपूर्ण काम है, जिसने उन्हें एक वैश्विक विचारक के रूप में स्थापित किया:
- सार्वभौमिक और अहरणीय अधिकार (Universal and Inalienable Rights): पेन ने तर्क दिया कि अधिकार किसी सरकार या सम्राट द्वारा प्रदान नहीं किए जाते हैं, बल्कि वे प्रत्येक व्यक्ति के जन्मसिद्ध अधिकार हैं। ये अधिकार सार्वभौमिक हैं और सभी मनुष्यों पर लागू होते हैं, चाहे उनकी राष्ट्रीयता, धर्म या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो।
- प्राकृतिक अधिकार (Natural Rights): उन्होंने जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति (या खुशी की खोज) जैसे प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा को बढ़ावा दिया, जो किसी भी मानव कानून से पहले मौजूद हैं।
- नागरिक अधिकार (Civil Rights): पेन ने तर्क दिया कि नागरिक अधिकार प्राकृतिक अधिकारों से प्राप्त होते हैं और वे उन अधिकारों की रक्षा के लिए समाज द्वारा बनाए गए कानून हैं।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Expression): उन्होंने स्वतंत्र भाषण और प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन किया, यह मानते हुए कि ये एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक हैं।
- धार्मिक स्वतंत्रता (Religious Freedom): पेन ने चर्च और राज्य के पूर्ण पृथक्करण की वकालत की। उन्होंने तर्क दिया कि धार्मिक विश्वास एक व्यक्तिगत मामला होना चाहिए, जिस पर सरकार या किसी धार्मिक संस्था को कोई अधिकार नहीं होना चाहिए।
3. सामाजिक न्याय के लिए वकालत:
पेन के विचार केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक ही सीमित नहीं थे; उन्होंने आर्थिक और सामाजिक न्याय के लिए भी तर्क दिया, जो उस समय के लिए क्रांतिकारी था:
- संपत्ति का पुनर्वितरण (Redistribution of Wealth): “एग्रेरियन जस्टिस” (Agrarian Justice) (1797) में, पेन ने तर्क दिया कि भूमि मूल रूप से सभी मनुष्यों की साझा संपत्ति थी। उन्होंने सुझाव दिया कि जो लोग भूमि पर निजी स्वामित्व रखते हैं, उन्हें समाज को एक “भूमि का किराया” या कर देना चाहिए।
- सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा जाल (Universal Social Safety Net): उन्होंने इस “भूमि के किराए” से वित्तपोषित एक सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा जाल का प्रस्ताव रखा। इसमें शामिल था:
- वृद्धावस्था पेंशन: 50 वर्ष से अधिक आयु के सभी व्यक्तियों के लिए।
- विकलांगता लाभ: विकलांग व्यक्तियों के लिए।
- शिक्षा के लिए अनुदान: बच्चों के लिए।
- युवा वयस्कों के लिए एकमुश्त भुगतान: 21 वर्ष की आयु में, ताकि वे अपना जीवन शुरू कर सकें।
- गरीबी उन्मूलन (Poverty Alleviation): पेन का मानना था कि गरीबी एक प्राकृतिक अवस्था नहीं है, बल्कि अन्यायपूर्ण सामाजिक और आर्थिक प्रणालियों का परिणाम है। उन्होंने ऐसे उपायों की वकालत की जो समाज में सबसे कमजोर लोगों को सहायता प्रदान करें और उन्हें गरीबी से बाहर निकालें।
- प्रगतिशील कराधान के अग्रदूत: उनके विचार आधुनिक प्रगतिशील कराधान और कल्याणकारी राज्य की अवधारणाओं के अग्रदूत थे, जहाँ समाज के धनी सदस्यों को गरीबों और जरूरतमंदों का समर्थन करने में अधिक योगदान देना चाहिए।
थॉमस पेन के विचार, विशेषकर लोकतंत्र, मानवाधिकार और सामाजिक न्याय के संबंध में, उनके समय से बहुत आगे थे। उन्होंने न केवल क्रांतियों को प्रेरित किया, बल्कि उन सिद्धांतों की नींव भी रखी जिन पर आधुनिक, न्यायपूर्ण और समावेशी समाज आधारित हैं। उनकी विरासत आज भी उन लोगों के लिए प्रेरणा बनी हुई है जो स्वतंत्रता, समानता और मानवीय गरिमा के लिए संघर्ष करते हैं।
एक राजनीतिक लेखक और प्रचारक के रूप में थॉमस पेन की साहित्यिक शक्ति
थॉमस पेन की सबसे महत्वपूर्ण पहचान उनकी असाधारण साहित्यिक शक्ति थी, जिसने उन्हें एक राजनीतिक लेखक और प्रचारक के रूप में अद्वितीय बना दिया। उनकी कलम एक शक्तिशाली हथियार थी, जिसने विचारों को जन-जन तक पहुँचाया और क्रांतियों को प्रेरित किया।
1. सीधी, सुलभ और सशक्त भाषा:
पेन ने जानबूझकर ऐसी भाषा शैली अपनाई जो आम आदमी के लिए सुलभ थी। उन्होंने जटिल दार्शनिक या कानूनी शब्दावली से परहेज किया और साधारण, रोजमर्रा के शब्दों का इस्तेमाल किया। उनके वाक्य छोटे, प्रत्यक्ष और प्रभावकारी होते थे।
- उदाहरण: “ये वो समय हैं जो पुरुषों की आत्माओं को परखते हैं।” (“These are the times that try men’s souls.”) जैसी पंक्तियाँ उनकी सरलता और मार्मिकता का प्रमाण हैं, जो तुरंत पाठक के दिल और दिमाग में उतर जाती हैं।
- लोकप्रिय अपील: उनकी शैली ने सुनिश्चित किया कि उनके पम्फलेट्स को जोर से पढ़ा और सुना जा सके, जिससे निरक्षर आबादी तक भी उनका संदेश पहुँच सके। यह उस समय के प्रचार के लिए एक महत्वपूर्ण कारक था।
2. तर्क और भावना का मिश्रण (Fusion of Logic and Emotion):
पेन ने अपनी लेखन में तर्क और भावना का एक शक्तिशाली मिश्रण किया।
- अखंडनीय तर्क: उन्होंने ब्रिटिश शासन और राजशाही की वैधता पर तार्किक और सुसंगत तर्कों के साथ सवाल उठाया, जैसे कि वंशानुगत शासन की अतार्किकता या छोटे द्वीप द्वारा बड़े महाद्वीप का शासन।
- भावनात्मक अपील: साथ ही, उन्होंने देशभक्ति, न्याय की भावना और स्वतंत्रता की नैतिक अनिवार्यता के लिए भावनात्मक अपील की। उन्होंने ब्रिटिश अत्याचारों को उजागर करके लोगों के गुस्से को भड़काया और उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया।
3. अलंकारिक प्रतिभा (Rhetorical Prowess):
पेन एक मास्टर वक्ता थे, भले ही उन्होंने सीधे भाषण नहीं दिए। उनका लेखन वाक्पटुता और अलंकारिक उपकरणों से भरा था:
- रूपक और उपमाएँ: उन्होंने सरल और प्रभावी रूपकों का उपयोग किया (जैसे “एक द्वीप महाद्वीप पर शासन नहीं कर सकता”) जो उनके तर्कों को स्पष्ट करते थे।
- अलंकारिक प्रश्न: उन्होंने पाठकों को सोचने और उनके निष्कर्षों पर पहुँचने के लिए प्रेरित करने के लिए अक्सर अलंकारिक प्रश्नों का उपयोग किया।
- पुनरावृत्ति और समानांतरता: शक्तिशाली प्रभाव पैदा करने और अपने संदेश को दृढ़ करने के लिए उन्होंने पुनरावृत्ति और समानांतर वाक्यों का प्रयोग किया।
4. नैतिक स्पष्टता और नैतिक साहस (Moral Clarity and Courage):
पेन ने अपने विचारों को नैतिक स्पष्टता के साथ प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने समय की अन्यायपूर्ण प्रणालियों को “गलत” और “बुरा” कहने का साहस किया।
- राजशाही को शैतान के रूप में चित्रित करना: उन्होंने ब्रिटिश राजा जॉर्ज III को एक “शाही जानवर” और “कसाई” के रूप में चित्रित करने में संकोच नहीं किया, जिससे सुलह की किसी भी धारणा को असंभव बना दिया।
- निडरता: उन्होंने अपने विचारों के लिए व्यक्तिगत कीमत चुकाने की परवाह नहीं की, चाहे वह ब्रिटिश सरकार द्वारा राजद्रोह का आरोप हो या अमेरिकी समाज द्वारा बहिष्कार। उनकी यह निडरता उनके लेखन में भी परिलक्षित होती थी, जो उन्हें और अधिक विश्वसनीय बनाती थी।
5. समय की नब्ज पहचानना (Seizing the Kairos):
पेन की साहित्यिक शक्ति केवल उनकी शैली में नहीं थी, बल्कि सही समय पर सही संदेश देने की उनकी क्षमता में भी थी।
- “कॉमन सेंस”: यह पम्फलेट ठीक उसी समय आया जब अमेरिकी उपनिवेश स्वतंत्रता के बारे में हिचकिचा रहे थे। पेन ने जनता की सामूहिक चेतना को समझा और उसे स्वतंत्रता की ओर धकेल दिया।
- “द अमेरिकन क्राइसिस”: युद्ध के सबसे कठिन दिनों में, जब मनोबल गिरा हुआ था, पेन ने तुरंत “क्राइसिस” श्रृंखला लिखी, जिसने सैनिकों को लड़ने के लिए और नागरिकों को समर्थन बनाए रखने के लिए प्रेरित किया।
थॉमस पेन की साहित्यिक शक्ति ने उन्हें केवल एक लेखक से कहीं अधिक बना दिया; उन्होंने विचारों को आंदोलन में बदल दिया। उनकी कलम एक क्रांतिकारी शक्ति थी जिसने पुराने विश्व के विचारों को चुनौती दी और एक नए युग के लिए मार्ग प्रशस्त किया, जो लोकतंत्र, मानवाधिकार और लोकप्रिय संप्रभुता के सिद्धांतों पर आधारित था। वे वास्तव में “क्रांति के कलम” (Pen of the Revolution) के रूप में जाने जाते हैं।
इतिहास में थॉमस पेन का स्थान: एक विवादास्पद लेकिन प्रभावशाली व्यक्ति
थॉमस पेन अमेरिकी और विश्व इतिहास में एक अद्वितीय और विरोधाभासी स्थान रखते हैं। उन्हें अक्सर एक ऐसे व्यक्ति के रूप में याद किया जाता है जो अपनी असाधारण दूरदर्शिता, अपनी लेखन क्षमता और अपनी नैतिक दृढ़ता के कारण बेहद प्रभावशाली थे, लेकिन साथ ही अपने कट्टरपंथी विचारों और सामाजिक परंपराओं को चुनौती देने की हिम्मत के कारण जीवन भर विवादास्पद भी बने रहे।
एक प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में उनका स्थान:
- अमेरिकी क्रांति के बौद्धिक वास्तुकार: पेन को “अमेरिकी क्रांति के कलम” (Pen of the Revolution) के रूप में जाना जाता है। उनकी पुस्तक “कॉमन सेंस” ने लाखों उपनिवेशवादियों को ब्रिटेन से पूर्ण स्वतंत्रता की अनिवार्यता के लिए तैयार किया, जिससे जुलाई 1776 में स्वतंत्रता की घोषणा का मार्ग प्रशस्त हुआ। जॉर्ज वाशिंगटन जैसे नेताओं ने भी उनके काम की शक्ति को स्वीकार किया। युद्ध के सबसे अंधेरे दिनों में, उनकी “द अमेरिकन क्राइसिस” श्रृंखला ने सैनिकों और नागरिकों के मनोबल को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- मानवाधिकारों के वैश्विक पैरोकार: पेन ने मानवाधिकारों को सार्वभौमिक और अहरणीय बताया। उनकी पुस्तक “द राइट्स ऑफ मैन” ने फ्रांसीसी क्रांति का बचाव किया और यह तर्क दिया कि सभी मनुष्य जन्म से स्वतंत्र और समान हैं, और सरकारों का एकमात्र उद्देश्य इन अधिकारों की रक्षा करना है। यह पुस्तक दुनिया भर में मानवाधिकार आंदोलनों और लोकतांत्रिक सुधारों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन गई।
- लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक सिद्धांतों के अग्रदूत: पेन ने वंशानुगत राजशाही और कुलीनता को खारिज कर दिया, और लोकप्रिय संप्रभुता (Popular Sovereignty) और प्रतिनिधि सरकार के सिद्धांतों के लिए तर्क दिया। उनके विचार आधुनिक लोकतांत्रिक गणराज्यों की नींव बने।
- सामाजिक न्याय के दूरदर्शी विचारक: “द राइट्स ऑफ मैन” के दूसरे भाग और “एग्रेरियन जस्टिस” में, उन्होंने एक सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा जाल, वृद्धावस्था पेंशन, शिक्षा के लिए अनुदान और विकलांगता लाभ जैसे विचारों का प्रस्ताव रखा। ये विचार अपने समय से बहुत आगे थे और आधुनिक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के अग्रदूत थे।
- मुक्त विचार और तर्कवाद के प्रतीक: “द एज ऑफ रीज़न” में उनके धार्मिक विचारों ने धार्मिक स्वतंत्रता, तर्कवाद और चर्च व राज्य के पृथक्करण के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम की। उन्होंने लोगों से तर्क का उपयोग करने और अंधविश्वास को अस्वीकार करने का आग्रह किया।
एक विवादास्पद व्यक्ति के रूप में उनका स्थान:
- “नास्तिक” के रूप में बदनामी: “द एज ऑफ रीज़न” में बाइबिल और संगठित धर्म की उनकी सीधी आलोचना ने उन्हें एक अत्यधिक धार्मिक अमेरिकी समाज में एक “नास्तिक” (जो वे वास्तव में नहीं थे, वे एक ईश्वरवादी थे) के रूप में ब्रांडेड कर दिया। इस आरोप ने उनकी प्रतिष्ठा को बुरी तरह नुकसान पहुँचाया और उन्हें व्यापक सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा।
- जॉर्ज वाशिंगटन पर हमला: फ्रांस में अपनी कैद के लिए वाशिंगटन की कथित निष्क्रियता पर उनकी तीखी आलोचना ने उन्हें अमेरिकी जनता की नजरों में एक कड़वे और कृतघ्न व्यक्ति के रूप में चित्रित किया। वाशिंगटन की पूजा की जाने वाली स्थिति को देखते हुए, यह हमला अक्षम्य था।
- कट्टरपंथी और विभाजनकारी: उनके विचारों को अक्सर उनके जीवनकाल में बहुत कट्टरपंथी और विभाजनकारी माना जाता था। उन्होंने यथास्थिति को चुनौती दी और स्थापित शक्तियों को असहज किया, जिससे उन्हें शक्तिशाली दुश्मन मिले।
- व्यक्तिगत कठिनाइयाँ और उपेक्षा: क्रांतियों में अपने योगदान के लिए व्यक्तिगत लाभ लेने से इनकार करने के कारण उन्होंने गरीबी और अकेलेपन में अपने अंतिम वर्ष बिताए। उनकी मृत्यु एकांत में हुई और उनके अंतिम संस्कार में बहुत कम लोग शामिल हुए।
निष्कर्ष:
इतिहास में थॉमस पेन का स्थान एक जटिल और बहुआयामी है। वह एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिनकी कलम ने दुनिया को हिला दिया, जिन्होंने स्वतंत्रता, समानता और न्याय के उन सिद्धांतों की नींव रखी जिन पर आज भी लोकतांत्रिक समाज आधारित हैं। हालांकि, उनके निडर तर्कवाद, उनके धार्मिक विचारों और उनके व्यक्तित्व के कुछ पहलुओं ने उन्हें अपने समय में व्यापक रूप से विवादास्पद बना दिया।
आधुनिक इतिहासकारों ने उनके योगदान को फिर से पहचाना है और उनके काम का पुनर्मूल्यांकन किया है। आज, उन्हें एक दूरदर्शी विचारक के रूप में देखा जाता है जिनके विचार, भले ही कभी-कभी असहज हों, मानव स्वतंत्रता और प्रगति की निरंतर खोज के लिए मौलिक रहे हैं। पेन का जीवन इस बात का एक शक्तिशाली अनुस्मारक है कि कैसे सबसे गहरे सत्य और सबसे साहसी विचार अक्सर अपने समय में सबसे अधिक प्रतिरोध का सामना कर सकते हैं।
समकालीन समाज में थॉमस पेन के विचारों की प्रासंगिकता
थॉमस पेन के विचार, जो 18वीं सदी की क्रांतियों की देन थे, आज 21वीं सदी के समकालीन समाज में भी आश्चर्यजनक रूप से प्रासंगिक बने हुए हैं। उनके सिद्धांतों ने आधुनिक लोकतंत्र, मानवाधिकार और सामाजिक न्याय की नींव रखी, और आज भी वे हमें वर्तमान चुनौतियों पर विचार करने के लिए प्रेरित करते हैं।
1. लोकतंत्र और लोकप्रिय संप्रभुता (Democracy and Popular Sovereignty):
- प्रतिनिधित्व और भागीदारी: पेन ने तर्क दिया कि सरकारें अपनी शक्ति जनता से प्राप्त करती हैं। आज, जहाँ कई देशों में लोकतांत्रिक संस्थान कमजोर हो रहे हैं, पेन के विचार हमें याद दिलाते हैं कि जनता की आवाज ही लोकतंत्र का आधार है और नागरिक भागीदारी कितनी महत्वपूर्ण है।
- तानाशाही का विरोध: विश्व के कई हिस्सों में आज भी तानाशाही, सत्तावाद और गैर-प्रतिनिधि शासन मौजूद है। पेन का राजशाही का खंडन और लोकप्रिय संप्रभुता पर जोर उन सभी संघर्षों में प्रासंगिक है जहाँ लोग अपनी स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय के लिए लड़ रहे हैं।
- कानून का शासन: पेन ने कानून के शासन और संविधानवाद की वकालत की। समकालीन समाज में, जहाँ “कानून तोड़ने” या न्यायिक स्वतंत्रता को कम करने के प्रयास होते हैं, उनके विचार संविधान और कानून की सर्वोच्चता को बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर देते हैं।
2. मानवाधिकार और स्वतंत्रता (Human Rights and Freedom):
- सार्वभौमिक अधिकार: पेन का मानवाधिकारों का सार्वभौमिक दृष्टिकोण – कि वे सभी मनुष्यों के जन्मसिद्ध अधिकार हैं – आज भी मानवाधिकार आंदोलनों और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का आधार है। यह विचार कि जाति, लिंग, धर्म या राष्ट्रीयता की परवाह किए बिना हर व्यक्ति के पास कुछ अहरणीय अधिकार हैं, पेन की विरासत है।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: पेन स्वयं एक साहसी लेखक थे जिन्होंने सत्ता की आलोचना की। आज के डिजिटल युग में, जहाँ सूचना और विचार तेजी से फैलते हैं लेकिन सेंसरशिप और दुष्प्रचार भी मौजूद है, उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
- धार्मिक स्वतंत्रता: उनकी चर्च और राज्य के पृथक्करण की वकालत आज भी उन समाजों के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत है जो धार्मिक सहिष्णुता और विविधता को बढ़ावा देना चाहते हैं। जहाँ धार्मिक कट्टरता या राज्य-प्रायोजित धर्म दूसरों के अधिकारों को कमजोर करते हैं, पेन के विचार स्वतंत्रता के इस पहलू की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।
3. सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता (Social Justice and Economic Equality):
- कल्याणकारी राज्य के विचार: पेन ने वृद्धावस्था पेंशन, शिक्षा अनुदान और गरीबों के लिए सहायता जैसे विचारों का प्रस्ताव रखा था। समकालीन बहसें, जैसे कि सार्वभौमिक बुनियादी आय (Universal Basic Income) या मजबूत सामाजिक सुरक्षा जाल की आवश्यकता, उनके शुरुआती विचारों से प्रतिध्वनित होती हैं।
- धन असमानता: आज की दुनिया में बढ़ती धन असमानता एक प्रमुख वैश्विक चिंता है। पेन का संपत्ति के अधिक न्यायपूर्ण वितरण और समाज के सबसे गरीब सदस्यों को सहायता प्रदान करने का आह्वान इन आधुनिक बहसों के लिए एक ऐतिहासिक आधार प्रदान करता है।
- अवसर की समानता: पेन ने उन संरचनाओं की आलोचना की जो विशेषाधिकार और असमानता को बढ़ावा देती थीं। आज भी, अवसर की समानता सुनिश्चित करना और उन बाधाओं को दूर करना एक निरंतर संघर्ष है जो लोगों को उनकी क्षमता तक पहुँचने से रोकती हैं।
4. आलोचनात्मक सोच और तर्कवाद (Critical Thinking and Rationalism):
- अंधविश्वास और दुष्प्रचार का मुकाबला: पेन ने अंधविश्वास और अतार्किक सोच का मुकाबला करने के लिए तर्क की शक्ति पर जोर दिया। आज के सूचना-अतिभारित युग में, जहाँ गलत सूचना (misinformation) और दुष्प्रचार (disinformation) तेजी से फैलते हैं, पेन का आलोचनात्मक सोच और साक्ष्य-आधारित तर्क का आह्वान हमें तथ्यों और कल्पना के बीच अंतर करने में मदद करता है।
- विज्ञान का महत्व: पेन ने प्रकृति और विज्ञान को ईश्वर की सच्ची पुस्तक के रूप में देखा। आज भी, वैज्ञानिक साक्षरता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का महत्व पर्यावरण, स्वास्थ्य और प्रौद्योगिकी जैसी जटिल वैश्विक समस्याओं को हल करने के लिए महत्वपूर्ण है।
थॉमस पेन के विचार 18वीं सदी के केवल ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं हैं; वे शाश्वत सिद्धांत हैं जो आज भी प्रासंगिक हैं। वे हमें लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने, मानवाधिकारों की रक्षा करने, सामाजिक न्याय के लिए प्रयास करने और तर्क और आलोचनात्मक सोच के महत्व को याद दिलाने के लिए प्रेरित करते हैं। उनका काम हमें यह सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित करता है कि क्या हमारे समाज वास्तव में उन उच्च आदर्शों पर खरे उतर रहे हैं जिनकी उन्होंने वकालत की थी।
थॉमस पेन का योगदान केवल उनके समय की क्रांतियों तक ही सीमित नहीं था, बल्कि इसने बाद के राजनीतिक विचारों और सामाजिक आंदोलनों को भी गहराई से आकार दिया। उनकी दूरदृष्टि ने आधुनिक लोकतंत्रों की नींव रखी और न्याय, समानता और स्वतंत्रता के लिए संघर्षों को लगातार प्रेरित किया।
राजनीतिक विचारों पर प्रभाव
- लोकप्रिय संप्रभुता का सुदृढ़ीकरण: पेन ने इस विचार को मजबूत किया कि सरकार अपनी शक्ति जनता की सहमति से प्राप्त करती है, न कि किसी दैवीय या वंशानुगत अधिकार से। यह सिद्धांत, जो लोकतांत्रिक शासन का आधार है, उनके लेखन के माध्यम से आम राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन गया। इसने बाद के संवैधानिक आंदोलनों और उन बहसों को प्रभावित किया जो राष्ट्रों को शासकों के बजाय लोगों की इच्छा से शासित होने पर जोर देती थीं।
- राजशाही का पतन और गणतंत्रवाद का उदय: पेन ने राजशाही की वैधता पर सीधा हमला किया, उसे अतार्किक और दमनकारी बताया। उनके तर्कों ने दुनिया भर में राजशाही-विरोधी भावनाओं को बढ़ावा दिया और गणतंत्रवाद (Republicanism) के विचार को एक व्यवहार्य और बेहतर शासन प्रणाली के रूप में स्थापित किया। उनके विचार 19वीं और 20वीं शताब्दी में कई देशों में राजशाही के पतन और गणतंत्रों की स्थापना के लिए वैचारिक आधार बने।
- मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता: “द राइट्स ऑफ मैन” ने मानव अधिकारों को किसी विशिष्ट राष्ट्र या परंपरा से अलग करके, उन्हें सार्वभौमिक और अहरणीय (अर्थात, जिन्हें छीना नहीं जा सकता) के रूप में प्रस्तुत किया। यह अवधारणा बाद में मानवाधिकारों की घोषणाओं (जैसे संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा) और अंतर्राष्ट्रीय कानून की नींव बनी। उनके विचार आज भी मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को प्रेरित करते हैं।
- संविधानवाद और सीमित सरकार: पेन ने एक लिखित संविधान की आवश्यकता पर जोर दिया जो सरकार की शक्तियों को सीमित करता है और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है। यह सिद्धांत शासन की जवाबदेही और शक्ति के पृथक्करण के महत्व को स्थापित करता है, जो आधुनिक संवैधानिक लोकतंत्रों की विशेषता है।
- चर्च और राज्य का पृथक्करण: “द एज ऑफ रीज़न” में पेन की धार्मिक स्वतंत्रता की वकालत और चर्च व राज्य को अलग रखने का आह्वान धर्मनिरपेक्ष शासन के विकास के लिए महत्वपूर्ण था। यह विचार आज भी उन समाजों के लिए प्रासंगिक है जो धार्मिक विविधता को समायोजित करने और किसी भी धर्म को राज्य की शक्ति पर हावी होने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं।
सामाजिक आंदोलनों पर प्रभाव
- मताधिकार और प्रतिनिधित्व का विस्तार: पेन की “आम आदमी” के लिए अपील और लोकप्रिय संप्रभुता पर उनके जोर ने बाद के मताधिकार आंदोलनों को प्रेरित किया, जिसने सभी वर्गों और लिंगों के लिए वोट देने के अधिकार की मांग की। 19वीं सदी के ब्रिटेन में संसदीय सुधार आंदोलनों पर उनके विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा।
- दासता-विरोधी आंदोलन: पेन स्वयं दासता के प्रबल विरोधी थे और उन्होंने अपने शुरुआती पत्रकारिता में इसके खिलाफ लिखा था। उनके मानवाधिकारों के सार्वभौमिक सिद्धांत स्वाभाविक रूप से दासता के उन्मूलन की मांग को बल देते थे, जिससे बाद के दासता-विरोधी आंदोलनों को वैचारिक समर्थन मिला।
- श्रमिकों के अधिकार और सामाजिक कल्याण: “द राइट्स ऑफ मैन” के दूसरे भाग में पेन के सामाजिक सुरक्षा जाल, वृद्धावस्था पेंशन और शिक्षा के लिए सार्वजनिक वित्तपोषण के प्रस्ताव बहुत दूरदर्शी थे। इन विचारों ने 19वीं और 20वीं शताब्दी में श्रमिक आंदोलनों और आधुनिक कल्याणकारी राज्य की अवधारणाओं को प्रेरित किया। वे इस बात के शुरुआती पैरोकार थे कि समाज का दायित्व है कि वह अपने सबसे कमजोर सदस्यों की देखभाल करे।
- शिक्षा और ज्ञानोदय का प्रसार: पेन ने तर्क और आलोचनात्मक सोच के महत्व पर जोर दिया। उनका मानना था कि एक प्रबुद्ध नागरिक ही एक स्वतंत्र समाज का आधार होता है। यह विचार सार्वजनिक शिक्षा और बौद्धिक मुक्ति के आंदोलनों के लिए एक प्रेरणा था।
- वैश्विक क्रांतिकारी भावना: पेन ने मानव स्वतंत्रता को एक सार्वभौमिक संघर्ष के रूप में देखा। उनके लेखन ने आयरलैंड, लैटिन अमेरिका और अन्य जगहों पर क्रांतिकारी और सुधारवादी आंदोलनों को प्रेरित किया। वे एक अंतरराष्ट्रीय प्रतीक बन गए, जिनकी विरासत दुनिया भर में न्याय और स्वतंत्रता के लिए लड़ने वालों द्वारा अपनाई गई।
थॉमस पेन का योगदान राजनीतिक विचार और सामाजिक आंदोलनों के लिए मौलिक था क्योंकि उन्होंने जटिल दार्शनिक अवधारणाओं को सरल, प्रेरक भाषा में अनुवादित किया, जिससे वे आम लोगों तक पहुँच सकें। उन्होंने न केवल क्रांतियों को प्रेरित किया, बल्कि उन शाश्वत सिद्धांतों की नींव भी रखी जो आज भी हमें अधिक न्यायपूर्ण, लोकतांत्रिक और मानवीय समाज के लिए प्रयास करने के लिए प्रेरित करते हैं।
थॉमस पेन का काम, विशेषकर उनके लेखन के माध्यम से, मानवाधिकारों और स्वतंत्रता के लिए एक शाश्वत प्रेरणा बना हुआ है। उनकी विरासत हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि ये अवधारणाएँ कितनी मौलिक हैं और उन्हें बनाए रखने के लिए हमें क्या करना चाहिए।
मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता की नींव
पेन का सबसे महत्वपूर्ण योगदान यह विचार है कि मानवाधिकार किसी राजा, सरकार या किसी परंपरा द्वारा नहीं दिए जाते, बल्कि वे सभी मनुष्यों के जन्मसिद्ध और अहरणीय (जिन्हें छीना नहीं जा सकता) अधिकार हैं।
- “द राइट्स ऑफ मैन” में उन्होंने तर्क दिया कि ये अधिकार सार्वभौमिक हैं, यानी वे किसी भी जाति, धर्म, राष्ट्रीयता या लिंग के बावजूद हर व्यक्ति पर लागू होते हैं। यह विचार आज के अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून और संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की नींव है।
- आज भी, जहाँ दुनिया के कई हिस्सों में मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है, पेन का काम हमें याद दिलाता है कि इन अधिकारों को हर जगह, हर व्यक्ति के लिए मान्यता दी जानी चाहिए और उनका सम्मान किया जाना चाहिए।
स्वतंत्रता के लिए निरंतर संघर्ष का आह्वान
पेन केवल स्वतंत्रता की घोषणा करने वाले नहीं थे, बल्कि उन्होंने इसे एक सतत प्रयास और सावधानीपूर्वक निगरानी का परिणाम बताया।
- सरकार की जवाबदेही: उन्होंने सरकारों की शक्ति को सीमित करने और उन्हें जनता के प्रति जवाबदेह ठहराने की वकालत की। यह विचार आज भी प्रासंगिक है जहाँ नागरिकों को अपनी सरकारों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराना होता है।
- अधिकारों के लिए खड़ा होना: पेन ने सिखाया कि अन्याय के खिलाफ चुप नहीं रहना चाहिए। उनके काम ने लाखों लोगों को उत्पीड़क शासन के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रेरित किया। आज भी, जहाँ स्वतंत्रता खतरे में है, पेन का साहस और मुखरता उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो अपने और दूसरों के अधिकारों के लिए लड़ते हैं।
- सूचना और तर्क की शक्ति: पेन ने अपनी कलम का उपयोग करके जटिल राजनीतिक और नैतिक विचारों को आम जनता तक पहुँचाया। उन्होंने तर्क और “सामान्य ज्ञान” के महत्व पर जोर दिया। आज के डिजिटल युग में, जहाँ दुष्प्रचार और गलत सूचना का बोलबाला है, पेन का आलोचनात्मक सोच और तथ्यों पर आधारित बहस का आह्वान पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
सामाजिक न्याय और समानता का अग्रदूत
पेन ने केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक ही बात नहीं की, बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय की भी कल्पना की।
- उन्होंने गरीबी को समाप्त करने और एक ऐसे समाज का निर्माण करने के लिए एक रूपरेखा प्रस्तावित की जहाँ सभी को शिक्षा, पेंशन और अवसरों तक पहुंच मिले। उनके ये विचार आधुनिक कल्याणकारी राज्य और सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के अग्रदूत थे।
- यह दर्शाता है कि स्वतंत्रता केवल सरकारों से मुक्ति नहीं है, बल्कि एक ऐसा समाज भी है जहाँ सभी नागरिकों को गरिमा और अवसर के साथ जीने का मौका मिले।
थॉमस पेन का काम हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता एक अमूल्य अधिकार है जिसे लगातार पोषित और संरक्षित किया जाना चाहिए। उनका जीवन और लेखन मानव अधिकारों और आत्मनिर्णय के लिए शाश्वत संघर्ष में एक सतत प्रेरणा स्रोत के रूप में कार्य करता है।
थॉमस पेन: वह व्यक्ति जिसने अपनी कलम से दुनिया को बदलने का साहस किया
थॉमस पेन को इतिहास में एक ऐसे असाधारण व्यक्ति के रूप में याद किया जाता है, जिसने अपनी कलम की ताकत से दुनिया को बदलने का अदम्य साहस दिखाया। वे एक ऐसे विचारक थे जिन्होंने शब्दों को युद्ध के मैदान में बदल दिया, और उनके विचारों ने केवल कुछ राष्ट्रों को ही नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीतिक चिंतन की दिशा को भी स्थायी रूप से आकार दिया।
उन्होंने दिखा दिया कि एक लेखक, जिसके पास कोई सैन्य बल या राजनीतिक पद नहीं है, अपनी सोच और अभिव्यक्ति की स्पष्टता से स्थापित व्यवस्थाओं को चुनौती दे सकता है और लाखों लोगों को कार्रवाई के लिए प्रेरित कर सकता है।
उनकी कलम की शक्ति के प्रमाण:
- अमेरिकी क्रांति का प्रज्वलन: उनकी पुस्तक “कॉमन सेंस” ने उपनिवेशों के मन से ब्रिटिश राजशाही के प्रति बची-खुची वफादारी को मिटा दिया और स्वतंत्रता के विचार को एक नैतिक अनिवार्यता बना दिया। यह कोई संयोग नहीं था कि “कॉमन सेंस” के प्रकाशन के छह महीने के भीतर ही अमेरिका ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। उनकी कलम ने अमेरिकियों को यह मानने का साहस दिया कि वे अपने भाग्य के निर्माता स्वयं हैं।
- मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा: “द राइट्स ऑफ मैन” के साथ, पेन ने मानव अधिकारों की अवधारणा को वैश्विक मंच पर धकेल दिया। उन्होंने तर्क दिया कि ये अधिकार किसी सरकार की कृपा नहीं, बल्कि हर इंसान का जन्मसिद्ध अधिकार हैं। उन्होंने फ्रांसीसी क्रांति का बचाव किया और यह विचार फैलाया कि हर जगह, हर व्यक्ति स्वतंत्रता और समानता का हकदार है। यह पुस्तक आज भी मानवाधिकार आंदोलनों के लिए एक आधारशिला बनी हुई है।
- राजशाही को चुनौती देना और लोकतंत्र की वकालत: पेन ने राजशाही को “अतार्किक” और “असंभव” बताकर उसे तर्क की कसौटी पर परखा। उनकी कलम ने वंशानुगत शासन की वैधता को चुनौती दी और लोकप्रिय संप्रभुता और गणतांत्रिक सरकार के सिद्धांतों के लिए तर्क दिया, जो बाद में आधुनिक लोकतंत्रों की नींव बने।
- सामाजिक न्याय के लिए दूरदृष्टि: पेन की कलम केवल राजनीतिक दर्शन तक ही सीमित नहीं थी। उन्होंने गरीबी उन्मूलन, शिक्षा के अधिकार और सामाजिक सुरक्षा जाल जैसे विचारों की भी वकालत की, जो उनके समय से बहुत आगे थे। उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता का अर्थ केवल राजनीतिक मुक्ति नहीं, बल्कि हर व्यक्ति के लिए सम्मान और अवसर है।
- ज्ञान और तर्क के लिए संघर्ष: “द एज ऑफ रीज़न” के साथ, उन्होंने धार्मिक रूढ़िवादिता और अंधविश्वास को चुनौती दी, तर्क और व्यक्तिगत विवेक के महत्व पर जोर दिया। भले ही यह पुस्तक उनके लिए विवादों का कारण बनी, इसने विचारों की स्वतंत्रता और आलोचनात्मक सोच के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम की।
साहस का प्रतीक:
पेन ने अपने विचारों के लिए भारी व्यक्तिगत कीमत चुकाई। उन्हें राजद्रोह का आरोप झेलना पड़ा, जेल में रहना पड़ा, और अपने जीवन के अंतिम वर्षों में गरीबी और उपेक्षा का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। उनकी निडरता और सत्य बोलने का साहस, भले ही वह अलोकप्रिय हो, उन्हें एक शाश्वत प्रतीक बनाता है।
थॉमस पेन का स्मरण एक ऐसे व्यक्ति के रूप में किया जाता है, जिसने केवल तलवारों और बंदूकों से ही नहीं, बल्कि विचारों और शब्दों की शक्ति से दुनिया को बदला। उनकी विरासत आज भी उन सभी के लिए प्रेरणा है जो अपनी कलम, अपनी आवाज, या अपने विचारों का उपयोग करके एक बेहतर, अधिक न्यायपूर्ण और स्वतंत्र दुनिया के लिए लड़ते हैं।
